ख़ैबर बर्बाद हुवा !
पुर अम्न बस्ती, सुब्ह तड़के का वक़्त, लोग अध् जगे, किसी नागहानी से बेख़बर, ख़ैबर वासियों के कानों में शोर व् ग़ुल की आवाज़ आई तो उन्हें कुछ देर के लिए ख़्वाब सा लगा, मगर नहीं यह तो हक़ीक़त थी.
आवाज़ ए तक़ब्बुर एक बार नहीं, दो बार नहीं तीन बार आई,
नारा ए तकबीर अल्लाहुमक़सद - - -
''ख़ैबर बर्बाद हुवा ! क्यूं कि हम जब किसी क़ौम पर नाज़िल होते हैं
तो इन की बर्बादी का सामान होता है''
यह आवाज़ किसी और की नहीं,
सललल्लाहो अलैहे वसल्लम कहे जाने वाले मुहम्मद की थी.
नवजवान मुक़ाबिला को तैयार होते, इस से पहले मौत के घाट उतार दिए गए.
बेबस औरतें लौडियाँ बना ली गईं और बच्चे ग़ुलाम कर लिए गए.
बस्ती का सारा तन और धन इस्लाम का माले ग़नीमत बन चुका था.
एक जेहादी लुटेरा वहीय क़ल्बी,
जो एक परी ज़ाद को देख कर उस पर फ़िदा हो जाता है,
मुहम्मद के पास आता है और एक अदद कनीज़ की ख़्वाहिश का इज़हार करता है,
जो मुहम्मद उसको अता कर देते हैं.
वहीय के बाद एक दूसरा जेहादी मुहम्मद के पास दौड़ा दौड़ा आता है
और इत्तेला देता है,
या रसूल अल्लाह सफ़िया बिन्त हई तो आप की मलिका बन्ने के लायक़ हसीन जमील है, वह बनी क़रीज़ा और बनी नसीर दोनों की सरदार थी.
यह ख़बर सुन कर मुहम्मद के मुंह में पानी आ जाता है,
उनहोंने क़ल्बी को बुलाया और कहा तू कोई और लौंडी चुन ले.
मुहम्मद की एक पुरानी मंजूरे नज़र उम्मे सलीम ने
उस क़त्ल और ग़ारत गरी के आलम में मज़लूम सफ़िया को दुल्हन बनाया,
मुहम्मद दूलह बने और दोनों का निकाह हुवा.
लुटे घर, फुंकी बस्ती में, बाप भाई और शौहर की लाशों पर
सललल्लाहो अलैहे वसल्लम ने सुहाग रात मनाई.
मुसलमान अपनी बेटियों के नाम मुहम्मद की बीवियों,
लौंडियों और रखैलों के नाम पर रखते हैं,
यह सुवरज़ाद ओलिमा के उलटे पाठ की पढ़ाई की करामत है,
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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