आबादियों का उत्थान और पतन
मैं एक कस्बे में पैदा हुवा, वहीं पला, बढ़ा और बड़ा हुवा .
दुन्या देखता हुवा 74 का हो रहा हूँ. मेरे माँ बाप से आज 69 संतानें हुई है जिनमें 62 जीवित हैं,
वहीं बस्ती में 5 बरहमन घर थे जिनका आज वजूद भी बाक़ी नहीं .
कुछ बनिए आबाद कारी में रेंगते हुए दो चार क़दम ही आगे बढे होंगे.
बाज़ार में उनकी पक्की दूकानें एक मंज़िल ऊपर जाकर
उनकी रिहायश ज़रूर बन गई हैं.
कुछ पिछड़े थे जो अपनी जगह पर ही बने हुए हैं.
बे असर, बेजान लोग थोड़े से अछूत थे जो आज ढूँढे नहीं मिलते.
मेरा हमउम्र चमार 35 साल पहले ही बूढ़ा होकर मर गया था .
मुस्लिम बाहुल्य कस्बा है जहाँ मुस्लिम आबादी मेरे माँ बाप के परिवार की तरह ही फली फूली, पूरा क़स्बा उनसे अटा पड़ा है. नए नए मोहल्ले बन गए है.
मुस्लिम दिन भर मेहनत मजदूरी करते हैं, रात को बनिस्बत लाला जी के
अच्छा खा पी कर सो जाते हैं कि कल का अल्लह मालिक है,
लाला जी कल के अंदेशे में सूखते रहते हैं.
मुसलमानों को एक वक़्त तो गोश्त मछली मुर्ग होना ही चाहिए भले ही भैसे का हो ,
हिन्दू घास पूस और कद्दू खाकर सो जाता है .
ख़ुराक से प्रजनन का करीबी ताल्लुक होता है .
हिन्दू गो धन, गज धन और रतन धन के फेरे में मुब्तिला रहता है
और मुसलमान संतान धन उपार्जित करता है.
हिन्दू साधु, सन्यासी, संत, महात्मा, योगी, स्वामी साध्वी
और ब्रहमचारी पैदा करता रहता है ,
जो इस्लाम में हराम है. मुजर्रद (ब्रहमचर्य) को इस्लाम रोकता है.
हिन्दुओं में इसे महिमा मंडित करते हैं .
ख़ुद कशी हिदुओं में आम बात है, मुसलमान इसे हराम समझता है .
किसानों में ख़ुद कुशी जिस तेज़ी से बढ़ रही है,
उनमें मुसलमानों का कोई नाम नहीं .
हिन्दू स्वाभाविक रूप से कंजूस और लालची होता है.
अपने ही परिवार के लावारिस और अनाथ हुए संतानों को मार डालने में
उसे कोई ग़ुरेज़ नहीं होता, ऐसे कई मुआमले इसी बस्ती में मैं ने देखे हैं ,
जबकि मुसलमानों को उनके धर्मादेश के अनुसार यतीमों और लावारिशों पर ख़ास ख़याल रखा जाता है कि ऐसे बच्चों की हक़ तलफ़ी उन पर हराम हैं .
इस्लाम भेद-भाव रहित सीधा सरल समाज रखता है .
हिन्दू इसके उल्टा नफ़रत और छूत-छात का समाज होता है .
बस्ती की एक बे सहारा मेहतरानी ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया,
उसको वहां के मौलाना ने अपने घर का बावर्ची खाना सौंप दिया,
वह परिवार भर का खाना बनती है, परिवार के सभी सदस्य खाते हैं .
इस किस्म के कई वाक़िए हैं जो हिन्दू आबादी के पतन का करण बने हैं .
साधवी और योगी कहते हैं हिन्दू चार बच्चे पैदा करें,
है न लतीफ़ा.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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