ज़ैद ;- एक मज़लूम का पसे-मंज़र - - -
एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद बिन हारसा को बस्ती से बुर्दा फ़रोशों (बच्चा चोरों) ने अपहरण कर लिया,और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथों फ़रोख़्त कर दिया. ज़ैद बिन हारसा अच्छा बच्चा था, इस लिए मुहम्मद और उनकी बेगम ख़दीजा ने उसे भरपूर प्यार दिया.
उधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा था,
वह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करता.
उसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मदीने में मुहम्मद के पास है, तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुंचा.
मुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---
"पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."
ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दी, वह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते- मुहब्बत से लिपट गया, मगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया.
"खाई मीठ कि माई" ?
बदहाल माँ बाप का बेटा था.
हारसा मायूस हुवा.
मुआमले को जान कर आस पास से भीड़ आ गई,
मुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा ,
"आप सब के सामने मैं अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"
ज़ैद अभी नाबालिग़ ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हबशन कनीज़ ऐमन से करा दिया. ऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि बचपन में वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी.
आमिना चल बसी, मुहम्मद की देख भाल ऐमन ही करती,
यहाँ तक कि वह सिने बलूग़त में आ गए.
पच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला ख़दीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह ख़दीजा के घर अपने साथ ले गए.
जी हाँ! आप के सल्लाल्ह - - - घर जँवाई हुआ करते थे
और ऐमन उनकी रखैल पहले ही बन चुकी थी.
ऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ
जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूग़त को भी न पहुँचा था,
मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.
ज़ैद के बालिग़ होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया
और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से कर दी.
ख़ानदान वालों ने एतराज़ जताया कि
एक ग़ुलाम के साथ ख़ानदान कुरैश की बेटी की शादी ?
मुहम्मद जवाब था, ज़ैद ग़ुलाम नहीं,
ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है.
फिर हुआ ये,
एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाख़िल हुवा,
देखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप
उसकी बीवी ज़ैनब के साथ मुँह काला कर रहा है.
उसके पाँव के नीचे से ज़मीन खिसक गई,
घर से बाहर निकला तो घर का मुँह कभी न देखा.
हवस से जब मुहम्मद फ़ारिग हुए तब बाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलाने लगे, मगर वह न पसीजा.
मुहम्मद ने समझाया
"जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे,
वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने दे.
तू था क्या?
मैं ने तुझको क्या से क्या बना दिया, पैग़म्बर का बेटा,
हम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगा, मान जा,"
ज़ैद न माना तो न माना, बोला तब मैं नादान था, ऐमन आपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक़ यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है,
आप पर आप कि पैग़मबरी क्या कुछ कहती है?
मुहम्मद की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई मछली की बदबू की तरह फैली.
औरतें तआना ज़न हुईं कि
बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह काला.
अपने हाथ से चाल निकलते देख कर, ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया,
एलान किया कि ज़ैनब मेरी बीवी है, मेरा इसके साथ निकाह हुवा है,
निकाह अल्लाह ने पढ़ाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,
अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से मनवा लिया.
उस वक़्त का समाज था ही क्या?
रोटियों को मोहताज,
उसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है.
ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस घृणित वाक़ेए की कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है,
इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के ख़सम कहता हूँ.
दर अस्ल इन बे ज़मीरों को अपनी माँ का ख़सम ही नहीं बल्कि
अपनी बहन और बेटियों के भी ख़सम कहना चाहिए.
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