हिन्दू और मुस्लिम मानस
मैं कई बार बिना किसी लिहाज़ के यह बात लिख चुका हूँ
कि बुरे इस्लाम के असर में रहने वाले मुस्लिम मानस,
बहुत बुरे हिन्दू मनुवादियों से बेहतर हैं.
इस बात पर कुछ नासमझ मुझे पक्ष पाती ठहराने लगते हैं.
हक़ीक़त यह है कि समाज के आईने में रख कर इसे साफ़ देखा जा सकता है.
अभी हाल में कठुवा और मंदसौर की दोनों घटनाओं इसकी गवाह हैं.
कठुवा गैंग रैप के 6-7 आरोपी जिनमे एक ख़ुद उस बेटी का बाप है,
जो पीड़िता की हम उम्र थी, जो उसकी शिकार हुई .
गैंग रैप मंदिर में हुवा, एक हफ्ते तक.
गैंग रेपिस्ट को बचाने के लिए हिन्दू मानस सड़कों पर उतर आए.
क्या धर्म धुरंदर, क्या नेता, यहाँ तक कि संविधान के संरक्षक वकील भी.
अपनी अंतर आत्मा में, इतनी कालिमा को लिए कैसे सांस ले पाते है यह लोग ?
उधर मंदसौर में मुस्लिम रेपिस्ट के ख़िलाफ़ पूरा शहर सड़कों पर था,
मुस्लिम औरतें जो कह रही थीं कि मुजरिम को फांसी दो,
हम उसे अपने क़ब्रिस्तान में दफ़्न नहीं होने देंगे.
दिल को ज़ार ज़ार करने वाली बात यह देखी गई कि
"आरोपी का पिता अपने बेटे को फांसी पर लटकाने की मांग कर रहा था."
ख़ुशी की बात यह थी कि मंदसौर की घटना ने हिन्दू मुस्लिम दोनों को एक आवाज़ कर दिया,
शायद कठुवा के बाशिदे कुछ शर्मिंदा हों.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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