मानव की मुक्ति
इस्लाम और क़ुरान पर मेरा बेलाग तबसरा और निर्भीक आलोचना को पढ़ते पढ़ते , मेरे कुछ मित्र मुझे समझने लगे कि मैं हिन्दू धर्म का समर्थक हूँ .
मेरी हकीक़त बयानी पर वह मायूस हुए और आश्चर्य में पड गए . लिखते हैं - - -
"आपसे मुझको ऐसी उम्मीद नहीं थी ."
मेरे "कश्मीरी पंडितो "और दूसरे उन लेखों पर जो उनके मर्ज़ी के मुताबिक न हुए .
अपने ऐसे मित्रों से मेरा निवेदन है कि मैं इस्लाम विरोधी हूँ,
वहां जहाँ होना चाहिए,
और क़ुरान की उन बातों से सहमत नहीं जो इंसानियत विरोधी हैं ,
मैं उन नादान मुसलमानो का ख़ैर ख़्वाह हूँ जो क़ुरान पीड़ित हैं .
इसी तरह मैं हिदू जन साधारण का दोस्त हूँ जो धर्म के शिकार हैं.
मैं हर धर्म को बुरा मानता हूँ .
कोई ज्यादह बुरा हैं कोई कम बुरा ..
मेरे मित्र गण अगर सत्य पर पूरा पूरा विशवास रखते हो तभी मेरे दोस्त रह सकते है .
झूट और पाखंड के पुजारियों को मैं दोस्त रखना पसंद नहीं करूंगा .
जो लौकिक सत्य पर ईमान रखता है वही मोमिन है वही महा मानव है ,
हिन्दू और मुसलमान ख़ुद को बदलें और पुर अम्न इंसानियत की राह पर आ जाएं , देश को ऐसे वासियों की ही ज़रुरत है ,
इसी में मानव की मुक्ति हैं .
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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