हिन्दू ख़ुद अपना दुश्मन
कूप मंडूक RRS के सपने मुस्लिम विरोध पर ही नहीं टिकते,
आज के दलित कहे जाने वाले, कल के शुद्र, असली आदि वासियों
के विरोध पर ही आधारित हैं,
कहा जा सकता है कि तमाम मानव जाति का और मानवता का विरोधी है.
सिर्फ़ मुठ्ठी भर बरहमान को छोड़ कर.
दूर दर्शिता में तो इसे अँधा भी कहा जा सकता है.
आज़ाद भारत में कुछ प्रितिशत बरहमन सत्ता पर ज़रूर विराजमान है,
बाकी का हाल कहीं कहीं पिछड़ों से भी पीछे हैं.
इनकी आबादी का प्रितिशत भी बाकियों से पीछे है.
मनुवाद ने इनका भी नुक़सान किया है, शूद्रों को पामाल किया सो किया.
इनकी काट भी दर पर्दा इस्लाम करता है, जब कभी दलित दमित समाज इन से कोपित होकर धर्म परिवर्तन की धमकी देता है
जिसकी शरण स्थली इस्लाम होता है.
इस्लाम ने भारत का नक़्शा बदला है.
एक बड़ा हिस्सा जो मामा शकुनी और गंधारी के ऐतिहासिक कर्म भूमि था,
आज मनुवाद से मुक्त हो चुका है, यह बात अलग है कि फ़िलहाल इस्लाम ग्रस्त है.
बंगाल में एक दलित जिसे उर्फे-आम में काला पहाड़ कहा जाता था,
जगा तो 95% शूद्र जो जानवर से बदतर ज़िन्दगी ग़ुज़ार रहे थे,
सभों ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया और मनु वादियों को ऐसी सज़ा दी कि
उन्हें उसे भागे राह न मिली.
काला पहाड़ जिसने मुस्लिम शाशक के सामने इस शर्त पर इस्लाम कुबूल किया था कि उसे फ़ौज में बड़ा ओहदा दे दिया जाए.
ताक़त मिलने के बाद, उसकी एक आवाज़ पर सारे शूद्र मुसलमान हो गए,
नतीजतन बरह्मानों को भागे राह न मिली और थक हार के वह भी मुसलमान हो गए.
शेख़ मुजीबुर रहमान और शेख़ हसीना जैसे कल के बरहमन ही हुवा करते थे.
एक बड़ा भू भाग मनुवाद से मुक्त होकर अलग देश बन गया है.
पश्चिमी बंगाल में भी काला पहाड़ की बरकत देखी जा सकती है.
RRS होश के नाख़ून ले, कहीं कोई दूसरा काला पहाड़ जन्मा तो मुसलामानों को पाकिस्तान भेजने वाले, ख़ुद कहाँ जाएँगे ?
आजकी सच्चाई सिर्फ़ शुद्ध मानवता वाद में ही देश और देश वासियों की मुक्ति है.
न इस्लाम और न ही हिदुत्व में.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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