अबू लहब
अबू लहब मुहम्मद के सगे चाचा थे,
ऐसे चाचा कि जिन्हों ने चालीस बरस तक अपने यतीम भतीजे मुहम्मद को
अपनी अमाँ और शिफक़त में रक्खा.
अपने मरहूम भाई अब्दुल्ला की बेवा आमना के कोख जन्मे मुहम्मद की
ख़बर सुन कर अबू लहब ख़ुशी से झूम उट्ठे और अपनी लौड़ी को आज़ाद कर दिया,
लौड़ीने बेटे की ख़बर दी थी और उसकी तनख्वाह मुक़र्रर कर के
मुहम्मद को दूध पिलाई की नौकरी दे दिया.
अबू लहब बचपन से लेकर जवानी तक मुहम्मद के सर परस्त रहे.
दादा के मरने के बाद इनकी देख भाल किया,
यहाँ तक कि मुहम्मद की दो बेटियों को अपने बेटों से मंसूब करके
मुहम्मद को सुबुक दोष किया.
मुहम्मद ने अपने मोहसिन चचा का तमाम अह्सानत पल भर में फरामोश कर दिया.
वजेह ?
हुवा यूँ था की एक रोज़ मुहम्मद ने ख़ानदान क़ुरैश के तमाम को
कोह ए मिनफ़ा पर इकठ्ठा होने की दावत दी.
लोग अए तो मुहम्मद ने सब से पहले तम्हीद बांधा
और फिर एलान किया कि अल्लाह ने मुझे अपना पैग़मबर मुक़र्रर किया.
लोगों को इस बात पर काफ़ी गम ओ ग़ुस्सा और मायूसी हुई कि
ऐसे जाहिल को अल्लाह ने अपना पैग़मबर कैसे चुना ?
सबसे पहले अबू लहेब ने ज़बान खोली और कहा,
"तू माटी मिले, क्या इसी लिए तूने हम लोगों को यहाँ बुलाया है?
इसी बात पर मुहम्मद ने यह सूरह गढ़ी जो क़ुरआन में
इस बात की गवाह बन कर 111 के मर्तबे पर है.
सूरह लहेब क़ुरआन की वाहिद सूरह है जिस में किसी फ़र्द का नाम दर्ज है.
किसी ख़लीफ़ा या क़बीले के किसी फ़र्द का नाम क़ुरआन में नहीं है.
"ज़िक्र मेरा मुझ से बढ़ कर है कि उस महफ़िल में है"
नमाज़ियो !
गौर करो कि अपनी नमाज़ों में तुम क्या पढ़ते हो?
क्या यह इबारतें क़ाबिल ए इबादत हैं?
अल्लाह अबू लहेब और उसकी जोरू को बद दुआएँ दे रहा है .
उनके हालत पर तआने भी दे रहा है कि
वह उस ज़माने में लकड़ी ढोकर ग़ुज़ारा करती थी.
यह मुहम्मदी अल्लाह जो हिकमत वाला है,
अपनी हिकमत से इन दोनों प्राणी को पत्थर की मूर्ति ही बना देता.
"कुन फिया कून" कहने की ज़रुरत थी.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
No comments:
Post a Comment