हर्फ़ ए ग़लत
शर्री रसूल के बाप को किसी ने नहीं मारा कि वह उससे इंतेक़ाम ले, न दादा को.
वह तो इस बात का बदला लेगा कि उसकी रिसालत को लोग नहीं मान रहे हैं
जो कि किसी बच्चे के गले भी नहीं उतरती.
लाखों लोग उसके इंतेक़ाम के शिकार हो गए.
*क़ुरआन की लाखों झूटी तस्वीरें इस्लामी आलिमों ने दुन्या के सामने अब तक पेश की हैं.
"हर्फ़ ए ग़लत"
आप की ज़बान में ग़ालिबान पहली किताब है जो उरियां सदाक़त के साथ आप के सामने एक बा ईमान मोमिन लेकर आया है.
इसके सामने कोई भी फ़ासिक़ लम्हा भर के लिए नहीं ठहर सकता.
क़ुरआनी अल्लाह के मुक़ाबिले में कोई भी कुफ़्र का देव और शिर्क के बुत
बेहतर हैं कि अय्याराना कलाम तो नहीं बकते,
डराते धमकाते तो नहीं, गरयाते भी नहीं, पूजो तो सकित न पूजो तो सकित,
जिस तरह से चाहो इनकी पूजा कर सकते हो, सुकून मिलेगा, बिना किसी डर के. इनकी न कोई सियासत है, न किसी से बैर और बुग्ज़.
इनके मानने वाले किसी दूसरे तबके, ख़ित्ते और मुख़ालिफ़ पर ज़ोर ओ ज़ुल्म करके अपने माबूद को नहीं मनवाते.
इस्लाम हर एक पर मुसल्लत होना अपना पैदायशी हक़ समझता है.
जब तक इस्लाम अपने तालिबानी शक्ल में दुन्या पर क़ायम रहेगा,
जवाब में अफ़गानिस्तान,इराक़ और चेचेनिया का हश्र इसका नसीब बना रहेगा.
भारत में कट्टर हिन्दू तंजीमे इस्लाम की ही देन हैं.
ग़ुजरात जैसे फ़साद का भयानक अंजाम क़ुरआनी आयातों का ही जवाब हैं.
ये बात कहने में कोई मुज़ायक़ा नहीं कि जो मुकम्मल मुसलमान होता है
वह किसी जम्हूरियत में रहने का मुस्तहक़ नहीं होता.
मुसलमानों के लिए कोई भी रास्ता बाक़ी नहीं बचा है,
सिवाय इसके कि तरके-इस्लाम करके मजहबे-इंसानियत क़ुबूल कर लें.
कम अज़ कम हिदुस्तान में इनका ये अमल फ़ाले नेक साबित होगा,
राद्दे अमल में कट्टर हिन्दू ज़हनियत वाले हिन्दू भी
अपने आप को खंगालने पर आमादा हो जाएँगे.
हो सकता है वह भी नए इंसानी समाज की पैरवी में आ जाएँ.
तब बाबरी मस्जिद और राम मंदिर, दो बच्चों के बीच कटे हुए पतंग के फटे हुए कागज़ को लूटने की तरह माज़ी की कहानी बन जाए. तब
दोनों बच्चे कटी फटी पतंग को और भी मस्ख़ करके ज़मीन पर फेंक कर
क़हक़हा लगाएँगे.
इंसान के दिलों में ये काली बलूग़त को गायब करने की ज़रुरत है,
और मासूम ज़ेहनों से लौट जाने की.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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