तराशा हुआ झूट
कुफ़्फ़ार ए मक्का कहते हैं - -
" ए मुहम्मद ये क़ुरआन तुम्हारा तराशा हुआ झूट है"
क़ुरआन मुहम्मद का तराशा हुवा झूट है, ये सौ फ़ीसदी सच है.
कमाल का ख़मीर था उस शख़्स का, जाने किस मिटटी का बना हुवा था वह,
शायद ही दुन्या में पैदा हुवा हो कोई इंसान, तनहा अपनी मिसाल आप है वह.
अड़ गया था अपनी तहरीक पर जिसकी बुनियाद झूट और मक्र पर रखी हुई थी.
हैरत का मुक़ाम ये है की हर सच को ठोकर पर मारता हुवा,
हर गिरफ़्त पर अपने पर झाड़ता हुवा,
झूट के बीज बोकर फ़रेब की फ़सल काटने में कामयाब रहा.
दाद देनी पड़ती है कि इस क़द्र बे बुन्याद दलीलों को लेकर
उसने इस्लाम की वबा फैलाई
कि इंसानियत उस का मुंह तकती रह गई.
साहबे-ईमान लोग मुजरिम की तरह मुँह छिपाते फिरते.
ख़ुद साख़्ता पैग़मबर की फैलाई हुई बीमारी बज़ोर तलवार दूर तक फैलती चली गई.
वक़्त ने इस्लामी तलवार को तोड़ दिया मगर बीमारी नहीं टूटी.
इसके मरीज़ इलाज ए जदीद की जगह इस्लामी ज़हर पीते चले गए,
ख़ास कर उन जगहों पर जहाँ मुक़ामी बद नज़मी के शिकार और दलित लोग.
इनको मज़लूम से ज़ालिम बनने का मौक़ा जो मिला.
इस्लाम की इब्तेदा ये बतलाती है कि मुहम्मद का ख़ाब क़बीला ए क़ुरैश की अज़मत क़ायम करना और अरब की दुन्या तक ही था,
इस कामयाबी के बाद अजमी (गैर अरब) दुन्या इसके लूट का मैदान बनी,
साथ साथ ज़ेहनी ग़ुलामी के लिए तैयार इंसानी फ़सल भी.
मुहम्मद अपनी जाबिराना आरज़ू के तहत बयक वक़्त दर पर्दा अल्लाह बन गए,
मगर बज़ाहिर उसके रसूल ख़ुद को क़ायम किया.
वह एक ही वक़्त में रूहानी पेशवा,
मुमालिक का रहनुमा और बेताज बादशाह हुआ ,
इतना ही नहीं,
एक डिक्टेटर भी थे,
बात अगर जिन्स की चले तो राजा इन्दर साबित होता है.
कमाल ये कि मुतलक़ जाहिल, एक क़बीलाई फ़र्द. हट धर्मी को ओढ़े-बिछाए, जालिमाना रूप धारे,
जो चाहा अवाम से मनवाया, इसकी गवाही ये क़ुरआन और उसकी हदीसें हैं.
मुहम्मद की नक़्ल करते हुए हज़ारों बाबुक खुर्मी और अहमदी हुए
मगर कोई मुहम्मद की गर्द भी न छू सका.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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