पैग़ाम
मैं प्रचलन में मुसलमान हूँ
और डंके की चोट पर मुसलमानो का ख़ैर ख़्वाह हूँ.
मेरे हर आर्टिकल मुसलमानों के हित में होते हैं.
वह इस लिए कि भारत में मुसलमान सब से ज़्यादः निरक्षर, निर्धन
और पक्षपात का शिकार है.
लगभग हर हिन्दी लेख के साथ मेरा नोट ;- लगा रहता है कि
"यह उन मुसलमानों के लिए है जो उर्दू नहीं जानते."
इसके बाद भी लोगों का ओछा कमेन्ट देख कर हैरानी होती है.
मैं जिस दर्जे का मुसलमान हूँ, काश उसी दर्जे के हिन्दू, सारे हिन्दू हो जाएं.
इस्लाम और मनुवाद भारत के जिल्दी मरज़ (चर्म-रोग) हैं.
इस्लाम इस्लामी मुल्को का इससे भी घातक रोग, क्षय रोग है.
मैंने कुछ दिनों से हिन्दू धर्म को भी इस्लाम के साथ नाधा है.
पहले इससे बचता था कि हिन्दू मित्रों की राय थी,
"मियाँ ! इसमें बहुत से समाज सुधाक हुए हैं, मुसलमानों तक ही सीमित रहिए"
मगर ज़मीर ने आवाज़ दी कि यह संकुचन है कि मुसलमानों को ही संभालो,
विस्तृत हो जाओ, हिन्दू भी हमारे भाई हैं.
इनको भी मेरी जरूरत है.
दोस्तों को भी मिले दर्द की लज़्ज़त या रब,
सिर्फ़ मेरा ही भला हो, मुझे मंज़ूर नहीं.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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