Thursday 5 March 2020

खेद है कि यह वेद है (28-29)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (28-29)

जो यजमान घृत युक्त हव्यों से ब्राह्मणस्पति की सेवा करता है 
उसे वह प्राचीन सरल मार्गों से ले जाते है.
पाप शत्रुओं एवं दरिद्रता से रक्षा करते हैं 
और अद्भुत उपकार करते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 26 (4)
घृत युक्त व्यंजन के शौक़ीन पंडित जी वेद मन्त्रों से समाज को ठगते थे और आज भी हवन यज्ञ को महिमा मंडित किए हुए हैं. 
जन साधारण समझे कि यह आडम्बर क्या है और क्यों है.



खेद  है  कि  यह  वेद  है   (29)

इस  वृत्र ने आकाश में ऊपर उठा कर सब पदार्थों को ढक लिया था 
इस लिए इंद्र ने उसके ऊपर वज्र फेंका. 
मेघ से ढका हुवा वृत्र इंद्र की ओर दौड़ा, 
तभी तीखे आयुद्ध वाले इंद्र ने उसे हरा दिया.
द्वतीय मंडल सूक्त 30(3)
वृत्र और इंद्र के आकाश युद्ध का फूहड़ नमूना ! 
क्या इसी फार्मूले को पश्चिम वाले चुरा ले गए थे? 
जो आज ब्रह्मांड पर विजय पताका लहरा रहे है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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