Friday, 27 March 2020

खेद है कि यह वेद है (40)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (40)

हे सोम एवं पूषा !
तुम में से एक ने समस्त प्राणियों को उत्पन्न क्या है. 
दूसरा सब का निरीक्षण करता हुवा जाता है. 
तुम हमारे यज्ञ कर्म की रक्षा करो. 
तुम्हारी सहायता से हम शत्रुओं की पूरी सेना को जीत लेंगे.
द्वतीय मंडल सूक्त 40(5)
*पंडित जी सैकड़ों देव गढ़ते है और फिर इनको उनकी विशेषता से अवगत कराते हैं, उसके बाद उनको अपनी चाकरी पर नियुक्त करते हैं. पता नहीं किस शत्रु की सेना इनके यज्ञ में विघ्न  डालती हैं. 
यजमान हाथ जोड़ कर इनके मंतर सुनते हैं. मैंने पहले भी कहा है मंतर जिसे मंत्री के सिवाए कोई समझ न पाए. यह बहुधा संस्कृति और अरबी में होते है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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