खेद है कि यह वेद है (34)
हे रूद्र !
तुम्हारा वह सुख दाता हाथ कहाँ है जो सबको सुख पहुँचाने वाली दवाएं बनाता है ?
हे काम वर्धक रूद्र !
तुम देव कृत पाप का विनाश करते हुए मुझे जल्दी क्षमा करो .
द्वतीय मंडल सूक्त 33 (7)
काम वर्धक अर्थात आज की भाषा में अय्याशी . श्लोक उन हाथों को तलाश कर रहा है जो उसके लिए काम वर्धक दवाएं बनाता है .
कुरआनी मुसलमान हो या वैदिक हिन्दू , सब भोग विलाश में मुब्तिला है.
देव तो देव होते हैं, उनके कृत पाप कैसे हुए. अगर देव भी पापी हुवा करते हैं तो इंसान की क्या औकात ?
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
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