Saturday 21 March 2020

खेद है कि यह वेद है (34)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (34)

हे रूद्र ! 
तुम्हारा वह सुख दाता हाथ कहाँ है जो सबको सुख पहुँचाने वाली दवाएं बनाता है ? 
हे काम वर्धक रूद्र !
तुम देव कृत पाप का विनाश करते हुए मुझे जल्दी क्षमा करो . 
द्वतीय मंडल सूक्त 33 (7)
काम वर्धक अर्थात आज की भाषा में अय्याशी . श्लोक उन हाथों को तलाश कर रहा है जो उसके लिए काम वर्धक दवाएं बनाता है . 
कुरआनी  मुसलमान हो या वैदिक हिन्दू , सब भोग विलाश में मुब्तिला है. 
देव तो देव होते हैं, उनके कृत पाप कैसे हुए. अगर देव भी पापी हुवा करते हैं तो इंसान की क्या औकात ? 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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