खेद है कि यह वेद है (30)
हे समान रूप से प्रसन्न देवो !
इस समय जनपदों मेंअन्न की खोज में गए हुए हमारे रथ को गति शील बनाओ.
क्योकि इस रथ से जुड़े हुए घोड़े अपनी गतियों से मार्ग तय करते हैं
एवं उठी हुई धरती पर अपने खुरों से बहुत तेज़ चल सकते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 31(2)
लगता है वैदिक काल की सब से बड़ी समस्या अन्न हुवा करता था. अन्न प्राप्ति के लिए प्रोहित यज्ञ का आयोजन किया करते थे. उनके बस की बात न रही होगी कि हल और फावड़ा उठाएं, धरती का सीना चीर कर अन्न उपजाएं. काहिल और हराम खोर जो ठहरे.
यह मानसिक अपंग भी हुवा करते थे. यह बात इनकी रचना बतलाती है कि घोड़ों को पैरों से नहीं, खुरों से दौडाते हैं.
No comments:
Post a Comment