Monday 23 March 2020

खेद है कि यह वेद है (36)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (36)

* हे बुद्धिमान अग्नि ! 
इस यज्ञ स्थल में देवों को बुला कर उनके निमित यज्ञ करो.
हे देवों को बुलाने वाले अग्नि !
तुम हमारे हव्य की इच्छा करते हुए तीन स्थानों पर बैठो , 
उत्तर वेदी पर रख्खे हुए सोमरूप मधु को रवीकर करो.
एवं अगनीघ्र के पास से अपना हिस्सा लेकर तृप्त बनो.
द्वतीय मंडल सूक्त 36(4)

बुद्धू राम अग्नि को बुद्धमान बतला रहे हैं. 
आग का बुद्धी से क्या वास्ता ?  
देव को महाराज हुक्म देते हैं कि अपना हिस्सा ही लेना , 
कोई मनमानी नहीं करना. 
यह है इनका मस्तिष्क स्तर.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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