खेद है कि यह वेद है (69)
हे प्रचंड योद्धा इन्द्र!
तू सहस्त्रों प्रकार के भीषण युद्धों में अपने रक्षा-साधनों द्वारा हमारी रक्षा कर |४|
हमारे साथियों की रक्षा के लिए वज्र धारण करता है,
वह इन्द्र हमें धन अथवा बहुत से ऐश्वर्य के निमित्त प्राप्त हो.
(ऋग्वेद १.३.७)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
इन्हीं वेदों की देन हैं कि आज मानव समाज विधर्मिओं और अधर्मियों को मिटाने की दुआ माँगा करता है और उनके बदले अपनी सुरक्षा चाहता है. इंसान को दूसरों का शुभ चिन्तक होना चाहिए.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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