Sunday, 28 June 2020

सीध सड़क

सीध सड़क          
  
मैं क़ुरआन को एक साज़िशी और अनपढ़ दीवाने  की पोथी मानता हूँ 
और मुसलामानों को इस पोथी का दीवाना.
एक ग़ुमराह इंसान चार क़दम भी नहीं चल सकता कि राह बदल देगा, 
ये सोच कर कि शायद वह ग़लत राह पर ग़ुम हो रहा है. 
इसी कशमकश में वह तमाम उम्र ग़ुमराही में चला करता है. 
मुसलमानों की ज़ेह्नी कैफ़ियत कुछ इसी तरह की है, 
कभी वह अपने दिल की बात मानता है, 
कभी मुहम्मदी अल्लाह की बतलाई हुई राह को दुरुस्त पाता है. 
इनकी इसी चाल ने इन्हें दर्जनों तबक़े में बाँट दिया है. 
अल्लाह की बतलाई हुई राह में ही रह कर वह अपने आपको तलाश करता है, 
कभी वह उसी पर अटल हो जाता है. 
जब वह बग़ावत कर के अपने नज़रिए का एलान करता है 
तो इस्लाम में एक नया मसलक पैदा होता है.
यह अपनी मक़बूलियत की दर पे तशैया (शियों का मसलक) से लेकर अहमदिए (मिर्ज़ा ग़ुलाम मुहम्मद क़ादियानी) तक होते हुए चले आए हैं. 
नए मसलक में आकर वह समझने लगते है कि 
हम मंजिल ए जदीद पर आ पहुंचे है, 
मगर दर अस्ल वह अस्वाभाविक अल्लाह के फंदे में फंस कर 
नए सिरे से अपनी नस्लों को एक नया इस्लामी क़ैद खाना और भी देते है.
कोई बड़ा इंक़लाब ही इस क़ौम को राह ए रास्त पर ला सकता है 
जिसमे कॉफ़ी ख़ून ख़राबे की संभावनाएं निहित है. 
भारत में मुसलामानों का उद्धार होते नहीं दिखता है 
क्यूंकि इस्लाम के देव को अब्दी नींद सुलाने के लिए 
हिंदुत्व के महादेव को अब्दी नींद सुलाना होगा. 
यह दोनों देव और महा देव, सिक्के के दो पहलू हैं.
मुसलामानों ! 
इस दुन्या में एक नए मसलक का आग़ाज़ हो चुका है, 
वह है तर्क ए मज़हब और सजदा ए इंसानियत. 
इंसानों से ऊँचे उठ सको तो मोमिन की राह को पकड़ो 
जो कि सीध सड़क है. 
***   

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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