संवेदन हीनता
पिछले पंद्रह दिनों के कोरोना काल में तीन घटनाएँ मेरे सामने ऐसी घटी हैं कि जिससे मानव संवेदना विचलित होती नज़र आईं.
किसी बस्ती के एक हिन्दू बूढ़े की मौत पर कोई हिन्दू उसकी अर्थी उठाने नहीं आया,
बस्ती के मुसलमानों ने उसकी मिटटी अपने कन्धों पर ढो कर शमशान तक पहुँचाया और हिन्दू रीति रिवाज से उसको ठिकाने लगाया.
ऐसा ही वाक़िया एक हिन्दू बूढी औरत का हुआ, कोई हिन्दू पुरसान हाल न हुआ. जिसकी अंतिम यात्रा मुसलमानों के काँधे पर हुई और सारे संस्कार भी.
तीसरा दुखद केस महाराष्ट्र के एक गाँव का है,
एक मुस्लिम की मौत हो गई, हिन्दुओं ने उसे ज़मीन में दफ़न नहीं करने दिया,
ठीक है महाराष्ट्र सरकार का फ़रमान कोरोना के अंतर गत जारी हुवा था.
विडम्बना यह है कि उसकी पत्नी अकेले ही मय्यत को जला रही है,
कोई उसका यार व मददगार नहीं.
इन तीनों घटनाओं वीडियो सब के सामने आया है.
मैं मुसलमानों की कोई तारीफ़ नहीं करूंगा,
डरता हूँ कि पक्ष पाती न बना दिया जाऊँ.
मगर हिदू मानस इतना संवेदन हीन कैसे हुवा जा रहा है ?
***
पिछले पंद्रह दिनों के कोरोना काल में तीन घटनाएँ मेरे सामने ऐसी घटी हैं कि जिससे मानव संवेदना विचलित होती नज़र आईं.
किसी बस्ती के एक हिन्दू बूढ़े की मौत पर कोई हिन्दू उसकी अर्थी उठाने नहीं आया,
बस्ती के मुसलमानों ने उसकी मिटटी अपने कन्धों पर ढो कर शमशान तक पहुँचाया और हिन्दू रीति रिवाज से उसको ठिकाने लगाया.
ऐसा ही वाक़िया एक हिन्दू बूढी औरत का हुआ, कोई हिन्दू पुरसान हाल न हुआ. जिसकी अंतिम यात्रा मुसलमानों के काँधे पर हुई और सारे संस्कार भी.
तीसरा दुखद केस महाराष्ट्र के एक गाँव का है,
एक मुस्लिम की मौत हो गई, हिन्दुओं ने उसे ज़मीन में दफ़न नहीं करने दिया,
ठीक है महाराष्ट्र सरकार का फ़रमान कोरोना के अंतर गत जारी हुवा था.
विडम्बना यह है कि उसकी पत्नी अकेले ही मय्यत को जला रही है,
कोई उसका यार व मददगार नहीं.
इन तीनों घटनाओं वीडियो सब के सामने आया है.
मैं मुसलमानों की कोई तारीफ़ नहीं करूंगा,
डरता हूँ कि पक्ष पाती न बना दिया जाऊँ.
मगर हिदू मानस इतना संवेदन हीन कैसे हुवा जा रहा है ?
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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