कोरोना
कोरोना का क़हर जब दुन्या को दहला चुका होगा,
धरती माता जो ओवर लोड हो चुकी थी , संतुलित हो चुकी होगी,
एक न एक दिन कोरोना का शबाब ढल चुका होगा,
धार्मिक और मज़हबी गिद्ध इंसानी लाशों को नोच नोच कर अपने पेट भर रहे होंगे,
भोली भाली अवाम टकटकी लगाए आसमान को तक रही होगी,
भारत के तमाम शाहीन बाग़ ग़र्क़ आब हो चुके होंगे,
अय्यार सियासत दानों को अच्छा अवसर मिल चुका होगा,
नागरिकता कानून की तीनों धाराएं लागू हो चुकी होंगी.
तब देश का वजूद अमितशा ग्रस्त होगा.
और भारत का नया रूप निर्णायक होगा.
(अगली भविष्य वाणी का इंतेज़ार करें)
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तबलीग़िए
एक दाढ़ी दार मुझे उर्दू किताबों की दूकान पर मिले,
रस्मन दुआ सलाम हुवा उन्हों ने मेरा पता ठिकाना पूछा,
मैंने अख़लाक़न बतला दिया.
क्या देखते हैं कि वह अगले दिन सुबह सुबह अपने दो साथियों को लिए मेरे दरवाज़े पर नाज़िल हैं. मुझे अच्छा न लगा, बाहर ही बाहार उन्हें टालने की कोशिश की.
कहिए ? मैं सवालिया निशान बन गया.
उनको अच्छा न लगा, सोचा होगा ख़ातिर तवाज़ो होगी,
दीवार से टिक कर उन्होंने क़ुरआन का एक टुकड़ा सुनाया "मिन सुरुतना व आमालना - - - हर मुल्ला शुरू इसी आयत से होता है.
मैंने जवाबन संस्कृत के दो श्लोक पढ़ दिया.
कहने लगे कि संस्कृत तो हमको आती नहीं.
और अरबी मुझको नहीं आती. मैं ने कहा.
मैंने आपको क़ुरआन शरीफ़ का एक पेग़ाम सुनाया था.
पता नहीं क़ुरआन का पेग़ाम था या अरबी में कोई गाली.
लाहौल पढते हुए उन्होंने अपनी तक़रीर शुरू करनी ही चाही थी कि मैंने उनको टोका
आपको अरबी आती है ?
माशा अल्लाह, हाँ आती है
मैंने उनको क़ुरआन की एक सूरह पढ़ कर सुनाई
"तब्बत यदा अबी लह्ब्यूँ - - -"
मैंने पूछा इस सूरह में अल्लाह क्या कहना चाहता है ?
खिसया कर कहने लगे मैंने सिर्फ़ क़ुरआन पढ़ा है.
तो मौलाना आप झूट भी बोलते हैं,मैंने पूछा.
मैंने उनसे पूछा कि मुसलमानों में ही क्यूँ जाते हैं जो नमाज़ पढता है.
तबलीग़ (प्रचार) ग़ैर मुस्लिमो में करिए ताकि इस्लाम में बरकत हो,
पडोस में राव साहब रहते हैं जाइए उनको इस्लाम का पेग़ाम दीजिए..
कहने लगे आप साथ चलिए.
मैंने कहा क्या मुझे पागल कुत्ते ने काटा है ?
मैं उनके धर्म की इज्ज़त करता हूँ, वह मेरे मज़हब का.
मैं ने और उनसे पूछा
क्या आपको पागल कुत्ते ने काटा है ?
कठ मुल्ले के एक साथी बोला चलो यार कहाँ आ गए हो.
और मेरा पिंड छूटा.
ऐसे होते है तबलीग़िए.
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