प्यारे पाठको !
सात सालों से मैं आप के सामने धार्मिक ग्रंथों को नग्न अवस्था में दर्शन कराता रहा, ख़ास कर क़ुरआन और हदीस.
वेद तथा गीता को भी आंशिक रूप में कुछ झलक दिखलाए.
मेरा इन धार्मिक ग्रंथों से कोई बैर नहीं, यह अपने समय में सामाजिक मर्यादा रहे होंगे, मगर आज यह अपराध बने हुए हैं, फिर भी हम इसे मर्यादित किए हुए हैं,
वजेह है कि यह अरबी या संस्कृत भाषा में है जिसको कि हम समझ नहीं सकते.
मैंने इनको समझाने का प्रयास किया है.
हमें उम्मीद है कि आप लोगों इसका कुछ लाभ उठाया होगा.
अब 5 जून से इन ग्रंथों से हट कर कुछ वास्तविक मानव मूल्यों पर आऊँगा,
शायद आपको कुछ नया मिले.
जुनैद 'मुंकिर '
दोनों एक ही हैं, "मुंकिर" मेरा तख़ल्लुस है.
शायरी की दुन्या में मैं मुंकिर हूँ.
बाक़ी जगह 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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