क़ुदरत के सब बन्दे
1- केस धारी
2- कृपाण धारी
3- कड़ा धारी
4- कंघा धारी
5- कच्छा धारी
इस "पंज धारिता" की सज़ा जंग हारने के बाद सिख गुरू ने अपनी क़ौम को दी थी कि जब तक दुन्या के आख़िरी मुसलमान को ख़त्म न कर दो, इस सज़ा को भुगतते रहो. तब तक औरतों की तरह केस रक्खो, औरतों की तरह कड़ा पहनो,
केस को संवारने के लिए कंघा रखो और अपनी सुरक्षा के लिए के लिए कृपाण.
कच्छा किस कारण अनिवार्य हुवा ? १२ बजे तक मालूम हो जाएगा.
अब सवाल उठता है एक अरब सत्तर करोड़ मुसलमानों का सफ़ाया,
२-3 करोड़ की आबादी वाली बिरादरी कैसे कर सकती है ?
उल्टा सिक्खों को दुन्या में मुसलमानों के साथ मिल जुल कर रहना पड़ता है.
दोनों की धार्मिक मान्यताएं ज़्यादः तर मिलती जुलती हैं.
गुरु ग्रन्थ साहब शुरू ही होता हैं अल्लाह के नाम से
"अव्वल अल्लाह नूर उपाया, क़ुदरत के सब बन्दे "
गुरु ग्रन्थ साहब में मुस्लिम सूफियों का कलाम है.
"पंज धारिता" सिक्खों के लिए कोई वरदान नहीं बल्कि भुगतान है.
मेरे कई सिक्ख भाई गहरे दोस्त हैं जो कभी कभी खुल कर बात करते हैं.
उन्होंने बतलाया वह रोज़ नहाते है मगर बालों को धोते हैं हफ़्ते में एक बार हैं,
बतलाया कि बालों को खुश्क करके ही पगड़ी बाँधी जा सकती है जिस में आधा दिन का समय लगता है.
गर्मियों में पगड़ी ग्यारह बजे के बाद बारह बजा देती है.
अक्सर सर में जुएँ पड़ जाती हैं,
पगड़ी के साथ कंघा जो लंबे बालों को संवारता है.
इसके साथ एक खुजाली पहले रखनी पड़ती है.
जुएँ भरे सर को खुजाने के लिए.
मुस्लिम देशों में सिक्खों को मस्जिद में नमाज़ पढते हुए देखा गया है.
हर जगह भाई चार्गी निभानी पड़ती है, गुरु जी के फ़रमान के साथ.
इमरान और सिद्धू गले मिलते हैं, दिलों में फ़ासले के साथ.
यह मुनाफ़िक़त और दोग़ला पन निभाना कहाँ तक दुरुस्त है ?
इसे ख़त्म होना ही चाहिए.
जुझारू और बहादर क़ौम कोई गुरु ऐसा पैदा करे कि जो इनको "पंज धारिता" से मुक्त कर सके, जो इनको खुला सर दे सके.
दसवें गुरु ने गुरुवाई परंपरा को ख़त्म करते हुए गुरु ग्रन्थ साहब को सदा के लिए गुरु बना दिया.
गुरु ग्रन्थ साहब का सिर्फ़ आधा वाक्य सिख्खों को पंज धारिता से मुक्त कराती है
"क़ुदरत के सब बन्दे "
सब क़ुदरत के बन्दे, तो सिक्ख कहाँ रह जाता है और मुसलमान कहाँ ?
ऐसा पैग़ाम तो शायद किसी धर्म ने दिया हो.
(सिख्ख भाइयों से क्षमा के साथ)
1- केस धारी
2- कृपाण धारी
3- कड़ा धारी
4- कंघा धारी
5- कच्छा धारी
इस "पंज धारिता" की सज़ा जंग हारने के बाद सिख गुरू ने अपनी क़ौम को दी थी कि जब तक दुन्या के आख़िरी मुसलमान को ख़त्म न कर दो, इस सज़ा को भुगतते रहो. तब तक औरतों की तरह केस रक्खो, औरतों की तरह कड़ा पहनो,
केस को संवारने के लिए कंघा रखो और अपनी सुरक्षा के लिए के लिए कृपाण.
कच्छा किस कारण अनिवार्य हुवा ? १२ बजे तक मालूम हो जाएगा.
अब सवाल उठता है एक अरब सत्तर करोड़ मुसलमानों का सफ़ाया,
२-3 करोड़ की आबादी वाली बिरादरी कैसे कर सकती है ?
उल्टा सिक्खों को दुन्या में मुसलमानों के साथ मिल जुल कर रहना पड़ता है.
दोनों की धार्मिक मान्यताएं ज़्यादः तर मिलती जुलती हैं.
गुरु ग्रन्थ साहब शुरू ही होता हैं अल्लाह के नाम से
"अव्वल अल्लाह नूर उपाया, क़ुदरत के सब बन्दे "
गुरु ग्रन्थ साहब में मुस्लिम सूफियों का कलाम है.
"पंज धारिता" सिक्खों के लिए कोई वरदान नहीं बल्कि भुगतान है.
मेरे कई सिक्ख भाई गहरे दोस्त हैं जो कभी कभी खुल कर बात करते हैं.
उन्होंने बतलाया वह रोज़ नहाते है मगर बालों को धोते हैं हफ़्ते में एक बार हैं,
बतलाया कि बालों को खुश्क करके ही पगड़ी बाँधी जा सकती है जिस में आधा दिन का समय लगता है.
गर्मियों में पगड़ी ग्यारह बजे के बाद बारह बजा देती है.
अक्सर सर में जुएँ पड़ जाती हैं,
पगड़ी के साथ कंघा जो लंबे बालों को संवारता है.
इसके साथ एक खुजाली पहले रखनी पड़ती है.
जुएँ भरे सर को खुजाने के लिए.
मुस्लिम देशों में सिक्खों को मस्जिद में नमाज़ पढते हुए देखा गया है.
हर जगह भाई चार्गी निभानी पड़ती है, गुरु जी के फ़रमान के साथ.
इमरान और सिद्धू गले मिलते हैं, दिलों में फ़ासले के साथ.
यह मुनाफ़िक़त और दोग़ला पन निभाना कहाँ तक दुरुस्त है ?
इसे ख़त्म होना ही चाहिए.
जुझारू और बहादर क़ौम कोई गुरु ऐसा पैदा करे कि जो इनको "पंज धारिता" से मुक्त कर सके, जो इनको खुला सर दे सके.
दसवें गुरु ने गुरुवाई परंपरा को ख़त्म करते हुए गुरु ग्रन्थ साहब को सदा के लिए गुरु बना दिया.
गुरु ग्रन्थ साहब का सिर्फ़ आधा वाक्य सिख्खों को पंज धारिता से मुक्त कराती है
"क़ुदरत के सब बन्दे "
सब क़ुदरत के बन्दे, तो सिक्ख कहाँ रह जाता है और मुसलमान कहाँ ?
ऐसा पैग़ाम तो शायद किसी धर्म ने दिया हो.
(सिख्ख भाइयों से क्षमा के साथ)
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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