ईमान
सिने बलूग़त से पहले मैं ईमान का मतलब माली लेन देन की पुख़्तगी को समझता रहा, मगर जब मुस्लिम समाज में प्रचलित शब्द "ईमान" को जाना तो मालूम हुवा कि
"कलमाए शहादत", पर यक़ीन रखना ही इस्लामी इस्तेलाह (परिभाषा) में ईमान है,
जिसका माली लेन देन से कोई वास्ता नहीं.
कलमाए शहादत का निचोड़ है अल्लाह, रसूल, क़ुरआन और इनके फ़रमूदात पर आस्था के साथ यक़ीन रखना, ईमान कहलाता है.
सिने बलूग़त आने पर एहसास ने इस पर अटल रहने से बग़ावत करना शुरू कर दिया
कि इन की बातें माफ़ौक़ुल फ़ितरत (अप्राकृतिक और अलौकिक) हैं.
मुझे इस बात से मायूसी हुई कि लेन देन का पुख़्ता होना ईमान नहीं है
जिसे आज तक मैं समझरहा था.
बस्ती के बड़े बड़े मौलानाओं की बेईमानी पर मैं हैरान हो जाता कि
ये कैसे मुसलमान हैं?
मुश्किल रोज़ बरोज़ बढ़ती गई कि इन बे-ईमानियों पर ईमान रखना होगा.?
धीरे धीरे अल्लाह, रसूल और क़ुरआनी फ़रमानों का मैं मुंकिर होता गया और
ईमाने-अस्ल मेरा ईमान बनता गया कि क़ुदरती सच ही सच है.
ज़मीर की आवाज़ ही हक़ है.
हम ज़मीन को अपनी आँखों से गोल देखते है जो सूरज के गिर्द चक्कर लगाती है,
इस तरह दिन और रात हुवा करते हैं.
अल्लाह, रसूल, क़ुरान और इनके फ़रमूदात पर यक़ीन करके इसे रोटी की तरह चिपटी माने, और सूरज को रात के वक़्त अल्लाह को सजदा करने चले जाना,
अल्लाह का उसको मशरिक की तरफ़ से वापस करना - - -
ये मुझको क़ुबूल न हो सका.
मेरी हैरत की इन्तहा बढ़ती गई कि मुसलमानों का ईमान कितना कमज़ोर है.
कुछ लोग दोनों बातो को मानते हैं,
इस्लाम के रू से वह लोग मुनाफ़िक़ हुए यानी दोग़ले.
दोग़ला बनना भी मुझे मंज़ूर न हुवा.
मुसलमानों!
मेरी इस उम्रे-नादानी से सिने-बलूग़त के सफ़र में आप भी शामिल हो जाइए और
मुझे अक़ली पैमाने पर टोकिए, जहाँ मैं ग़लत लगूँ.
इस सफ़र में मैं मुस्लिम से मोमिन हो गया, जिसका ईमान,
सदाक़त पर अपने अक़ले-सलीम के साथ सवार है.
आपको दावते-ईमान है कि आप भी मोमिन बनिए
और आने वाले बुरे वक़्त से नजात पाइए.
आजके परिवेश में देखिए कि मुसलमान ख़ुद मुसलमानों का दुश्मन बना हुआ है,
वह भी पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, ईराक़ और दीगर मुस्लिम मुमालिक में
आपस में मद्दे-मुक़ाबिल है.
बाक़ी जगह ग़ैर मुस्लिमो को वह अपना दुश्मन बनाए हुए है.
क़ुरान के नाक़िस पैग़ाम अब दुन्या के सामने अपने असली रूप में
हाज़िर और नाज़िल हैं.
इंसानियत की राह में हक़ परस्त लोग इसको क़ायम नहीं रहने देंगे,
वह सब मिलकर इस ग़ुमराह कुन इबारत को ग़ारत कर देंगे,
उसके फ़ौरन बाद आप का नंबर होगा.
जागिए मोमिन हो जाने का क़स्द करिए,
मोमिन बनना इतना आसान भी नहीं,
सच बोलने और सच जीने में लोहे के चने चबाने पड़ते हैं.
मोमिन बन जाने के सब आसान हो जाता है,
इसके बाद तरके-इस्लाम का एलान कर दीजिए.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
सभी मौलाना बेईमान होते है़ं । इन के हाथ से मदरसे का रसगुल्ला ,और मस्जिद का लड्डू छीन लेना चाहिए । तथा मस्जिद ,मदरसा तोड़ देना चाहिए ।
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