ख़्वाब ए रिसालत
तारीख़ अरब के मुताबिक़ बाबा ए क़ौम इब्राहीम के दो बेटे हुए
इस्माईल और इसहाक़.
छोटे इसहाक़ की औलादें बनी इस्राईल कहलाईं जिन्हें यहूदी भी कहा जाता है.
इन में नामी गिरामी लोग पैदा हुए, मसलन यूफुफ़, मूसा, दाऊद, सुलेमान और ईसा वगैरा और पहली तारीख़ी किताब मूसा ने शुरू की तो उनके पैरू कारों ने साढ़े चार सौ सालों तक इसको मुरत्तब करने का सिलसिला क़ायम रखा.
बड़े बेटे लौंडी ज़ादे हाजरा (हैगर) के पुत्र इस्माइल की औलादें इस से महरूम रहीं जिनमें मुहम्मद भी आते हैं.
इस्माइलियों में हमेशा ये क़लक़ रहता कि काश हमारे यहाँ भी कोई पैग़मबर होता कि हम उसकी पैरवी करते.
इन ख़यती चर्चा मुहम्मद के दिल में गाँठ की तरह बन्ध गई
कि क़ौम में पैग़मरी की जगह ख़ाली है.
मदीने की एक उम्र दराज़ बेवा मालदार ख़ातून ख़दीजा ने मुहम्मद को अपने साथ निकाह की पेश काश की. वह फ़ौरन राज़ी हो गए
कि बकरियों की चरवाही से छुट्टी मिली और आराम के साथ रोटी का ज़रीया मिला.
इस राहत के बाद वह रोटियाँ बांध कर ग़ार ए हिरा में जाते
और अल्लाह का रसूल बन्ने का ख़ाका तैयार करते.
इस दौरान उनको जिंसी तकाजों का सामान भी मिल गया था
और छह अदद बच्चे भी हो गए,
साथ में ग़ार ए हिरा में आराम और प्लानिग का मौक़ा भी मिलता कि रिसालत की शुरूवात कब की जाए, कैसे की जाए,
आग़ाज़, हंगाम और अंजाम की कशमकश में आख़िर कार एक रोज़ फैसला ले ही लिया कि गोली मारो सदाक़त, शराफ़त और दीगर इंसानी क़दरों को.
ख़ारजी तौर पर समाज में वह अपना मुक़ाम जितना बना चुके हैं,
वही काफ़ी है.
एक दिन उन्हों ने अपने इरादे को अमली जामा पहनाने का फैसला कर ही डाला. अपने क़बीले क़ुरैश को एक मैदान में इकठ्ठा किया,
भूमिका बनाते हुए उन्हों ने अपने बारे में लोगों की राय तलब की,
लोगों ने कहा तुम औसत दर्जे के इंसान हो कोई बुराई नज़र नहीं आती,
सच्चे, ईमान दार, अमानत दार और साबिर तबा शख़्स हो.
मुहम्मद ने पूछा अगर मैं कहूँ कि इस पहाड़ी के पीछे एक फ़ौज आ चुकी है
तो यक़ीन कर लोगे?
लोगों ने कहा कर सकते हैं इसके बाद मुहम्मद ने कहा - - -
मुझे अल्लाह ने अपना रसूल चुना है.
ये सुन कर क़बीला भड़क उट्ठा.
कहा तुम में कोई ऐसे आसार, ऐसी ख़ूबी और अज़मत नहीं कि
तुम जैसे जाहिल गँवार को अल्लाह पयंबरी के लिए चुनता फिरे.
मुहम्मद के चाचा अबू लहेब बोले,
"माटी मिले, तूने इस लिए हम लोगों को यहाँ बुलाया था?
सब के सब मुँह फेर कर चले गए.
मुहम्मद की इस हरकत और जिसारत से क़ुरैशियों को बहुत तकलीफ़ पहुंची
मगर मुहम्मद मैदान में कूद पड़े तो पीछे मुड़ कर न देखा.
बाद में वह क़ुरैशियों के बा असर लोगों से मिलते रहे और समझाते रहे
कि अगर तुमने मुझे पैग़मबर मान लिया और मैं कामयाब हो गया तो तुम बाक़ी क़बीलों में बरतर होगे,
मक्का अरब में बरतर होगा और अरब ज़माने में.
और अगर नाकाम हुवा तो ख़तरा सिर्फ़ मेरी जान को होगा.
इस कामयाबी के बाद, बदहाल मक्कियों को हमेशा हमेश के लिए रोटी सोज़ी का सहारा काबा मिल जाएगा.
मगर क़ुरैश अपने माबूदों (पूज्य) को तर्क करके मुहम्मद को अपना माबूद बनाए जाने को तैयार न हुए.
इस हक़ीक़त के बाद क़ुरआन की आयातों को परखें.
***जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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