धर्म के एजेंट्स
मेरे एक नए नए रिश्तेदार हुए, जो कट्टर मुस्लिम हैं.
उन्हों ने जब मेरे बारे में जाना तो एक दिन मोलवियों का जत्था लिए हुए
मेरे घर में घुस आ आए.
मैंने लिहाज़न उस वक़्त उन्हीं के अंदाज़ में उनके साथ सलाम दुआ
और उनका स्वागत किया.
उन्हों ने अपने साथियों का परिचय कराया.
उनमे एक ख़ास थे D U के प्रोफ़ेसर ज़जाक़ अल्ला (बदला हुआ नाम) यह पहले पंडित रामाकांत मिश्र (बदला हुआ नाम) हुवा करते थे, इस्लाम के प्रभाव में आकर कलमा पढ़ लिया और मुसलमान हो गए .
ज़जाक़ अल्ला ने मुझे इस्लाम की कई ख़ूबियाँ गिनाईं,
हिन्दुओं में बहुतेरी ख़ामियां भी साथ साथ .
पंडित जी ने कठ मुल्लों जैसी दाढ़ी रख ली थी
और उन से ही कुछ सीखा था,
कठमुल्लों जैसा अंदाज़ था उनका .
मैं उनकी बातें को नाटकीय अंदाज़ में बड़ी तवज्जो के साथ सुनता रहा.
दो मुसलमान उनके साथ थे .
उन में से एक ने हदीस बयान की कि
हज़रत मुहम्मद रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम
(मुसलमान मुहम्मद का नाम इतनी उपाधियों के साथ ही लेता है
या फिर उनको हुज़ूर कहता है .)
के पास एक सहाबी आया और हुज़ूर (मुहम्मद) से एक काफ़िर के क़त्ल का वाक़िया बयां किया कि
काफ़िर भागता रहा, मैं दौड़ाता रहा, वह थक कर गिर पड़ा तो हाथ जोड़ कर कलिमा पढ़ने लगा, मगर उसको मैंने छोड़ा नहीं .
हुज़ूर ने पूछा मार दिया ?
हाँ .
हुज़ूर ने कहा कलिमा पढ़ लेने के बाद भी ?
उसने कहा हाँ भाई हाँ,
वह तो मजबूरी में कलिमा पढ़ने लगा, जान बचाने के लिए.
हुज़ूर ने कहा कलिमा पढ़ लेने के बाद तुम्हें उसे मारना नहीं चाहिए था.
हुज़ूर ने तीन बार इस बात को दोहराया.
मौलाना साबित करना चाहते थे कि इस्लाम में ज़्यादती नहीं है.
मौलाना की हदीस सुनने के बाद मैंने कहा
आपने पूरी हदीस नहीं बयान की.
जी ? वह चौंके .
जी मारने वाला हुज़ूर की हब्शी लौंडी ऐमन का लौंडा ओसामा था
जो कि हुज़ूर को बेटे की तरह अज़ीज़ था.
उसने हुज़ूर को बड़ी मायूसी के साथ जवाब दिया था कि
इस्लाम क़ुबूल करने में मैंने जल्दबाज़ी की.
सुन कर मौलाना का ख़ून जम गया.
पंडित जी ने बहुत सी बकवासें कीं जिसे मैं लिहाज़ में सुनता रहा मगर जब उन्हों ने कहा कि वेद में भी हज़रत मुहम्मद रसूल्लिल्लाह सल्लल्लाह ए अलैहि वसल्लम के बारे में भविष्य वाणी की गई है.
उन्हों ने महमद के नाम से कोई कबित सुनाई.
तब तो मुझे ग़ुस्सा आ ही गया.
मैंने पूछा किस वेद में ?
बोले भाई ऋग वेद में.
मैंने पूछा किस मंडल में कौन सी सूक्ति है ?
तब तो पंडित जी के कान खड़े हुए .
कहा यह तो देख कर ही बतला पाएँगे.
हाँ बतलइए गा, वैसे वेद तो मेरे पास भी है , खैर मगर छोडो.
अस्ल में यह नक़ली मुसलमान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए आहूतियां हैं जो मुसलमानों में घुसकर कई महत्त्व पूर्ण काम करते हैं . उसी में एक यह भी है कि इनको मज़बी खंदकों में गिराने का काम करते रहें.
मुस्लिम आलिम भी इनकी साजिश और सहायता में मग्न रहते हैं.
धर्म और मज़हब का यही किरदार है.
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