हिन्दू मानस
हिन्दू मानस, मानव जाति का ख़ाम माल, अथवा Raw Material होता है.
इसी Compoud (लुद्दी) से हर क़िस्म के वैचारिक स्तर पर,
मानव की उपजातियां वजूद में आईं.
बौध, जैन, मुस्लिम, ईसाई और सिख सब इसी Compoud से निर्मित हुए हैं.
ख़ास कर पूर्वी एशिया में ज़्यादा मानव जाति इसी Raw Material से निर्मित हुए हैं.
पूर्वी एशिया के बौध और मुस्लिम के पूर्वज बुनयादी तौर पर हिन्दू थे.
बुनयादी तौर पर हर बच्चा पहले हिन्दू ही पैदा होता है,
उसे अपने तौर पर विकसित होने दिया जाए तो
वह आदि काल की सभ्यता में विकसित हो जाएगा
और अगर विभिन्न धार्मिक सांचों में ढाला जाए तो वह
मुल्ले और पंड़े जैसे आधुनिक युग के कलंक बन जाएँगे.
पत्थर युग से मध्य युग तक इंसान अपने माहौल के हिसाब से
हज़ारो आस्थाएँ स्थापित करता गया,
फिर सामूहिक धर्मों का वजूद मानव समाज में आया
जिसे मज़हब कहना ज़्यादा मुनासिब होगा.
मजहबों ने जहाँ तक समाज को सुधारा,
वहीं स्थानीय आस्थाओं को मिटाया.
हिन्दू आस्थाएँ यूँ होती हैं कि
2.5 अरब सालों तक ब्रह्मा विश्व का निर्माण करते हैं,
2.5 अरब सालों तक विष्णु विश्व को सृजित करते है और
2.5 अरब सालों तक महेश विश्व का विनाश करते हैं.
या
भगवान् विष्णु मेंढकी योनि से बरामद हुए
अथवा गणेश पारबती के शरीर की मैल से निर्मित हुए.
इसी समाज की आस्था है कि 33 करोड़ योनियों से ग़ुज़रता हुवा
हर प्राणी अंत में मुक्त द्वार पर होता है.
इस हास्यापद आस्थाओं से ऊब कर मनुष्य जब अपनी निजता पर आता है
तो वह अन्य आस्थाओं की तरफ रुख करता है,
उसे बहु ईश्वरीय संघ से एक ईश्वर उसे ज़्यादः उचित लगता है,
33 करोड़ योनियाँ उसके दिमाग़ को चकरा देती हैं.
मेढ़ाकीय योनि से निकसित भगवान् उसको अच्छे नहीं लगते.
यही करण है कि भारत में इस्लाम विस्तृत हुवा और आज भी हो रहा है .
बौध की रफ़्तार इतनी नहीं क्योंकि यह भूल वश हिन्दू के समांनांतर ही है,
इस्लाम या ईसाइयत ही इसके धुर विरोभ में खड़े दिखाई देते हैं,
वह समझता है कि इसमें घुस जाएं, बाद की देखी जाएगी.
कट्टर हिन्दू वादियों का शुभ समय आया है,
वह लव जिहाद, घर वापसी जैसे हथकंड़े से इस परिवर्तनीय प्रवाह की
रोक थाम करने में लगे हैं जो अंततः विरोधयों के हक़ में जाएगा.
इस पर पुनर विचार न किया गया तो एक समय ऐसा भी आ सकता है
कि रेत की बनी हिन्दू आस्थाओं को वक़्त की आंधी उड़ा ले जाए.
क्यूंकि इस युग में मानव समाज वैदिक काल में जाना पसंद नहीं करेगा.
हिन्दू मानस, मानव जाति का ख़ाम माल, अथवा Raw Material होता है.
इसी Compoud (लुद्दी) से हर क़िस्म के वैचारिक स्तर पर,
मानव की उपजातियां वजूद में आईं.
बौध, जैन, मुस्लिम, ईसाई और सिख सब इसी Compoud से निर्मित हुए हैं.
ख़ास कर पूर्वी एशिया में ज़्यादा मानव जाति इसी Raw Material से निर्मित हुए हैं.
पूर्वी एशिया के बौध और मुस्लिम के पूर्वज बुनयादी तौर पर हिन्दू थे.
बुनयादी तौर पर हर बच्चा पहले हिन्दू ही पैदा होता है,
उसे अपने तौर पर विकसित होने दिया जाए तो
वह आदि काल की सभ्यता में विकसित हो जाएगा
और अगर विभिन्न धार्मिक सांचों में ढाला जाए तो वह
मुल्ले और पंड़े जैसे आधुनिक युग के कलंक बन जाएँगे.
पत्थर युग से मध्य युग तक इंसान अपने माहौल के हिसाब से
हज़ारो आस्थाएँ स्थापित करता गया,
फिर सामूहिक धर्मों का वजूद मानव समाज में आया
जिसे मज़हब कहना ज़्यादा मुनासिब होगा.
मजहबों ने जहाँ तक समाज को सुधारा,
वहीं स्थानीय आस्थाओं को मिटाया.
हिन्दू आस्थाएँ यूँ होती हैं कि
2.5 अरब सालों तक ब्रह्मा विश्व का निर्माण करते हैं,
2.5 अरब सालों तक विष्णु विश्व को सृजित करते है और
2.5 अरब सालों तक महेश विश्व का विनाश करते हैं.
या
भगवान् विष्णु मेंढकी योनि से बरामद हुए
अथवा गणेश पारबती के शरीर की मैल से निर्मित हुए.
इसी समाज की आस्था है कि 33 करोड़ योनियों से ग़ुज़रता हुवा
हर प्राणी अंत में मुक्त द्वार पर होता है.
इस हास्यापद आस्थाओं से ऊब कर मनुष्य जब अपनी निजता पर आता है
तो वह अन्य आस्थाओं की तरफ रुख करता है,
उसे बहु ईश्वरीय संघ से एक ईश्वर उसे ज़्यादः उचित लगता है,
33 करोड़ योनियाँ उसके दिमाग़ को चकरा देती हैं.
मेढ़ाकीय योनि से निकसित भगवान् उसको अच्छे नहीं लगते.
यही करण है कि भारत में इस्लाम विस्तृत हुवा और आज भी हो रहा है .
बौध की रफ़्तार इतनी नहीं क्योंकि यह भूल वश हिन्दू के समांनांतर ही है,
इस्लाम या ईसाइयत ही इसके धुर विरोभ में खड़े दिखाई देते हैं,
वह समझता है कि इसमें घुस जाएं, बाद की देखी जाएगी.
कट्टर हिन्दू वादियों का शुभ समय आया है,
वह लव जिहाद, घर वापसी जैसे हथकंड़े से इस परिवर्तनीय प्रवाह की
रोक थाम करने में लगे हैं जो अंततः विरोधयों के हक़ में जाएगा.
इस पर पुनर विचार न किया गया तो एक समय ऐसा भी आ सकता है
कि रेत की बनी हिन्दू आस्थाओं को वक़्त की आंधी उड़ा ले जाए.
क्यूंकि इस युग में मानव समाज वैदिक काल में जाना पसंद नहीं करेगा.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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