इब्तेदाई भूल
क़ुरआन के पसे मंज़र में ही रसूल कि असली तस्वीर छिपी हुई है.
मुहम्मद अल्लाह के मुंह से कैसी कैसी कच्ची बातें किया करते हैं,
नतीजतन मक्का के लोग इस का मज़ाक़ बनाते हैं.
इनको लोग तफ़रीहन ख़ातिर में लाते हैं. ताकि माहौल में मशग़ला बना रहे.
इनकी क़यामती आयतें सुन सुन अकसर लोग मज़े लेते हैं.
और ईमान लाते हैं, उन पर और उन के जिब्रील अलैहिस्सलाम पर.
महफ़िल उखड़ती और एक ठहाके के साथ लोगों का ईमान भी उखड़ जाता है.
इस तरह बेवक़ूफ़ बन जाने के बाद मुहम्मद कहते हैं,
यह लोग ख़ुद बेवक़ूफ़ हैं, जिसका इन को इल्म नहीं.
इस्लाम पर ईमान लाने का मतलब है
एक अनदेखे और पुर फ़रेब आक़बत से ख़ुद को जोड़ लेना.
अपनी मौजूदा दुन्या को तबाह कर लेना.
बग़ैर सोचे समझे, जाने बूझे, परखे जोखे, किसी की बात में आकर
अपनी और अपनी नस्लों की ज़िन्दगी का तमाम प्रोग्राम
उसके हवाले कर देना ही बेवक़ूफ़ी है.
ख़ुद मुहम्मद अपनी ज़िन्दगी को क़याम कभी न दे सके,
और न अपनी नस्लों का कल्यान कर सके,
यहाँ तक कि अपनी उम्मत को कभी चैन की साँस न दिला पाए .
क़ुरआन के पसे मंज़र में ही रसूल कि असली तस्वीर छिपी हुई है.
मुहम्मद अल्लाह के मुंह से कैसी कैसी कच्ची बातें किया करते हैं,
नतीजतन मक्का के लोग इस का मज़ाक़ बनाते हैं.
इनको लोग तफ़रीहन ख़ातिर में लाते हैं. ताकि माहौल में मशग़ला बना रहे.
इनकी क़यामती आयतें सुन सुन अकसर लोग मज़े लेते हैं.
और ईमान लाते हैं, उन पर और उन के जिब्रील अलैहिस्सलाम पर.
महफ़िल उखड़ती और एक ठहाके के साथ लोगों का ईमान भी उखड़ जाता है.
इस तरह बेवक़ूफ़ बन जाने के बाद मुहम्मद कहते हैं,
यह लोग ख़ुद बेवक़ूफ़ हैं, जिसका इन को इल्म नहीं.
इस्लाम पर ईमान लाने का मतलब है
एक अनदेखे और पुर फ़रेब आक़बत से ख़ुद को जोड़ लेना.
अपनी मौजूदा दुन्या को तबाह कर लेना.
बग़ैर सोचे समझे, जाने बूझे, परखे जोखे, किसी की बात में आकर
अपनी और अपनी नस्लों की ज़िन्दगी का तमाम प्रोग्राम
उसके हवाले कर देना ही बेवक़ूफ़ी है.
ख़ुद मुहम्मद अपनी ज़िन्दगी को क़याम कभी न दे सके,
और न अपनी नस्लों का कल्यान कर सके,
यहाँ तक कि अपनी उम्मत को कभी चैन की साँस न दिला पाए .
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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