मनु वाद का ज़हर ---(1)
जंगल में आज़ाद हाथियों को राम करके पालतू बनाने में सब से ज़्यादः ख़ुद हाथियों का किरदार होता है. जानवर ही नहीं इंसान भी पालतू हाथी ही हुवा करते हैं.
35 करोर भारतीयों को एक लाख अँगरेज़, इन्हीं शरीर और ज़मीर के ग़ुलाम हिन्दुस्तानियों के बदौलत हमें ग़ुलाम बना कर वर्षों आका बने रहे.
यह शरीर और ज़मीर के ग़ुलाम इतिहास के पन्नो में बहुतेरे देखने को मिल जाएँगे. औरंगजेब के सिपाह सालार हिन्दू हुवा करते थे तो शिवाजी के मुस्लिम.
ज़माना लद गया और यह ग़ुलामी इतिहास के पन्नो में दफ़्न हुई, मगर नहीं,
दुन्या की सब से बड़ी दास प्रथा मनुवाद आज तक भारत भूमि पर अमर बेलिया की तरह फल फूल रही है.
मनुवाद की बुन्याद झूट के ठोस बुन्यादों पर रखी हुई है.
जिस में पुनर जन्म का चक्र ऐसा चक्रव्यूह है कि इसको एक बार चला दिया जाए तो यह चलता ही रहता है, बेचारा दास अपनी ज़िन्दगी को पूर्व जन्म के पाप का परिणाम समझने लगता है, मनु वंश इन पापियों पर भरपूर नफ़रत बरसता है और तमाम सुख-सुविधओं के साथ तमाशा देखता रहता है.
मनुवाद की तस्वीर भारत में आज भी खुली आँखों से देखी जा सकती है.
आर्यन भारत में पश्चिम की ओर से आते और भारत के मूल निवासियों को अपना ग़ुलाम बनाते, जो मूल निवासी भागने में कामयाब हो जाते वह भारत के दक्षिन में पनाह पाते. आर्यन हमला तो लगातार बना रहता,
मगर उनके यलग़ार मुख्यता चार बार हुए हैं जिसके रद-ए-अमल में हर बार मूल निवासी पच्छिम से दक्षिन की तरफ़ पनाह पाकर बसते गए.
आज द्रविड़ मुंनैत्र कड़ग़म जैसी मूल निवासी मानव श्रृंखला इसके सुबूत हैं.
कुछ आर्यन दक्षिन में भी पहुचे मगर वहां मूल निवासियों के जमावड़े के आगे वह भीगी बिल्ली बने हुए है,
उत्तर भारत में आर्यन का पूरा पूरा साम्राज क़ायम हुवा जहाँ वर्ण व्योवस्था की बुन्याद जो पड़ी तो आज सत्तर साल देश आज़ाद होने के बाद भी क़ायम है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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