Tuesday 15 September 2020

कल्पनाओं की कथा और जन मानस की आस्था


कल्पनाओं की कथा और जन मानस की आस्था 

मैंने पढ़ा पंडित जी उपनिशध में लिखते हैं - - - 
समुद्र यहीं तक सीमित नहीं जो आप देखते और जानते हैं. 
खारे पानी के बाद, मीठे पानी का समुद्र इतना ही विशाल है जितना खारा. 
इसके बाद तीसरा समुद्र है दूध का, फिर घी का, उसके बाद (आदि आदि) 
और अंत में अमृत का समुद्र है. इनकी कुल संख्या सात है.
मैं कानपुर की तहसील वन्धना और बिठूर के दरमियान स्तिथ चिन्मय बृद्ध आश्रम में दो महीने रहा. यह आश्रम ठीक उसी जगह क़ायम किया गया जहाँ  किसी ज़माने में बाल्मीकि की शरण स्थली हुवा करती थी, जब वह लूट मार किया करते थे. 
कहते है पहले यह जगह गंगा का ड़ेल्टा हुवा करती थी और यह स्थल घने जंगलो से ढका हुवा करता था, डाकुओं के लिए सुविधा जनक स्थान हुवा करता था .
एक दिन मुझे बिठूर जाने का अवसर मिला जहाँ कई ऐतिहासिक स्मारक हैं , 
उनमे एक स्मारक सीता रसोई भी है . 
एक जगह एक खूटी गड़ी हुई मिली जिसे संसार का केंद्र विन्दु कहा जाता है .
स्थानी लोगों के बीच प्रचलित किंवदंतियाँ जोकि उनके पूर्वजों से उनको मिलीं , मुस्तनद सी लगती हैं. ऐसा लगा कि हम अतीत में सांस ले रहे हैं.
मेरे सात एक रिटायर्ड ग्रेजुएट अवस्थी जी भी थे. 
मैंने उनसे दरयाफ़्त किया कि राम युग को कितने वर्ष हुए होंगे ? 
उन्हों ने बड़ी सरलता से कहा आठ लाख वर्ष हुए जब सत युग था .
मैं ने मन ही मन सोचा अवस्थी जी की अवस्था कितनी सरल है कि 
वह सुनी सुनाई बातों को सच मानते हैं और अपने विवेक को कोई कष्ट नहीं देते. सीता रसोई को देख कर भी इस पर पुनर विचार नहीं करते कि 
यह आठ लाख सालों से कैसे स्थिर है ? 
यही होती है जन साधारण की मन स्तिथि, मनोदशा.
आधुनिक इतिहास कारों का मानना है कि बाल्मीकि तेरहवीं सदी के आस पास हुए , इस बात को बिठूर के लोग भी साबित करते हैं कि उनकी यद् दाश्त में अपने बुजुर्गों की गाथा सीना बसीना महफूज़ है .
बारहवीं तेरहवीं सदी में दिल्ली का सुल्तान इल्तु तमाश हुवा करता था जिसकी बेटी रज़िया सुल्तान भारत कि प्रथम नारी शाशक हुई थी .
उस काल में बाल्मीकि ने रामायण लिखी जोकि लव कुश के संरक्षक और  
ग़ुरु हुवा करते थे. 
तलाक़ शुदा सीता अपने दोनों बेटों को सन्यास लिए बिठूर में रहती थीं .
सवाल उठता है रज़िया सुल्तान काल में कोई राम, दशरथ या जनक का 
कहीं कोई नाम निशान नहीं मिलता, 
न अयोध्या में न काशी में . 
मगर बाल्मीकि थे, सीता थीं और लव कुश भी थे .
क्या सीता जी की विपदा पर मुग्ध होकर बाल्मीकि ने रामायण कथा का प्लाट नियोजित किया था ? 
जो लेखक की अफ़सानवी कल्पना से जन मानस की आस्था बन गई हो ?? 
बाल्मीकि की यह कथा जब पंडित के हाथ लगी तो एक समुद्र से सात समुद्र हो गई. तुलसी दास ने बाल्मीकि की रचना को हिंदी स्वरूप देकर 
इसे जन साधारण का धर्म स्थापित कर दिया ?
रामायण की भ्रमित लेखनी बतलाती है कि तुलसी दास सशरीर कुछ दिनों लिए 
राम युग में रह कर वापस आए और रामायण तुलसी दास का आँखों देखा हाल है .
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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