Sunday 20 September 2020

हिन्दू का अस्ल ?


हिन्दू  का अस्ल ?

भारत वासियों को यह नाम अरबियों और फ़ारस अर्थात ईरानियो का दिया हुवा है, इस तथ्य को ज़माना जानता है, 
वह सिन्धु को उच्चारित नहीं कर पाते थे, उनके लिए सिन्धु को हिन्द आसान लगा और सिंधु हिन्दू उच्चारित करने लगे. 
सिंधु नदी के पार रहने वालों को हिन्दू कहने लगे. 
अरब दुन्या के ग़लबे के बाद इसका दिया हुवा नाम सारी दुन्या में जाना जाने लगा, हत्ता कि ख़ुद भारतीय अपने आपको हिन्दू कहने लगे. 
मुसलमानों की जग जाहिर गुंडा गर्दी है, isis है. 
अरबी लुग़ात में इन्हें काला कुरूप लिखा और आर्यन ने इनको डाकू चोर लुटेरे लिखा.  
अरबी स्वयंभू ख़ुद को सभ्य क़ौम समझते थे और ग़ैर अरब को अजमी अर्थात अन्धे का नाम दिया करते. इस्लाम के बाद तो उनका रुतबा और बढ़ गया, ग़ैर मुस्लिम मुल्को को उन्होंने हर्बी (चाल-घात वाली क़ौम) की संज्ञा दी. 
  हिन्दुओं की विडम्बना ये है कि उन्होंने अरबों, ईरानियों और अंग्रेज़ों की बख़्शी हुई उपाधियों को अपने ऊपर थोप लिया जैसे कि क़ज़्ज़ाक़ ने अरबियों का बख़्शा हुवा नाम क़ज़्ज़ाक़ (लुटेरे) को न सिर्फ़ अपनाया बल्कि अपने मुल्क का नाम भी रख लिया "क़ज़्ज़ाक़िस्तान" 
सुनने में आया है कि अब उनके समझ में बात आई है कि वह क़ज़्ज़ाक़िस्तान का नाम बदल रहे हैं. 
शब्द कोष (लुग़ातें) ऐतिहासिक सच्चाइयाँ हैं, 
इस पर हिन्दुओं को इसे पढ़ कर आग बगूला नहीं होना चाहिए 
बल्कि संतुलन क़ायम रखते हुए कुछ नया क़दम उठाना चाहिए. 
ख़ुद आर्यन ने भारत पर प्रभुत्व के बाद असली भारतीयों को राक्षस, पिचाश, 
असुर और वानर तक लिखा.    
वैसे हर क़ौम सुदूर अतीत में असभ्य ही रही है, 
सब अमानुष से ही मानुष्य बने.  
सब को आदमी से इंसान बनने में समय लगा.  
कोई पहले तो कोई बाद में.   
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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