Monday 21 September 2020

राम नाम सत्य है


राम नाम सत्य है 

ऐसे बेश क़ीमती मन्त्र हमारे पूर्वजों ने वर्षों पहले हमें वरदान स्वरूप दिए हैं 
मगर इसे आज तक हम समझने में असफल हैं.
एक बच्चा स्कूल सफ़र में जाते समय जब भी मंदिर के सामने से ग़ुज़रता, 
कभी कभी 'राम नाम सत्य है' के नारे लगाता,
तो कभी 'सत्य बोलो मुक्ति है' के नारे लगाता.
मंदिर का पुजारी उसे पत्थर उठा कर दौड़ाता और हड़काता.
पुजारी नादान था और बच्चा बुद्धिमान था.
राम नाम सत्य है में पैग़ाम छुपा हुवा है कि 
"सत्य का नाम ही राम है", 
राम रुपी कोई हस्ती नहीं है, 
सत्य का रूप ही राम (ईश्वर) है .
यह राम दशरथ पुत्र नहीं, 
सत्य का कोई रूप रंग ही नहीं ,
सत्य कोई हस्ती भी नहीं जिसे देखा जा सके,
सत्य तो निरंकार कर्म है.
कर्म के आधार पर ही हम जीते हैं .
हमारे कर्मों में अगर सत्य आधारित है. 
तो ही हमारी मुक्ति है.
मुक्ति मरणोपरान्त होती है? 
यह भी हास्य स्पद अवधारणा हैं.
मरने के बाद तो किस्सा तमाम हो जाता है.
कोई कर्म फल पाने का जीवन ही नहीं रहा.

राम नाम सत्य है, सत्य बोलो मुक्ति है 
का नारा बच्चे के पैदा होते ही उसके कान में लगवाना चाहिए, 
मगर लगता है उसके मरने के बाद, 
यह पाखंड की शुरुआत और अंत का, अर्थ हीन नतीजा है,
जिसके बुरे परिणाम में हम भार युक्त जीवन जीते हैं.
इंसान की हर सांस भार रहित हो, यह उसकी मुसलसल मुक्ति है.
इन क़ीमती मन्त्रों का उल्टा रूप दे दिया गया है, 
हम बजाए सत्य मंदिर के राम मंदिर बनाते हैं 
और जीवन भर असत्य को जीते हैं 
और उसकी पूजा करते हैं. 
जीवन मुक्ति होने के बाद सत्य बोलने सन्देश मुर्दे को सुनाते हैं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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