कुन फ़या कून
होजा, हो गया
विद्योत्मा से शिकस्त खाकर मुल्क के चार चोटी के क़ाबिल ज्ञानी पंडित वापस आ रहे थे, रास्ते में देखा एक मूरख (कालिदास) पेड़ पर चढा उसी डाल को काट रहा था जिस पर वह सवार था, उन लोगों ने उसे उतार कर उससे पूछा राज कुमारी से शादी करेगा?
प्रस्ताव पाकर मूरख बहुत खुश हुवा. पंडितों ने उसको समझया कि तुझको राज कुमारी के सामने जाकर बैठना है, उसकी बात का जवाब इशारे में देना है, जो भी चाहे इशारा कर दे.
मूरख विद्योत्मा के सामने सजा धजा के पेश किया गया,
विद्योत्मा से कहा गया महाराज का मौन है, जो बात चाहे संकेत में करें.
राज कुमारी ने एक उंगली उठाई, जवाब में मूरख ने दो उँगलियाँ उठाईं.
बहस पंडितों ने किया और विद्योत्मा हार गई.
दर अस्ल एक उंगली से विद्योत्मा का मतलब एक परमात्मा था जिसे मूरख ने समझा वह उसकी एक आँख फोड़ देने को कह रही है. जवाबन उसने दो उंगली उठाई कि जवाब में मूरख ने राज कुमारी की दोनों आखें फोड़ देने कि बात कही थी. जिसको पंडितों ने आत्मा और परमात्मा की बहेस से साबित किया.
कुन फ़या कून के इस मूर्ख काली दास की पकड़ पैग़म्बरी फ़ार्मूला है जिस पर मुस्लमान क़ौम ईमान रक्खे हुए है.
ये दीनी ओलिमा कलीदास मूरख के पंडित हैं जो उसके आँख फोड़ने के इशारे को ही मिल्लत को पढा रहे है, दुन्या और उसकी हर शै कैसे वजूद में आई ?
अल्लाह ने कुन फ़या कून कहा और सब हो गया. तालीम, तहक़ीक़ और इर्तेक़ाई मनाज़िल की कोई अहमियत और ज़रूरत नहीं.
डर्बिन ने सब बकवास बकी है. सारे तजरबे गाह इनके आगे फ़ैल. उम्मी की उम्मत उम्मी ही रहेगी, इसके पंडे मुफ़्त खो़री करते रहेंगे उम्मत को दो+दो+पॉँच पढाते रहेंगे .
यही मुसलामानों की क़िस्मत है.
अल्लाह कुन फ़या कून के जादू से हर काम तो कर सकता है मगर पिद्दी भर शहर मक्का के काफिरों को इस्लाम की घुट्टी नहीं पिला सकता.
ये काएनात जिसे आप देख रहे हैं करोरो अरबो सालों के इर्तेक़ाई रद्दे अमल का नतीजा है, किसी के कुन फ़या कून कहने से नहीं बनी.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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