Wednesday 23 September 2020

देश प्रेम


देश प्रेम 

मादर ए वतन एक जज़बा ए बे असर है.  
यह जज़्बा तभी शबाब पर आता है जब हम अपने मुल्क से दूर हों, 
मुल्क में रहते हुए ऐसी तस्वीर सियासी फ्रेम में लगी बेज़ारी ही होती है.  
सच पूछिए तो हुब्बुल वतनी सियासी हरबा ज़्यादा है और हक़ीक़त कम. 
वतन को इतना अतिश्योक्ति पर लाया गया है कि 
इसे मादर और माता का दर्जा दे दिया जाता है. 
सच्चाई यह है कि यह मादर ए हक़ीक़ी की तौहीन है.  
क्या माँ को बदला और बाटा जा सकता है ? 
मगर यह धरती हमेशा बदली गई है, बाटी गई है. 
माँ तो किसी हद तक सम्पूर्ण धरती को कहा जा सकता है, 
मगर इस में भी क़बाहत है कि यह पूरा सच नहीं है.  
इस से मादर ए हक़ीक़ी की तौहीन होती है कि उसका दर्जा, 
उसके सिवा कोई और पाए.  
माँ तो एक ही होती है, दो नहीं. 
धरती को अर्ज़ पाक या पावन धरती कहा जा सकता है, 
वह जननी नहीं तो पेट भरनी ज़रूर है, 
मगर वतन को तो यह भी नहीं कहा जा सकता क्यों कि आज यह मेरा है , 
कल पराया हो सकता है, यहाँ तक कि दुश्मन भी. 
कडुवा सच यह है कि ज़मीन के किसी टुकड़े की सियासी हद बंदी की जाती है, जो सीमा रेखा से सीमित हो जाती है, 
फिर उसका नाम वतन, मादर ए वतन, देश और भारत माता प्रचारित किया जाता है. 
इससे बड़ी सच्चाई यह है कि सीमाओं की हद बंदी मानव जाति की फ़ितरत है, क्योंकि यह उसकी ज़रुरत भी है. 
सीमा बंद हिस्से को हम इस लिए तस्लीम करते हैं कि वह हमारी हिफ़ाज़त करता है, हमारी तहज़ीब का मुहाफ़िज़ है, हमारी आज़ाद नस्लों का रक्षक है. इसको फ़तह करके कोई बैरूनी ताक़त हमें अपना ग़ुलाम  बना सकती है , 
हमारी बहन बेटियां हमारी सीमा में ही महफूज़ हैं. 
 अपनी सीमा की हिफाज़त के लिए हम अपनी जानऔर  
अपना माल क़ुर्बान कर सकते हैं. 
इसके लिए हमें सही सही टैक्स अदा करना चाहिए जिससे सीमा की सुरक्षा होती है. टैक्स अदायगी के फ़र्ज़ अव्वलीन को खोखले देश प्रेम के ग़ुणगान,
 माता के सम्मान में बदल दिया जाता है. 
भारत माता की जय बोल कर और जय बुलवा कर सियासत दान सियासत करते हैं, सीमाओं की सुरक्षा नहीं. सीमाओं को कमज़ोर करते हैं. 
अन्ना हज़ारे और अरविंद केजरी वाल जैसे अच्छे और समझदार लोग भी,
 भारत माता जी जय बुलवा कर हमें जज़्बाती बना देते हैं. 
 हम पहली नज़र में देखें कि अपनी सीमा बंदी में हम कहाँ हैं ? 
इसके लिए टैक्स भरपाई की शर्त पर पूरे उतारते है या कमज़ोरी के शिकार हैं, दूसरी नज़र में देखें कि हमारे रहनुमा कितने ईमानदार हैं ? 
उन पर नज़र रखना टैक्स अदा करने के बराबर ही है. 
जिस हद बंदी में नार्थ कोरिया के डिक्टेटर जैसा ताना शाह या 
सद्दाम और गद्दाफी जैसे हुक्मराँ हो, 
वहाँ देश द्रोह ही देश प्रेम है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment