Saturday 26 September 2020

मानव की मुक्ति


मानव की मुक्ति 

इस्लाम और क़ुरान पर मेरा बेलाग तबसरा और निर्भीक आलोचना को पढ़ते पढ़ते, मेरे कुछ मित्र मुझे समझने लगे कि मैं हिन्दू धर्म का समर्थक हूँ ?  
मेरी हकीक़त बयानी पर वह  मायूस हुए और आश्चर्य में पड गए . 
लिखते हैं - - - 
"आपसे मुझको ऐसी उम्मीद नहीं थी ."
 मेरे "कश्मीरी पंडितो "और दूसरे उन लेखों  पर जो उनके मर्ज़ी के मुताबिक न हुए.
अपने ऐसे मित्रों से मेरा निवेदन है कि मैं इस्लाम विरोधी हूँ, 
वहां जहाँ होना चाहिए,
और क़ुरान की उन बातों से सहमत नहीं जो इंसानियत विरोधी हैं, 
मैं उन नादान मुसलमानो का ख़ैर ख़्वाह हूँ जो क़ुरान पीड़ित हैं.
इसी तरह मैं हिदू जन साधारण का दोस्त हूँ जो धर्म के शिकार हैं.
मैं हर धर्म को बुरा मानता हूँ. 
कोई ज़्यादः बुरा है कोई कम बुरा.
 मेरे मित्र गण अगर सत्य पर पूरा पूरा विशवास रखते हो तभी मेरे दोस्त रह सकते है.
झूट और पाखंड के पुजारियों को मैं दोस्त रखना पसंद नहीं करूंगा.
जो लौकिक सत्य पर ईमान रखता है वही मोमिन है वही महा मानव है, 
हिन्दू और मुसलमान ख़ुद को बदलें और पुर अम्न इंसानियत की राह पर आ जाएं, देश को ऐसे वासियों की ही ज़रुरत है,
इसी में मानव की मुक्ति हैं.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment