Monday 14 September 2020

भोगना और सम्भोगना


भोगना और सम्भोगना 

बड़ा महत्त्व पूर्ण विषय है जिस पर क़लम उठाने की हिम्मत कम लोग ही कर पाते है, जब कि इंसान की दूसरी सब से बड़ी ज़रुरत का विषय है. 
इंसान की ही नहीं बल्कि हर जीव के लिए यह बात कही जा सकती है. 
पहली समस्या पेट है, जिसको भरना ज़रूरी है. 
यह नहीं भरेगा तो संसार निर्जीव हो जाएगा.
इसे मैं 'भोगना' नाम देता हैं. 
कुछ लोग तो भगवानों को भी भोग लगवाते है.

इंसान की दूसरी सब से बड़ी ज़रुरत है SEX.
इंसान के वजूद के लिए वैसे 'संभोगना' पहली ज़रुरत है. 
वजूद ही नहीं होगा तो कैसा भोगन ? 
आजकल हमारे भारतीय समाज में 'संभोगना' के विचित्र प्रकार की 
मर्यादाएं और मीनारें बनी हुई हैं. 
मीडिया पर 25% ख़बरें और बहसें 'संभोगना' पर ही आधारित होती हैं.
इस करण लगता है यौन अपराध की बाढ़ सी आ गई है.
जब कि यह पहले अतीत में आज से ज़्यादा ही था.
मीडिया भी एक कारण है जिस से इसका प्रचार हो रहा है. 
'संभोगना' का अमल जिसे आज जायज़ और नाजायज़ कहा जा रहा है, 
हज़ारों साल  पहले से इतनी ही थीं 
मगर  इसकी ख़बर नहीं बनती थी.
आज ईजादों की मशीनों ने नया कान और आँख बख़्शा है. 
फिर क्या हुवा इस  चटख़ारे की धूम मच गई. 

'संभोगना' का क्रूर तम रूप है Honour Killing . 
'संभोगना' की नाजायज़ औलादें आज के पिता और भाई 
एवं परिवार और खाब पंचायतों के रूप में देखी जा सकती हैं.  
'संभोगना' स्त्री और पुरुष की पहली शान है, 
जिस अंग्रेजी भाषा सेक्सी का रुतबा देती है. 
हिंदी भाषा में आते ही यह छिनाल हो जाती है.
हमें 'संभोगना' को नए सिरे से बहस में लाने की ज़रुरत है.
यह जीवन दायी कर्म भारतीय समाज में पाप बन जाता है, 
इसी आधार को लेकर क़ानून की निगाह में जुर्म बना हुवा है. 
क़ानून प्रकृति के आईने आकर अपनी शक़्ल बदले, 
न कि क़बीले और धर्म को आधार बनाए. 
दो फ़र्द अगर 'संभोगना' पर आमादा हैं 
और किसी तीसरे का इसमें कोई नुक़सान न हो तो 
बाप भाई अथवा शौहर बे मअनी हैं. 
क़ुदरती तक़ाज़ा यही है, क़ुदरत का क़ानून हो.
लड़की और लड़के में SEXI उमँग कब औतरित होते हैं ? 
इसे अंग्रेजी भाषा में आसानी से टीन एज कहा जाता है 
और हिन्दी में इस टीन एज की प्रति क्रिया लोगों के लिए 
मौत और ज़िन्दगी का सवाल बन जाता है. 
तअज्जुब होता है कि क़ुदरती रद्द-अमल में इंसान का दख़्ल ? 
वह भी इतना क्रूर ?? 
'संभोगना' 'संभोगना' न रह कर उस वक़्त जुर्म बन जाता है. 

जब दो पक्षो में किसी एक की असहमति हो. 
जब बालिग़ फ़र्द नाबालिग़ को वरग़ला कर सहमति बना ले. 
ऐसे मुजरिमों को तीन दिन में गवाही, सुबूत और फ़ैसला कर के 
बधिया कर के समाज में रहने दिया जाए, 
न कि जेल में रख कर उम्र भर पाला पोसा जाए. 
बलात्कार के बाद हत्या के मुजरिम को तीन दिन के अन्दर ही चौराहों पर फांसी हो.
दोनों टीन एजरों पर कोई जुर्म न बने, 
बच्चों को उंच-नीच उनके वालदैन समझा दें. 
इसमें समाज को कोई इजारा न हो, 
ऐसा समाज बने कि इसे बच्चे की खीर चोरी समझी जाए. 
ख़ुद ही सोचें कि बच्चों के इस खेल से मानव समाज पर कौन सा पहाड़ टूट पड़ा ?

'संभोगना' जुर्म और पुन्य की शक़्ल बन कर, 
धरातल से लेकर आकाश तक पहुँचती है. 
धरातल पे हमारी खाब पंचायतें हैं 
और आकाश पर योरोप के नार्वे स्वीडन आदि जैसे देश हैं 
जो दुन्या के Top Ten सभ्य देशों में शुमार किए जाते हैं. 
यहाँ गोत्र और गोमूत्र से पवित्रता आती है, 
वहां 'संभोगना' खेल मात्र है. कहीं कहीं Family Game की तरह है. 
दुन्या बहुत छोटी हो चुकी है, इन्टर नेट उठाओ, सब साफ़ नज़र आएगा. 
बहुत से पाठक बेज़ार होकर मुझे 1-1 और 2-2 किलो की गलियां देंगे. 
इन अक़्ल के पैदल बंधुओं को अक़्ल की पैडल चाहिए. 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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