मोमिन और मुस्लिम का फ़र्क़
मुसलमानो!
एक बार फिर तुम से ग़ुज़ारिश है कि तुम मुस्लिम से मोमिन बन जाओ.
मुस्लिम और मोमिन के फ़र्क़ को समझने की कोशिश करो.
मुहम्मदी ओलिमा ने दोनों लफ़्ज़ों को ख़लत मलत कर दिया है और तुम को ग़ुमराह किया है कि मुस्लिम ही असल मोमिन होता है जिसका ईमान अल्लाह और उसके रसूल पर हो.
यह किज़्ब है, दरोग़ है, झूट है,
सच यह है कि आप के किसी अमल में बे ईमानी न हो यही ईमान है,
इसकी राह पर चलने वाला ही मोमिन कहलाता है.
जो कुछ अभी तक इंसानी ज़ेहन साबित कर चुका है
वही अब तक का सच है,
वही इंसानी ईमान है.
अकीदतें और आस्थाएँ कमज़ोर और बीमार ज़ेहनों की पैदावार हैं
जिनका नाजायज़ फ़ायदा ख़ुद साख़ता अल्लाह के पयंबर, भगवन रूपी अवतार, ग़ुरुऔर महात्माओं के तकिया दार उठाते हैं.
तुम समझने की कोशिश करो.
मैं तुम्हारा सच्चा ख़ैर ख्वाह हूँ.
ख़बरदार !
कहीं तुम मुस्लिम से हिन्दू न बन जाना वर्ना सब ग़ुड़ गोबर हो जायगा,
क्रिश्चेन न बन जाना, बौद्ध न बन जाना वर्ना
मोमिन बन्ने के लिए फिर एक सदी दरकार होगी.
धर्मांतरण बक़ौल जोश मलीहाबादी एक चूहेदानों की अदला बदली है.
एक से आज़ाद होकर से दूसरे चूहेदान में जाना है.
बनना ही है कुछ तो मुकम्मल इंसान बनो,
इंसानियत ही दुन्या का आख़िरी मज़हब होगा.
मुस्लिम जब मोमिन हो जायगा तो इसकी पैरवी में
दूसरे पल में 51% भारत मोमिन हो जायगा.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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