Wednesday 31 July 2019

मुबालिग़ा आराई



मुबालिग़ा आराई      

फ़तह मक्का के बाद मुसलमानों में दो बाअमल गिरोह ख़ास कर वजूद में आए जिन का दबदबा पूरे ख़ित्ता ए अरब में क़ायम हो गया. 
पहला था तलवार का क़ला बाज़ 
और दूसरा था क़लम बाज़ी का क़ला बाज़. 
अहले तलवार जैसे भी रहे हों बहर हाल 
अपनी जान की बाज़ी लगा कर अपनी रोटी हलाल करते 
मगर इन क़लम के बाज़ी गरों ने आलमे इंसानियत को 
जो नुकसान पहुँचाया है उसकी भरपाई कभी भी नहीं हो सकती. 
अपनी तन आसानी के लिए इन ज़मीर फ़रोशों ने 
मुहम्मद की असली तसवीर का नक़शा ही उल्टा कर दिया. 
इन्हों ने क़ुरआन की लग्वियात को अज़मत का गहवारा बना दिया. 
यह आपस में झगड़ते हुए मुबालग़ा आमेज़ी (अतिशोक्तियाँ )में 
एक दूसरे को पछाड़ते हुए, झूट के पुल बंधते रहे.  
क़ुरआन और कुछ असली हदीसों में 
आज भी मुहम्मद की असली तस्वीर सफेद और सियाह रंगों में देखी जा सकती है. इन्हों ने हक़ीक़त की बुनियादों को खिसका कर झूट की बुन्यादें रखीं और उस पर इमारत खड़ी कर दी. -
कहते हैं कि इतिहास कार किसी हद तक ईमान दार होते हैं 
मगर इस्लामी इतिहास कारों ने तारीख़ को अपने अक़ीदे में ढाल कर दुन्या को परोसा.
"मुकम्मल तारीख़ ए इस्लाम" का एक सफ़ा मुलाहिज़ा हो - - -
"हज़रत अब्दुल्ला (मुहम्मद के बाप) के इंतेक़ाल के वक़्त हज़रत आमना हामिला थीं, गोया रसूल अल्लाह सल्ललाह - - शिकम मादरी में ही थे कि यतीम हो गए. आप अपने वालिद के वफ़ात के दो माह बाद 12 रबीउल अव्वल सन 1 हिजरी मुताबिक़ 570 ईसवी में तवल्लुद (पैदा) हुए. आप के पैदा होते ही एक नूर सा ज़ाहिर हुवा, जिस से सारा मुल्क रौशन हो गया. विलादत के फ़ौरन बाद ही आपने सजदा किया और अपना सर उठा कर फ़रमाया "अल्लाह होअक्बर वला इलाहा इल्लिल्लाह लसना रसूल लिल्लाह "
जब आप पैदा हुए तो सारी ज़मीन लरज़ गई. दर्याय दजला इस क़दर उमड़ा कि इसका पानी कनारों से उबलने लगा. ज़लज़ले से कसरा के महल के चौदह कँगूरे गिर गए. आतिश परस्तों के आतिश कदे जो हज़ारों बरस से रौशन थे, ख़ुद बख़ुद बुझ गए. आप कुदरती तौर पर मख़तून (ख़तना किए हुए) थे और आप के दोनों शाने के दरमियान मोहरे-नबूवत मौजूद थी.
रसूल अल्लाह सलअम निहायत तन ओ मंद और तंदुरुस्त पैदा हुए. आप के जिस्म में बढ़ने की क़ूवत आप की उम्र के मुक़ाबिले में बहुत ज़्यादः थी. जब आप तीन महीने के थे तो खड़े होने लगे और जब सात महीने के हुए तो चलने लगे. एक साल की उम्र में तो आप तीर कमान लिए बच्चों के साथ दौड़े दौड़े फिरने लगे. और ऐसी बातें करने लगे थे कि सुनने वालों को आप की अक़ल पर हैरत होने लगी."

ग़ौर तलब है कि किस क़द्र ग़ैर फ़ितरी बातें पूरे यक़ीन के साथ लिख कर 
सादा लौह अवाम को पिलाई जा रही हैं. 
अगर कोई बच्चा पैदा होते ही सजदा में जा कर दुआ गो हो जाता तो 
समाज उसे उसी दिन से उसे सजदा करने लगता. 
न कि वह बच्चा हलीमा दाई की बकरियां चराने पर मजबूर होता. 
एक साल की उसकी कार ग़ुजारियां देख कर ज़माना उसकी ज़यारत करने आता 
न कि बरसों वह ग़ुमनामी की हालत में पड़ा रहता. 
क़बीलाई माहौल में पैदा होने वाले बच्चे की तारीख़-पैदाइश भी ग़ैर मुस्तनद है. 
रसूल और इस्लाम पर लाखों किताबें लिखी जा चुकी हैं. 
और अभी भी लिखी जा रही हैं 
जो दिन बदिन सच पर झूट की परतें बिछाने का कम करती हैं.  
इन्हीं परतों में मुसलमानों की ज़ेहन दबे हुए हैं.
हलाकू ने ला शुऊरी तौर पर एक भला काम ये किया था 
जब कि दमिश्क़ की लाइब्रेरी में रखी लाखों इस्लामी किताबों को इकठ्ठा कराके आलिमो से कहा था कि इनको खाओ. ऐसा न करने पर आलिमो को वह सज़ा दी थी कि तारीख़ उसको भुला नहीं सकती. उसने पूरी लाइब्रेरी आग के हवाले कर दिया था और आलिमों को जहन्नम रसीदा. 
आज भी इन इल्म फ़रोशों के लिए ज़रुरत है किसी हलाकू की, 
किसी चंगे़ज़ ख़ान की.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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