Monday 8 July 2019

मुहम्मद कुछ कुछ ठीक भी - - -

मुहम्मद कुछ कुछ ठीक भी - - -     

मेरी बड़ी कमज़ोरी यह है कि मैं सच को सच लिखता हूँ 
और झूट को झूट.
हिन्दू नाराज़ हो जाए या मुसलमान, कोई परवाह नहीं.
मुहम्मद के अवग़ुण की अभी तक मैं ने सच्ची रूप रेखा पेश की है, 
मगर उनमे कुछ सद ग़ुण भी थे, 
जिसे उजागर करना मेरे क़लम की मजबूरी है और क़लम का तक़ाज़ा भी.  
हर व्यक्ति में चाहे वह कितना भी बुरा क्यूं न हो, कुछ भले पहलू भी होते है. 
ऐसे ही हर भले इंसान में कुछ बुराइयां भी फ़ितरी तौर पर होती हैं. 
मुहम्मद की एक बड़ी ख़ूबी यह थी कि मुहम्मद ऐश व आराम पसंद नहीं थे 
और ग़रीब परवार थे. अपने दास और दासियों को वही खिलाते पहनाते जो ख़ुद खाते और पहनते. 
उस समय दास प्रथा मान्य थी, मगर उनके लिए मुहम्मद के अंदाज़ बदले हुए थे.
अरब के ज़्यादः हिस्से पर इस्लामी झंडा क़ायम होने बावजूद वह सादा ज़िन्दगी ग़ुज़ारते, कोई शाहाना ठाट बाट नहीं, 
कोई महल और क़िला नहीं. 
जबकि वह अरब के बादशाह बन चुके थे मगर हक़ीक़त में बे ताज. 
अपने गिर्द कोई लाव-लश्कर नहीं रखते, बिना खौ़फ़ बस्ती में घूमते फिरते. 
वह बड़ी सादगी के साथ अपनी नौ बीवियों को उनके टूटे फूटे घरों में 
बारी बारी से एक रात बिताते. 
एक दिन राह चलते मुहम्मद का एक हसीना पर दिल आ गया, 
राह बदल कर वह अपनी बीवी सफ़िया के घर अपनी जिंसी तक़ाज़े के लिए पहुँच गए. 
उस वक़्त उनकी बीवी सफ़िया किसी जानवर की खाल को चमड़ा बनाने के लिए कमा रही थीं. 
ग़ौर तलब है कि शाहों के शाह, शहेंशाह की रानी खाल को चमड़ा बना रही थीं? मुहम्मद ने अपनी बीवी से जिंसी आसूदगी पाकर अगले काम की तरफ़ बढे. इससे उनकी ज़ात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. 

उनकी तहरीक थी कि दौलत किसी के पास इकठ्ठा न होने पाए. 
ऐसे दोस्तों को मश्विरह देते कि तुम्हारे पास तीन बाग़ हैं, 
इसमें से एक अपने ग़रीब भाई (फुलां) को दे दो. 
कन्जूसों के ख़िलाफ़ कहते कि इन को लूट लो. 
लेनिन और कार्ल मार्क्स ने मुहम्मद को पसंद किया, 
इसी वजेह से उनका रवय्या इस्लाम के प्रति नर्म था. 
1300 साल पहले साम्यवाद का विचार कम्युनिष्टों को भा गया.
वह जब मरे तो उनके जेब से सिर्फ़ 6 दीनार निकले, जो उनकी कुल पूँजी थी.
यह थी एक बादशाह की कुल विरासत .
जिन्सी मुआमले में मुहम्मद कुछ ज़्यादः ही बदनाम हैं, 
वह भी इस दौर में जब औरत सम्मान एक सिंबलबन गई है. 
उस दौर में जब कि आजके मानव मूल्य कोई हैसियत नहीं रखते थे, 
थे ही नहीं. 
जब औरत एक प्राणी मात्र हुवा करती थी, 
उस दौर में मुहम्मद की तस्वीर देखी जा सकती है जब औरत को पैदा होते ही मार देना कोई जुर्म न था. कमसिन के साथ विवाह और संभोग आज के परिवेश में जुर्म हुवा है. वह भारत हो या अरब. 
मर्द जन्ग जूई में मारे जाते थे, औरतें लावारिस हो जाती थीं, इसी लिए इस्लाम ने चार बीवियों की छूट दी, इस के बाद पराई औरत से संभोग ज़िनाकारी होती,
इस पर संगसारी की सज़ा थी. 
तो संभोग पर आज़ादी मगर एलान्या, निकाह करके. 
मुहम्मद की ग्यारह बीवियों में से दस बीवियां बेवा थीं. 
ऐसी बहुत सी ख़ूबियाँ मुहम्मद की गिनाई जा सकती हैं,

कहते हैं कि एक क़तरा पेशाब का,
 पूरे भरे हुए घड़े के शुद्ध पानी को नापाक कर देता है.
मुहम्मद का झूट क़ुरान 
भरे हुए घड़े में आधा घड़ा नजासत है, 
कैसे पिया जा सकता है ?  
अफ़सोस कि उनके बाद कोई इस्लामी रहनुमा ऐसा नहीं हुवा जो एलान करता कि इंसानों को सुधारने के लिए मुहम्मद ने झूटी क़दरों (क़ुरआन) का सहारा लिया था. और क़ुरआन को हदीस की तरह ही रद्द कर देता.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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