Wednesday 10 July 2019

ज़मीर फरोश ओलिमा

ज़मीर फरोश ओलिमा 

मेरे गाँव की एक फूफी के बीच बहु-बेटियों की बात चल रही थी कि 
मेरा फूफी ज़ाद भाई बोला, अम्मा क़ुरान में लिखा है 
औरतों को पहले समझाओ बुझाओ, 
न मानें तो घुस्याओ लत्याओ, फिरौ न मानैं तो अकेले कमरे मां बंद कर देव,
 यहाँ तक कि वह मर न जाएँ . 
फूफी आखें तरेरती हुई बोलीं उफरपरे! कहाँ लिखा है? 
बेटा बोला तुम्हरे क़ुरआन मां.-- 
आयं? कह कर फूफी बेटे के आगे सवालिया निशान बन कर रह गईं. 
बहुत मायूस हुईं और कहा
 ''हम का बताए तो बताए मगर अउर कोऊ से न बताए''
मेरे ब्लॉग के मुस्लिम पाठक कुछ मेरी गंवार फूफी की तरह ही हैं. 
वह मुझे राय देते हैं कि मैं तौबा करके उस नाजायज़ अल्लाह के शरण में चला जाऊं. 
मज़े कि बात ये है कि मैं उनका शुभ चिन्तक हूँ और वह मेरे. 
ऐसे तमाम मुस्लिम भाइयों से दरख़्वास्त है कि मुझे पढ़ते रहें, 
मैं उनका ही असली ख़ैर ख़्वा हूँ . 
***
 अरब के लिए इस्लामी बरकत      
    
फ़त्ह मक्का के बाद अरब क़ौम अपनी इर्तेक़ाई उरूज को खो कर शिकस्त ख़ुर्दगी पर गामज़न हो चुकी थी. जंगी लदान का इस्लामी हरबा उस पर इस क़दर पुर ज़ोर और इतने तवील अरसे तक रहा कि इसे दम लेने की फ़ुर्सत न मिल सकी. 
इस्लामी ख़ुद साख़्ता उरूज का ज़वाल उस पर इस क़द्र ग़ालिब हुवा कि इस का ताबनाक माज़ी कुफ़्र का मज़मूम सिम्बल बन कर रह गया. 
योरोप के शाने बशाने बल्कि योरोप से दो क़दम आगे चलने वाली अरब क़ौम, योरोप के आगे अब घुटने टेके हुए है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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