भारत देश समूह
वैदिक काल में इंसान पवित्र और अपवित्र की श्रेणी में बटा हुवा था.
दसवीं सदी ई. तक इंसान ग़ुलामी के ज़ेर ए असर अपने कमर के पीछे झाड़ू बाँध कर चलता था ताकि उसके नापाक क़दमों के निशान ज़मीन पर न रह पाएं.
दूसरी तरफ़ मंद बुद्धि ब्रह्मण वेद रचना में अपनी बेवक़ूफ़ियाँ गढ़ते
और चतुर बुद्धि समाज पर शाशन करते.
वह तथा कथित सवर्णों में यज्ञ करके सोमरस निचोड़ते या फिर ख़ून.
गोधन उस समय सब से बड़ा धन हुवा .
तीज त्यौहार और धार्मिक समारोह में हजारों गाएँ कटतीं,
शर्मा वैदिक कालीन क़साई हुवा करते.
इसी बीच बुद्ध जैसी हस्तियाँ आईं और पसपा हुईं.
बुद्ध फ़िलासफ़ी भारत के बाहर शरण पा कर फूली फली.
बुद्ध की अहिंसा की कामयाबी को छोड़कर बाक़ी बुद्धिज़्म को बरह्मनो ने कूड़ेदान में डाल दिया. इस में गाय की हिंसा इतनी शिद्दत थी गाय धन की जगह माता बन गई.
दसवीं सदी ई में भारत में इस्लाम दाखिल हुवा,
मानवता ने कुछ मुक़ाम पाया,
शूद्रों ने जाना कि वह भी इंसानी दर्जा रखते है,
वह इस्लाम के रसोई से लेकर इबादत गाहों तक पहुंचे.
धीरे धीरे आधा हिन्दुतान इस्लाम के आगोश में चला गया.
आजके नक्शे में भारत + बांगला देश + पाकिस्तान की आबादियाँ जोड़ गाँठ कर देखी जा सकती हैं.
उसके बाद लगभग तीन सौ साल पहले अँगरेज़ भारत में दाखिल हुए,
जिन्हों ने नईं नईं बरकतें हिन्दुस्तान को बख्शीं.
धार्मिकता आधुनिकता रूप लेने लगीं,
मंदिर मस्जिद और ताज महल के बजाए राष्ट्र पति भवन, पार्लिया मेंट हॉउस और हावड़ा ब्रिज भारत का भाग्य बने. लाइफ़ लाइन रेल का विस्तार हुवा.
भारत आज़ाद हुवा,
नेहरु काल तक अंग्रेजों की विरासत आगे बढ़ी.
भारत का उत्थान होता रहा,
इंद्रा के बाद इसका पतन शुरू हुवा.
मोदी युग आते आते भारत की गाड़ी में उल्टा गेर लग गया .
बासी कढ़ी में उबाल शुरू हो चुका है.
फिर ब्रह्मणत्व वैदिक काल लाकर मनुवाद को स्थापित करना चाहता है.
भारत को भग़ुवा किया जा रहा है.
इस आधुनिक युग में जानवरों को संरक्षण देकर प्रकृति के पाँव में बेड़ियाँ डाली जा रही हैं, जानवर इंसानी ख़ूराक न होकर, इंसान जानवरों का ख़ूराक बन्ने की दर पर है. जीव हत्या के नाम पर इंसानों की हत्या की जा रही है.
दुन्या के अधिक तर जीव मांसाहारी हैं, इन जुनूनयों का बस चले तो यह शेर से लेकर बाज़ तक को शाकाहारी बनाने का यत्न करें.
याद रखें कृषि प्रधान भारत में, किसान का पशु पालन उनके हिस्से का व्यापार है
जो निर्भर करता है मांसाहार पर.
भेड, बकरी, भैस हो या गाय. इनका मांस अगर खाया नहीं जाएगा तो यह कुत्ते जैसे आवारा और अनुपयोगी बन कर रह जाएँगे.
इनके खाल हड्डी खुर सींग और मांस ही इनको पुनर जन्मित करते हैं.
अगर गो रक्षा का खेल यूँ ही चलता रहा तो एक दिन आएगा कि गाय भारत से नदारत हो जाएगी. इस पागलपन से एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि ऐसे देश में बहु संख्यक किसान बग़ावत पर उतर आए.,
देश प्रेम की जगह देश द्रोह अव्वलयत पा जाए और भारत के दर्जनों खंड बन जाएँ. भारत भारत न रह कर भारत देश समूह बन जाए.
हंसी आती है जब सरकारें देश की तरक्क़ी को अपनी गाथा में पिरोती है .
वैज्ञानिक तरक्क़ी भारत हो या चीन धरती का भाग्य है. इसे कोई रोक नहीं सकता मगर मानसिक उत्थान और पतन क़ौम की रहनुमाई पर मुनहसर है.
देश तेज़ी से मानसिक पतन की ओर अग्रसर है.
वैदिक काल में इंसान पवित्र और अपवित्र की श्रेणी में बटा हुवा था.
दसवीं सदी ई. तक इंसान ग़ुलामी के ज़ेर ए असर अपने कमर के पीछे झाड़ू बाँध कर चलता था ताकि उसके नापाक क़दमों के निशान ज़मीन पर न रह पाएं.
दूसरी तरफ़ मंद बुद्धि ब्रह्मण वेद रचना में अपनी बेवक़ूफ़ियाँ गढ़ते
और चतुर बुद्धि समाज पर शाशन करते.
वह तथा कथित सवर्णों में यज्ञ करके सोमरस निचोड़ते या फिर ख़ून.
गोधन उस समय सब से बड़ा धन हुवा .
तीज त्यौहार और धार्मिक समारोह में हजारों गाएँ कटतीं,
शर्मा वैदिक कालीन क़साई हुवा करते.
इसी बीच बुद्ध जैसी हस्तियाँ आईं और पसपा हुईं.
बुद्ध फ़िलासफ़ी भारत के बाहर शरण पा कर फूली फली.
बुद्ध की अहिंसा की कामयाबी को छोड़कर बाक़ी बुद्धिज़्म को बरह्मनो ने कूड़ेदान में डाल दिया. इस में गाय की हिंसा इतनी शिद्दत थी गाय धन की जगह माता बन गई.
दसवीं सदी ई में भारत में इस्लाम दाखिल हुवा,
मानवता ने कुछ मुक़ाम पाया,
शूद्रों ने जाना कि वह भी इंसानी दर्जा रखते है,
वह इस्लाम के रसोई से लेकर इबादत गाहों तक पहुंचे.
धीरे धीरे आधा हिन्दुतान इस्लाम के आगोश में चला गया.
आजके नक्शे में भारत + बांगला देश + पाकिस्तान की आबादियाँ जोड़ गाँठ कर देखी जा सकती हैं.
उसके बाद लगभग तीन सौ साल पहले अँगरेज़ भारत में दाखिल हुए,
जिन्हों ने नईं नईं बरकतें हिन्दुस्तान को बख्शीं.
धार्मिकता आधुनिकता रूप लेने लगीं,
मंदिर मस्जिद और ताज महल के बजाए राष्ट्र पति भवन, पार्लिया मेंट हॉउस और हावड़ा ब्रिज भारत का भाग्य बने. लाइफ़ लाइन रेल का विस्तार हुवा.
भारत आज़ाद हुवा,
नेहरु काल तक अंग्रेजों की विरासत आगे बढ़ी.
भारत का उत्थान होता रहा,
इंद्रा के बाद इसका पतन शुरू हुवा.
मोदी युग आते आते भारत की गाड़ी में उल्टा गेर लग गया .
बासी कढ़ी में उबाल शुरू हो चुका है.
फिर ब्रह्मणत्व वैदिक काल लाकर मनुवाद को स्थापित करना चाहता है.
भारत को भग़ुवा किया जा रहा है.
इस आधुनिक युग में जानवरों को संरक्षण देकर प्रकृति के पाँव में बेड़ियाँ डाली जा रही हैं, जानवर इंसानी ख़ूराक न होकर, इंसान जानवरों का ख़ूराक बन्ने की दर पर है. जीव हत्या के नाम पर इंसानों की हत्या की जा रही है.
दुन्या के अधिक तर जीव मांसाहारी हैं, इन जुनूनयों का बस चले तो यह शेर से लेकर बाज़ तक को शाकाहारी बनाने का यत्न करें.
याद रखें कृषि प्रधान भारत में, किसान का पशु पालन उनके हिस्से का व्यापार है
जो निर्भर करता है मांसाहार पर.
भेड, बकरी, भैस हो या गाय. इनका मांस अगर खाया नहीं जाएगा तो यह कुत्ते जैसे आवारा और अनुपयोगी बन कर रह जाएँगे.
इनके खाल हड्डी खुर सींग और मांस ही इनको पुनर जन्मित करते हैं.
अगर गो रक्षा का खेल यूँ ही चलता रहा तो एक दिन आएगा कि गाय भारत से नदारत हो जाएगी. इस पागलपन से एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि ऐसे देश में बहु संख्यक किसान बग़ावत पर उतर आए.,
देश प्रेम की जगह देश द्रोह अव्वलयत पा जाए और भारत के दर्जनों खंड बन जाएँ. भारत भारत न रह कर भारत देश समूह बन जाए.
हंसी आती है जब सरकारें देश की तरक्क़ी को अपनी गाथा में पिरोती है .
वैज्ञानिक तरक्क़ी भारत हो या चीन धरती का भाग्य है. इसे कोई रोक नहीं सकता मगर मानसिक उत्थान और पतन क़ौम की रहनुमाई पर मुनहसर है.
देश तेज़ी से मानसिक पतन की ओर अग्रसर है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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