बुरे इस्लाम की कुछ खूबी
ग़ालिब कहता है - - -
बाज़ीचा ए इत्फ़ाल है दुन्या मेरे आगे,
होता है शब व रोज़ तमाशा मेरे आगे.
बाज़ीचा ए इतफ़ाल = बच्चों के मशक़ का मैदान ,
जी हाँ मैदान में यह बच्चे कभी पूजा पाठ का खेल खेलते हैं
तो कभी नमाज़ रोज़ा का.
कभी घंटा घड्याल बजाते हैं तो कभी अज़ान चीखते है.
कभी यह रक़्स ए इरफ़ानी करते हैं तो कभी गणपति बाप्पा मौर्या गाते हैं.
जुनैद मुंकिर भी चचा ग़ालिब का भतीजा है
और उनके ही नक्श ए क़दम पर चलता है.
जब से मैंने इस्लाम के साथ साथ हिन्दू धर्म के राग माले पेश करना शुरू किया है, धर्म दूषित लोगों ने इसे पसंद नहीं किया.
मुझे अन्फ्रेंड करना भी शुरू कर दिया है,
कुछ ने तो गाली देना भी उचित समझा.
ऐसे लोगों को मैं ख़ुद अपनी रौशनी से बंचित कर देता हूँ.
उनकी दृष्टि में इस बात की कोई अहमयत नहीं कि
मैंने इस्लाम को कुछ बुरा जान कर तर्क ए इस्लाम किया,
उनकी चाहत है कि मैं हिन्दू क्यूँ नहीं बन गया?
एक अल्लाह पर विश्वाश को छोडने वाला,
गोबर अथवा देह मैल से निर्मित भगवान गणेश को स्थान देते हुए,
हिंदुत्व का श्री गणेश क्यूँ नहीं करता .
हिंदुत्व और इस्लाम दो मुख़्तलिफ़ जीवन पद्धतियाँ हैं.
इस्लाम दुश्मन को क़त्ल कर देता है.
हिंदुत्व (मनुवाद) शत्रु को कभी भी क़त्ल नहीं करता,
बल्कि दास बना लेता है.
दुश्मन की पुश्त दर पुश्त मनुवाद के दास हुवा करते है,
दास ऐसे कि जिनसे नफ़रत की सारी हदें पार हो जाती हैं.
उनके साया से भी परहेज़ होता है,
उनकी मर्यादाएं मनुवाद की उगली हुई उल्टियाँ होती है.
पांच हज़ार साल से भारत के मूल निवासी मनुवाद के ज़ुल्म को जी रही हैं,
दास (ग़ुलाम ) इस्लाम में भी हुवा करते थे
मगर शर्त होती कि जो ख़ुद खाओ,
वही ग़ुलाम को खिलाओ. जो ख़ुद पहनो वही ग़ुलाम को भी पहनाओ.
एक ही सफ़ में खड़े हो गए महमूद व् अयाज़,
कोई बंदा रहा और न कोई बंदा नवाज़.
हिन्सुस्तान का पहला मुस्लिम शाशक क़ुतुबुद्दीन ऐबक
अपने बादशाह का ग़ुलाम ही था.
यह है बुरे इस्लाम की कुछ खूबी.
***
सत्यापन
मुसलमानों का क़ुरआन मारना सिखलाता है
और हिदुओं का पुराण मरवाना.
इस बात को सत्यापित गांधी जी ने भी किया
कि मुसलमान गुंड़े होते हैं और हिन्दू कायर.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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