Monday 22 July 2019

इस्लाम के चार बुत


इस्लाम के चार बुत        

बुत परस्ती की मुख़ालिफ़त करते हुए, इस्लाम ने लाशऊरी तौर पर ख़ुद चार बुत क़ायम किए, वह भी बहुत मज़बूत. 
1- अल्लाह का बुत 
यह हवा का बुत है जो नज़र तो नहीं आता 
न ही ज़ेहनों में देर तक क़ायम रहता है, 
मगर इसके नाम से ही मुसलामानों की रूह क़ब्ज़ रहती है. 
अल्लाह मुसलमानों की ऐसी चाहत है कि भले ही उनको 
उनके बाप की गाली दे दो मगर 
अल्लाह की शान में ग़ुस्ताख़ी उन्हें बर्दाश्त नहीं. 
काबे में तमाम छोटे बड़े बुतों को तोड़ कर बाहर कर दिए और 
सब से बड़ा अल्लाह का हवाई बुत लगा कर क़ैद कर दिया 
जो अवाम को देखना भी नसीब नहीं. 
उस बुत पर एक क़ीमती ग़लाफ़ अरबियों ने चढ़ा दिया है, 
अवाम उसको एक पर्दा नशीन ख़ातून की तरह लिबास पहना दिया जिसके गिर्द तवाफ़ रायज किया. 
इस तरह इस्लाम ने बुत परस्ती का कुफ़्र ख़त्म किया, मुसलमानों को एक बड़ा बुत देकर.
2- मुहम्मद का बुत 
इस्लाम में कुफ़्र के बाद शिर्क हराम है. 
शिर्क का मतलब है उस बड़ी ज़ात अल्लाह के साथ किसी और का नाम शरीक करना. 
जैसे कि ईश्वर के साथ साथ ब्रह्मा, विष्णु और महेश हिन्दुओं में होते हैं. 
शिर्क इंसानी फ़ितरत है. हज़ार ग़ुनाह हो, 
ख्वाजा मुईन चिश्ती की तरह ख़ुद मुसलमानों में दुन्या भर में अल्लाह के शरीक कार बैठे हुए हैं. 
इनको अकसर इस्लामी इंक़्लाब मिस्मार किए रहते है. 
शिर्क तो चाहिए ही, गोया मुहम्मद ने इनकी जगह ख़ुद को क़ायम करके इंसानी ख़्वाहिश को सर्फ़राज़ा. ख़ुद अल्लाह के शरीक कार बन गए, अल्लाह का पैग़म्बर होने का एलान कर दिया. किसी में है मजाल कि अल्लाह के शरीक कार मुहम्मद के एलान को कोई शिर्क कह सके.
3- क़ुरआन का बुत 
काग़ज़ का यह बुत बहुत अहम् है. 
अल्लाह का बुत तो हवाई है, 
कभी किसी को दिखा भी नहीं. 
मुहम्मद का बुत भी 1450 साल पुराना हो गया है, 
मगर यह काग़ज़ी बुत क़ुरआन मौजूदा  मुसलमानों के सरों हमेशा सवार रहता है. मुसलमानों का यह बुत क़ायम व दायम ही नहीं, सवाब ए जारिया बन चुका है. 
है तो मअनवी एतबार से दुन्या की बद तरीन सिन्फ़ ए सुख़न 
मगर इसकी तहरीर को समझने की इजाज़त नहीं, 
सिर्फ़ तिलावत (पाठ) की जाती है. 
बड़ा अच्छा मज़ाक है यह मुसलमानों के साथ. 
इस किताब में इस की ख़ूबियाँ हज़ार बार दोहराई गईं हैं, 
दिखती एक भी नहीं. 
मुसलमानों में हवा है कि क़ुरआन निज़ाम ए हयात हयात है, 
जब की इसके अंदर जाकर देखिए तो यह इंसानी ज़िंदगी के लिए ज़हर है.
4- शैतान का बुत 
शैतान की तमाम ख़ूबियाँ और ख़ामियां बिलकुल अल्लाह जैसी हैं, 
ज़रा सा दर्जा कम है. 
दोनों हर जगह मौजूद हैं, दोनों इंसानी हरकतों पर नज़र रखते हैं. 
अल्लाह अगर 'अल्लाहु अकबर' है तो शैतान
 'अल्लाहु असग़र'. 
इन्हीं चार बुतों पर आलम ए इस्लाम क़ायम है.
काबा से सारे बुत हटे, थे ग़ैर मुअतबर,
इक बुत हवा का टांगा, अल्लाह हुअकबर.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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