Sunday 28 July 2019

सर मग़ज़ी


सर मग़ज़ी

हिन्दू के लिए मैं इक, मुस्लिम ही हूँ आख़िर ,
मुस्लिम ये समझते हैं, ग़ुमराह है काफ़िर ,
इंसान भी होते हैं, कुछ लोग जहाँ में ,
ग़फ़लत में हैं यह दोनों, समझाएगा 'मुंकिर' .

मैं सभी धर्मों को इंसानियत का दुश्मन समझता हूँ.
परंपरा गत जीवन बिताते रहने के पक्ष में तो बिलकुल नहीं.
दुन्या बहुत तेज़ी से आगे जा रही है, 
कहीं ऐसा न हो कि हम परम्परा की घाटियों में घुट कर मर जाएं.
धर्मों में जो अच्छाइया है, वह वैश्विक सच्चाइयों की देन है, उनकी अपनी नहीं.
मुसलमान हिन्दुओं से बेहतर इंसान होते है, 
इस बारे में मैं विस्तार के साथ पहले भी  लिख चुका हूँ.
आज भी हर रोज़ सैकड़ों हिन्दू अपने धर्म की ख़राबियों के कारण , 
उसे त्याग के इस्लाम क़ुबूल कर रहा है और कि मुसलमान अपनी जगह पर क़ायम है. वह हिन्दू धर्म को स्वीकार ही नहीं कर सकता.
कुछ पाठक मुझे हज़्म नहीं कर पा रहें और उल्टियाँ कर रहे हैं.
कुछ आलोचक कहते हैं कि में हिन्दू धर्म की गहराइयों तक पहुँच नहीं पाया, 
मनुवाद पर खड़ा हिन्दू धर्म कहाँ कोई गहराई रखता है ? 
पांच हज़ार सालों से देख रहा हूँ, इस धर्म के कर्म को. 
स्वर्ण आर्यन ने भारत के मूल्य निवासी को किस तरह से शुद्रित किया है , 
शूद्रों को अपने नहाने के तालाब में  पानी भी नहीं पीने देते थे, 
औरतो को अपनी छातियाँ खुली रखने का आदेश हुवा करते थे, 
शूद्रों को अपने कमर में झाड़ू बांध रखने के फ़रमान थे कि 
वह अपने मनहूस पद चिन्हों को मिटते हुए चलें.
ख़ुद हिन्दू लेखक अपने धर्म की धज्जियाँ उड़ाते हुए देखे जाते हैं, 
अपने आराध्य का मज़ाक़ बनाते हैं, 
मुझे राय देना फुजूल है कि मैं इसमें सुगंध तलाशूँ..
मैं अब तक इस बात का पाबंद रहा कि सिर्फ़ मुसलमानों को जागृत करूँ, 
अंतर आत्मा की आवाज़ आई कि नहीं यह भेद भाव होगा.
मुझे इस बात का खौ़फ़ नहीं रह गया है कि कोई हिन्दू मुझे मार दे या मुसलमान. 
मौत तो एक ही होगी, कातिल चाहे जितने हों.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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