इस्लामी नासूर
तालिबान अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान पर जोर आज़माई कर रहा है,
बिलकुल इसलाम का प्रारंभिक काल दोहराया जा रहा है,
जब मुहम्मद बज़ोर गिजवा (जंग) हर हाल में इसलाम को मदीना के आस पास फैला देना चाहते थे. वह अपने हुक्म को अल्लाह का फ़रमान क़ुरआनी आयतों द्वारा प्रसारित और प्रचारित करते. लोगों को ज़बर दस्ती जेहाद पर जाने के लिए आमादा करते, लोग अल्लाह के बजाय उनको ही परवर दिगर! कह कर गिड़गिड़ाते की आप हम को क्यूं मुसीबत में डाल रहे हैं
तो वह ताने देते की औरतों की तरह घरों में बैठो.
मज़े की बात ये कि जंगी संसाधन भी ख़ुद जुटाओ.
एक ऊँट पर 11-11 जन बैठते.
ये सब क़ुरआन में साफ़ साफ़ है जिसे इस्लामी विद्वान छिपाते हैं
और जिसे ज़ालिम तालिबान सब जानते हैं.
आज भी तालिबान अपने अल्लाह द्वतीय मुहम्मद के ही पद चिन्हों पर चल रहे है. इन्हें इंसानी ज़िंदगी से कोई लेना देना नहीं,
बस मिशन है इस्लाम का प्रसार.
इसी में उनकी हराम रोज़ी का राज़ छुपा है.
इधर पाकिस्तान का धर्म संकट है कि इस्लाम के नाम पर बन्ने वाला पाकिस्तान, जब तालिबानियों द्वारा इस्लामी मुल्क पूरी तरह बन्ने की दर पर है तो उसकी हवा क्यूं ढीली हो रही है?
उसका रूहानी मिशन तो साठ साल बाद मुकम्मल होने जा रहा है.
निज़ामे मुस्तफ़ा ही तो ला रहे हैं ये तालिबानी.
मुस्तफ़ा यानी मुहम्मद जो बच्ची के पैदा होने को औरत का पैदा होना कहते थे, (क़ुरआन में देखें ) औरत पर पर्दा लाज़िम है.
मुहम्मद ने छः साला औरत आयशा के साथ शादी रचाई,
आठ साल में उस से सुहाग रात मनाई और परदे में बैठाया,
तालिबान अपने रसूल की पैरवी करके क्या ग़लत कर रहे हैं?
उनको ख़त्म करके पाकिस्तान इस्लाम को क़त्ल कर रहा है,
कोई मुल्ला उसे फ़तवा क्यूं नहीं दे रहा?
"मुहम्मद मैले कपड़े लादे रहते"
इस ज़रा सी बात पर पाकिस्तान न्यायलय ने एक ईसाई बन्दे को
तौहीन ए रिसालत के जुर्म में सज़ाए मौत दे दिया था,
आज पाक अद्लिया किंव कर्तव्य विमूढ़ क्यूँ ?
पाक इसलाम के तलिबों से लड़ने के साथ साथ कुफ्र से भी
(भारत) लडाई पर आमादा है.
कहते हैं कि उसकी एटमी हत्यारों का रुख भारत की ओर है.
यह पाकिस्तान की ग़ुमराही ही कही जाएगी.
मज़हब के नाम पर जो हमारे बड़ों ने अप्रकृतिक बटवारा किया था
उसका बुरा अंजाम सामने है,
बहुत बुरा हो जाने से पहले हम को सर जोड़ कर बैठना चहिए
कि हम 1947 की भूल सुधारें
और फिर एह हो जाएँ.
इस तरह कल का हिदोस्तान शायद दुन्या कि नुमायाँ हस्ती बन कर
लोगों कि आँखें खैरा कर दे.
मगर भारत के हिदुत्व के पाखंड को भी साथ साथ ख़त्म करना होगा
जो कि इस्लामी नासूर से कम नहीं.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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