Thursday 29 March 2012

Soorah Kuhaf 18 (59-82

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह कुहफ १८


(तीसरी किस्त) 

यह जहन्नुमी आलिमाने-दीन

क़यामत के दिन तमाम इस्लामी ओलिमा और आइमा को चुन चुन कर अल्लाह जब जहन्नम रसीदा कर चुकेगा तो ही उसके बाद दूसरे बड़े गुनाहगारों की सूची-तालिका अपनी हाथ में उठाएगा. यह (तथा कथित धार्मिक विद्वान) टके पर मस्जिद और कौडियों में मन्दिर ढ़ा सकते हैं। ये दरोग़, क़िज़्ब, मिथ्य और झूट के यह मतलाशी, शर और पाखंड के खोजी हुवा करते हैं। इनकी बिरादरी में इनके गढे झूट का जो काट न कर पाए वही सब से बड़ा आलिम होता है। यह इस्लाम के अंतर गत तस्लीम शुदा इल्म के आलिम होते हैं यथार्थ से अपरिचित यानी कूप मंडूक जिसका ईमान से कोई संबंध नहीं होता। लफ्ज़ ईमान पर तो इस्लाम ने कब्जा कर रखा है, ईमान का इस्लामी-करण कर लिया गया है, वगरना इस्लाम का ईमान से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। ईमान धर्म-कांटे का निकला हुवा सच है, इस्लाम किसी अल्प-बुद्धि की बतलाई हुई ऊल-जुलूल बातें हैं, जिसको आँख मूँद कर तस्लीम कर लेना इस्लाम है।

अमरीकी प्रोफेसर सय्यद वकार अहमद हुसैनी कहते हैं "कुरान की 6226 आयातों में से 941 पानी के विज्ञानं और इंजीनयरिंग से संबध हैं, 1400 अर्थ शास्त्र से, जब कि केवल 6 रोजे से हैं और 8 हज से।"

प्रोफेसर हुसैनी का ये सफेद झूट है, या प्रोफ़सर हुसैनी ही फर्ज़ी अमरीकी प्रोफ़सर हैं, जैसा कि ये धूर्त इस्लामी विद्वान् अक्सर ऐसे शिगूफे छोड़ा करते हैं । कुरआन कहता है

"आसमान ज़मीन की ऐसी छत है जो बगैर खंभे के टिका हुआ है. ज़मीन ऐसी है कि जिस में पहाडों के खूटे ठुके हुए हैं ताकि यह अपनी जगह से हिले-डुले नहीं" और "इंसान उछलते हुए पानी से पैदा हुवा है" क़ुरआन में यह है इंजीनयरिंग और पानी का विज्ञान जैसी बातें। इसी किस्म के ज्ञान (दर अस्ल अज्ञान) से क़ुरआन अटा पडा है जिस पर विश्वास के कारण ही मुस्लिम समाज पिछड़ा हुवा है. मलऊन ओलिमा इन जेहाल्तो में मानेयो-मतलब पिरो रहे हैं. हकीक़त ये है की क़ुरआन और हदीस में इंसानी समाज के लिए बेहद हानि कारक, अंधविश्वास पूर्ण और एक गैरत मंद इंसान के लिए अपमान जनक बातें हैं, जिन्हें यही आलिम उल्टा समझा समझा कर मुस्लिम अवाम को गुमराह किया करते है।
अभी पिछले दिनों एन डी टी वी के प्रोग्राम में हिदुस्तान की एक बड़ी इस्लामी जमाअत के दिग्गज और ज़िम्मेदर आलिम महमूद मदनी, जमाअत का प्रतिनिधित्व करते हुए भरी महफ़िल में अवाम की आंखों में धूल झोंक गए। बहस का विषय तसलीमा नसरीन थी। मौलाना तसलीमा की किताब को हवा में लहराते हुए बोले,"तसलीमा लिखती है 'उसने अपने बहू से शादी की " गुस्ताख को देखो हुज़ूर की शान में कैसी बे अदबी कर रही है।" ( मदनी को मालूम नहीं कि अंग्रेज़ी से हिन्दी तर्जुमा में यही भाषा होती है।) आगे कहते है "हुज़ूर की (पैगम्बर मुहम्मद की ) कोई औलादे-नरीना (लड़का) थी ही नही तो बहू कैसे हो सकती है ?" बात टेकनिकल तौर पर सच है मगर पहाड़ से बड़ा झूट, जिसे लाखों दर्शकों के सामने एक शातिर और अय्यार मौलाना बोलकर चला गया और अज्ञात क़ौम ने तालियाँ बजाईं। उसकी हकीक़त का खुलासा देखिए-----
किस्से की सच्चाई ये है कि ज़ैद बिन हारसा एक मासूम गोद में उठा लेने के लायक बच्चा हुवा करता था। उस लड़के को बुर्दा फरोश (बच्चे चुराने वाले) पकड़ कर ले गए और मुहम्मद के हाथों बेच दिया। ज़ैद का बाप हारसा बेटे के ग़म में परेशान ज़ारों-क़तार रोता फिरता। एक दिन उसे पता चला कि उसका बेटा मदीने में मुहम्मद के पास है, वह फिरोती की रक़म जिस कदर उससे बन सकी लेकर अपने भाई के साथ,मुहम्मद के पास गया। ज़ैद बाप और चचा को देख कर उनसे लिपट गया। हारसा की दरखास्त पर मोहम्मद ने कहा पहले ज़ैद से तो पूछो कि वह किया चाहता है ? पूछने पर ज़ैद ने बाप के साथ जाने से इनकार कर दिया, तभी बढ़ कर मुहम्मद ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और सब के सामने अल्लाह को गवाह बनाते हुए ज़ैद को अपनी औलाद और ख़ुद को उसका बाप घोषित किया। ज़ैद बड़ा हुवा तो उसकी शादी अपनी कनीज़ ऐमन से कर दी। बाद में दूसरी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से की। ज़ैनब से शादी करने पर कुरैशियों ने एतराज़ भी खड़ा किया कि ज़ैद गुलाम ज़ादा है, इस पर मुहम्मद ने कहा ज़ैद गुलाम ज़ादा नहीं, ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है। मशहूर सहाबी ओसामा ज़ैद का बेटा है जो मुहम्मद का बहुत प्यारा था. गोद में लिए हुए उम्र के ज़ैद वल्द मुहम्मद एक अदद ओसामा का बाप भी बन गया और मुहम्मद के साथ अपनी बीवी ज़ैनब को लेकर रहता रहा, बहुत से मुहम्मद कालीन सहाबी उसको बिन मुहम्मद मरते दम तक कहते रहे और आज के टिकिया चोर ओलिमा कहते हैं मुहम्मद की कोई औलादे-नरीना ही नहीं थी. सच्चाई इनको अच्छी तरह मालूम है कि वह किस बात की परदा पोशी कर रहे हैं.
दर अस्ल गुलाम ज़ैद की पहली पत्नी ऐमन मुहम्मद की उम्र दराज़ सेविका थी ओलिमा उसको पैगम्बर की माँ की तरह बतला कर मसलेहत से काम लेते है. खदीजा मुहम्मद की पहली पत्नी भी ऐमन की हम उम्र मुहम्मद से पन्द्रह साल बड़ी थीं. ज़ैद की जब शादी ऐमन से हुई, वह जिंस लतीफ़ से वाकिफ भी न था. नाम ज़ैद का था काम मुहम्मद का, चलता रहा. इसी रिआयत को लेकर मुहम्मद ने जैनब, अपनी पुरानी आशना के साथ फर्माबरदार पुत्र ज़ैद की शादी कर दी, मगर ज़ैद तब तक बालिग़ हो चुका था . एक दिन, दिन दहाड़े ज़ैद ने देखा कि उसका बाप मुहम्मद उसकी बीवी जैनब के साथ मुंह काला कर रहा है, रंगे हाथों पकड़ जाने के बाद मुहम्मद ने लाख लाख ज़ैद को पटाया कि ऐमन की तरह दोनों का काम चलता रहे मगर ज़ैद नहीं पटा. कुरआन में सूरह अहज़ाब में इस तूफ़ान बद तमीजी की पूरी तफ़सील है मगर आलिमाने-दीन हर ऐब में खूबी गढ़ते नज़र आएंगे.
इसके बाद इसी बहू ज़ैनब को मुहम्मद ने बगैर निकाह किए हुए अपनी दुल्हन होने का एलान किया और कहा कि "ज़ैनब का मेरे साथ निकाह सातवें आसमान पर हुवा, अल्लाह ने निकाह पढ़ाया था और फ़रिश्ता जिब्रील ने गवाही दी।" इस दूषित और घृणित घटना में लंबा विस्तार है जिसकी परदा पोशी ओलिमा पूर्व चौदह सौ सालों से कर रहे हैं। इनके पीछे अल्कएदा, जैश, हिजबुल्ला और तालिबान की फोजें हर जगह फैली हुई हैं। "मुहम्मद की कोई औलादे-नारीना नहीं थी" इस झूट का खंडन करने की हिंदो-पाक और बांगला देश के पचास करोड़ आबादी में सिर्फ़ एक औरत तसलीमा नसरीन ने किया जिसका जीना हराम हो गया है।

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आज मैं आप के सामने मुहम्मद द्वारा गढ़ी एक कहानी को पेश कर रहा हूँ जिस में मुहम्मद की हकीकत है कि वह और उनका अल्लाह कितने अधकचरे थे। इसमें देखने क़ि बात ये है क़ि इसके तर्जुमान ने अल्लाह और मुहम्मद क़ि कितनी मदद की है, कहानी को एक बार ब्रेकट में दिए गए लाल रंग को छोड़ कर पढ़िए, दूसरी बार इस के साथ पढ़िए।आप को अंदाज़ा हो जायगा कि इन ओलिमा ने झूट को सच का रूप देने में इस्लाम की कितनी सहायता क़ि है।

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''और(वह वक़्त याद करो) जब मूसा ने अपने नौकर से फ़रमाया कि मैं(इस सफ़र में) बराबर चला जाऊँगा, यहाँ तक कि इस मौके पर पहुँच जाऊँ जहाँ दो दरया आपस में मिले हैं, या(यूं ही) ज़माना-ए दराज़ तक चलता रहूँगा. पास जब (चलते चलते) दोनों के जमा होने के मौके पर पहुँचे, अपनी मछली को दोनों भूल गए और उस (मछली) ने अपनी राह ली और चल दी। फिर जब दोनों (वहां से) आगे बढ़ गए (तो मूसा ने), अपने नौकर से फ़रमाया कि हमारा नाश्ता लाओ हमको तो इस सफ़र में( यानी आज की मंज़िल में) बड़ी तकलीफ पहुंची. (नौकर ने) कहा कि (लीजिए) देखिए (अजीब बात हुई ) जब हम उस पत्थर के करीब ठहरे थे सो मैं (उस) मछली (के तज़करे) को भूल गया और मुझको शैतान ही ने भुला दिया, कि मैं इसका ज़िक्र करता और (वह किस्सा ये हुवा कि) उस (मछली)ने (ज़िदा होने के बाद) दरया में अजीब तौर पर अपनी राह ली. (मूसा ने हिकायत सुन कर) फ़रमाया यही वह मौक़ा है जिसकी हम को तलाश थी. सो दोनों अपने क़दमों के निशान देखते हुए उलटे लौटे. सो(वहां पहुँच कर) उन्हों ने हमारे बन्दों में से एक बन्दे (यानी खिज़िर) को पाया जिनको हमने अपनी(ख़ास) रहमत (यानी मक़बूलियत)दी थी और उनको हमने अपने पास से (एक ख़ास तौर का) इल्म सिखलाया था. मूसा ने (उनको सलाम किया और) उन से फ़रमाया कि क्या मैं आप के साथ रह सकता हूँ? इस शर्त से कि जो इल्मे-मुफ़ीद को (मिन जानिब अल्लाह) आप को सिखलाया गया है, इस में से आप मुझको भी सिखला दें.(इन बुज़ुर्ग ने)जवाब दिया आप को मेरे साथ(रह कर मेरे अफाल पर) सब्र न होगा. और (भला) ऐसे उमूर पर कैसे सब्र करेगे जो आप के अहाते-वाकिफ़यत से बाहर हो. (मूसा ने)फ़रमाया आप इंशा अल्लाह हम को साबिर (यानी ज़ाबित) पाएँगे. और मैं किसी बात में आप के खिलाफ हुक्म नहीं करूँगा, (इन बुज़ुर्ग ने) फ़रमाया (कि अच्छा) अगर आप मेरे साथ रहना चाहते हैं तो (इतना ख़याल रहे कि) फिर मुझ से किसी बात के निसबत कुछ पूछना नहीं, जब तक कि उसके मुतालिक मैं खुद ही इब्तेदाए ज़िक्र न कर दूं . फिर दोनों (किसी तरह) चले, यहाँ तक कि जब कश्ती में सवार हुए तो (इन बुज़ुर्ग ने) इस कश्ती में छेद कर दिया. (मूसा ने) फ़रमाया कि क्या आप ने इस कश्ती में इस लिए छेद किया (होगा) है कि इसके बैठने वालों को गर्क़ करदें? आप ने बड़ी भारी (यानी खतरा की) बात की. (इन बुज़ुर्ग ने) कहा क्या मैं ने कहा नहीं था कि आप को मेरे साथ सब्र न हो सकेगा. (मूसा ने) फ़रमाया (मुझको याद न रहा था सो) आप मेरी भूल (चूक)पर गिरफ़्त न कीजिए और मेरे इस मुआमले में कुछ ज़्यादा तंगी न डालिए.
फिर दोनों (कश्ती से उतर कर आगे) चले, यहाँ तक कि जब एक (कमसिन) लड़के से मिले तो (इन बुज़ुर्ग ने) उसको मर डाला . मूसा (घबरा कर) कहने लगे कि आपने एक बेगुनाह को जान कर मार डाला (और वह भी) बे बदले किसी जान के, बे शक आप ने (ये तो) बड़ी बेजा हरकत की. (उन बुज़ुर्ग ने)फ़रमाया क्या मैं ने कहा नहीं था कि आप को मेरे साथ से सब्र न हो सकेगा. (मूसा ने) फ़रमाया कि ( खैर अब के और जाने दीजिए) अगर इस (मर्तबा) आप से किसी अम्र के मुतालिक कुछ पूछूं तो आप मुझको अपने साथ न राखिए. बेशक आप मेरी तरफ से उज़र (की इन्तहा) को पहुँच चुके हैं. फिर दोनों (आगे) चले फिर जब एक गाँव वालों पर गुज़र हुवा तो वहां वालों से खाने को माँगा कि (हम मेहमान है) सो उन्हों ने उनकी मेहमानी से इंकार कर दिया. इतने में इनको वहाँ पर एक दीवार मिली जो गिरा ही चाहती थी कि फिर उन बुज़ुर्ग ने उसको (हाथ के इशारे से) सीधा कर दिया. (मूसा ने) फ़रमाया अगर आप चाहते तो इस (काम)पर कुछ उजरत ही ले लेते.(उन बुज़ुर्ग ने) फ़रमाय कि अब ये वक़्त हमारे और आप के अलहदगी का है ( जैसा कि आपने खुद शर्त की थी) मैं उन चीज़ों की हकीकत आप को बतलाए देता हूँ जिन पर आप से सब्र न हुवा. जो कश्ती थी वह चन्द आदमियों की थी जो (इसके ज़रीए) इस दरया में मेहनत (मजदूरी) करते थे सो मैं ने चाहा कि इसमें ऐब डाल दूं और (वजेह इसकी ये थी कि) इन लोगों के आगे की तरफ़ एक (ज़लिम) बादशाह था जो हर (अच्छी) कश्ती को ज़बरदस्ती पकड़ रहा है. और रहा वह लड़का तो उसके माँ बाप ईमान दार थे सो हमको अंदेशा (यानी तहकीक) हुवा कि ये इन दोनों पर सर कशी और कुफ्र का असर न डाल दे. पस हम को ये मंज़ूर हुवा कि बजाए इसके कि इनका परवर दिगार इनको ऐसी औलाद दे जो पाकीज़गी (यानी दीन) में इस से बेहतर हो और( माँ बाप के साथ) मुहब्बत करने में इस से बेहतर हो. और रही दीवार, सो वह दो यतीम बच्चों की थी जो इस शहर में (रहते) हैं और उस (दीवार) के नीचे उन का कुछ माल मदफून था (जो उनके बाप से मीरास में पहूंचा है) और उनका बाप (जो मर गया) एक नेक आदमी था. सो आप के रब ने अपनी मेहरबानी से चाहा कि वह दोनों अपने जवानी (की उम्र) को पहुँचें और अपना दफीना निकल लें. आपके रब की रहमत से और (ये सारे काम मैं ने ब-अल्हाम इलाही किए हैं इन में से) कोई काम मैं ने अपनी राय से नहीं किया. लीजिए ये है हक़ीक़त इन (बातों) की जिन पर आप से सब्र न हो सका.
''सूरह कुहफ १८ - पारा १५ आयत (५९-८२)


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 25 March 2012

Soorah Kuhaf 18 (doosri qist)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

(दूसरी क़िस्त)


इंशा अल्लाह का मतलब है ''(अगर) अल्लाह ने चाहा तो।'' 
सवाल उठता है कि कोई नेक काम करने का इरादा अगर आप रखते हैं तो अल्लाह उसमे बाधक क्यूँ बनेगा? अल्लाह तो बार कहता है नेक कम करो. हाँ कोई बुरा काम करने जा रहो तो ज़रूर इंशा अल्लाह कहो, अगर वह राज़ी हो जाए? वह वाकई अगर अल्लाह है तो इसके लिए कभी राज़ी न होगा. अगर वह शैतान है तो इस की इजाज़त दे देगा. अगर आप बुरी नियत से बात करते हैं तो मेरी राय ये है कि इसके लिए इंशा अल्लाह कहने कि बजाए ''इंशा शैतानुर्रजीम'' कहना दुरुत होगा. इसबात का गवाह खुद अल्लाह है कि शैतान बुरे काम कराता है.
 आपने कोई क़र्ज़ लिया और वादा किया कि मैं फलाँ तारीख को लौटा दूंगा. आप के इस वादे में इंशा अल्लाह कहने की ज़रुरत नहीं, क्यूँ कि क़र्ज़ देने वाले के नेक काम में अल्लाह की मर्ज़ी यकीनी है, तो वापसी के काम में क्यूँ न होगी? चलो मान लेते है कि उस तारीख में अगर आप नहीं लौटा पाए तो कोई फाँसी नहीं,जाओ सुलूक करने वाले के पास, अपने आप को खता वार की तरह उसको पेश करदो. वह बख्श दे या जुरमाना ले, उसे इसका हक होगा. 
रघु कुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाएँ पर वचन न जाई.
इसी सन्दर्भ में भारत सरकार का रिज़र्व बैंक गवर्नर भरतीय नोटों पर वचन देता है- - -
''मैं धारक को एक सौ रूपए अदा करने का वचन देता हूँ'' 
दुन्या के सभी मुमालिक का ये उसूल है, उसमें सभी इस्लामी मुल्क भी शामिल है. जहाँ लिखित मुआमला हो, चाहे इकरार नामें हों या फिर नोट कहीं, इंशा अल्लाह का दस्तूर नहीं है. इंशा अल्लाह आलमी सतेह पर बे ईमानी की अलामत है. मुहम्मद ने मुसलमानों के ईमान को पुख्ता नहीं, बल्कि कमज़ोर कर दिया है, खास कर लेन देन के मुआमलों में. क़ुरआनी आयतें उन पर वचन देने की जगह '' इंशा अल्लाह'' कहने की हिदायत देती हैं, इसके बगैर कोई वादा या अपने आइन्दा के अमल को करने की बात को गुनहगारी बतलाती हैं. 
आम मुसलमान इंशा अल्लाह कहने का आदी हो चुका है.उसके वादे, कौल,क़रार, इन सब मुआमलों में अल्लाह की मर्ज़ी पर मुनहसर करता है कि वह पूरा करे या न करे. इस तरह मुसलमान इस गुंजाइश का नाजायज़ फ़ायदा ही उठाता है, नतीजतन पूरी कौम बदनाम हो चुकी है. मैंने कई मुसलामानों के सामने नोट दिखला कर पूछा कि अगर सरकारें इन नोटों में इंशा अल्लाह बढ़ा दें और यूँ लिखें कि ''मैं धारक को एक सौ रूपए अदा करने का वचन देता हूँ , इंशा अल्लाह '' तो अवाम क्या इस वचन का एतबार करेगी?, उनमें कशमकश आ गई. उनका ईमान यूँ पुख्ता हुवा है कि अल्लाह उनकी बे ईमानी पर राज़ी है, गोया कोई गुनाह नहीं कि बे ईमानी कर लो.
 इस मुहम्मदी फार्मूले ने पूरी कौम की मुआशी हालत को बिगड़ रख्खा है. सरकारी अफ़सर मुस्लिम नाम सुनते ही एक बार उसको सर उठ कर देखता है, फिर उसको खँगालता है कि लोन देकर रक़म वापस भी मिलेगी ? मेरे लाखों रूपये इन चुक़त्ता मुक़त्ता दाढ़ी दार मुसलमानों में डूबा है. कौमी तौर पर मुसलमान पक्का तअस्सुबी (पक्षपाती) होता है. पक्षपात की वजेह से भी मुस्लमान संदेह की नज़र से देखा जाता है .
मेरी तामीर में मुज़्मिर है इक सूरत ख़राबी की (ग़ालिब)
ग़ालिब का ये मिसरा मुसलमानों पर सादिक़ है कि इस्लामी तालीम ने उनको इंसानी तालीम से महरूम कर दिया है। मुसलमानों के लिए इससे नजात पाने का एक ही हल है कि वह तरके-इस्लाम करके दिलो-ओ-दिमाग़ से मोमिन बन जाएँ.
दीन दार मोमिन
.दीन= दयानत (सत्यता) + मोमिन = ईमान दार (इस्लामी ईमान नहीं)
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अब चलते है इन के ईमान पर - - -
''और आप किसी काम के निसबत यूँ न कहा कीजिए कि मैं इसको कल करूँगा, मगर खुदा के चाहने को मिला दिया कीजिए। और जब आप भूल जाएँ तो रब का ज़िक्र किया कीजिए। और कह दिया कीजिए कि मुझको उम्मीद है कि मेरा रब मुझ को दलील बनने के एतबार से इस से भी नज़दीक तर बात बतला दे।''
सूरह कुहफ १८ - पारा १५ आयत (२४)

मुलाहिज़ा फ़रमाइए,
है न मुहम्मदी अल्लाह की तअलीम. इंशा अल्लाह
'' और वह लोग अपने ग़ार में तीन सौ बरस तक रहे और नौ बरस ऊपर और है। आप कह दीजिए कि खुदा तअला इनके रहने को ज्यादा जानता है तमाम आसमानों और ज़मीन का ग़ैब उसको है. वह कैसा कुछ देखने वाला और कैसा कुछ सुनने वाला है. इनका खुदा के सिवा कोई मददगार नहीं और न अल्लाह तअला अपने हुक्म में किसी को शरीक करता है.''
''सूरह कुहफ १८ - पारा १५ आयत (२५-२६)

मुहम्मद एक तरफ़ अपनी भाषा उम्मियत में वक्फ़े का एलान भी करते हैं, फिर लगता है इसका खंडन भी कर रहे हैं कि ''आप कह दीजिए कि खुदा तअला इनके रहने को ज्यादा जानता है।'' वह खुद सर थे किसी की दख्ल अनदाज़ी उनको गवारा न थी , इसका एलन वह खुदाए तअला बनकर करते हैं कि ''अपने हुक्म में किसी को शरीक करता है।''

''और जो आप के रब की किताब वह्यी के ज़रीए आई है उसको पढ़ दिया कीजिए, इसकी बातों को कोई बदल नहीं सकता। और आप खुदा के सिवा कोई और जाए पनाह नहीं पाएँगे''
सूरह कुहफ १८ - पारा १५ आयत (27)

मुसलमानों! 
मुहम्मदी अल्लाह अगर वाक़ई अल्लाह होता तो क्या इस किस्म की बातें करता? जागो कि तुम को सदियों के वक्फ़े में कूट कूट कर इस अक़ीदे का ग़ुलाम बनाया गया है।

''और आप अपने को उन लोगों के साथ मुक़य्यद रखा कीजिए जो सुब्ह शाम अपने रब की इबादत महज़ उसकी रज़ा जोई के लिए करते हैं और दुन्यावी ज़िन्दगी की रौनक के ख़याल से आप की आँखें उन से हटने न पाएँ और ऐसे लोगों का कहना न मानिए जिन के दिलों को हम ने अपनी याद से गाफ़िल कर रखा है, वह अपनी नफ़सानी ख्वाहिश पर चलता है - - 
सूरह कुहफ १८ - पारा १५ आयत (२८)
''और आप कह दीजिए कि हक़ तुम्हारे रब की तरफ़ से है सो जिसका जी चाहे ईमान ले आवे और जिस का जी चाहे काफ़िर बना रहे. बेशक हमने ऐसे जालिमों के लिए आग तैयार कर रखी है कि इनकी क़नातें उनको घेरे होंगी और अगर फ़रयाद करेंगे तो ऐसे पानी से उनकी फ़रयाद पूरी की जाएगी जो तेल की तलछट की तरह होगा, मुँहों को भून डालेगा. क्या ही बुरा पानी होगा, और क्या ही बुरी जगह होगी.'''
'सूरह कुहफ १८ - पारा १५ आयत (२९)

यह मुहम्मदी आयतें इस बात का सुबूत हैं कि तुम को मुहम्मद अपने पयम्बरी के क़ैद खाने में मुक़य्यद करने में कामयाब हैं। अब वक़्त की आवाज़ सुनो, जो तुम्हें इस से आज़ाद करना चाहता है। बस मुसलमान से मोमिन बन जाओ और इस गाफ़िल करने वाले शैतान मानिंद अल्लाह से नजात पाओ, कि जो खुद अपनी कमज़ोरियों का शिकार है. आज़ाद होकर अपनी नफ़सानी ज़िन्दगी जियो. तुम से तुम्हारी नफ्स इल्तेजा कर रही है कि अपनी नस्लों को मुकम्मल इन्सान बनाओ. नफ्स क्या है ? सिर्फ ऐश और अय्याशी को नफ्स नहीं कहते, ज़मीर की आवाज़ भी नफ्स है, इन्सान की जेहनी आज़ादी भी नफ्स है, मोहम्मद तो ऐश ओ अय्याशी को ही नफ्स जानते हैं, अंतर आत्मा जिसको पाने को तड़पती हो वह नफ्स है. तुम्हारी अंतर आत्मा की आवाज़ इस वक़्त क्या है? ऊपर अल्लाह की बख्शी हुई हूरें या अपने बच्चों का रौशन मुस्तक़बिल? ईमान की गहराइयों को गवाह कर के बतलाओ.
यह कुरान की साफ़ साफ़ आवाज़ है जिसको बड़े मौलाना शौकत अली थानवी ने उर्दू में अनुवाद किया है, किसी हदीसे-ज़ईफ़ की नक्ल नहीं। देखो कि कितना बुरा अल्लाह है, कितना नाइंसाफ़ है कि ऐसे खौफों से डरता है कि अगर तुम ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' कह कर मरते तो क्या से क्या हो सकता था, क्या तुम क़नातों में घिरी दोज़ख में जलना पसंद करोगे और तेल की तलछट की तरह पानी पीना, जो मुँहों को भून डाले. बस बहुत हो गया , इस अक़ीदे को सर से झटक कर ज़मीन पर रख्खे कूड़ेदान में डाल दो.याद रख्खो अल्लाह अगर है तो तुम्हारे बाप कि तरह शफीक़ होगा, कुरआन में बके हुए मुहम्मदी अल्लाह की मानिंद नहीं. इस ज़िन्दगी को बेख़ौफ़ होकर जीना सीखो।

'' बेशक जो लोग ईमान लाए और उन्हों ने अच्छे काम किए तो हम ऐसों का उज्र ज़ाया न करेंगे ऐसे लोगों के लिए हमेशा रहने के बाग़ हैं, इनके नीचे नहरें बहती होंगी और इनको वहाँ सोने के कँगन पहनाए जाएँगे और सब्ज़ रंग के कपडे बारीक और दबीज़ रेशम पहनेंगे और वहाँ मसेहरियों पर टेक लगाए होंगे क्या ही अच्छा सिला है और क्या ही अच्छी जगह है। और आप उन में से दो लोगों का हाल बयान कीजिए 
( बे सर ओ पर की कहानी - - -आप पढना पसंद न करेगे और मुझे लिखने में कराहियत होती है. जिसका इख्तेसर है कि अल्लाह के न मानने वाले की कमाई जल कर साफ मदन हो गया और उसे मानने वाला सुखरू रहा.
सूरह कुहफ १८ - पारा १५ आयत (३० -४४)

ऐ लोगो! खुदा न खास्ता अगर मुहम्मदी ईमान को लेकर ही उठे तो तुहारी ऊपर बड़ी ख़राबी होगी। सब्ज़ रंग के बारीक और दबीज़ रेशम के कपडे पहने पहने तमाम उम्रे-मतनाही लिए बैठे रहोगे कि कोई काम काज न होगा, कोई ज़मीन न होगी जिसको उपजाऊ बनाने के लिए अपनी ज़िन्दगी वक्फ करो, कोई चैलेज न होगा, न कोई आगे की मंजिल, नफ्स की कोई माँग न होगी, सब कुछ बे माँगे मिलता रहेगा। अंगूर और खजूर खाने की तलब भर हुई कि उसकी शाखें तुम्हारे होटों के सामने होंगी। सोने का कंगन होगा उसकी कीमत तो इसी दुन्या में है जिसे तुम खो रहे हो, वहाँ सोने के मकान होंगे जिसमें सोने का कमोड होगा, फिर सोना लादना हिमाक़त ही लगेगा. आखिर ऐसी बे मकसद ज़िन्दगी का अंजाम क्या होगा? फिर याद आएगी युहें अपनी यह दुन्या जिसको तुम गँवा रहे हो, मोहम्मदी झांसों में आकर.''अल्लाह ज़मीन से पहाड़ों को हटा कर ज़मीन पर रोज़े-महशर सजाता है, ईमान का बदला देता है और फिर ईमान न लाने वाले मातम करते हैं, ये मुख़्तसर है इन आयतों का. ये नौटंकी कुरआन में बार बार देखने को मिलेगी.
''सूरह कुहफ १८ - पारा १५ आयत (४५-४९)

''मैंने उनको न आसमान और ज़मीन को पैदा करने के वक़्त बुलाया, और न खुद उनके पैदा होने के वक़्त और मैं ऐसा न था कि गुमराह करने वालों को अपना दोस्त बनाता। और उस दिन हक़ तअल्ला फ़रमाएगा जिन को तुम हमारा शरीक समझते थे उनको पुकारो, वह उनको पुकारेंगे सो वह उनको जवाब ही न देंगे और हम उनके दरमियान में एक आड़ कर देंगे और मुजरिम लोग दोज़ख को देखेंगे कि वह उस में गिरने वाले हैं और इससे कोई बचने की राह न पाएगा।
''सूरह कुहफ १८ - पारा १५ आयत (५१ ५३)
मतलब ये कि अल्लाह ने तुमको बड़ी आसानी से अकेले ही जन दिया, उसको किसी दाई, आया, नर्स या डाक्टर की ज़रूरत नहीं थी।
मुसलमानों! 
क्यूँ अपनी रुवाई ज़माने भर में करवाने पर आमादः हो, सारा ज़माना इन आयातों को पढ़ रहा है और तुम पर थूक रहा है। क्या सदियों से इस्लामी बेड़ियों में जकड़े जकड़े तुम को इन बेड़ियों से प्यार हो गया है, चलो ठीक है ! मगर क्या ये जेहालत की बेड़ियाँ अपने बच्चों के पैरों में भी पहनने का इरादा है? दुन्या के करोरो इंसानों को जगाने का वक़्त, इक्कीसवीं सदी तुम को आगाह कर रही है कि '' तुम्हारी दास्ताँ रह जाएगी बस दस्तानोंमें."

''और हम ने इस कुरआन में लोगों की हिदायत के वास्ते हर किस्म के उम्दा मज़ामीन तरह तरह से बयान फ़रमाए हैं और आदमी झगडे में सब से बढ़ कर है.''
सूरह कुहफ १८ - पारा १५ आयत (५४)
ऐ दुश्मने-इंसानियत मुहम्मदी अल्लाह ! 
तूने शर, बोग्ज़, नफ़रत, जेहालत, बे ईमानी और हिमाक़त ही बका है,
 इस कुरआन में. अपनी खूबियाँ बखानने वाले!
 क्यूँ न आदमी को शरीफ़ तबअ मख्लूक़ बनाया, 
अपने पैगम्बर को पहले तालीम दी होती कि बातें करना सीखे, फिर सच बोलना सीखे, उसके बाद इंसानों की ज़िन्दगी की क़ीमत आँके कि जिसने लाखों सदियों से तेरी आपदाओं से बच बचा कर मानव जति को यहाँ तक ले आई है. वह तो इसे काफ़िर, मुशरिक, मुनकिर, मुल्हिद, यहाँ तक कि ईसाइयों और मूसाइयों को जानवरों की तरह मार देने की तअलीम दे रहा है. 
और ऐ मुसलमानों कब तक ऐसे अल्लाह और उसके ऐसे रसूल के आगे सजदा करते रहोगे?

''और उन्हों ने मेरी आयातों को और जिस से उनको डराया गया था, उसको दिललगी बनाए रक्खा है। - - -"
सूरह कुहफ १८ - पारा १५ आयत (५७)

ऐ मुहम्मदी अल्लाह! तेरी आयतें तो हैं ही ऐसी कि दुन्या भर में मज़ाक बनी हुई हैं। बस मुसलमानों की आँखें ही नहीं खुल रहीं। अपना मज़ाक उड़ते देख कर उनको शर्म नहीं आती क्यूँ कि वह जन्नत के फरेब में मुब्तिला हैं, हालांकि उसमें भी अंततः दुर्गन्ध है.
'' - - -और बस्तियां जब उन्हों ने शरारत की तो हमने उनको हलाक कर दिया।
''सूरह कुहफ १८ - पारा १५ आयत (५९)
और तू इंसानी बस्तियों के साथ कर भी क्या सकता है? तेरे डाकिए मुहम्मद ने इंसानों को हैवान बना दिया, वह उसकी पैरवी में लग कर २०% इंसानी आबादी के पैरों में बेड़ियाँ डाले हुए हैं। इस वक़्त पूरी दुन्या मिल कर उनको फ़ना करने पर आमादा है.
मुसलमानों!
 जागो, आँखें खोलो।
 इक्कसवीं सदी की सुब्ह हुए देर हुई, 
देखो कि ज़माना चाँद सितारों पर सीढियां लगा रहा है. कल जब यह ज़मीन सूरज के गोद में चली जाएगी तो बाकी लोग अपनी अपनी नस्लों को लेकर उस पर बस जाएँगे और तुम्हारी नस्लें कहीं की न होंगी. तुम समझते हो कि तुम हक़ बजानिब हो? तो तुम बहके हुए हो.
 तुमको बहकाए हुए हैं, इस्लामी ओलिमा, जिनका कि ज़रीआ मुआश ही इस्लाम है. इनका पूरा माफिया सकक्रीय है. इनका नेट वर्क ओबामा जैसे अच्छे लीडर को हिलाए हुए है. इनकी पकड़ सीधे सादे मुसलमानों को अपनी मुट्ठी में दबोचे हुए है. ज़रा सर उठा कर तो देखो, इनके एजेंट तुम को फ़तवा देना शुरू कर देंगे, समाज में इनके इस्लामी गुंडे तुम्हारे बगल में ही बैठे होंगे, तुम को अलावा समझाने बुझाने के ये और कोई राय नहीं देंगे.हर एक का मुआमला पेट से जुड़ा हुवा है यह तो तुम मानते हो. वह भी मजबूर हैं कि उनकी रोज़ी रोटी है, गोरकुन की तरह. 
कोई मुक़र्रिर बना हुवा है,
 कोई मुफक्किर, कोई प्रेस चला कर,
 इस्लामी किताबों की इशाअत जो उसकी रोज़ी है, कोई 
नमाज़ पढ़ाने के काम पर, तो कोई अजान देने का मुलाजिम है, 
मीडिया वाले भी ओलिमा को बुला कर तुम्हें आकर्षित करते हैं कि चैनल के शाख का सवाल है. यहाँ तक कि इस ब्लाग की दुन्या में भी ऐसे लोगों ने अपने बच्चों के पोषण का ज़रीआ तलाश कर लिया है. 
यह सब मिल कर तुम्हें सुलाए हुए हैं. कोई जगाने वाला नहीं हैं. तुम खुद आँखें खोलनी होगी।
* * * * *

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 22 March 2012

सूरह कुहफ़ १८ (पहली किस्त)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह कुहफ़ १८
(पहली किस्त) 

कुहफ़ के मानी गुफा के होते हैं. इस सूरह में मुहम्मद ने सिकंदर कालीन यूनानी घटना की योरपियन पौराणिक कथा को अपने ही अंदाज़ में इस्लामी साज़ ओ सामान के साथ बयान किया है. 
चार व्यक्ति किसी मुल्क की सरहद पार कर रहे थे कि इनको खबर हुई कि इन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाएगा. ये लोग डर के मारे एक ग़ार में छुप गए, साथ में इनके एक कुत्ता भी था. वह बगरज़ हिफ़ाज़त ग़ार के मुँह पर बैठ गया. रात हो गई, वह लोग ग़ार में ही सो गए, सुब्ह हुई तो उन्हें भूख लगी, वह बचते बचाते बाज़ार गए कि कुछ खाना पीना ले आएं. बाज़ार में सामाने-खुर्दनी ख़रीद कर जब उसका भुगतान किया तो दूकान दार इनका मुँह तकने लगा के ज़माना ए क़दीम का सिक्का यह कैसे दे रहे है? इस ख़बर से बाज़ार में हल चल मच गई. पता चला कि यह तो तीन सौ साल पुराना सिक्का है, यह लोग इसे अब चला रहे हैं? गरज़ राज़ खुला कि यह तीन सौ साल तक ग़ार में सोते रहे. 
कहानी तो कहानी ही होती है, यानि 'फिक्शन' कहानी में अस्ल किरदार कुत्ते का है जो इतने बरसों तक वफ़ा दारी के साथ अपने मालिकों की हिफ़ाज़त करता रहा. इस पौराणिक कहानी का मोरल कुत्ते की वफ़ादारी है। इस्लाम ने अरबी तहज़ीब ओ तमद्दुन, उसका इतिहास और उसकी विरासत का खून करके दफ़्न कर दिया है, जो अपनी नई तहजीब बदले में मुसलमानों को दी वह उनकी हालत पर अयाँ है मगर कुदरत की बख्सी हुई सदाक़तें कैसे रूपोश हो सकती हैं?
 इस्लाम ने कुत्तों की कद्र ओ कीमत ख़त्म करके उसे नजिस और नापाक बना दिया है. मुहम्मद कुत्तों से शदीद नफ़रत करते थे, कई हदीसेंइसकी गवाह हैं - - -
''मुहम्मद की ग्यारवीं बेगम मैमूना कहती है कि एक रोज़ मुहम्मद पूरे दिन उदास रहे, कहा 'जिब्रील अलैहिस्सलाम ने वादा किया था कि आज वह हम से मिलने आ रहे हैं, मगर आए नहीं, ख़याल आया कि आज एक कुत्ते का बच्चा डेरे से निकला था, यह वजेह हो सकती है, वह उठे, फ़ौरन उस जगह को पानी छिड़क कर साफ़ और पाक किया, 
फ़रमाया कुत्ते की मौजूदगी और नजासत फरिश्तों को पसंद नहीं. सुबह उठे और हुक्म दे दिया कि तमाम कुत्तों को क़त्ल कर दिया जाए, जब कुत्ते मारे जाने लगे तो इस हुक्म का विरोध हुआ, कहा अच्छा छोटे बाग़ों के कुत्तों को मार दो, बड़ों को बागों की रखवाली के लिए रहने दो, फिर एहतेजाज हुवा की कुत्ते तो हमारी इस तरह से हिफाज़त करते हैं कि हम अपनी औरतों को उनके हमराह एक गाँव से दूसरे गाँव तक तनहा भेज देते हैं - - - तब कुछ सोचने के बाद कहा अच्छा उन कुत्तों को मार दो जिनकी आँखों पर दो काले धब्बे होते हैं, ऐसे कुत्तों में शैतानी अलामत होती है। (मुस्लिम- - - किताबुल लिबास ओ जीनत+ दीगर)

इस तरह पूरी कौम कुदरत की इस बेश बहा और प्यारी मखलूक से महरूम है. वह मानते हैं कि जहाँ कुत्ते के रोएँ गिरते हैं वहां फ़रिश्ते नहीं आते. बाहरी दुन्या से कुत्ते की खुशबू पाकर मुहम्मदी अल्लाह इतना मुतासिर हुवा कि कुत्ते को क़ुरआनी सूरह बना दिया जिसको आज मुसलमान वज़ू करके अपनी नमाज़ों में वास्ते सवाब पढ़ते हैं, यहाँ तक कि वह कहते हैं, जानवरों में सिर्फ़ यही कुत्ता जन्नत नशीन हुवा है. अजीब ट्रेजडी है इस कौम के साथ पत्थर की मूर्तियाँ इसके लिए कुफ्र है, तो वहीँ पत्थर असवद को चूमती है. अंध विश्वास को कोसती है मगर मुहम्मदी अल्लाह अंध विश्वास से शराबोर है।
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नोट : -- {ब्रेकेट में बंद शब्द (लाल रंग में) अल्लाह के नहीं, उसके गुरू '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''के हैं, जिन्हों ने अल्लाह क़ी मदद क़ी है, वर्ना मुहम्मदी भाषा इस बात क़ी दलील है कि मुहम्मद को शब्द ज्ञान क्या था ? पूरा का पूरा कुरआन इसी तर्ज़ पर है। सिर्फ इस पोस्ट में इसे बतौर नमूना इसे पेश कर रहे हैं.}

सूरह में बयान को बेहूदः कहा जा सकता है, खुद देखिए - - -

''खूबियाँ उस अल्लाह के लिए हैं (साबित) जिसने अपने(ख़ास)बन्दे पर (ये)किताब नाज़िल फ़रमाई और इसमें ज़रा भी कजी नहीं रखी।''
सूरह १८ -१५ वाँ पारा आयत(१)

खूबियाँ ज़रूर सब अल्लाह की हो सकती हैं, ख़राबियां मुसलमानों की ये क़ुरआन किए हुए है. यह अलफ़ाज़ किसी झूठे बन्दे के हैं, जो सफ़ाई दे रहा है कि किताब में कोई कजी नहीं, अल्लाह की बात तो हाँ की हाँ और न की न होती है. वह हरकत अपने फ़ेल से करता है, इन्सान की तरह मुँह नहीं बजाता. भूचाल जैसी उसकी हरकतें किसी मुस्लमान और काफ़िर को नहीं पहचानतीं, न प्यारा मौसम किसी ख़ास के लिए होता है।
''और ताकि लोगों को डराइए जो (यूं) कहते हैं (नौज़ बिल्लाह) कि अल्लाह तअला औलाद रखता है, न कोई इसकी कोई दलील उनके पास है, न उनके बाप दादों के पास थी. बड़ी भारी बात है जो उनके मुँह से निकलती है. वह लोग बिलकुल झूट बकते हैं।''
सूरह १८ -१५ वां पारा आयत(५)

मुहम्मद सिर्फ़ काफ़िर, मुशरिक से ही नहीं सारे ज़माने से बैर पालते थे. यहाँ इशारा ईसाइयों की तरफ़ है जो ईसा को खुदा का बेटा मानते हैं. तुम खुदा के नबी हो सकते हो कि वह तुमको आप जनाब करके चोचलाता है, कोई दूसरा खुदा का बेटा क्यूँ नहीं हो सकता ?
क्यूँ ? 
अल्लाह के लिए क्या मुश्किल है ''कुन फियाकून '' का फ़ॉर्मूला उसके पास है, एक अदद बेटा बना लेना उसकेलिए कौन सी मुश्किल है?
 ईसा कट्टर पंथी यहूदी धर्म का एक बाग़ी यहूदी था. एक मामूली बढई यूसुफ़ क़ी मंगेतर मरियम थी, जिनका शादी से पहले ही अपने मंगेतर के साथ यौन संबंध हो गया था और नतीजतन वह गर्भ वती हो गई, बच्चा हुआ जो यहूदी धर्म में अमान्य था, जैसे आज मुसलमानों में ऐसे बच्चे नाजायज़ क़रार पाते हैं. 
ईसा को बचपन से ही नाजायज़ होने का तअना सुनना पड़ा. जिसकी वजह से वह अपने माँ बाप से चिढने लगा था. वह चौदह साल का था, माँ बाप उसे अपने साथ योरोसलम तीर्थ पर ले गए जहाँ वह गुम हो गया, बहुत ढूँढने के बाद वह योरोसलम के एक मंदिर में मरियम को मिला. मरियम ने झुंझला कर ईसा घसीटते हुए कहा,
'' तुम यहाँ हो और तुम्हारा बाप तुम्हारे लिए परेशान है.'' 
ईसा का जवाब था मेरा कोई बाप और माँ नहीं, मैं खुदा का बेटा हूँ और यहीं रहूँगा. ईसा अड़ गया, यूसुफ़ और मरियम को ख़ाली हाथ वापस जाना पड़ा. ईसा के इसी एलान ने उसे खुदा का बेटा बना दिया और वह कबीर क़ी तरह यहूदी धर्म क़ी उलटवासी कहने लगा, वह धर्म द्रोही हुवा और सबील पर यहूदी शाशकों ने उसे लटका दिया. इस तरह वह
 ''येसु खुदा बाप का बेटा'' बन गया और उसके नाम से ही एक धर्म बन गया. ईसाई उसे कुंवारी मरिया का बेटा कहते हैं, जिसमें झूट और अंध विश्वास न हो तो वह धर्म कैसा? ''

"और आप जो उन पर इतना ग़म खाते (हैं) सो शायद आप उनके पीछे अगर यह लोग इस मज़मून (क़ुरआनी) पर ईमान न लाए तो ग़म से अपनी जान दे देंगे (यानी इतना गम न करें कि करीब ब-हलाकत कर दे)।''
सूरह १८ -१५ वां पारा आयत(६)

देखिए कि मुहम्मद खुद को अल्लाह से कैसा दुलरवा रहे हैं. लगता है अल्लाह और उनका चचा भतीजे का रिश्ता हो, क्यूँ कि बेटे तो हो नहीं सकते. मुल्ला कहता है कुरआन को ज़ारो क़तार हो कर पढ़ा जाए, हैं न मुहम्मद का भारी नाटक कि अगर उनकी उम्मत उनके लिए राज़ी न होती तो वह जान दे देते।
''हमने ज़मीन पर की चीज़ों को इस (ज़मीन) के लिए बाइसे-रौनक़ बनाया ताकि हम इन लोगों की आज़माइश करें कि इन में ज्यादह अच्छा अमल कौन करता है और हम इस (ज़मीन) पर की तमाम चीज़ों को एक साफ़ मैदान (यानी फ़ना) कर देंगे।''
सूरह १८ -१५ वां पारा आयत(७-८)

मुहम्मद क़ी नियत में हर जगह नफ़ी का पहलू नज़र आता है, एक मुसलमान बगैर खौफ़ के कोई ख़ुशी मना ही नहीं सकता. क़ुदरत क़ी रौनक़ भी देखने से पहले अपनी बर्बादी का ख़याल रक्खो. इस कशमकश के अक़ीदे से लोग बेज़ार भी नहीं होते।
'' क्या आप ये ख़याल करते हैं कि ग़ार वाले और पहाड़ वाले हमारी अजाएबात (कुदरत) में से कुछ तअज्जुब की चीज़ थे (वह वक़्त काबिले-ज़िक्र है) जब कि इन नव जवानो ने इस ग़ार में जाकर पनाह ली और कहा के ऐ हमारे परवर दिगार हमको अपने पास से रहमत (का सामान) अता फ़रमाइए और हमारे लिए (इस) काम में दुरुस्ती का सामान मुहय्या कर दीजिए.
''सूरह १८ -१५ वां पारा आयत(९-१०)

ग़ार वालों क़ी कहानी में ग़ार वालों और पहाड़ियों को अल्लाह खुद अजाएबात और तअज्जुब की चीज़ बतला कर शुरू करता है, अल्लाह खुद अपनी रचना पर तअज्जुब करता है. मुहम्मद तबलीग में लगने लगे कि पौराणिक कथा में भी खुद को कायम करते हैं. सिकंदर युगीन जवानों से अल्लाह क़ी रहमत क़ी दरख्वास्त करवाते हैं गोया वह भी मुसलमान थे।
''सो हमने इस ग़ार में इनके कानो पर सालाहा साल तक (नींद का पर्दा) डाल दिया. फिर हमने उनको उठाया त़ाकि हम मालूम कर लें इन दोनों गिरोहों में से कौन सा (गिरोह) इनके रहने की मुद्दत से ज़्यादः वाकिफ़ है. हम इनका वाक़ेआ आप से ठीक ठीक बयान करते हैं, वह लोग चन्द नव जवान थे जो अपने रब पर ईमान लाए थे, हमने उनकी हिदायत में और तरक्क़ी कर दी. और हमने उनके दिल और मज़बूत कर दिए, जब वह (दीन में) पुखता होकर कहने लगे हमारा रब तो वह है जो आसमानों और ज़मीन का रब है. हम तो इसे छोड़ कर किसी माबूद की इबादत न करेंगे. (क्यूँकि) इस सूरत में यक़ीनन हम ने बड़ी बेजा बात कही है, जो हमारी कौम है, उन्हों ने खुदा को छोड़ कर और माबूद क़रार दे रखे हैं. ये लोग इन (माबूदों पर) कोई खुली दलील क्यूँ नहीं लाते? सो इस शख्स से ज़्यादः कौन गज़ब ढाने वाला होगा जो अल्लाह पर गलत तोहमत लगावे. और जब तुम उन लोगों से अलग हो गए हो और उनके माबूदों से भी, मगर अल्लाह से अलग नहीं हुए तो तुम फलाँ ग़ार में जाकर पनाह लो. तुम पर तुम्हारा रब अपनी रहमत फैला देगा और तुम्हारे लिए तुम्हारे इस काम में कामयाबी का सामान दुरुस्त करेगा।''
सूरह १८ -१५ वां पारा आयत(८-१६)

कहानी का मुद्दा मुहम्मद के बत्न में ही रह गया '' दोनों गिरोहों में से कौन सा (गिरोह) इनके रहने की मुद्दत से ज़्यादः वाकिफ़ है.'' कौन से दो गिरोह? 
अल्लाह जी जानें या फिर मुल्ला जी जानें. फिर अल्लाह झूटों क़ी तरह बातें करता है
''हम इनका वाक़ेआ आप से ठीक ठीक बयान करते हैं'' 
और झूट उगलने लगता है कि वह नव मुस्लिम थे, इस लिए उसने ''उनकी हिदायत में और तरक्क़ी कर दी. और हमने उनके दिल और मज़बूत कर दिए'' 
यानी ये चारा मक्का वालों के लिए फेंका जाता है कि वह बेजा बातें करते हैं कि मूर्ति पूजा करते हैं और उनके फेवर में कोई दलील नहीं रखते. मुहम्मद ऐसे लोगों को गज़ब ढाने वाला बतलाते है. मक्का वालों को आप बीती बतलाते हैं कि वह इस्लाम का झंडा लेकर उन कुरैशियों और अरबों से अलग हो गए.मुहम्मद क़ी हर हर बात में सस्ती सियासत और बेहूदा पेवंद कारी क़ी बू आती है. अफ़सोस कि मुसलमानों क़ी नाकें बह गई हैं. ऐसा घिनावना मज़हब जिसको अपना कहने में शर्म आए. बस इन को इस्लामी ओलिमा इस के लिए, मारे और बांधे हुए हैं।
''और ऐ (मुखातब) तू इनको जागता हुवा ख़याल करता है, हालांकि वह सोते थे. और हम उनको (कभी) दाहिनी तरफ और (कभी) बाएँ तरफ करवट देते थे और इनका कुत्ता दह्जीज़ पर अपने दोनों हाथ फैलाए हुए था. अगर ऐ (मुखातब) तू इनको झाँक कर देखता तो उनसे पीठ फेर कर भाग खड़ा होता, तेरे अन्दर उनकी दहशत समां जाती और इस तरह हमने उनको जगाया ताकि वह आपस में पूछ ताछ करें. उनमें से एक कहने वाले ने कहा कि तुम (हालाते-नर्म) में किस क़दर रहे होगे ? बअज़ों ने कहा कि (गालिबन) एक दिन या एक दिन से भी कुछ कम रहे होंगे (दूसरे बअज़ों ने) कहा ये तो तुहारे खुदा को ही ख़बर है कि तुम किस क़दर रहे. अब अपनों में किसी को ये रुपया दे कर शहर की तरफ भेजो फिर वह शख्स तहक़ीक़ करे कि कौन सा खाना (हलाल) है. सो इसमें से तुम्हारे पास कुछ खाना ले आवे और (सब काम) खुश तदबीरी (से) करे और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे. (क्यूं कि अगर) वह लोग कहीं तुम्हारी ख़बर पा जावेंगे तो तुमको या तो पत्थर से मार डालेगे फिर (जबरन) अपने तरीकों में ले लेंगे और (ऐसा हुवा तो) तुम को भी फ़लाह न होगी. और इस तरह (लोगों को) मुत्तेला कर दिया. ताकि लोग इस बात का यक़ीन कर लें कि अल्लाह तअला का वादा सच्चा है. और यह कि क़यामत में कोई शक नहीं. (वह वक़्त भी काबिले-ज़िक्र है ) जब कि ( इस ज़माने के लोग) इन के मुआमले में आपस में झगड़ रहे थे. सो लोगों ने कहा उनके पास कोई इमारत बनवा दो, इनका रब इनको खूब जनता है. जो लोग अपने काम पर ग़ालिब थे उन्हों ने कहा हम तो उनके पास एक मस्जिद बनवा देंगे. (बअज़े लोग तो) कहेंगे कि वह तीन हैं और चौथा उनका कुत्ता है. और (बअज़े) कहेंगे वह पाँच हैंछटां उनका कुत्ता (और) ये लोग बे तहक़ीक़ बात को हाँक रहे हैं और (बअज़े) कहेगे कि वह सात हैं, आठवां उनका कुत्ता. आप कह दीजिए कि मेरा रब उनका शुमार खूब (सही सही ) जनता है उनके (शुमार को )बहुत क़लील लोग जानते हैं तो सो आप उनके बारे में बजुज़ सरसरी बहेस के ज़्यादः बहेस न कीजिए और आप उनके बारे में इन लोगों से किसी से न पूछिए।''
सूरह १८ -१५ वां पारा आयत(१८-२२)

मुसलमान संजीदगी के साथ ये पाँच आयतें अपने ज़ेहनी और ज़मीरी कसौटी पर रख कर कसें. अल्लाह जो साज़गारे-कायनात है, इस तरह से आप के साथ मुख़ातिब है ? इसके बात बतलाने के लहजे को देखिए, कहता है कि कुत्ता दोनों हाथ फैलाए था? चारों पैर के सिवा कुत्ते को हाथ कहाँ होते हैं जो इंसानों की तरह फैलाता फिरे. अपना क़ुरआनी मसला हराम, हलाल को उस वक़्त भी मुहम्मद लागू करना नहीं भूलते. खुद इंसानी जानों को पथराव करके सज़ा की ज़ालिमाना उसूल को उन पहाड़ियों का बतलाते हैं जो सैकड़ों साल इन से पहले हुवा करते थे, हर मौके पर अपनी क़यामत की डफली बजाने लगते हैं. पागलों की तरह बातें करते है, एक तरफ उन लोगों को तनहा छुपा हुवा बतलाते हैं, दूसरी तरफ इकठ्ठा भीड़ दिखलाते हैं कि कोई कहता है इन असहाब के लिए इमारत बनवा देंगे और अपने काम में गालिब लोग उनके लिए मस्जिद बनवाने की बातें करते हैं. उनकी तादाद पर ही अल्लाह क़यास आराईयाँ करता है कि कुत्ते समेत कितने असहाबे-कुहफ़ थे? कहता है बंद करो क़यास आराईयाँ असली शुमार तो मैं ही जनता हूँ कि मैं अल्लाह हूँ, जो हर जगह गवाही देने के लिए मुहम्मद के लिए बे किराये के टट्टू की तरह हाज़िर रहता हूँ।

मुसलमानों!
 क्या है तुम्हारे इस कुरआन में? जो इसके पीछे बुत के पुजारी की तरह आस्था वान बने खड़े रहते हो? तुमसे बेहतर वह बुत परस्त हैं जो बामानी तहरीर तो रखते और गाते हैं. यह जिहालत भरी गलीज़ लेखनी क्या किसी के लिए इअबादत की आवाज़ हो सकती है? कोई नहीं है तुम्हारा दुश्मन, तुम खुद अपने मुजरिम और दुश्मन हो .ऐसी वाहियात तसनीफ़ को पढ़ के हर इन्सान तुमसे नफ़रत करेगा कि तुम 
''पहाड़ वाले उसकी अजाएबात में से कुछ तअज्जुब की चीज़ हो'' 
इस धरती का हक अदा करने की बजाए, उस पर बोझ हो, क्यूं कि तुम्हारा यक़ीन तो इस धरती पर न होकर ऊपर पे है. तुम्हारी बेगैरती का आलम ये है कि धरती के लिए किए गए ईजाद को सब से पहले भोगने लगते हो, चाहे हवाई सफ़र हो या टेलीफोन, या जेहाद के लिए भी गोले बारूद जो कचरा की तरह बेकार हो चुका है, क्यूँकि तुम्हारे लिए वही आइटम बम है. वह अपने पुराने हथियार तुम को बेच कर ठिकाने लगाते हैं, तुम उन्हें सोने के भाव खरीद लेते हो. तुम उनको लेकर मुस्लिम देशों में ही उन बेगुनाहों का खून बहाते हो जो हराम जादे ओलिमा के फन्दों में है. शर्म तुमको मगर नहीं आती।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 18 March 2012

सूरह बनी इस्राईल -१७ (पहली किस्त)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह बनी इस्राईल -१७
(पहली किस्त)


मुहम्मदुर रसूलिल्लाह=(मुहम्मद ईश्वर के दूत हैं)

मुहम्मद की फितरत का अंदाज़ा क़ुरआनी आयतें निचोड़ कर निकाला जा सकता है कि वह किस कद्र ज़ालिम ही नहीं कितने मूज़ी तअबा शख्स थे। क़ुरआनी आयतें जो खुद मुहम्मद ने वास्ते तिलावत बिल ख़ुसूस महफूज़ कर दीं, इस एलान के साथ कि ये बरकत का सबब होंगी न कि इसे समझा समझा जाए. अगर कोई समझने की कोशिश भी करता है तो उनका अल्लाह उस पर एतराज़ करता है कि ऐसी आयतें मुशतबह मुराद (संदिग्ध) हैं जिनका सही मतलब अल्लाह ही जानता है. इसके बाद जो अदना(सरल) आयतें हैं और साफ़ साफ़ हैं वह अल्लाह के किरदार को बहुत ही ज़ालिम, जाबिर, बे रहम, मुन्तकिम और चालबाज़ साबित करती है बल्कि अल्लाह इन अलामतों का खुद एलान करता है कि अगर ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' (मुहम्मद ईश्वर के दूत हैं) को मानने वाले न हुए तो. अल्लाह इतना ज़ालिम और इतना क्रूर है कि इंसानी खालें जला जला कर उनको नई करता रहेगा , इंसान चीखता चिल्लाता रहेगा और तड़पता रहेगा मगर उसको मुआफ़ करने का उसके यहाँ कोई जवाज़ नहीं है, कोई कांसेप्ट नहीं है. मज़े की बात ये कि दोबारा उसे मौत भी नहीं है कि मरने के बाद नजात कि सूरत हो सके,
 उफ़! इतना ज़ालिम है मुहमदी अल्लाह? सिर्फ़ इस ज़रा सी बात पर कि उसने इस ज़िन्दगी में ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' क्यूं नहीं कहा. हज़ार नेकियाँ करे इन्सान, कुरआन गवाह है कि सब हवा में ख़ाक की तरह उड़ जाएँगी अगर ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' नहीं कहा क्यों कि हर अमल से पहले ईमान शर्त है और ईमान है ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' . इस कुरआन का खालिक़ कौन है जिसको मुसलमान सरों पर रखते हैं ? मुसलमान अपनी नादानी और नादारी में यकीन करता है कि उसका अल्लाह . वह जिस दिन बेदार होकर कुरआन को खुद पढ़ेगा तब समझेगा कि इसका खालिक तो दगाबाज़ खुद साख्ता अल्लाह का बना हुवा रसूल मुहम्मद है. उस वक़्त मुसलमानों की दुन्या रौशन हो जाएगी.
मुहम्मद कालीन मशहूर सूफ़ी ओवैस करनी जिसके तसव्वुफ़ के कद्रदान मुहम्मद भी थे, जिसको कि मुहम्मद ने बाद मौत के अपना पैराहन पहुँचाने की वसीअत की थी, मुहम्मद से दूर जंगलों में छिपता रहता कि इस ज़ालिम से मुलाक़ात होगी तो कुफ्र ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' मुँह पर लाना पड़ेगा. इस्लामी वक्तों के माइल स्टोन हसन बसरी और राबिया बसरी इस्लामी हाकिमों से छुपे छुपे फिरते थे कि यह ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' को कुफ्र मानते थे. मक्के के आस पास फ़तेह मक्का के बाद इस्लामी गुंडों का राज हो गया था. किसी कि मजाल नहीं थी कि मुहम्मद के खिलाफ मुँह खोल सके . मुहम्मद के मरने के बाद ही मक्का वालों ने हुकूमत को टेक्स देना बंद कर दिया कि ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' कहना हमें मंज़ूर नहीं 'लाइलाहा इल्लिल्लाह' तक ही सही है. अबुबकर ख़लीफ़ा ने इसे मान लिया मगर उनके बाद ख़लीफ़ा उमर आए और उन्हों ने फिर बिल जब्र ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' पर अवाम को आमादः कर लिया . इसी तरह पुश्तें गुज़रती गईं , सदियाँ गुज़रती गईं, जब्र, ज़ुल्म, ज्यादती और बे ईमानी ईमान बन गया.
आज तक चौदह सौ साल होने को हैं सूफ़ी मसलक ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' को मज़ाक़ ही मानता है, वह अल्लाह को अपनी तौर पर तलाश करता है, पाता है और जानता है किसी स्वयंभू भगवन के अवतार और उसके दलाल बने पैगम्बर के रूप में - - -
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''मस्जिदे अक़सा तक जिसके गिर्दा गिर्द हम ने बरकतें कर रखी हैं ले गया ताकि हम उनको अपने कुछ अजायब दिखला दें. बेशक अल्लाह तअला बड़े सुनने और देखने वाले हैं. और हमने मूसा को किताब दी और हमने उसको बनी इस्राईल के लिए हिदायत बनाया कि तुम मेरे सिवा किसी और को करसाज़ मत क़रार दो. ऐ उन लोगो की नस्ल! जिन को हमने नूह के साथ सवार किया था वह बड़े शुक्र गुज़र बन्दे थे. और हमने बनी इस्राईल को किताब में बतला दी थी कि तुम सर ज़मीन पर दोबारा खराबी करोगे और बड़ा ज़ोर चलाओगे. फिर जब उन दो में से पहली की मीयाद आवेगी, हम तुम पर ऐसे बन्दों को मुसल्लत कर देंगे जो बड़े जंगजू होंगे. फिर वह तुम्हारे घरों में घुस पड़ेंगे और ये एक वतीरा है जो हो कर रहेगा.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१-५)

पाठको क्या समझे? तर्जुमा कर शौकत अली थानवी ने ब्रेकेट की खपच्चियाँ लगा लगा कर बड़ी रफ़ू गरी की मगर जब जेहालत सर पर चढ़ कर बोले तो कौन मुँह खोले? अल्लाह कहता है ''हम तुम पर ऐसे बन्दों को मुसल्लत कर देंगे जो बड़े जंगजू होंगे. फिर वह तुम्हारे घरों में घुस पड़ेंगे और ये एक वतीरा है जो हो कर रहेगा.'' यानि अल्लाह का भी वतीरा होता है? बद किमाश सियासत दानों की तरह, वह खुद जंगजू तालिबान को पैदा किए हुए है, जो मासूम बच्चियों को इल्म के लिए घरों से बाहर तो निकलने नहीं देते और घरों में ऐसी आयतों का सहारा लेकर घुस जाते हैं और मनमानी करते हैं.
मुसलमानों तुम कितने बद नसीब हो कि तुम्हारी आँखें ही नहीं खुलतीं. कितने बेहिस हो? कितने डरपोक? कितने बुजदिल? कितने अहमक हो ? 

जागो, अभी तो तुमको तुम में से ही जगा हुवा एक मोमिन जगा रहा है, मुमकिन है कि कल दूसरों के लात घूंसे खा कर तुम्हारी आँखें खुलें।

''फिर उन पर तुम्हारा गलबा कर देंगे और मॉल और बेटों से हम तुम्हारी मदद करेगे और हम तुम्हारी जमाअत को बढ़ा देंगे. अगर अच्छे कम करते रहोगे तो अपने ही नफ़े के लिए अच्छे कम करोगे. और अगर बुरे कम करोगे तो भी अपने लिए, फिर जब पिछली की मीयाद आएगी ताकि तुम्हारे मुँह बिगाड़ दें और जिस तरह वह पहली बार मस्जिद में घुसे थे, यह लोग भी इस में घुस पड़ें और जिन जिन पर इनका ज़ोर चले सब को बर्बाद कर डालें. अजब नहीं कि तुम्हारा रब तुम पर रहेम फरमा दे और अगर वही करोगे तो हम फिर वही करेंगे और हमने जहन्नम को काफिरों का जेल खाना बना रखा है. बिला शुबहा ये कुरआन ऐसे को हिदायत देता है जो बिलकुल सीधा है. और ईमान वालों को जो कि नेक कम करते हैं, ये खुश खबरी देता है कि उसको बहुत बड़ा सवाब है. और जो आखरत पर ईमान नहीं लाते उनके लिए दर्दनाक सजा तैयार है"
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (६-१०)

ये है कुरानी अल्लाह की ज़ेहन्यत और इस्लाम की रूह। ऐसी तसवीर लेकर आप ज़माने के सामने जाकर इस्लाम की तबलीग़ करने लायक़ तो रह नहीं गए कि इसमें कुछ दम नहीं और इसे सब जान चुके है और इससे बुरे इस्लामी एहकाम को भी, लिहाज़ा अब तगलीगिए मुसलमानों के मुहल्लों में ही जा कर उनके नव उम्रों को भड़काते फिरते हैं कि अल्लाह तुम को जैशे मुहम्मद की तरफ़ बुला रहा है. इस तरह एक नया ख़तरा मुसलमानों पर आन खड़ा हवा है. ज़रुरत है निडर होकर मैदान में आने की , इस एलान के साथ कि आप हसन बसरी की तरह सिर्फ़ मोमिन हैं. जाइए आपको जो करना हो कर लीजिए. आप जागिए और लोगों को जगाइए.

''और हमने रात और दिन को दो निशानियाँ बनाया, सो रात की निशानी को तो हमने धुंधला बनाया और दिन की निशानी को हमने रौशन बनाया ताकि तुम अपने रब कि रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम बरसों का शुमार और हिसाब मालूम कर लो और हम ने हर चीज़ को खूब तफ़सील के साथ बयान कर दिया है. ''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१२)

मुहम्मद रात को कोई ऐसी शय मानते हैं जो ढक्कन नुमा होती हो और रौशनी को ढक कर उस पर ग़ालिब हो जाती हो और दिन को एक रौशन शय जो आकर सूरज को रौशन कर देता हो,जैसे बल्ब में फिलामेंट. हदीसें बतलाती हैं कि वह सूरज को रात में मसरुफे सफ़र जानिबे अल्लाह बराय सजदा रेज़ी होना जानते हैं. मुहम्मद कहते हैं ''हमने दिन को रौशन बनाया ताकि तुम अपने रब कि रोज़ी तलाश करो'' बन्दे का रब उसकी तलाश कि हुई कौन सी रोज़ी खाता है? मुतरजजिम लिखता है गोया बन्दों कि रोज़ी. अब रात पायली काम होने लगे, बरसों का शुमार और हिसाब रात और दिन पर कभी मुनहसर नहीं रहे। मुसलमान सच मुच इतना ही पीछे है जितना इसका कुरान इसे अपनी बेहूदा तफसीलो में मुब्तिला किए हुए है।

''हर इंसान को आमल नामे के मुताबिक सज़ा मिलेगी, साथ में अल्लाह ये भी सहेज देता है कि ''और हम सज़ा नहीं देते जब तक किसी रसूल को नहीं भेज लेते।''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१३)

गोया अल्लाह पाबन्द है रसूलों का कि वह आकर मुझे जन्नतियों कि लिस्ट दे. यहाँ पर भी मुहम्मद भोले भालों को चूतिया बनाते हैं कि फ़िलहाल तुम्हारा रसूल तो मैं ही हूँ. असली दीन की अदालत में जिस दिन आलमी मुजरिमों पर मुक़दमा चलेगा, मुहम्मद सब से बड़े जहन्नमी साबित होंगे।

अल्लाह कहता है
''जो शख्स दुन्या की नीयत रखेगा हम उस शख्स को दुन्या में जितना चाहेंगे, जिसके वास्ते चाहेंगे, फ़िलहाल दे देंगे फिर उसके लिए हम जहन्नम तजवीज़ करेंगे और वह उस में बदहाल रांदे दरगाह होकर दाख़िल होगा।और जो शख्स आख़िरत की नीयत रखेगा और इसके लिए जैसी साईं करना चाहिए वैसी ही साईं करेगा बशर्ते ये कि वह शख्स मोमिन भी हो, सो ऐसे लोगों की ये साईं मकबूल होगी।''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१३-२२) 

यहाँ पर पहली बात तो ये साबित होती है कि मुहम्मदी अल्लाह परले दर्जे का शिकारी है कि शिकार के लिए दाना डालता है, आदमी दाना चुगने लगे और चैन कि साँस ले कि वह इसको दबोच लेता है? दूसरी बात ये कि जैसे मैं पहले बयान करचुका हूँ कि आप लाख नेक इन्सान हों, अल्लाह आपकी नेकियों का कोई वास्ता नहीं अगर आप मोमिन ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' कहने वाले नही.

''अल्लाह अपने बालिग़ बच्चों को समझाता है कि माँ बाप के फ़रायज़ याद रखना, उनसे हुस्ने सुलूक से पेश आना, क़राबत दारों के हुक़ूक़ भी याद दिलाता है, फुज़ूल खर्ची को मना करता है मगर बुखालत को भी बुरा भला कहता है, मना करता है कि औलादों को तंग दस्ती के बाईस मार डालना भारी गुनाह है, ज़िना कारी को बे हयाई बतलाता है. साथ साथ अपनी अज़मत को ख़ुद अपने मुँह से बघारना नहीं भूलता. ''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (२३-३२)

जिस तरह बच्चों को एखलाकयात सिखलाया और पढाया जाता है उसी तरह मुहम्मद कुरआन के ज़रीए मुसलामानों को सबक़ देते हैं लगता है उस वक़्त अरब में सब जंगली और वहशी रहे होंगे। ख़ुद दूसरों को नसीहत देने वाले मुहम्मद अपने चचाओं पर कैसा ज़ुल्म ढाया कोई तवारीख़ से पूछे. ज़िना कारी और हराम कारी को बे हयाई गिनवाने वाले मुहम्मद पर दस्यों इलज़ाम हैं कि इसके कितने बड़े मुजरिम वह ख़ुद थे।

हदीस है - - - 
मुहम्मद फरमाते हैं 
''जो शख्स मेरे वास्ते दो चीज़ों का जामिन हो जाय ,पहली दोनों जबड़ों के दरमियान जो ज़ुबान है, दूसरी दोनों पैरों के बीच जो शर्मगाह (लिंग) है तो मैं उस शख्स के वास्ते जन्नत का जामिनदार हो जाऊँगा. (बुखारी २००७)

अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब जोकि इनके मुँह बोले बेटे ज़ैद बिन हारसा की बीवी थी, के साथ मुँह काला करते हुए उसके शौहर ज़ैद बिन हारसा ने हज़रात को पकड़ा तो तूफ़ान खड़ा हुवा, ,जिंदगी भर उसको बिन निकाही बीवी बना के रक्खा और चले हैं बातें करने। आगे कुरआन में ही इस वाकेआ पूरा हाल आने वाला है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 11 March 2012

Soorah Bani Israeel -17

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं. 


पिछली किस्त पर अपने पाठक, खास कर धरम धारियों के कमेंट्स ने तो मेरे होश ही उड़ा दिए. किसी ने मुझे गालियाँ दीं और किसी ने शाबाशी. एक शरीफ ने तो मेरी माँ को नरेंद्र मोदी के साथ सुला दिया, तो दुसरे ने अनाम धारी की माँ को.
 अफ़सोस है कि क्या मैंने सत्य पथ का रास्ता   इन लोगों के लिए चुना है? दो एक को छोड़ कर बाकी सभी धर्म पथ पर नहीं बल्कि धर्म भरष्ट हैं. मेरी माँ अगर ज़िदा होती तो नरेद्र मोदी उसके छोटे बेटे के बराबर होते और वह भी उनको रास्ट्र धर्म को याद दिलाती.
मैं एक बहुत ही निर्धन परिवार का बेटा हूँ . अनथक मेहनत से अपने सम्पूर्ण परिवार को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया है, लाखों रुपए ईमानदारी के साथ इनकम टैक्स भरा है. माँ की बात चली है तो मैं इतने बचपन में उसे खो चुका हूँ कि मुझको उसकी शक्ल भी याद नहीं मगर उनको देखने के लिए अपने कालेज को उनके नाम से एक क्लास रूम बनवा कर दिया है. तालीम ही मेरी मंजिल है. मैं आज भी इसके लिए अपने आपको समर्पित रखता हूँ, ये इत्तेला है अपने नादान पाठकों के लिए जो मुझे बच्चों को पढ़ने का मशविरा दे रहेहै..
मेरे पास कोई बड़ी डिग्री नहीं, न ही ढंग का लेखन कर पता हूँ मगर धर्म गुरूओं का अध्यन किया है. फिर मुझे कबीर याद आता है, जो कहता है ''तुम जानौ कागद की लेखी, मैं जानूं आखन की देखी.'' मेरे तमाम आलोचक कागद की लेखी को आधार बना कर मुझे उन लेखो का आइना दिखलाते हैं, जिनको पढ़ कर वह उधारज्ञान अर्जित करते हैं. खेद है कि वह अपने दिलो-दिमाग और अपने ज़मीर को अपना साक्ष्य नहीं बनाते. मेरे लेख को कुरआन के उर्दू तर्जुमे से सीधे मीलान ''मौलाना शौकत अली थानवी'' के कुरान से कर लीजिए जो दुनया के सब से दिग्गज आलिम हैं और हदीसें ''बुखारी और मुस्लिम'' से मिला लीजिए. हाँ उस पर तबसरा मेरा है जो ज़्यादः किसी को गराँ गुज़रता हो, उनको ही मेरा मशविरा है कि वह ''कागत की लेखी'' पर न जाएं यह उधार का ज्ञान है. अगर आप की अपना कुछ अपने अन्दर बिसात और चेतन हो तो मेरी बात मने वर्ना हजारों ''बातिल ओलिमा'' हैं, उनपर अपनी तवानाई बर्बाद करें.
''दीन और ईमान'' ये दोनों लफ्ज़ बहुत ही मुकद्दस हैं और अरबी भाषा के हैं. इन शब्दों का पर्याय मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार किसी और भाषा में नहीं हैं, इस लिए इनका अर्थ भी समझा पाना मुश्किल हो रहा है. दीन लफ्ज़ बना है दयानत से जो कबीरी ''साँच'' है और ईमान का अर्थ लगभग ऐसा है जो किसी ''धर्म कांटे की नाप तौल'' हो.जो किसी दूसरे भाव के असर में न हो. इन दोनों शब्दों पर इस्लाम ने बिल जब्र इजारा कर लिया है. शब्द मुसलमान या हिन्दू नहीं होते मगर इजारादारी का मनहूस साया इन पर ज़रूर है. मैं अपनी अंतर आत्मा के अंतर गत ईमान दार मोमिन हूँ, और मेरा दीन है मानवता. मानवता ही मानव धर्म होना चाहिए. आपसे निवेदन है कि मुझे समझने की कोशिश करें. हो सके तो आप भी ''मोमिन'' हो जाएँ.
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सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५

(तीसरी किस्त)

''यह लोग आप से रूह के बारे में पूछते हैं. आप फ़रमा दीजिए कि रूह मेरे रब के हुक्म से बनी है और तुम को बहुत थोडा उम्र दिया है.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (८५)
कहते हो कि यह कलामे-इलाही है. अल्लाह ने अरबी माहौल, अरबी ज़ुबान और अरब सभ्यता में इसको नाज़िल किया, तो क्या उसे अरबी तमाज़त भी नहीं आती थी ? वह कभी उम्मी मुहम्मद को आप जनाब करके बात करता है, कभी तुम कहता है तो कहीं पर तू कह कर मुखातिब करता है? क्या अल्लाह भी मुहम्मद की तरह ही उम्मी था ? इन्सान बहुत थोड़े वक़्त के दुन्या में आया है, जग जाहिर है, अल्लाह इसकी इत्तेला हम को देता है. क्या इसके कहने से हम मान जाएँगे कि रूह कोई बला होती है? जब कि अभी तक यह सिर्फ अफवाहों में गूँज रही है, अल्लाह बतलाता तो यूं बतलाता ''हाथ कंगन को आरसी क्या?''
रूहानियत के धंधे ने हमारे समाज को अँधा बनाए रक्खा है. ये बात क्यूं आलिमुल गैब की पकड़ में नहीं आती?
''और अगर हम चाहें तो जिस क़दर वह्यी (ईशवानी) आप पर भेजी है,सब सलब (ज़ब्त) कर लें, फिर इसके लिए हमारे मुक़ाबिले में कोई हिमायती न मिले. मगर आप के रब की रहमत है, बेशक आप पर उसका बड़ा फज़ल है.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (८६)
देखें की अल्लाह किस तरह सियासत की बातें करता है. मुहम्मद को ब्लेक मेल कर रहा है, या फिर मुहम्मद इंसानों को ब्लेक मेल कर रहे हैं? दोस्तों अपने अक्ल पर पड़े अक़ीदत के भूत को उतर कर कुरआन की बातों को परखो. कोई गुनाह या अजाब तुम नाज़िल नहीं होगा. दर असल ये कुरआन ही कौम को अज़ाब की तरह पीछे किए हुए है.
आप फ़रमा दीजिए कि अगर इंसान और जिन्नात जमा हो जाएँ कि ऐसा कुरआन बना लावें, तब भी ऐसा न ला सकेंगे. अगर एक दूसरे के मददगार भी बन जाएँ.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (८७-८८)
इंसानों की तरह जिन्नात भी कोई प्राणी होता है, इस बात को आज तक इस वैगानिक युग में कुरआन ही मुसलामानों से मनवाए हुए है. इस चैलंज को मुहम्मद कुरआन में बार बार दोहराते हैं. मुहम्मद शायर थे (मगर मुशायर) ये शायरों की ग़लत फ़हमी होती है कि उन्हों ने जो कहा लाजवाब है. यही शायराना फ़ितरत मुहम्मद बार बार इस जुमले को कहलाती है. उस वक़्त तथा कथित काफ़िर जवाबन मुहम्मद को ईश वाणी उनकी तरह ही नहीं बल्कि क़वायद को सुधार के मुहम्मद को मुँह पर मारते थे कि अपनी भाषा को संवारते हुए ऐसी आयते अपने अल्लाह से मंगाया करो, मगर मुहम्मद तो बस ''जो कह दिया सो कह दिया'' अल्लाह की भेजी हुई बात है. आज भी थोडा दीवानगी का आलम ला कर कुरआन जैसी बात कोई भी बडबडा सकता है.
''और हमने लोगों के लिए इस कुरआन में हर किस्म का उम्दा मज़मून तरह तरह से बयान किया है फिर भी अक्सर लोग बे इंकार किए न रहे.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (८९)
कुरआन में कोई उम्दा बात जो कुरआन की अपनी हो, ढूंढें से नहीं पाओगे. बस कुरआन की तारीफ ही तारीफ बखानी गई है, किस बात की तारीफ है? नहीं मालूम जो मुल्ला बतला दें वही होगा इस धोके में मुसलमान अपनी ज़िद में अडिग है. पसे-पर्दा नहीं जाता कि तलाश करे फिर सामीक्ष करे दूसरों के उपदेश से.
''और ये लोग कहते हैं कि हम आप पर हरगिज़ ईमान न लाएँगे जब तक कि आप हमारे लिए ज़मीन से कोई चश्मा न जारी करदें या ख़ास आप के लिए खजूर या अंगूर का बाग़ न हो, फिर इस बाग़ में बीच बीच में जगह जगह बहुत सी नहरें न जारी कर दें, या आप जैसा कहा करते हैं - - - आप आसमान के टुकड़े न हम पर गिरा दें या आप अल्लाह और फरिश्तों को सामने न कर दें. या आप के पास सोने का बना हुवा घर न हो या आप आसमान पर मेरे सामने न चढ़ जाएँ. और हम तो आप के चढ़ने का भी यक़ीन नहीं करेंगे जब तक आप हमारे सामने एक नविश्ता (लिखा हुआ कुरआन) न लावें जिसको हम पढ़ भी लें. आप फ़रमा दीजिए कि सुबहान अल्लाह! बजुज़ इसके कि एक आदमी हूँ, पैगम्बर हूँ और क्या हूँ ? और जब उन लोगों के पास हिदायत पहुँच चुकी, उस वक़्त उनको ईमान लाने से बजुज़ इसके और कोई बात रूकावट न बनी कि उन्हों ने कहा अल्लाह तअला ने बशर को रसूल बना कर भेजा है. आप फ़रमा दीजिए कि अगर ज़मीन पर फ़रिश्ते होते कि उसनें चलते बसते तो अलबत्ता हम उन पर आसमान से फ़रिश्ते को रसूल बना कर भजते''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (९०-९५)
तहरीर पर गौर करिए, यह बाते अल्लाह से कहलवा रहे है मुहम्मद ? इनका रोना अल्लाह रो रहा है? या खुद मुहम्मद रो रहे है कुरआन में.
लोगों को मुहम्मद की बातों का कोई असर नहीं था, मुहम्मद जब मक्का में फेरी लगा लगा कर लोगों को पकड़ पकड़ कर क़ुरआनी आयतों का मन गढ़ंत झूट प्रचारित करते तब लोग उनसे इस तरह का परिहास करते. मज़ाकान कोई कहता है ''आप आसमान पर मेरे सामने न चढ़ जाएँ. और हम तो आप के चढ़ने का भी यक़ीन नहीं करेंगे जब तक आप हमारे सामने एक नविश्ता (लिखा हुआ) न लावें जिसको हम पढ़ भी लें.'' इस लिए कि आसमान की सैर कल्पनाओं में कर आए थे जिसको कुरआन में आगे किससए-मेराज बयान करेंगे.
''आप कह दीजिए कि अल्लाह तअला मेरे और तुम्हारे दरमियान काफ़ी गवाह है वह अपने बन्दों को खूब जनता है, खूब देखता है और जिसको वह बेराह करदे तो उसको खुदा के सिवा आप किसी को भी उन का मददगार न पाओगे. और हम क़यामत के रोज़ ऐसों को अँधा, गूंगा, बहरा बना कर मुँह के बल चला देंगे. ऐसों का ठिकाना दोजख है, वह जब ज़रा धीमी होने लगेगी, तब ही इन के लिए और ज़्यादः भड़का देंगे. यह है उनकी सज़ा इस लिए कि इन्हों ने हमारी आयतों का इंकार किया.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (९७-९८)
मुहम्मद ने अपने झूट को सच साबित करने के लिए अपने मुअय्यन और मुक़र्रर किए हुए अल्लाह को गवाह बनाया है, पूछा जा सकता है उस अल्लाह का गवाह कौन है? वह है भी या नहीं? देखी कि वह अपने अल्लाह को कौन सा रूप देकर बन्दों लिए स्थापित करते हैं कि वह खुद मासूम बन्दों को गुमराह करता है, उनको अँधा,गूंगा और बहरा बना देता है फिर मुँह के बल चलाता है .
एक सहाबा हसन बिन मालिक से हदीस है कि कोई अरबी इस आयत पर चुटकी लेते हुए मोहम्मद से पूछता है ''या रसूल्लिल्लाह क़यामत के दिन काफिरों को यह मुँह के बल चलाना क्या होता है? मुहम्मद फ़रमाते हैं जो अल्लाह पैरों के बल से इंसान को चला सकता है वह क्या मुँह के बल चलाने की कुदरत नहीं रखता?
(सही मुस्लिम शरअ नवी)
पूछने वाले का सवाल, जवाब तलब इसके बाद भी है कि कैसे? मगर किसी को मजाल न थी कि इस जवाब पर दोबारा सवाल करता क्यूंकि उस वक़्त हज़रात बज़रिए मार काट और लूट के, उरूज पर आ चुके थे.शायद इसी बात पर किसी ने झुंझलाहट में कहा कि फ़रिश्ते अपने पिछवाड़े से घोडा खोल सकते हैं.
गौर तलब है कि मोहम्मदी अल्लाह कितना कुरूर और ज़ालिम है कि दुन्या का संचार छोड़ कर दोज़ख की भाड़ झोंकता रहता है सिर्फ इस बात पर कि नोहम्मद की गाढ़ी आयतों को बन्दों ने मानने से इंकार किया. किन बुनयादों पर मुसलमानों का अक़ीदा खड़ा है? वह सोचते नहीं बल्कि जो सोचे उसकी माँ बहेन तौलने लगते है.
(पाँच आयातों में फिर मूसा और बनी इस्राईल का बेतुका हवाला है)
''और कुरआन में हमने जा बजा फसल (वक़फ़ा) रखा है ताकि आप लोगों के सामने ठहर ठहर कर पढ़ें और हम ने इसको उतरने भी तजरीदन (दर्जा बदर्जा) उतरा है. आप कह दीजिए कि तुम इस कुरआन पर ईमान लाओ या ईमान न लाओ जिन लोगों को इससे पहले दीन का इल्म दिया गया था ये जब उनके सामने पढ़ा जाता है तो वह ठुडडियों के बल सजदे में गिर पड़ते हैं और कहते हैं कि हमारा रब पाक है, बेशक हमारे रब का वादा ज़रूर पूरा ही होगा. और ठुडडियों के बल गिरते हैं, रोते हैं और ये उनका खुशु बढ़ा देता है. आप कह दीजिए ख्वाह आप अल्लाह कह कर पुकारो या रहमान कह कर पुकारो सो इसके बहुत अच्छे नाम हैं और अपनी नमाज़ में न बहुत पुकार कर पढ़िए और न बिलकुल चुपके चुपके ही पढ़िए, और दोनों के दरमियान एक तरीक़ा अखतियार कर लीजिए.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१०६-१०९)
कुरआन को पढने का तरीक़ा भी बतला दिया गया है जोकि ट्रेनिग द्वारा होती है, इसी कुरआन के गुणगान और कर्म कांड में ही मुसलमानों का वक़्त कटता है. मुहम्मद इसकी पब्लिसिटी करते हैं कि लोग इसे पढ़ कर मदहोश हो जाते हैं और इसका खुमार ऐसा उन पर होता है कि ठुडडियों के बल गिर गिर पड़ते हैं.आप समझ सकते हैं कि मोहम्मद किस कद्र झूठे और मक्र आलूद थे.
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मेरे भाइयो, बहनों ! मेरे बुजुगो!! नौ जवानों!!!
मेरे मिशन को समझने की कोशिश करो. मैं आप में से ही एक बेदार फ़र्द हूँ जो आने वाले वक़्त की भनक पा चुका है कि अगर तुम न जगे तो पामाल हो जाओगे. मैं कहाँ तुमको गुमराह कर रह हूँ ?तुम तो पहले से ही गुमराह हो, मैं तो तुम से ज़रा सी तब्दीली की बात कह रह हूँ कि मुस्लिम से मोमिन बन जाओ, सब कुछ तुम्हारा जहाँ का तहाँ रहेगा, बस बदल जाएगा सोचने का ढंग. जब तुम मोमिन हो जाओगे तो तुम्हारे पीछे तुम्हारीतक़लीद में होंगे गैर मुस्लिम भी और इस तरह एक पाकीज़ा कौम वजूद में आएगी, जिसको ज़माना सर उठा कर देखेगा कि यह मोमिन है, पार दर्शी है, अनोखा है.
सिकंदर दुन्या को फतह करते करते फ़ना हो गया, हिटलर ग़ालिब होते होते मग़लूब हो गया, इस्लाम अब इसी मुक़ाम पर आ पहुंचा है, अल्लाह के नाम पर मुहम्मद ने इंसानियत को बहुत नुक़सान पहुँचाया है, उसका खमयाज़ा आज एक बड़ा मानव समाज पूरी दुन्या में भुगत रहा है, जो तुम्हारी आँखों के सामने है. यह गुनेह गार ओलिमा और उनके एजेंट ग़लत प्रोपेगंडा करते हैं कि इस्लाम योरोप और अमरीका में मकबूल हो रहा है, यह इनकी रोटी रोज़ी का मामला है जिसके वह वफ़ा दार हैं मगर तुम्हारे लिए वह गद्दार हैं.
भूल कर मज़हब बदल कर हिन्दू, ईसाई या बहाई मत बन जाना , यह चूहेदानों की अदला बदली है. मज़हबी कट्टरता ही चूहे दान होती है मेरे जज़बा ए मोमिन को समझो . मोमिन का दीन ही तुहारा दीन होगा . आने वाले कल में मोमिन ही सुर्ख रूहोंगे.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान