Sunday 29 September 2013

Soorah muhammad 47 (2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

"बेशक अल्लाह तअला उन लोगों को जो ईमान लाए और उनहोंने अच्छे काम किए, ऐसे बाग़ों में दाखिल कर देगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी. और जो लोग काफ़िर हैं वह ऐश कर रहे हैं और इस तरह खाते हैं जैसे चौपाए खाते हैं और जहन्नम जिनका ठिकाना है."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (१२)

"और इस तरह खाते हैं जैसे चौपाए खाते हैं "
इंसान और चौपाए के खाने में भी मुहम्मद को फर्क नज़र आता है? क्या मुसलमानों के खाने का तरीक़ा इस्लाम लाने के बाद कुछ बदल जाता है? भूका प्यासा हर इंसान चौपाया बन जाता है ख्वाह हिदू हो या मुसलमान. नक़ली पैगम्बर बे सर पैर की बात ही पूरे कुरआन में बकते हैं.

"जिस जन्नत का मुत्ताकियों से वादा किया जाता है, उसकी कैफ़ियत ये है कि इसमें बहुत सी नहरें तो ऐसे पानी की हैं कि जिसमें ज़रा भी तगय्युर नहीं होगा और बहुत सी नहरें दूध की हैं जिनका ज़ाएकः  ज़रा भी बदला हुवा नहीं होगा और बहुत सी नहरें शराब की हैं जो पीने वालों को बहुत ही लज़ीज़ मालूम होंगी और बहुत सी नहरे शहद की जो बिलकुल साफ़ होगा और इनके लिए वहाँ बहुत से फल होंगे."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (१५)

मुसलामानों! तुमको तालीम ए नव दावत दे रही है कि एयर कंडीशन फ्लेट्स में रहो, बजाए बाग़ में रहने के. क़ुरआनी तालीम तुम्हें दिक्क़त तलब सम्त में ले जा रही है.
अगर शौकीन हो तो शराब भी अपनी मेहनत की कमाई से पी पाओगे जो लज़ीज़ तो बहर हाल नहीं होगी मगर उसका सुरूर बा असर होगा.
मुहम्मद जन्नत में मिलने वाले दूध की सिफ़त बतलाते हैं कि "जिनका ज़ाएकः  ज़रा भी बदला हुवा नहीं होगा " तो दुन्या और जन्नत के दूध का क्या फर्क हुवा ?
पानी, दूध शराब और शहद की नहरें अगर बहती होंगी तो बे लुत्फ होंगी कि जिसमें आप नहाना भी पसँद नहीं करेंगे, पीना तो दर किनार  .

"बअज़े आदमी ऐसे हैं जो आप की तरफ़ कान लगाते हैं, यहाँ तक कि जब वह लोग आपके पास से बहार जाते हैं तो दूसरे अहले-इल्म से कहते हैं कि हज़रत ने अभी क्या बात फ़रमाया ? और जो ईमान वाले हैं वह कहते हैं कि कोई सूरत क्यूँ  न नाज़िल हुई ? सो जिस वक़्त कोई साफ़ साफ़ सूरह नाज़िल होती है  तो और इसमें जेहाद का भी ज़िक्र आता है, तो जिन लोगों के दिलों में बीमारी होती है तो आप उन लोगों को देखते हैं कि वह आप को किस तरह देखते हैं, कि जिस पर मौत की बेहोशी तारी हो, सो अनक़रीब इनकी कमबखती आने वाली है. इनकी इताअत और बात चीत मालूम है, पस जब सारा काम तैयार हो जाता है तो अगर ये लोग अल्लाह के सच्चे रहते तो उनके लिए बहुत ही बेहतर होता, सो अगर तुम कनारा कश रहो तो . . . . क्या तुमको एहतेमाल भी है कि तुम दुन्या में फ़साद मचा दो.
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (२०-२२)

मुहम्मद अपनी दास्तान उस वक़्त की बतला रहे हैं जब उनकी पैगम्बरी की लचर बातों से लोग बेज़ार हुवा करते थे वह अपनी बकवास किया करते थे और लोग कान भी नहीं धरते थे. पुर अमन माहौल में जब वह  जंग की आयतें अपने अल्लाह से उतरवाते तो लोग बेज़ार हो जाते. लोग रसूल को नफ़रत और हिक़ारत की नज़र से दखते कि जिसे वह खुद बयान कर रहे है. खुद दुन्या में फ़साद बरपा करके कहते हैं " क्या तुमको एहतेमाल भी है कि तुम दुन्या में फ़साद मचा दो"

"ये लोग हैं जिनको अल्लाह तअला ने अपनी रहमत से दूर कर दिया, फिर इनको बहरा कर दिया और फिर इनकी आँखों को अँधा कर दिया तो क्या ये लोग कुरआन में गौर नहीं करते या दिलों में कुफल लग रहे हैं. जो लोग पुश्त फेर कर हट गए बाद इसके कि सीधा रास्ता इनको मालूम हो गया , शैतान ने इनको चक़मा दे दिया और इनको दूर दूर की सुझाई है."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (२३-२५)

जब अल्लाह तअला ने उन लोगों को कानों से बहरा और आँखों से अँधा कर दिया और दिलों में क़ुफ्ल डाल दिया तो ये कुरआन की गुमराहियों को कैसे समझ सकते हैं? वैसे मुक़दमा तो उस अल्लाह पर कायम होना चाहिए कि जो अपने मातहतों को अँधा और बहरा करता है और दिलों पर क़ुफ्ल जड़ देता है मगर मुहम्मदी अल्लाह ठहरा जो गलत काम करने का आदी.. शैतान मुहम्मद बनी ए नव इंसान को चकमा दे गया. की कौम पुश्त दर पुश्त गारों में गर्क़ है.

"और अगर तुम ईमान और तक्वा अख्तियार करो तो अल्लाह तुमको तुम्हारा उज्र अता करेगा और तुम से तुम्हारे माल तलब न करेगा. अगर तुम से तुम्हारे मॉल तलब करे, फिर इन्तहा दर्जे तक तुम से तलब करता रहे तो तुम बुख्ल करने लगो. और अल्लाह तअला तुम्हारी नागवारी ज़ाहिर करदेगा, हाँ तुम लोग ऐसे हो कि तुम्हें अल्लाह की राह में खर्च करने के लिए बुलाया जा रहा है. सो बअज़े तुम में ऐसे हैं जो  बुख्ल करते हैं. जो बुख्ल करता है सो वह खुद अपने से बुखल करता है और अल्लाह तो किसी का मोहताज नहीं और तुम सब मोहताज हो. और अगर तुम रू-ग़रदानी  करोगे तो अल्लाह तअला तुम्हारी जगह कोई दूसरी कौम पैदा कर देगा."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (३७-३८)

मुहम्मद अल्लाह तअला बने हुए है अपने बन्दों को समझा रहे हैं किअगर मैं हद से ज़्यादः तलब करूँ तो तुम बुखालात करो. मगर अगले पल ही अल्लाह की राह बतलाते हैं की जिस पर मुसलामानों को चलना है.
और बुखल करने वालों को तअने देते हैं.
मुहम्मद अल्लाह की राह में रक़म तलब करते हैं ताकि जेहाद के लिए फण्ड इकठ्ठा किया जा सके. जंग मुहम्मद की ज़ेहनी गिज़ा थी जिसमें लूट पाट करके इस्लाम को बढाया है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 22 September 2013

soorah nuhammad 47 (1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह मुहम्मद -४७- पारा -२६
(١)

इस्लामी तरीक़े चाहे वह अहम् हों चाहे ग़ैर अहम्, इंसानों के लिए गैर ज़रूरी तसल्लुत बन गए हैं. उनको क़ायम रखना आज कितना मज़ाक बन गया है कि हर जगह उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है. उन्हीं में एक एक थोपन है पाकी, यानी शुद्ध शरीर. कपडे या जिस्म पर गन्दगी की एक छींट भी पड़ जाए तो नापाकी आ जाती है . मुसलमान हर जगह पेशाब करने से पहले पानी या खुश्क मिटटी का टुकड़ा ढूँढा करता है कि वह पेशाब करने के बाद इस्तेंजा (लिंग शोधन) करे.आज के युग में ये बात कहीं कहीं कितनी अटपटी लगती है, खास कर नए समाज की खास जगहों पर. 
कपडे साफ़ी हो जाएँ मगर इसमें पाकी बनी रहे.
इसी तरह माँ बाप बच्चों को सिखलाते है सलाम करना, उसके बाद मुल्ला जी समझाते हैं  कि दिन में जितनी बार भी मिलो सलाम करो, शिद्दत ये कि घर में माँ बाप से हर हर मुलाक़ात पर सलाम करो. ये जहाँ लागू हो जाता है, वहां सलाम एक मज़ाक़ बन जाता है. इसी पर कहा गया है
"लोंडी ने सीखा सलाम, सुब्ह देखा न शाम." 

मुहम्मदी अल्लाह के दाँव पेंच इस सूरह में मुलाहिज़ा हो - - -

"जो लोग काफ़िर हुए और अल्लाह के रस्ते से रोका, अल्लाह ने इनके अमल को क़ालअदम (निष्क्रीय) कर दिए. और जो ईमान लाए, जो मुहम्मद पर नाज़िल किया गया है, अल्लाह तअला इनके गुनाह इनके ऊपर से उतार देगा और इनकी हालत दुरुस्त रक्खेगा."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (१-२)

मुहम्मद की पयंबरी भोले भाले इंसानों को ब्लेक मेल कर रही है जो इस बात को मानने के लिए मजबूरकर  रही है कि जो गैर फ़ितरी है. क़ुदरत का क़ानून है कि नेकी और बदी का सिला अमल के हिसाब से तय है,ये  इसके उल्टा बतला रही है कि अल्लाह आपकी नेकियों को आपके खाते से तल्फ़ कर देगा. कैसी बईमान मुहम्मदी अल्लाह की खुदाई है? किस कद्र ये पयंबरी झूट बोलने  पर आमादः है.

"सो तुम्हारा जब कुफ़फ़ार  से मुकाबला हो जाए तो उनकी गर्दनें मार दो, यहाँ तक कि जब तुम इनकी ख़ूब खूँरेजी कर चुको तो ख़ूब मज़बूत बाँध लो, फिर इसके बाद या तो बिला माव्ज़ा छोड़ दो या माव्ज़ा लेकर, जब तक कि लड़ने वाले अपना हथियार न रख दें, ये हुक्म बजा लाना. अल्लाह चाहता तो इनसे इंतेक़ाम लेलेता लेकिन ताकि तुम में एक दूसरे के ज़रिए इम्तेहान करे. जो लोग अल्लाह की राह में मारे जाते हैं, अल्लाह इनके आमाल हरगिज़ ज़ाया नहीं करेगा." 
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (३-४)

ऐसे अल्लाह और ऐसी पैगम्बरी पर आज इक्कीसवीं सदी में लअनत भेजिए. जो अज़हान इक्कीसवीं सदी तक नहीं पहुँचे वह इस नाजायज़ अल्लह की नाजायज़ औलादें तालिबानी हैं. ऐसे जुनूनियों के साथ ऐसा सुलूक जायज़ होगा कि नाजायज़ अल्लाह का क़ानून उसकी औलादों पर नाफ़िज़ हो. इस्लामी अल्लाह के अलावा कोई खुदा ऐसा कह सकता है क्या " अल्लाह चाहता तो इनसे इंतेक़ाम ले लेता लेकिन ताकि तुम में एक दूसरे के ज़रिए इम्तेहान करे." मुसलामानों! ऐसे अल्लाह और ऐसे रसूल की रहें जिस क़द्र जल्द हो सके छोड़ दो 

"ऐ ईमान वालो! अगर तुम अल्लाह की मदद करोगे तो वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे क़दम जमा देगा. और जो लोग काफ़िर हैं उनके लिए तबाही है और इनके आमल को अल्लाह तअला ज़ाया कर देगा, ये इस सबब से हुवा कि उन्हों ने अल्लाह के उतारे हुए हुक्म को ना पसंद किया,सो अल्लाह ने उनके आमाल को अकारत किया."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (७-९)

दुन्या का हर हुक्मराँ जंग में सब जायज़ समझ कर ही हुकूमत कर पाता है. अशोक महान ने अपनी हुक्मरानी में एक लाख इंसानी जानों की कुर्बानी दी थी, जंग को जीत जाने के बाद उसके एहसास ए हुक्मरानी ने शिकस्त मान ली कि क्या राजपाट की बुनन्यादों में हिंसा होती है? उसे ऐसा झटका लगा कि वह बैरागी हो गया, बौध धर्म को अपना लिया. वह कातिल हुक्मरान से महात्मा बन गया और इस्लामी महात्मा को देखिए कि क़त्ल ओ खून  का पैगाम  दे रहे हैं, वह भी  अल्लाह के पैगम्बर  बन  कर.

Sunday 15 September 2013

Soorqah ahqaaf 46 (2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  
(2)

"हम ने तुम्हारे आस पास की और बस्तियाँ भी ग़ारत की हैं और हम ने बार बार अपनी निशानियाँ बतला दी थीं, ताकि वह बअज़ आएँ, सो जिन जिन चीजों को उन्हों ने अल्लाह का तक़र्रुब हासिल करने के लिए अपना माबूद बना रखा है, उन्हों ने इनकी मदद क्यूँ न कीं, बल्कि जब वह उनसे गायब हो गए और ये सब उनकी तराशी और गढ़ी हुई बात है."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (२७-२८)

ऐ मुसलमानों! क्या तुम इतने कुन्द ज़ेहन हो कि किसी मक्कार और चल बाज़ की बातों में आ जाओ? क्या तुम्हारा रुवाए ज़माना अल्लह इस क़दर ज़ालिम होगा कि बस्तियों को ग़ारत कर दे? उसकी नक्ल में अली मौला ने एक गाँव के लोगों को जिंदा जला के मार डाला. अगर तुम कट्टर मुसलमान अली मौला की तरह हो तो क्यूं न तुम को और तुम्हारे परिवार को जिंदा जला दिया जाय? अभी सवेरा है अपने ज़मीर की आवाज़ सुनो. तुहारे लिए एक ही हल है कि तरके-इस्लाम करके मोमिन होने का एलान करदो.

"और जब हम जिन्नात की एक जमाअत को आपके पास लेकर आए तो कुरआन सुनने लगे थे, गरज़ जब वह कुरआन के पास आए तो कहने लगे खामोश रहो, फिर जब कुरआन पढ़ा जा चुका तो वह अपनी कौम के पास खबर पहुँचाने के वास्ते गए. कहने लगे कि ऐ भाइयो! हम एक किताब सुन कर आए हैं जो मूसा के बाद नाज़िल हुई है, जो अपने से पहले की किताबों को तसदीक़ करती है हक़ और रहे रास्त की रहनुमाई करती है.. ऐ भाइयो! अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले का कहना मानो और इस पर ईमान ले आओ. अल्लाह तअला तुमको मुआफ़ कर देगा और तुमको अज़ाबे दर्द नाक से महफूज़ रख्खेगा."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (२९-३१)  

आयत पर गौर करो कि कितना बड़ा झूठा है तुम्हारा सल्ललाह ओ अलैहे वसल्लम. ड्रामे गढ़ता है और उसे किर्दगार ए कायनात के फ़रमान बतलाता है.

"जो शख्स अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले का कहना नहीं मानेगा वह ज़मीन में हरा नहीं सकता. और अल्लाह के सिवा कोई इसका हामी भी न होगा. ऐसे लोग सरीह गुमराही में हैं."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (३२)

एक जुमला भी सहीह न बोल पाने वाला उम्मी तुम्हें अपना मज़हब सिखलाता है, गौर करो " वह ज़मीन में हरा नहीं सकता." इसकी इस्लाह ओलिमा हराम जादे जाने जाने क्या क्या किया करते हैं,
 मुहम्मद बार बार कहते हैं कि उनका कलाम जादू का असर रखता है, ओलिमा कहते हैं नौज़ बिल्लाह जादू तो झूटा होता है अल्लाह के कहने का मतलब ये हा कि - - .

"क्या उन लोगों ने ये न जाना कि जिस अल्लाह ने ज़मीन और आसमान को पैदा किया और उनके पैदा करने में ज़रा भी नहीं थका, वह इस पर कुदरत रखता है कि मुरदों को ज़िंदा कर दे. क्यूँ न हो ? बेशक वह हर चीज़ पर क़ादिर है. और जिस रोज़ वह काफ़िर दोज़ख के सामने ले जाएँगे. क्या वह दोज़ख अम्र वाक़ई नहीं है? वह कहेंगे हम को अपने परवर दिगार की क़सम ज़रूर अम्र वाक़ई है. इरशाद होगा अपने कुफ्र के बदले इस का मज़ा चख्खो."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (३४) 

देखिए कि गंवार अपने अल्लाह को कभी न थकने वाला मख्लूक़ बतलाता है, जैसे खुद था कि जिसे झूट गढ़ने से कभी कोई परहेज़ न था.
अम्र ए वाक़ई ? पढ़े लिखों की नक़ल जो करता था.

"तो आप सब्र करिए जैसा कि और हिम्मत वाले पैगम्बरों ने किया है और इन लोगों के वास्ते इंतेक़ाम की जल्दी न करिए. जिस रोज़ ये लोग इस चीज़ को देखेंगे जिसका वादा किया जाता है, तो गो ये दिन भर में एक घडी रहेगे, ये पहुँचा देना है, सो वह ही बर्बाद होंगे, जो नाफ़रमानी करेंगे."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (३५)  

शर्री रसूल के बाप को किसी ने नहीं मारा कि वह उससे इंतेक़ाम ले न दादा को. वह तो इस बात का बदला लेगा कि उसकी रिसालत को लोग नहीं मान रहे हैं जो कि किसी बच्चे के गले भी नहीं उतरती.
लाखों लोग उसके इंतेक़ाम के शिकार हो गए.
*क़ुरआन की लाखों झूटी तस्वीरें इस्लामी आलिमों ने दुन्या के सामने अब तक पेश की हैं. " हर्फ़ ए ग़लत" आप की ज़बान में गालबान पहली किताब है जो  उरियां सदाक़त के साथ आप के सामने एक बाईमान मोमिन लेकर आया है. इसके सामने कोई भी फ़ासिक़ लम्हा भर के लिए नहीं ठहर सकता.
क़ुरआनी अल्लाह के मुकाबिले में कोई भी कुफ़्र का देव और शिर्क के बुत बेहतर हैं कि अय्याराना कलाम तो नहीं बकते, डराते धमकाते तो नहीं, गरयाते भी नहीं, पूजो तो सकित न पूजो तो सकित, जिस तरह से चाहो  इनकी पूजा कर सकते हो, सुकून मिलेगा, बिना किसी डर के. इनकी न कोई सियासत है, न किसी से बैर और बुग्ज़.  इनके मानने वाले किसी दूसरे तबके, खित्ते और मुखालिफ पर ज़ोर ओ ज़ुल्म करके अपने माबूद को नहीं मनवाते. इस्लाम हर एक पर मुसल्लत होना अपना पैदायशी हक समझता है. जब तक इस्लाम अपने तालिबानी शक्ल में दुन्या पर क़ायम रहेगा, जवाब में अफ़गानिस्तान,इराक़ और चेचेनिया का हश्र  इसका नसीब बना रहेगा.
भारत में कट्टर हिन्दू तंजीमे इस्लाम की ही देन हैं. गुजरात जैसे फ़साद का भयानक अंजाम क़ुरआनी आयातों का ही जवाब हैं. ये बात कहने में कोई मुजायका नहीं कि जो मुकम्मल मुसलमान होता है वह किसी जम्हूरियत में रहने का मुस्तहक़ नहीं होता. मुसलामानों के लिए कोई भी रास्ता बाकी नहीं बचा है, सिवाय इसके कि तरके इस्लाम करके मजहबे इंसानियत क़ुबूल कर लें. कम अज़ कम हिदुस्तान में इनका ये अमल फाले नेक साबित होगा राद्दे अमल में कट्टर हिदू ज़हनियत वाले हिदू भी अपने आप को खंगालने पर आमादा हो जाएँगे. हो सकता है वह भी नए इंसानी समाज की पैरवी में आ जाएँ. तब बाबरी मस्जिद और राम मंदिर, दो बच्चों के बीच कटे हुए पतंग के फटे हुए कागज़ को लूटने की तरह माज़ी की कहानी बन जाए. तब दोनों बच्चे कटी फटी पतंग को और भी मस्ख करके ज़मीन पर फेंक कर क़हक़हा लगाएँगे. इंसान के दिलों में ये काली बलूगत को गायब करने की ज़रुरत है, और मासूम ज़हनों में लौट जाने की.       

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 8 September 2013

Soorah ahqaaf 46 (1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह अहक़ाफ़ ४६ (1) 

"यह किताब अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाले  की तरफ़ से भेजी गई है."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६   आयत (२)

ज़बरदस्त यानी जब्र करने वाला, जो ज़बरदस्त हो वह अल्लाह कैसे हो सकता है? इंसानी हिकमतो से अल्लाह बे ख़बर है, वरना मुहम्मद को ऐसी सज़ा देता की पैगम्बरी छोड़ कर वह बकरियाँ चराने वापस चले जाते, दाई हलीमा के पास. 
अल्लाह अगर है तो शफीक़ बाप की मानिंद होगा.

"जो लोग काफ़िर हैं, उनको जिस चीज़ से डराया जाता है, वह उससे बे रुखी करते हैं"
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६   आयत (3)

सबसे बड़ा काफ़िर मुसलमान होता है जो खुदा की मख्लूक़ को काफ़िर, मुशरिक, मुकिर और मुल्हिद समझता है. इरतेकाई मरहलों को पार करता हुवा कारवाँ पुर फरेब वहदानियत के चपेट में आकर मुसलमान बना तो दुन्या की तमाम बरकतें उस पर हराम हो गई.. जिन्होंने बे रुखी बरती वह सुर्खरू हैं.

"आप कहिए कि ये तो बताओ कि जिस चीज़ की तुम अल्लाह को छोड़ कर, इबादत करते हो, मुझको  दिखलाओ कि उन्होंने कौन सी ज़मीन पैदा की है? या उसका आसमान के साथ कुछ साझा है. मेरे पास कोई किताब जो पहले की हो, या कोई मज़मून मनकूल लाओ अगर तुम सच्चे हो?" और जब हमारी खुली खुली आयतें उन लोगों के सामने पढ़ी जाती हैं तो ये मुनकिर लोग उसकी सच्ची बात की निस्बत, जब कि ये उन तक पहुँचती है, ये कहते हैं, ये सरीह जादू है."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६   आयत (४-७)

ज़मीन ओ आसमान को पैदा करने वाली कोई भी ताक़त हो मगर मुहम्मदी अल्लाह जैसा अहमक लाल बुझक्कड़ नहीं हो सकता. मुहम्मद अपनी किताबे-वाहियात को दुन्या के बड़े बड़े ग्रंथों के आगे रख कर पशेमान तो न हुए मगर इसको रटने वाले आज मिटटी के मोल हो रहे है, पस्मान्दा कौम का नाम इनको दिया जा रहा है. इसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह के साझीदार मुहम्मद पर आती है.

"क्या ये लोग कहते हैं कि इसको इसने अपनी तरफ़ से बना लिया है? कह दीजिए कि इसको अगर मैंने अपनी तरफ़ से बना लिया है तो तुम लोग मुझे अल्लाह से बिलकुल नहीं बचा सकते. वह खूब जानता है कि तुम कुरआन में जो बातें बता रहे हो, मेरे और तुम्हारे दरमियान वह काफ़ी गवाह है, और  वह मग्फ़िरत वाला और रहमत वाला है."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६   आयत (८)

ये मुहम्मद का मेराजे अय्यारी है.

"और आप कह दीजिए कि तुम मुझको ये तो बताओ कि ये कुरआन मिन जानिब अल्लाह हो और तुम इसके मुनकिर हो और बनी इस्राईल में से कोई गवाह इस जैसी किताब पर गवाही देकर ईमान ले आवे और तुम तकब्बुर में ही रहो. बेशक अल्लाह बे इन्साफ़ लोगों को हिदायत नहीं करता."
सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (१०)

दो एक लाखैरे यहूदी मुसलमान हो गए थे तो उनको को बुनियाद बना कर खुद को अल्लाह का रसूल साबित करना चाहते हैं. मुहम्मद की बकवास किताब को न तस्लीम करना लोगों की बे इंसाफी ठहरी? आज भी इन बातों को पढ़ कर उम्मी रसूल से सिर्फ़ नफ़रत बढ़ती है. उस वक़्त लोग पागल समझ कर टाल जाया करते थे.

"और हमने इंसान को अपने माँ बाप के साथ नेक सुलूक करने का हुक्म दिया है. इसकी माँ ने इसको बड़ी मशक्क़त के साथ पेट में रख्खा है, और बड़ी मशक्क़त के साथ इसको जना और इसका दूध छुड़ाना तीस महीने में है, यहाँ तक कि जब वह अपनी जवानी तक पहुँच जाता है और चालीस बरस को पहुँचता है तो कहता है, ऐ मेरे परवर दिगार मुझ को इस पर हमेशगी दीजे  कि मैं आपकी इन नेमत का शुक्र अदा किया करूँ जो आपने मुझको और मेरे माँ बाप को अता फ़रमाई."

सूरह अहक़ाफ़ ४६ - पारा २६  आयत (१५)
अल्लाह हमल से लेकर चालीस साल की उम्र तक इंसान से मुहम्मद के प्रोग्रामिंग के हिसाब से जिलाता है, साथ में उसकी हिदायतें भी उनके सबक में हैं. क्या आयतें किसी सनकी की बकवास नहीं लगती?


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 1 September 2013

Soorah jasiya 45 (2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह जासिया -४५- (2)


क़ुदरत ने ये भूगोल रुपी इमारत को वजूद में लाने का जब इरादा किया तो सब से पहले इसकी बुनियाद "सच और ख़ैर" की कंक्रीट से भरी. फिर इसे अधूरा छोड़ कर आगे बढती हुई मुस्कुराई कि मुकम्मल इसको हमारी रख्खी हुई बुनियाद  करेगी. वह आगे बढ़ गई कि उसको कायनात में अभी बहुत से भूगोल बनाने हैं. उसकी कायनात इतनी बड़ी है कि कोई बशर अगर लाखों रौशनी साल (light years ) की उम्र भी पाए तब भी उसकी कायनात के फासले को तय नहीं कर सकता, तय कर पाना तो दूर की बात है, अपनी उम्र को फासले के तसव्वुर में सर्फ़ करदे तो भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाएगा  .
कुदरत तो आगे बढ़ गई इन दो वारिसों  "सच और ख़ैर" के हवाले करके इस भूगोल को कि यही इसे बरक़रार रखेंगे जब तक ये चाहें. .भूगोल की तरह ही क़ुदरत ने हर चीज़ को गोल मटोल पैदा कीया कि ख़ैर के साथ पैदा होने वाली सादाक़त ही इसको जो रंग देना चाहे दे. क़ुदरत ने पेड़ को गोल मटोल बनाया कि इंसान की "सच और ख़ैर" की तामीरी अक्ल इसे फर्नीचर बना लेगी, उसने पेड़ों में बीजों की जगह फर्नीचर नहीं लटकाए. ये ख़ैर का जूनून है कि वह क़ुदरत की उपज को इंसानों के लिए उसकी ज़रुरत के तहत लकड़ी की शक्ल बदले.
तमाम ईजादें ख़ैर(परोकार) का जज्बा ही हैं कि आज इंसानी जिंदगी कायनात तक पहुँच गई है, ये जज़्बा ही एक दिन इंसानों को ही नहीं बल्कि हैवानों को भी उनके हुकूक दिलाएगा.
जो सत्य नहीं वह मिथ्य है. दुन्या हर तथा कथित धर्म अपने कर्म कांड और आडम्बर के साथ मिथ्य है, इससे मुक्ति पाने के बाद ही क़ुदरत का धर्म अपने शिखर पर आ जाएगा और ज़मीन पाक हो जाएगी.
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"आप ईमान वालों से फ़रमा  दीजिए कि उन लोगों से दर गुज़र करें जो खुदा के मुआमलात का यक़ीन नहीं रखते ताकि अल्लाह तअला एक कौम को  इनके आमल का सिला दे.
सूरह जासिया -४५-पारा - २५ आयत (१५)

मजहबे इस्लाम में इतने पोलखाते हैं कि दलायल गढ़ने वाला अल्लाह पल भर भी किसी बहस मुबाहिसे वाली महफ़िल में टिक नहीं सकता, इस लिए इसका हल पेश कर रहा है कि मुसलमान बुद्धि जीवयों का शिकार न बने और उनकी संगत से बाहर आ जाएं. उम्मी मुहम्मद ने मुसलामानों की किस क़दर घेरा बंदी की है, इसकी गवाही पूरे कुरान में देखी जा सकरी है. मुल्ला जी दानिश वरों की महफ़िल से उठ कर खिसक लेते हैं.
ये व्ही ज़माना है जब मुहम्मद दीवाने पागल की तरह हर जगह अपनी आयतें गाते फिरते थे और अवामी रद्दे अमल को खुद बयान करते है. क्या आज भी ऐसे शख्स के साथ यही सुलूक नहीं किया जायगा. मगर माज़ी की इस कहानी को जानते हुए आज मुसलमान उसकी बातों पर यक़ीन करने लगे.
बुद्धि हाथों पे सरसों उगाती रही,
बुद्धू कहते रहे कि चमत्कार है.

मगर वहाँ तो कोई बुद्धि ही नहीं है, बस बुद्दू ही बुद्धू हैं.

"मुनकिर लोग कहते हैं कि बजुज़ हमारी इस दुनयावी हयात के और कोई हयात नहीं है. हम मरते हैं न जीते हैं और हमको सिर्फ ज़माने की गर्दिश से मौत आ जाती है, और उन लोगों के पास कोई दलील नहीं है, महज़ अटकल हाँक रहे है. और जिस वक़्त इन लोगों के सामने हमारी खुली खुली आयतें पढ़ी जाती हैं तो इनका बजुज़ इसके कोई जवाब नहीं होता कि हमारे बाप दादों को ज़िदा करके लाओ."
सूरह जासिया -४५-परा - २५ आयत (२५-४४)

देखिए कि उस ज़माने में भी ऐसे साहिबे फ़िक्र थे जिन्होंने ज़िन्दगी को समझने की कोशिश की थी. उनकी फ़िक्र की गहराई देखें
" बजुज़ हमारी इस दुनयावी हयात के और कोई हयात नहीं है. हम मरते हैं न जीते हैं और हमको सिर्फ ज़माने की गर्दिश से मौत आ जाती है" 
उनको जवाब में मुहम्मद की "खुली खुली आयतें" हैं जिन की उरयानियत मुसलामानों को मुँह चिढ़ाती हैं.

"और हमने बनी इस्राईल को किताब और हिकमत और नबूवत दी थी और हमने उनको नफ्से-नफ़ीस चीजें खाने को दी थीं और हमने उनको दुन्या जहान वालों पर फ़ौक़ियत दी थी और हमने उनको दीन के बारे में खुली खुली दलीलें दीं, सो उन्हों ने इल्म के आने के बाद बाहम एख्तेलाफ़ किया बवजेह आपस की ज़िद्दा ज़िद्दी. आप का रब इनके आपस में बैर रखने का क़यामत के रोज़ इन उमूर में फ़ैसला करेगा जिसके लिए इन में बाहम इख्तेलाफ़ किया करते थे, फिर हमने आप को दीन का एक तरीक़ा दिया, सो आप तरीके पर चलते जाइए, और इन जाहिलों की ख्वाहिश पर मत चलिए."
सूरह जासिया -४५-परा - २५ आयत (१६-१८)

मुहम्मद ने जितना बनी इस्राईल के बारे में जाना है, बयान कर दिया. जबकि इनकी बुनयादी अक़ीदे को जानते भी नहीं. इस्रईलयों के खुदा ने इन्हें दिया हुआ है क़ि तुम ही पूरी दुन्या के हाकिम रहोगे और दुन्या की तमाम कौमें तुम्हारे तुफ़ैल में ज़िन्दगी जिएँगी. उन्हीं के वंशज आर्यन हिदुस्तान में ब्रहमिन यानि इब्राहीमी अपने ब्रहमा का वरदान लिए हिंदुस्तान में आज भी सुपरमैन बने हुए है. आज भी पूरी दुन्या में यही यहूदी सबसे ज़्यादः दौलत मंद और साइंस दान मौजूद हैं, मगर ये भी क़रारा सच है क़ि दुश्मने इंसानियत होने की वजेह से अपनी ही जाति की बड़ी कुर्बानी दी है. इनका बड़ा गुनाह ये है क़ि अमरीका में मालिक रेड इंडियन का इन्हों ने सफ़ा ए हस्ती से मिटा दिया. भारत के असली बाशिंदों पाँच हज़ार साल से ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी जीने को मजबूर किए हुए हैं.
ये दुन्या अभी भी रचना काल में है और शायद हमेशा रचना काल में रहेगी. इसकी रचना में बाधा बन कर कभी मूसा पैदा होते हैं, कभी ब्राह्मन तो कभी मुहम्मद.
जब तक धरती पर धर्म के धंधे बाज़ ज़िंदा हैं, इंसानियत कभी फल फूल नहीं सकती.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान