Thursday 31 January 2019

खेद है कि यह वेद है - - -13


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (13)

सुन्दर नयनों वाले, जरा रहित एवं शोभन गति वाले अग्नि, हव्य दाता !  यजमान के शत्रुओं को नष्ट करने के लिए बुलाए गए हैं .
द्वतीय मंडल सूक्त  8-2 
हजारों वर्षों से यजमान का सम्मान देकर हिदू समाज को इन निर्मूल मन्त्रों से लूटा जा रहा है. बाम्हन हिदू समाज के जोक हैं.
*
शत्रु नाशक एवं स्वयं शोभित अग्नि की स्तुति में ऋग वेद के सभी मन्त्रों का प्रयोग किया जाता है. अग्नि समस्त शोभओं को धारण करते हैं. 
द्वतीय मंडल सूक्त  8-5 
मुसलमानों को क़यामत की आग से डराया जाता है और हिदुओ को इसी अग्नि से लुभाया जाता है.
ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 30 January 2019

सूरह जुमुआ ६२ (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह जुमुआ- 62 = سورتہ الجمعا
(मुकम्मल)

 "सब चीजें जो कुछ आसमानों पर है और ज़मीन में हैं, अल्लाह की पाकी बयान करती हैं.जोकि बादशाह है, पाक है, ज़बरदस्त है, हिकमत वाला है." 
सूरह जुमुआ 62 आयत (1 )

सब चीज़ें बोलती कहाँ हैं ? 
गटर में पड़ी हुई ग़लाज़त क्या अल्लाह की पाकी बयान करती है ? 
ज़बरदस्त है, हिकमत वाला,  बार बार इस बात कुरआन में ऐसी बातें  दोहराता है अल्लाह ?

सूरह हदीद के बाद मुहम्मद के लब ओ लहजे में संजीदी आ गई है, न अब वह जादूगरों की तरह हुरूफे मुक़त्तेआत की भूमिका बाँधते हैं न ग़ैर फ़ितरी जेहालत करते है. उनकी शुरुआत तौरेत की तरह होती है,
जैसा कि मैंने कहा था कि सूरह हदीद किसी यहूदी की कही हुई थी.

''वही है जिसने नाख़्वान्दा लोगों में, इन्हीं में से एक को पैग़म्बर भेजा जो इनको अल्लाह की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाते हैं और इनको पाक करते हैं और इनको किताब और दानिश मंदी सिखलाते हैं और ये लोग पहले से ही खुली गुमराही में थे." 
सूरह जुमुआ 62 आयत  (2)

मुहम्मद ख़ुद कह रहे हैं कि वह नापाक वजूद हैं जिन्हें अल्लाह कुरआनी आयतों से पाक करने में लगा है, वह आयतें बना बना कर जो भी गाते बजाते थे, उसका कोई असर समाज पर नहीं पड़ता था मगर उनकी तहरीक ने जब जेहाद का तरीक़ा अपनाया तो ये सौ साल पहले कमन्यूज़म की सदा थी, 
जो सालों बाद कार्ल मार्क्स की पहचान बनी. 
कार्ल मार्क्स की तहरीक में किसी अल्लाह का झूट नहीं था, 
जिसकी वजह से बनी नव इंसान की आँखें खुलीं, 
मुहम्मद की तहरीक में झूट और क़ुरैश परस्ती ने आबादी को मज़हबी अफ़ीम दे दिया, 
जिसके सेवन चौथाई दुन्या अफ़ीमची बन गई.

 "जिन लोगों पर तौरेत पर अमल करने का हुक्म दिया गया, फिर उन्हों ने उस पर अमल नहीं किया, क्या उनकी हालत उस गधे की सी है जो बहुत सी किताबें लादे हुए है, उनकी हालत बुरी है जिन लोगों ने अल्लाह की किताब को झुटलाया.
 सूरह जुमुआ 62 आयत (5 )

यहूदियों की किताब तौरेत है, जिस पर वक़्त के साथ बदलते रहने की ज़रुरत उन्हों ने समझी और आज भी वह आलमी क़ौमों में सफ़े अव्वल पर हैं. सच पूछिए तो गधे अब मुसलमान हैं जो क़ुरआन  को लादे लादे दूसरी क़ौमों के ख़िदमत में लगे हुए हैं.

''आप कह दीजिए कि ऐ यहूदियों ! अगर तुम्हारा दावा है कि तुम बिला शिरकत ए ग़ैरे अल्लाह को मक़बूल हो तो तुम मौत की तमन्ना करो अगर तुम सच्चे हो. और वह कभी भी इसकी तमन्ना नहीं करेंगे ब वजह इस आमाल के जो अपने हाथों में समेटे हुए हैं. आप कह दीजिए कि जिस मौत से तुम भाग रहे हो, वह तुमको आ पकड़ेगी." 
सूरह जुमुआ 62 आयत (6 -7 )

मुलाहिज़ा हो- -
 है न मुहम्मद की बे वक़ूफ़ाना गुफ़्तुगू ? 
जवाब में यही बात कोई यहूदी, मुसलामानों को कह सकता है. 
मौत को कौन पसँद करता है? यहाँ तक कि हैवान भी इस से दूर भागता है.
 मुसलमानों को जो जन्नत ऊपर मिलेगी वह तो मौजूदा हालात से लाख गुना बेहतर होगी, फटाफट मौत की तमन्ना करें या फिर बेदार हों कि जो कुछ है बस यही दुन्या है, जिसमें ईमान के साथ ज़िन्दगी गुज़ारें और हो सके तो कुछ ख़िदमत- ख़ल्क़ करें.

"ऐ ईमान वालो जब जुमअ के रोज़ नमाज़ के लिए अज़ान कही जाया करे तो तुम अल्लाह की याद की तरफ़ चल दिया करो और ख़रीद फ़रोख़्त  छोड़ दिया करो. और वह लोग जब किसी तिजारत या मशगू़ली की चीज़ को देखते हैं तो वह उनकी तरफ़ दौड़ने के लिए बिखर जाते हैं और आपको खडा हुवा छोड़ जाते है. आप कह दीजिए कि जो चीज़ पास है वह ऐसे मशाग़िल और तिजारत से बदर्जाहा बेहतर है और अल्लाह सब से अच्छा रोज़ी पहचानने वाला है." 
सूरह जुमुआ 62 आयत  (9 -11)

एक बार मुहम्मद अपने झुण्ड के साथ किसी बाज़ार में थे कि बाज़ार की अशिया और हंगामों ने झुण्ड को अपनी तरफ़ खींच लिया. मुहम्मद अकेले पड़ गए थे, उनको जान का ख़तरा महसूस हुवा तब ये आयते उनको सूझीं, ऐसे बुज़दिल थे अल्लाह के रसूल.
मुहम्मद के अल्लाह की दूसरी बेहतर रोज़ी जेहाद है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 29 January 2019

खेद है कि यह वेद है - - -12

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (12)

अपने शरीर को पुष्ट करने के समान अग्नि के शरीर का पोषण एवं लकड़ियों को जलाने के इच्छुक अग्नि का प्रकट होना भी बहुत सुन्दर जान पड़ता है. 
रथ में जुता हुवा घोडा मख्खियाँ उड़ाने के किए जिस प्रकार बार बार पूंछ हिलाता है, उसी प्रकार अग्नि अपने लपटों रुपी जीभ को बार बार फेरते है.
द्वतीय मंडल  सूक्त 4-4
पोंगा पंडित की कल्पना को देखें कि घोड़े ही दुम की हरकत को आग की लपटों से कर रहा है. कल्पना तो खैर कुछ भी की जा सकती है मगर इन पर आधारित हिन्दू आस्था  की कल्पना करें. आस्था जिसके बाद कुछ भी उसके विरुद्ध सोचना पाप जैसा होता है. क्या कल्पना कर सकते हैं कि हिन्दू कभी जय श्री गणेश के गुड गोबर से उबर सकता है ?
**
हे अग्नि ! हमें मनुष्यों एवं देवों की शत्रुता हरा न सके. हमें इन दोनों प्रकार के शत्रुओं  से बचाव. 
द्वतीय मंडल  सूक्त 7-2 

लीजिए पंडित जी जिन देवों की कृपा से माला माल हुवा करते हैं उन को भी अपना शत्रु घोषित कर रहे हैं और अग्नि से सुरक्षा तलब कर रहें हैं ? 
मन्त्र में कुछ तो बोलना है, उल्टा सीधा ही सही.
*
हे ऋत्वजों का भरण करने वाले अग्नि ! तुम हमारे हो. तुम बाँझ गायों बैलों और गर्भिणी गायों द्वारा बुलाए गए हो. 
द्वतीय मंडल  सूक्त 7-2 

कहत वेद सुनो भाई साधो - - - 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 28 January 2019

सूरह सफ़- 61= سورتہ الصف (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह  सफ़- 61= سورتہ الصف
(मुकम्मल)


क़ुरान कहता है - - -
"सब चीजें अल्लाह की पाकी बयान करती हैं, जो कुछ कि आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में है. वही ज़बरदस्त है, हिकमत वाला है. ऐ ईमान वालो ! ऐसी बात क्यूँ कहते हो जो करते नहीं? अल्लाह के नज़दीक ये बात बड़ी नाराज़ी की बात है कि ऐसी बात कहो और करो नहीं."
 सूरह सफ़ 61आयत (1-3)

सब चीज़ें बोलती कहाँ हैं ? 
गटर में पड़ी हुई ग़लाज़त क्या अल्लाह की पाकी बयान करती है ? 
सहीह बात करने वाले को पहले ख़ुद सहीह होना चाहिए, 
तभी लोगों पर असर होता है..
"जब मूसा ने अपनी क़ौम से फ़रमाया कि ऐ मेरी क़ौम मुझको क्यूँ ईज़ा पहुंचाते हो, हालांकि तुम को मालूम है कि मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुवा आया हूँ. फिर जब वह लोग टेढ़े हो रहे तो अल्लाह तअला ने इन्हें और टेढ़ा कर दिया."
 सूरह सफ़ 61आयत (5)

मूसा एक ज़ालिम तरीन इंसान था, तौरेत उठा कर इसकी जंगी दास्ताने पढ़ें. अल्लाह टेढ़ा तो नहीं होता मगर हाँ मुहम्मदी अल्लाह पैदायशी टेढ़ा है.
मुहम्मद ख़ुद को मूसा बना कर मूसा का रुतबा चाहते हैं.

"जब ईसा बिन मरियम ने बनी इस्राईल से फ़रमाया कि ऐ बनी इस्राईल! मैं तुम्हारे पास अल्लाह का भेजा हुवा आया हूँ कि मुझ से पहले जो तौरेत आ चुकी है, मैं इसकी तस्दीक करने वाला हूँ और मेरे बाद जो रसूल आने वाले हैं, जिनका नाम अहमद होगा, मैं इसकी बशारत देने वाला हूँ, फिर जब वह उनके पास खुली दलीलें लेआए तो वह लोग कहने लगे सरीह जादू है."
सूरह सफ़ 61आयत (6 )

न ईसा पर इंजील नाज़िल हुई और न मूसा पर तौरेत. 
इंजील मूसा और उसके बाद उनके पैरोकारो की तसनीफ़ है 
जो चार पांच सौ वर्षों तक लिखी जाती रही है. 
तौरेत यहूदियों का ख़ानदानी इतिहास है, 
ये आसमान से नहीं उतरी और न इंजील आसमान से टपकी. 
ये भी ईसा के साथ रहने वाले हवारियो (धोबियों)  का दिया हुवा बयान है 
जो ईसा के ख़ास साथी हुवा करते थे. 
इंसानी जंगों ने मूसा, ईसा और मुहम्मद को पैग़म्बर बनाए हुए है. 
मुसलमानों ! 
तुमको क़ुरआन सफ़ैद झूट में मुब्तिला किए हुए है, 
कि इंजील में कोई इबारत ऐसी दर्ज हो 
"जिनका नाम अहमद होगा, मैं इसकी बशारत देने वाला हूँ " 
झूठे ओलिमा तुमको अंधरे में रख कर अपनी हलुवा पूरी अख्ज़ कर रहे है.

"उस शख़्स से ज़्यादः ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट बाँधे हाँलाकि वह इस्लाम की तरफ़ बुलाया जाता है."
सूरह सफ़ 61आयत (7 )

ये क़ुरआनी तकिया कलाम है, 
अल्लाह की जेहालत को न मानना ज़ुल्म है 
और बेकुसूर लोगों पर जंग थोपना सवाब है.

"ये लोग चाहते हैं कि अल्लाह के नूर को अपने मुँह से फूंक मार कर बुझा दें हाँला कि अल्लाह अपने नूर को कमाल तक पहुँचा कर रहेगा. गो काफ़िर लोग कितना ही नाख़ुश हों "
सूरह सफ़ 61आयत (8 )

मुहम्मद की कठ मुललई पर सिर्फ़ हँस सकते हो.

"वह अल्लाह ऐसा है जिसने अपने रसूल को सच्चा दीन देकर भेजा है, ताकि इसको तमाम दीनों पर ग़ालिब कर दे, गोकि मुशरिक कितने भी नाख़ुश हों."
सूरह सफ़ 61आयत (9 )

अगर तमाम दीन अल्लाह के भेजे हुए हैं तो किसी एक को ग़ालिब करने का क्या जवाज़ है? 
अल्लाह न हुवा कोई पहेलवान हुवा जो अपने शागिरदों में किसी को अज़ीज़ और किसी को कमतर समझता है.

"ऐ ईमान वालो ! क्या मैं तुमको ऐसी सौदाग़री बतलाऊँ कि दूर तक अज़ाब से बचा सके, कि तुम लोग अल्लाह पर और इसके रसूल पर ईमान लाओ और अल्लाह की राह में अपने माल और अपनी जान से जेहाद करो, ये तुम्हारे लिए बहुत बेहतर है, अगर तुम कुछ समझ रखते हो."
सूरह सफ़ 61आयत (10-11)
तुम्हारे जान व माल का दुश्मन अल्लाह का फ़रेब देकर तुम्हें बरबाद कर रहा है.

"जैसा कि ईसा इब्ने मरियम ने हवारीन से फ़रमाया कि अल्लाह के वास्ते मेरा कौन मददग़ार होता है ? हवारीन बोले हम अल्लाह मददग़ार होते हालांकि सो बनी इस्राईल में कुछ लोग ईमान लाए , कुछ लोग मुनकिर रहे सो हमने ईमान वालों के दुश्मनों के मुक़ाबिले ताईद की सो वह ग़ालिब रहे."
सूरह सफ़ 61आयत (14)

मुहम्मद मक्का के काफ़िरों को ईसा के हवारीन बना रहे हैं.
मुहम्मद अपनी एड़ी की गलाज़ात उस अज़ीम हस्ती ईसा की एड़ी में लगाने की कोशिश कर रहे हैं. 
उस मस्त कलंदर का जंगों से क्या वास्ता. 
उसका तो क़ौल है - - -
"अपनी तलवारें मियानों में रख लो, क्यूँ कि जो तलवार चलाते हैं, वह सब तलवार से ही ख़त्म किए जाते हैं."  

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 27 January 2019

खेद है कि यह वेद है - - -11



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (11)

हे अग्नि हम तुम्हारे दिए हुए अन्न अश्व से शोभन सामर्थ्य प्राप्त करके सर्व श्रेष्ट बन जाएगे. 
इस से वह हमारा अनंत धन ब्रह्मण, क्षत्रिय वैश, शूद्रऔर निषाद - 
पांच जातियों के ऊपर प्रकाशित होगा जो दूसरों को प्राप्त होना कठिन है. 
द्वतीय मंडल सूक्त-2 (10)
इस वेद मन्त्र से ज्ञात होता है कि शूद्र वैदिक काल तक  अछूत नहीं माने जाते थे. 
ऐसा लगता है कि मनु विधान ने इनको अछूत बना दिया जो कि आज ताक हिन्दू समाज का कोढ़ बना हुवा है. मगर वेड मन्त्र शूद्रों के कान में पड़ने पर दंड का प्रावधन क्यों था ?
*
हे अग्नि ! जो लोग बुद्धिमान स्तोताओं को उत्तम गौ और शक्ति शाली अन्न दान करते हैं, उन्हें तथा हमें उत्तम स्थान पर ले चलो. हम उत्तम वीरों से युक्त होकर यज्ञ में बहुत से मन्त्र बोलेंगे.
द्वतीय मंडल सूक्त 2-(13)
वेद कुछ भी नहीं पंडितों की ठग विद्या है. बाह्मण उत्तम गाय और तर नवाले की फरमाईस कर रहा है, इसी शर्त पर वह वीरता युक्त मन्त्र जपने की बातें करता है.                          
*
हे इंद्र ! हमारे द्वारा दिए गए  पुरोडाशादि हव्य और सोमरस से प्रसन्न होकर हमें गायों और घोड़ों के साथ साथ धन्य भी दो.
इस तरह तुम हमारी दरिद्रता को मिटा कर तुम शोभन मान बन जाओ.
 इंद्र इस सोमरस के करण संतुष्ट होकर हमारी सहायता करेंगे तो हम दस्यु का नाश करके एवं शत्रुओं से छुटकारा पाकर इंद्र द्वारा दिए गए अन्न का उपयोग करेंगे.
सूक्त (53-4)

हे ब्राह्मण भिखारियो ! 
काश कि तुम इंद्र देवता से सहायता की जगह परिश्रमी बनने और मेहनत की रोटी खाने का वरदान मांगते, काश कि तुम इन दंद फंद की बाते न करके ईमान दारी की बातें करते तो आज हिन्दुस्तानी विश्व में प्रथम श्रेणी के इंसान होते. तुम्हारे इन ग्रंथों के कारण हम आज दुन्या की नज़रों में घटिया  तरीन मानव समाज हैं. 
यहाँ तक कि खुद से नज़र मिलाने के लायक भी नहीं बचे.

 हे अग्नि ! तुम यजमानों के पालन करता हो. 
वे तुन्हें अपने घर में प्रकाश मान एवं अनुकूल चेतना वाला पाकर सुशोभित करते हैं. हे उत्तम सेवा वाले ! एवं समस्त हव्यों के स्वामी अग्नि ! 
तुम हजारों, सैकड़ों और दस्यों प्रकार के फल लोगों को देते हो. 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

चापलूसी में करके उदर पोषण करने वालो पुरोहितो ! 
तुम्हारा मानसिक स्तर क्या था ? 
दस्यों, सैकड़ों और हजारों को उल्टा करके गिना रहे हो, पहले हजारों, फिर सैकड़ों उसके बाद दस्यों ? 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 25 January 2019

सूरह मुमतहा- 60 - سورتہ الممتحنہ(मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह मुमतहा- 60 - سورتہ الممتحنہ

(मुकम्मल)

  क़ुरआन कहता है - - -

"ऐ ईमान वालो ! तुम मेरे दुश्मनों और अपने दुश्मनों को दोस्त मत बनाओ कि इनकी दोस्ती का इज़हार करने लगो, हालाँकि तुम्हारे पास जो दीन ए हक़ आ चुका है, वह इसके मुनकिर है. रसूल को और तुमको इस बिना पर कि तुम अपने परवर दिगार पर ईमान ले आए, शहर बदर कर चुके हैं. अगर तुम मेरे रस्ते पर जेहाद करने की ग़रज़ से , मेरी रज़ामंदी ढूँढने की ग़रज़ से निकले हो. तुम इनसे चुपके चुपके बातें करते हो , हालाँकि मुझको हर चीज़ का इल्म है. तुम जो कुछ छिपा कर करते हो और जो ज़ाहिर करते हो. और तुम में से जो ऐसा करेगा, वह राहे रास्त से भटकेगा."
सूरह मुमतहा 60 आयत (1)

  मुहम्मद के साथ मक्का से मदीना हिजरत करके आए हुए लोगों को अपने ख़ूनी रिश्तों से दूर रहने की सलाह अल्लाह के नबी बने मुहम्मद दे रहे हैं. 
मुसलमानों का इनसे मेल जोल मुहम्मदी अल्लाह को पसंद नहीं. 
हर चुगल खो़र की इत्तेला अल्लाह की आवाज़ का काम करती है. 
 क़ुरआन ख़ूनी रिश्तों को दर किनार करते हुए कहता है - - -

"अपने अज़ीज़ों से बे तअल्लुक़ ही नहीं, बल्कि उनके दुश्मन बन जाओ, और ऐसे दुश्मन कि उनको जेहाद करके क़त्ल कर दो."

इंसानियत के ख़िलाफ़ इस्लामी ज़हर को समझें. जिसे आप पिए हुए हैं.
मुहम्मद और इस्लामी काफ़िरों का एक समझौता हुवा था कि अगर क़ुरैश में से कोई मुसलमान होकर मदीना चला जाए तो उसको मदीने के मुसलमान पनाह न दें, 
इसी तरह मदीने से कोई मुसलमान मुर्तिद होकर मक्का में पनाह चाहे तो 
उसे मदीना पनाह न दें. 
इस मुआह्दे के बाद एक क़ुरैश ख़ातून जब मुसलमान होकर मदीना आती हैं तो मुहम्मदी अल्लाह फिर एक बार मुआहदा शिकनी करके उसे पनाह दे देता है. मुहम्मद फिर एक बार वह्यी का खेल खेलते हैं, अल्लाह कहता है कि अगर उसके शौहर ने उसका महर अदा किया हो तो वह उसे अपने शौहर को वापस करके मदीने में रह सकती है.
यह हुवा करती थी मुहम्मदी अल्लाह की ज़बान और पैमाने.

"जो मुसलमान अपने बाल बच्चों को छोड़ कर मदीने आए हैं, अपनी काफ़िर बीवियों से तअल्लुक़ ख़त्म कर लें और मुसलमान बीवियाँ जो मक्का में फँसी हुई है, इनके शौहर का हर्ज खर्च देकर कुफ़्फ़ार इनको अपनी मिलकियत में लेलें और इसी तरह मुसलमान इनकी बीवियों का हर्जाना अदा करदें."
सूरह मुमतहा 60 आयत (10)

ग़ौर  तलब है की मुहम्मद की नज़र में क्या क़द्र  ओ क़ीमत थी औरतों की ? मवेशियों की तरह उनकी ख़रीद फ़रोख्त करने की सलाह देते है सल्ललाह. 
कितना मज़लूम और बेबस कर दिया था पैग़ामबर बने मुहम्मद ने.
माज़ी में इंसान मजबूर और बेबस था ही, कोई इस्लाम ही जाबिर नहीं था, 
मगर वह माज़ी आज भी ईमान के नाम पर ज़िन्दा है. 
अरब में आज भी औरतों के दिन नहीं बहुरे हैं, 
सात परदे के अन्दर हरमों में मुक़य्यद यह ख़ुदा की मख़लूक़  पड़ी हुई है. 
झूठे और शैतान ओलिमा कहते हैं कि इस्लाम औरतों को बराबर के हुक़ूक़ देता है.
मुसलमान औरतें जो मक्का से आती हैं उनकी खासी छानबीन हुवा करती थी, कहीं वह काफ़िरों से हामला होकर तो मदीने में दाख़िल नहीं हो रही?
 क्या होने वाला बच्चा भी काफ़िर ही पैदा होगा? ईमान लाई माँ की तरबियत क्या उसे काफ़िर बना देगी? 
मुहम्मद को इतनी भी अक़्ल  नहीं थी.
सूरह मुमतहा 60 आयत  (10) ?

ये औरतें बोहतान की औलादें साथ में लेकर न आएंगी जिनको कि अपने हाथों और पाँव के दरमियान बना लें - - -
सूरह मुमतहा 60 आयत (12)
यह किसी अल्लाह की आवाज़ हो सकती है ???  
 ***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 24 January 2019

खेद है कि यह वेद है - - -10


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (10)

हे इंद्र ! तुमने शुष्ण असुर के साथ भयानक संग्राम में कुत्स ऋषि की रक्षा की थी 
तथा अतिथियों का स्वागत करने वाले दियोदास को बचाने के लिए, 
शंबर असुर का बद्ध किया था. 
तुमने अर्बुद नामक महान असुर को पैरों से कुचल डाला था. 
इस तरह से तुम्हारा जन्म दस्यु नाश के लिए हुवा मालूम पड़ता है.   
  (ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 51)........(6)

इंद्र को वेद असुरों का बाप राक्षस साबित कर रहा है.
वेद मुर्खता पूर्ण कल्पनाओं से कुसज्जित है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 23 January 2019

सूरह हश्र-59 - سورتہ الحشر (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह हश्र-59 - سورتہ الحشر
(मुकम्मल)

मदीने से चार मील के फ़ासले पर यहूदियों का एक ख़ुश हाल क़बीला, 
बनी नुज़ैर नाम का रहता था, जिसने मुहम्मद से समझौता कर रखा था कि मुसलमानों का मुक़ाबिला अगर काफ़िरों से हुवा तो वह मुसलमानों का साथ देंगे और दोनों आपस में दोस्त बन कर रहेंगे. 
इसी  सिलसिले में एक रोज़ यहूदियों ने मुहम्मद की, ख़ैर  शुग़ाली के जज़्बे के तहत  दावत की.
 बस्ती की ख़ुशहाली देख कर मुहम्मद की आँखें ख़ैरा हो गईं. 
उनके मन्तिक़ी ज़ेहन ने उसी वक़्त मंसूबा बंदी शुरू कर दी. 
अचानक ही बग़ैर खाए पिए उलटे पैर मदीना वापस हो गए और मदीना पहुँच कर यहूदियों पर इल्ज़ाम लगा दिया कि काफ़िरों से मिल कर ये मूसाई मेरा काम तमाम करना चाहते थे. 
वह एक पत्थर को छत के ऊपर से गिरा कर मुझे मार डालना चाहते थे. 
इस बात का सुबूत तो उनके पास कुछ भी न था मगर सब से बड़ा सुबूत उनका हथियार अल्लाह की वह्यी थी कि ऐन वक़्त पर उन पर नाज़िल हुई.
इस इलज़ाम तराशी को आड़ बना कर मुहम्मद ने बनी नुज़ैर क़बीले पर अपने लुटेरों को लेकर यलग़ार कर दिया. मुहम्मद के लुटेरों ने वहाँ ऐसी तबाही मचाई कि जान कर कलेजा मुंह में आता है. 
बस्ती के बाशिंदे इस अचानक हमले के लिए तैयार न थे, उन्हों ने बचाव के लिए अपने किले में पनाह ले लिया और यही पनाह गाह उनको तबाह गाह बन गई. 
ख़ाली बस्ती को पाकर कल्लाश भूके नंगे मुहम्मदी लुटेरों ने बस्ती का तिनका तिनका चुन लिया. उसके बाद इनकी तैयार फसलें जला दीं, 
यहाँ पर भी बअज न आए, उनकी बागों के पेड़ों को जड़ से काट डाला. 
फिर उन्हों ने किला में बंद यहूदियों को बहार निकाला और उनके अपने हाथों से बस्ती में एक एक घर को आग के हवाले कराया.
तसव्वुर कर सकते हैं कि उन लोगो पर उस वक़्त क्या बीती होगी. 
इसकी मज़म्मत ख़ुद मुसलमान के संजीदा अफ़राद ने की, तो वही वहियों का हथियार मुहम्मद ने इस्तेमाल किया. कि मुझे अल्लाह का हुक्म हुवा था. 
यहूदी यूँ ही मुस्लिम कश नहीं बने, 
इनके साथ मुहम्मदी जेहादियों ने बड़े मज़ालिम किए है.  

"वह ही है जिसने कुफ़्फ़ार अहले-किताब को उनके घरों से पहली बार इकठ्ठा करके निकाला. तुम्हारा गुमान भी न था कि वह अपने घरों से निकलेंगे और उन्हों ने ये गुमान कर रखा था कि इनके क़िले इनको अल्लाह से बचा लेंगे. सो इन पर अल्लाह ऐसी जगह से पहुँचा कि इनको गुमान भी न था, इनके दिलों में रोब डाल दिया था कि अपने घरों को ख़ुद अपने हाथों से उजाड़ रहे थे,
सो ए दानिश मंदों! इबरत हासिल करो"
सूरह हश्र 59 आयत (2)

"इन हाजत मंद मुहाजिरीन का हक़ है जो अपने घरों और अपने मालों से जुदा कर दिए गए. वह अल्लाह तअला के फज़ल और रज़ा मंदी के तालिब हैं और वह अल्लाह और उसके रसूल की मदद करते हैं.और यही लोग सच्चे हैं और इन लोगों का दारुस्सलाम में इन के क़ब्ल से क़रार पकडे हुए हैं. जो इनके पास हिजरत करके आता है, उससे ये लोग मुहब्बत करते हैं और मुहाजरीन को जो कुछ मिलता है, इससे ये अपने दिलों में कोई रश्क नहीं कर पाते और अपने से मुक़द्दम रखते हैं. अगरचे इन पर फ़ाकः ही हो.और जो शख़्स अपनी तबीयत की बुख़्ल से महफ़ूज़ रखा जावे, ऐसे ही लोग फ़लाह पाने वाले हैं. 
सूरह हश्र 59 आयत (7-9) 

" जो खजूर के दरख़्त तुम ने काट डाले या उनको जड़ों पर खड़ा रहने दिया सो अल्लाह के हुक्म के मुवाफ़िक़ हैं ताकि काफ़िरों को ज़लील करे"
"जो कुछ अल्लाह ने अपने रसूल को दिलवाया सो तुमने उन पर न घोड़े दौड़ाए न ऊँट, लेकिन अल्लाह अपने रसूल को जिस पर चाहे मुसल्लत कर देता है और अल्लाह को हर चीज़ पर पूरी क़ुदरत है कि जो अपने रसूल को दूसरी बस्तियों के लोगों से दिलवाए.  रसूल जो कुछ तुम्हें दें, ले लिया करो. और जिसको रोक दें, रुक जाया करो, अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह सख़्त  सज़ा देने वाला है."
"अगर हम इस  क़ुरआन को पहाड़ नाज़िल करते तो तू इसको देखता कि अल्लाह के खौ़फ़ से डर जाता और फट जाता और इन मज़ामीन अजीबया को हम लोगों के लिए बयान करते हैं ताकि  वह सोचें."
सूरह हश्र 59 आयत (8-2)   

बस्ती बनी नुज़ैर की लूट पाट में मुहम्मद को पहली बार माली फ़ायदा हुवा.
माले-ग़नीमत को लेकर मदीने के लुटेरे मुहम्मद से काफ़ी नाराज़ है कि उनको नज़र अंदाज़ किया जा रहा है. 
मुहम्मद उन्हें तअने दे रहे हैं कि
"तुमने उन पर न घोड़े दौडाए न ऊँट, लेकिन अल्लाह अपने रसूल को जिस पर चाहे मुसल्लत कर देता है " 
जो कुछ मिल रहा है, रख लो. 
रसूल के अल्लाह पर एक नज़र डालें, वह भी रसूल की तरह ही मौक़ा परस्त है 
"सो इन पर अल्लाह ऐसी जगह से पहुँचा कि इनको गुमान भी न था, इनके दिलों में रोब डाल दिया था कि अपने घरों को ख़ुद अपने हाथों से उजाड़ रहे थे," 
मुहम्मद अपनी छल कपट से अल्लाह बन बैठे थे मगर मॉल-ग़नीमत के लालची सब कुछ समझते हुए भी खामोश रहते. अल्लाह को मानो चाहे न मानो, मुहम्मद को मिलना चाहिए माल.
मुहम्मद ने अल्लाह की वहियाँ उतारते हुए और मुहाजिरों की हक़ अदाई का सहारा लेते हुए, लूटे हुए तमाम मॉल को अपने हक़ में कर लिया. 
इतिहास कार कहते हैं कि उन्हों ने इस लड़ाई में मिले मॉल को अपने घरो के लिए रख लिया था और अपनी नौ बीवियों के नाम बनी नुज़ैर की तमाम जायदाद वक्फ़ कर दिया था.
 हरामी ओलिमा लिखते हैं कि
 ''सल्लल्हो अलैहे वासलं ने जब रेहलत की तो उनके जेब में कुल छ दरहम मिले. वहीँ दूसरी तरफ़ कहते हैं कि रसूल की बीवियाँ धन दौलत की आमद से ऐसी बेनयाज़ होतीं कि पलरों में अशर्फियाँ आतीं मगर उनको कोई ख़बर न होती कि वह सब गरीबों में तकसीम हो जातीं."
ख़ुद साख़्ता  पैग़ामबर मुहम्मद के ज़माने में इनकी क़ुरआनी बरकतों से मुतास्सिर होकर जो ईमान लाए वह अक़ली मैदान में निरा गधे थे, 
इन में जो शामिल नहीं, वह सियासत दान थे, चापलूस थे, मसलेहत पसंद गुडे या फिर गदागर थे.
 बाद में तो तलवार के ज़ोर से सारा अरब इस्लाम का बे ईमान, 
ईमान वाला बन गया था. 
इस से इनका फ़ायदा भी हुवा मगर सिर्फ़ माली फ़ायदा. 
माले-ग़नीमत ने अरब को मालदार बना दिया. 
उनकी ये ख़ुश हाली बहुत दिनों तक क़ायम न रही, 
हराम की कमाई हराम में गँवाई. 
मगर हाँ तेल की दौलत ने इन्हें गधा से घोडा ज़रूर बना दिया है. 
अफ़सोस ग़ैर अरब मुसलमानों पर है कि जो जेहादी असर के तहत या किसी और वजेह से क़ुरआनी अल्लाह और उसके रसूल पे ईमान लाए, 
वह गधे बाक़ी बचे न घोड़े बन पाए, सिर्फ़ खच्चर बन कर रह गए हैं 
जो ग़ैर फितरी और ग़ैर इंसानी निज़ामे मुस्तफ़ा को ढो रहे हैं. 
तालीमी दुन्या में इनकी नस्ल अफ़ज़ाई कभी भी नहीं हो सकती.
 ***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 21 January 2019

सूरह मुजादेला- 58 - سورتہ المجادلہ (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह मुजादेला- 58 - سورتہ المجادلہ
(मुकम्मल)

मदीना में मक्का के कुछ नव मुस्लिम, अपने क़बीलाई ख़ू में मुक़ामी लोगों के साथ साथ रह रहे हैं. रसूल के लिए दोनों को एक साथ संभालना ज़रा मुस्श्किल हो रहा है. 
क़बीलाई पंचायतें होती रहती हैं. 
मुहम्मद की छुपी तौर पर मुख़ालिफ़त और बग़ावत होती रहती है, 
मुख़बिर मुहम्मद को हालात से आगाह किए रहते हैं. 
उनकी ख़बरें जो मुहम्मद के लिए वह्यी के काम आती हैं,
लोग मुहम्मद के इस चाल को समझने लगे है, जिसका अंदाज़ा मुहम्मद को भी हो चुका है, मगर उनकी दबीज़ खाल पर ज़्यादा असर नहीं होता है, फिर भी शीराज़ा बिखरने का डर तो लगा ही रहता है.
वह मुनाफ़िकों को तम्बीह करते रहते हैं मगर एहतियात के साथ.
लीजिए क़ुरआनी नाटक पेश है- - -  

"बेशक अल्लाह ने उस औरत की बात सुन ली जो अपने शौहर के मुआमले में झगड़ती थी और अल्लाह तअला से शिकायत करती थी और अल्लाह तअला तुम दोनों की गुफ़्तुगू सुन रहा था, अल्लाह सब कुछ सुनने वाला है." (1)
किसी गाँव के मियाँ बीवी का झगड़ा इतना तूल, पकड़ गया था कि सारे गावँ में इसकी चर्चा थी और मुहम्मद तक भी ये बात पहुँची, फिर मक्र करते हुए वह कहते हैं ,
"बेशक अल्लाह ने उस औरत की बात सुन ली " 
मोहम्मदी पैग़मबरी बग़ैर झूट बोले एक क़दम भी नहीं चल सकती.

"तुम में से जो लोग अपनी बीवियों से इज़हार करते हैं और कह देते हैं तू मेरी माँ जैसी है और वह उनकी माँ नहीं हो गई. इनकी माँ तो वही है जिसने इनको जना. वह लोग बिला शुबहा एक नामाक़ूल और झूट बात करते हैं."  (2-3)
दौर मुअत्दिल में जिसे इस्लामी आलिम 'दौरे-जेहालत' कहा करते हैं, 
ज़ेहार करना, तलाक की तरह था. जिसके लिए कोई शौहर अपनी बीवी से कहे "तेरी पीठ मेरी माँ की तरह हुई या बहिन की तरह हुई" 
तो तलाक़ हो जाया करता था, आज भी लोग तैश में आ कर कह देते हैं तुम्हें हाथ लगाएँ तो अपनी - - -
कहते हैं कि  क़ुरआन अल्लाह का कलाम है मगर फटीचर अल्लाह को अल्फाज़ नहीं सूझते कि उसके कलाम में सलीक़ा आए. हम बिस्तर होना, मिलन होना जैसे अलफ़ाज़ के लिए इज़हार करना कह रहे है. 
इसी  तरह पिछली सूरह में कहते हैं कि
"न तुम औरत के रहम में मनी डालते हो"
कहीं पर "दर्याए शीरीं और दर्याए शोर का मिलन ख़ान दान बढ़ने के लिए"
मुबाश्रत जैसे  अल्फाज़ भी उम्मी को मयस्सर नहीं. 
किसी परिवार में ये मियाँ बीवी का झगड़ा जग जाहिर था जिसकी ख़बर क़ुरआनी अल्लाह को कोई दूसरा अल्लाह देता है .दोनों अल्लाहों के एजेट मुहम्मद को इस माजरे का  इल्म होता है ,वह तलाक और हलाला का हल ढूँढ़ते है. 2-9 

''और जो लोग अपनी बीवियों से "ज़ेहार" (तलाक़) करते हैं, फिर अपनी कही हुई बात की तलाफ़ी करना चाहते हैं तो इस के ज़िम्मे एक ग़ुलाम या लौंडी को आज़ाद कराना है. या दो महीने रोज़ा या साथ मिसकीनों को खाना, क़ब्ल इसके कि दोनों जब इख़्तेलात करें, इस से तुमको नसीहत की जाती है."
सूरह मुजादेला 58 आयत (1-4) 
एक पैग़ामबर पहले इस बात का जवाब दे कि उसने लौंडी और ग़ुलाम का सिलसिला क्यूं क़ायम रहने दिया. 
खैर वह पैग़ामबर ही कहाँ थे ?
ज़ैद बिन हारसा जैसे मासूम को औलाद बना कर अंजाम तक पहुँचाया था 
कि मुँह बोली औलाद के बीवी के साथ उनकी ज़िना कारी जायज़ है, 
ऐसा इंसान समाज के लिए शरह क्या बना सकता है ?

"कोई सरगोशी तीन की ऐसी नहीं होती जिसमें चौथा अल्लाह न हो, न पाँच की होती है जिसमें छटां अल्लाह न हो. और न इससे कम की होती है, न इससे ज़्यादः की  - - -" 
सूरह मुजादेला 58 आयत (7)

मुहम्मद मुसलमान हुए बागियों पर पाबन्दियाँ लगा रहे हैं. 
आयतों में अपनी हिमाक़तें बयान करते हैं. उनके खिलाफ़ जो सर गोशी करते हैं, उनको अल्लाह का खौ़फ़ नाज़िल कराते हैं.
ग़ौर  तलब है कि अल्लाह दो लोगों की सरगोशी नहीं सुन सकता, 
तीन होंगे तो वह, शैतान वन कर उनकी बातें सुन लेगा? 
अगर पाँच लोग आपस में काना फूसी करेंगे तो भी उनमें उसके कान गड़ जाएँगे मगर "इससे कम की होती है, न इससे ज़्यादः की" 
तो उसे कोई एतराज़ नहीं. 
मुहम्मद ने दो गिनती ही क्यूँ चुनी हैं? क्या ये बात कोई शिर्क नहीं है? 
जिसके ख़िलाफ़ ज़हर अफ़्शाई किया करते हैं.

"क्या आपने उन लोगों पर नज़र नहीं फ़रमाई जिनको सरगोशी  से मना कर दिया गया था, फिर वह वही काम करते हैं और गुनाह और ज़्यादती और रसूल की नाफ़रमानी की सरगोशी करते हैं"
सूरह मुजादेला 58 आयत (7)

इन आयातों से आप समझ सकते हैं कि उस वक़्त के लोगों का रवय्या किया हुवा करता था, ऐसी आयतों पर जो मुहम्मद से बेज़ार हुवा करते थे.
मुसलमानों!
आप इनको सुन कर क्यूँ ख़ामोश हैं? 
आपको शर्म क्यूँ नहीं आती? या बुज़दिली की चादर ओढ़े हुवे हैं?.

"ऐ ईमान वालो अगर तुम रसूल से सरगोशी करो तो, इससे पहले कुछ ख़ैरात कर दिया करो, अगर तुम इसके क़ाबिल नहीं हो तो अल्लाह ग़फ़ूरुर रहीम है. जिनको सरगोशी से मना कर दिया गया था,फिर वह वही कम करते हैं और गुनाह और ज्यादती और रसूल की ना फ़रमानी की."
"क्या आप ने ऐसे लोगों पर नज़र नहीं फ़रमाई जो ऐसे लोगों से दोस्ती रखते हैं जिन पर अल्लाह ने गज़ब किया है. ये लोग न पूरे तुम में हैं और न इन्हीं में हैं और झूट बात पर क़समें खा जाते हैं. उन्हों ने क़समों को सिपर बना रक्खा  है, फिर अल्लाह की राह से रोकते रहते हैं. ये बड़े झूठे लोग हैं. इन पर शैतान ने तसल्लुत कर लिया है. ख़ूब समझ लो शैतान का गिरोह ज़रूर बर्बाद होने वाला है."
" ये लोग अल्लाह और उसके रसूल की मुख़ालिफ़त करते हैं, ये सख़्त ज़लील लोगों में हैं. अल्लाह ने ये बात लिख दी है कि मैं और मेरे पैग़ामबर ग़ालिब रहेंगे."
"आप इनको न देखेंगे कि ये ऐसे शख़्सों से दोस्ती रखते हैं जो अल्लाह और उसके रसूल के बार ख़िलाफ़ हैं, गो ये उनके बाप या बेटे या भाई या कुहना ही क्यूं न हो. उन लोगों के दिलों में अल्लाह ने ईमान सब्त कर दिया है.- - - अल्लाह तअला उन से राज़ी होगा न वह अल्लाह से राज़ी होंगे. ये लोग अल्लाह का गिरोह हैं, ख़ूब सुन लो कि अल्लाह का गिरोह ही फ़लाह पाने वाला है."
सूरह मुजादेला 58 आयत (12-22)

सूरह से मालूम होता है कि हालात ए पैग़मबरी बहुत पेचीदा चल रहे है, 
रसूल की ये लअन तअन कुफ़्फ़ार ओ मुशरिकीन पर ही नहीं, 
बल्कि महफ़िल में इनके बीच बैठे सभी मुसलमानों पर है. 
वह मुनाफ़िक़ हुए जा रहे हैं और मुर्तिद होने की दर पर हैं. 
वह रसूल की सख़तियाँ और मक्र बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. 
मुहम्मद को ये बात गवारा नहीं कि ईमान लाने के बाद लोग अपने भाई, बाप, रिश्तेदार या दोस्त ओ अहबाब से मिलें जो कि अभी तक उन पर ईमान नहीं लाए.
झूटी क़समें, गो कि उनका अल्लाह क़ुरआन भरमार क़समें खाता है, 
दूसरी तरफ़ बन्दों को क़सम ख़ाने पर तअने देता है. 
मुहम्मदी अल्लाह की पोल किस आसानी से क़ुरआन में खुलती है
मगर नादान मुसलमानों की आँखें किसी सूरत से नहीं खुलतीं. 
अल्लाह बन्दों के ख़िलाफ़ अपना गिरोह बनाता है और अपनी कामयाबी पर यक़ीन रखता है. 
ऐसा कमज़ोर इंसानों जैसा अल्लाह.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 19 January 2019

खेद है कि यह वेद है (9)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (9)

हम महान इंद्र के लिए शोभन स्तुत्यों का प्रयोग करते हैं. 
क्योकि परिचर्या करने वाले यजमान के घर में इंद्र की स्तुत्यां की जाती हैं.
जिस प्रकार चोर सोए हुए लोगों की संपत्ति छीन लेते है, 
उसी प्रकार इंद्र असुरों के धन पर तुरंत अधिकार कर लेते हैं. 
धन देने वालों के विषय में अनुचित स्तुति नहीं की जाती.    
ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 5- - -  (1)
और यहाँ ग्रन्थ इंद्र को चोरों का बाप डाकू साबित करता है, 
वह भी डरपोक. 
सोते हुवे चोर को लूटा. चोर जगता हुआ होता तो महाराज की ख़ैर न होती.
यह असुर भारत के मूल निवासी थे जो आज दलित और दमित के नाम से पहचाने जाते हैं. मनुवाद आज भी इनका दोहन कर रहा है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली)
*** 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 18 January 2019

सूरह हदीद -57 - سورتہ الحدید (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह हदीद -57 - سورتہ الحدید
(मुकम्मल)

सूरह हदीद के बारे में मेरा इन्केशाफ़ और ख़ुलासा ये है 
कि इसका रचैता मुहम्मदी अल्लाह नहीं है, बल्कि इसका बानी कोई यहूदी है. इस सूरह में मुहम्मद की बड़बड़ नहीं है. ये सूरह तौरेत के ख़ालिस नज़रिए पर आधारित है क्यूँकि क़यामत ऐन यहूदियत के मुताबिक़ है. 
मज़मून कहीं पर बहका नहीं है, बातों को पूरा करते हुए आगे बढ़ता है. 
इसमें तर्जुमान को कम से कम बैसाखी लगानी पड़ी है 
और सूरह में बहुत कम ब्रेकेट नज़र आते है. 
तूल कलामी और अल्लाह की झक तो कहीं है ही नहीं. 
तहरीर ज़बान और क़वायद के ज़ाबते में है 
जो ख़ुद बयान करती है कि ये उम्मी मुहम्मद की बकवास नहीं है. 
इसके पहले भी इसी नौअय्यत की एक सूरह  क़सस 28 गुज़र चुकी है.
इसका मतलब ये भी नहीं है कि इन बातों में कोई सच्चाई हो.  

"अल्लाह की पाकी बयान करते हैं, सब जो कुछ कि आसमानों और ज़मीन में है और वह ज़बरदस्त हिकमत वाला है. 
उसी की सल्तनत है आसमानों ज़मीन की. वही हयात देता है 
वही मौत भी देता है. और वही हर चीज़ पर क़ादिर है. 
वही पहले है, वही पीछे, वही ज़ाहिर है, वही मुख़फ़ी. 
और वह हर चीज़ को ख़ूब जानने वाला है. 
वह ऐसा है कि उसने आसमानों और ज़मीन को छ दिनों में पैदा किया, 
फिर तख़्त पर क़ायम हुवा. 
वह सब कुछ जानता है जो चीजें ज़मीन के अन्दर दाख़िल होती हैं 
और जो चीज़ इस में से निकलती हैं. 
और जो चीजें आसमान से उतरती हैं. 
और जो चीजें इसमें चढ़ती है. 
और तुम्हारे साथ साथ रहता है, 
ख़्वाह तुम कहीं भी हो और तुम्हारे सब आमाल भी देखता है."
सूरह हदीद  57 आयत (1-4)

इन आयातों में एक बात भी क़ाबिले एतराज़ नहीं. 
मज़हबी किताबों में जैसे मज़ामीन हुवा करते हैं, वैसे ही हैं. 
न कोई हुरूफ़ ए मुक़त्तेआत न किसी नामाक़ूल क़िस्म की क़समें. 
न तौरेत और बाइबिल की दुशमनी में आयतें है.

मुनाफ़िक़ लफ्ज़  का मतलब है दोग़ला जो बज़ाहिर कुछ हो और बबातिन कुछ. जैसे आज के वक़्त में मुनाफ़िक़ हर पार्टी और हर जमाअत में कसरत से पाए जाते हैं. ये दग़ाबाज़ दोस्त होते है जो मतलब गांठा करते है.

"कोई शख़्स है कि जो अल्लाह तअला को क़र्ज़ के तौर पर दे, 
फिर अल्लाह इस शख़्स  के लिए बढ़ाता चला जाए 
और इस के लिए उज्र पसन्दीदा है. 
जिस रोज़ मुनाफ़िक़ मर्द और मुनाफ़िक़ औरतें मुसलमानों से कहेंगे 
अरे मुस्लिम भाइयो! हमें भी पार कराओ, हम तो पीछे रहे जा रहे हैं, 
आख़िर दुन्या में हम तुम मिल जुल कर रहा करते थे, 
दुन्या में हम तुम्हारे साथ न थे? 
जवाब होगा हाँ थे तो, तुमने अपने आप को गुमराही में फँसा रखा था. 
तुम मुन्तज़िर रहा करते थे, तुम शक रखते थे 
और तुम को तुम्हारी बेजा तमन्नाओं ने धोके में डाल रख्खा था 
तुम सब का ठिकाना दोज़ख़ है. 
पीछे रह गए हो तो पीछे से रौशनी भी तलाश करो. 
फिर इन फ़रीकैन के दरमियान में एक दीवार क़ायम कर दी जाएगी. 
इस में एक दरवाज़ा होगा, 
जिसकी अन्दुरूनी जानिब से रहमत होगी  
और बैरूनी जानिब से अज़ाब."
सूरह हदीद  57 आयत (11-13)

देखिए कि अल्लाह बन्दों से क्या तलब कर रहा है, 
कोई इशारा है? नमाज़, रोज़ा, ज़कात और जेहाद कुछ भी नहीं, 
ग़ालिबन अपने बन्दों से नेक काम तलब कर रहा है. 
उसके पास नेकियाँ जमा करो, वह मय सूद ब्याज के देगा. 
इस तरह के झूट कडुवी सच्चाई से बेहतर है.
मेरा मुशाहिदा है कि इसी दुन्या में इंसान की नेकियों का बदला मिल जाता है, मगर कोई मज़हब इस के लिए कहता है तो इंसानों के हक़ में है 
कि इंसान नेकियाँ करे.
"पीछे रह गए हो तो पीछे से रौशनी भी तलाश करो"
क्या बलाग़त है इस जुमले में. इसे कहते है वह्यी औए ईश वानी. 
वक़्त के साथ न बदलने वालों के लिए ये उस मुफ़क्किर की सोलह आने ठीक राय है, जो आज मुसलमानों के लिए मशअले राह है. 
उनको बदलना ही होगा और इतना बदलना होगा कि 
क़ुरआन  की खुल कर मुख़ालिफ़त करे.
इस आयत में कुफ़्फ़ारों पर लअन तअन नहीं की गई है और न ईसाइयों पर दिल शिकन जुमले, बल्कि दोहरा सवाब, पहला ईसाइयत का दूसरा, इस्लाम का. 
जन्नत और दोज़ख़ में भी एतदाल है 
कि दोनों फ़रीक आपस में बज़रिए 
" इस में एक दरवाज़ा होगा" 
तअल्लुक़ से एक दूसरे की हवा पहचानेंगे.  
"ये दोज़ख़ी जन्नातियों को पुकारेंगे, क्या हम तुम्हारे साथ न थे? 
जन्नती कहेंगे, हाँ थे तो सहीह लेकिन तुम को गुमराहियों ने फँसा रख्खा था 
कि तुम पर अल्लाह का हुक्म आ पहुँचा और तुम को धोका देने वाले अल्लाह के साथ धोके में डाल रख्खा था, गरज़ आज तुम से न कोई मावज़ा लिया जायगा और न काफ़िरों से, तुम सब का ठिकाना दोज़ख़ है. वही तुम्हारा रफ़ीक है, और वह वाक़ई बुरा ठिकाना है."

"कोई मुसीबत न दुन्या में आती है और न तुम्हारी जानों में 
मगर वह एक ख़ास किताब में लिखी है. 
क़ब्ल इसके कि हम उन जानों को पैदा करें, ये अल्लाह के नज़दीक आसान काम है, ताकि जो चीज़ तुम से जाती रहे, तुम इस पर रन्ज न करो और ताकि जो चीज़ तुमको अता फ़रमाई है, इस पर तुम इतराओ नहीं. अल्लाह तअला किसी इतराने वाले शेखी बाज़ को पसन्द नहीं करता."
सूरह हदीद  57 आयत (14-23)

क़ाबिले क़द्र बात मुफ़क्किर कहता है 
"जो चीज़ तुम से जाती रहे, तुम इस पर रन्ज न करो और 
ताकि जो चीज़ तुमको अता फ़रमाई है, 
इस पर तुम इतराओ नहीं." 
ये ज़िन्दगी का सूफ़ियाना फ़लसफ़ा है

"वक़्त है अहले ईमान अपना दिल बदलें.  
ऐसा न हो  कि अहले किताब की तरह माहौल ज़दा 
और सख़्त दिल होकर काफ़िर जैसे हो जाएं. 
अल्लाह खुश्क ज़मीन को दोबारा जानदार बना देता है 
ये एक नज़ीर है ताकि तुम समझो. 
सदक़ा देने वाले मर्द और औरत को अल्लाह पसंद करता है. 
जो लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखते हैं, 
ऐसे लोग अपने रब की नज़र में सिद्दीक़ और शहीद हैं. 
दिखावा लाह्व लआब है. औलाद ओ अमवाल पर फ़ख़्र बेजा है. 
मग़फ़िरत और जन्नत की तरफ़ दौड़ो जिसकी वोसअत ज़मीन ओ आसमान के बराबर है, उन लोगों के लिए तैयार की गई है जो अल्लाह और इसके रसूल पर ईमान रखते हैं.अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला है."
सूरह हदीद  57 आयत (16-21)

क्या ये दानाई और बीनाई उम्मी रसूल के बस की है.
इसी लिए इस सूरह को जदीद कहना चाहिए.
मगर ऐ मुसलमानों क्या अल्लाह भी क़दीम और जदीद हवा करता है? 
अल्लाह को तुम आयाते-क़ुरआनी में नहीं पाओगे. 
अल्लाह तो सब को मुफ़्त मयस्सर है, हर वक़्त तुम्हारे सामने रहता है. 
सच्चा ज़मीर ही अल्लाह तक पहुंचाता है.
मुझ तक अल्लाह यार है मेरा, मेरे संग संग रहता है,
तुम तक अल्लाह एक पहेली, बूझे और बुझाए हो.
  .
"जो ऐसे हैं ख़ुद भी बुख़्ल करते हैं और दूसरों को भी बुख़्ल की तअलीम करते हैं और जो मुँह मोड़ेगा तो अल्लाह भी बे नयाज़ है और लायक़े-हम्द है. हम ने इस्लाह ए आख़िरत के लिए पैग़ामबर को खुले खुले पैग़ाम देकर भेजा है. हमने उन के साथ किताब को और इन्साफ करने वाले को नाज़िल फ़रमाया ताकि लोग एतदाल पर क़ायम रहें,
हम ने नूह और इब्राहीम को पैग़ामबर बना कर भेजा और हम ने उनकी औलादों में पैग़मबरीऔर किताब जारी रख्खी सो उन लोगों में बअजे तो हिदायत याफ़ता हुए और बहुत से इनमें नाफ़रमान थे.फिर और रसूलों को एक के बाद दीगरे को भेजते रहे.
और इसके बाद ईसा बिन मरियम को भेजा और हम ने इनको इंजील दी और जिन लोगों ने इनकी पैरवी की, हमने उनके दिलों में शिफ़क़त और तरह्हुम पैदा की. 
उन्हों ने रह्बानियत को ख़ुद ईजाद कर लिया. 
हमने इसको इन पर वाजिब न किया था.
ए ईसा पर ईमान रखने वालो! तुम अल्लाह से डरो और इन पर ईमान लाओ. अल्लाह तअला तुमको अपनी रहमत से दो हिस्से देगा और तुमको ऐसा नूर इनायत करेगा कि यूं इसको लिए हुए चलते फिरते होगे और तुमको बख़्श देगा. अल्लाह ग़फ़ूरुर रहीम है.
सूरह हदीद  57 आयत (24-28)

मैंने  मज़कूरा बाला सूरह को सिर्फ़ इस नज़रिए से देखा, 
समझा और पेश किया है कि क़ुरआन सिर्फ़ उम्मी मुहम्मद की ही नहीं, 
बल्कि इसमें दूसरों की मिलावट भी है,  
इसके लिए मैं उस सलीक़े मंद और दूर अंदेश दानिश वर का शुक्र गुज़ार हूँ जिसने क़ुरआन की हक़ीक़त से हमें रूशिनास कराया. 
अच्छा इंसान रहा होगा जो हालात का शिकार होकर मुसलमान हो गया होगा, मगर उसने मुनाफ़िक़त को ओढ़ कर इंसानियत का हक़ अदा किया  
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 17 January 2019

खेद है कि यह वेद है (8)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (8)

दूध भरे स्तनों वाली रंभाती हुई गाय के समान बिजली गरजती है. 
गाय जिस प्रकार बछड़े को चाटती है, 
उसी प्रकार बिजली मरूद गणों की सेवा करती है. 
इसी के फल स्वरूप मरूद गणों ने वर्षा की है.  
ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 3---------- (8)  

पोंगा पंडित की कल्पना  देखिए, 
रंभाती गाय बिजली की तरह गरजती है ?
कभी इन दोनों को देखा और सुना ?
तो मरूद गण वर्षा करते हैं. 
तब तो कुत्तों  के भौंकने से मरूद गणों की हवा खिसकती होगी.
हे अश्वनी कुमारो ! 
सागर तट पर स्थित तुमहारी नौका, 
आकाश से भी विशाल है. 
धरती पर गमन करने के लिए तुम्हारे पास रथ हैं, 
तुम्हारे यज्ञ कर्म में सोमरस भी  सम्लित रहता है.
ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 46  ......(8)  

चुल्लू भर सागर में अनंत आकाश से बड़ी नौका ? 
मूरखों की अवलादो! इक्कीसवीं सदी को ठग रहे हो.
कल्पित देवताओं के कल्पित कारनामों को, 
पुरोहित देवताओं को याद दिला दिला कर अपने बेवक़ूफ़ यजमान को प्रभावित करता है. जैसे कि वह उनके  हर कामों का चश्म दीद  गवाह हो. 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 16 January 2019

सूरह वाक़िया-56 - سورتہ الواقیہ क़िस्त (2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****


सूरह वाक़िया-56 - سورتہ الواقیہ 
 क़िस्त  (2)

आज क़ुरआनी बातों से क्या एक दस साल के बच्चे को भी बहलाया जा सकता है? मगर मुसलमानों का सानेहा है कि एक जवान से लेकर बूढ़े तक इसकी आयतों पर ईमान रखते हैं. वह झूट को झूट और सच को सच मान कर अपना ईमान कमज़ोर नहीं करना चाहते, वह कभी कभी माहौल और समाज को निभाने के लिए ज़ुबान नहीं खोलते. वह इन्हीं हालत में ज़िन्दगी बसर कर देना चाहते है. ये समझौत इनकी ख़ुद ग़रज़ी है.वह अपने नस्लों के साथ गुनाह कर रहे है, इतना भी नहीं समझ पाते.  
इनमें बस ज़रा सा सदाक़त की चिंगारी लगाने की ज़रुरत है. फिर झूट के बने इस फूस के महल में ऐसी आग लगेगी कि अल्लाह का जहन्नुम जल कर ख़ाक हो जाएगा.

"फिर जमा होने के बाद तुमको, ए गुमराहो ! झुटलाने वालो! 
दरख़्त ज़कूम से खाना होगा,
 फिर इससे पेट को भरना होगा,
फिर इस पर खौलता हुवा पानी,
पीना भी प्यासे होंटों का सा, 
(ऐसे जुमलों की इस्लाह ओलिमा करते हैं)
इन लोगों की क़यामत के रोज़ दावत होगी."
सूरह वाक़ेआ 56 आयत (51-56)

मुहम्मद अपने ईजाद किए हुए मज़हब को, ज़ेहने-इंसानी में अपने आला फ़ेल का एक नमूना बना कर पेश करने की बजाए, इंसान को अपने ज़ेहन के फितूर से डराते हैं वह भी निहायत भद्दे तरीक़े से.
( ज़कूम दोज़ख़ का एक ख़ारदार और बद ज़ायक़ा पेड़ मुहम्मदी अल्लाह ख़ाने को देगा मैदाने हश्र में.)

"अच्छा बताओ, जो औरतों के रहम में मनी पहुँचाते हो, (लाहौलवला क़ूवत )इनको तुम आदमी बनाते हो या हम.? (एक मज़हबी किताब में इससे ज़्यादः फूहड़ पन क्या हो सकता है. नमाज़ में इस बात को सोंच कर देखें)"
सूरह वाक़ेआ 56 आयत (58-59)

"अच्छा बताओ जो कुछ तुम बोते हो, उसे तुम उगाते  हो या हम? "
(जब बोया हुवा क़हत की वजेह से उगता ही नहीं तो अकाल पड़ जाता है, 
कौन ज़िम्मेदार है ? ए कठ मुल्लाह )
"अच्छा फिर तुम ये बताओ कि जिस पानी को तुम पीते हो ,
उसको बादल से तुम बरसाते हो या की हम?अगर हम चाहें तो इसे कडुवा कर डालें, तो फिर तुम शुक्र अदा क्यूं नहीं करते"
सूरह वाक़ेआ 56 आयत (68-69)

क्या इन बेहूदगियों में कोई जान है?
इसके जवाब में ऐसी ही बेहूदगी पेश करके मुहम्मद के भूत को शर्मसार किया जा सकता है.
"अच्छा फिर बताओ कि जिस आग को तुम सुलगते हो इसके दरख़्त को तुम ने पैदा किया या हम ने?"
सूरह वाक़ेआ 56 आयत (70-72)

मुहम्मदी अल्लाह बतला कि बन्दे उसकी लकड़ी से ख़ूब सूरत फर्नीचर बनाते हैं, क्या यह तेरे बस का है कि पेड़ में फर्नीचर फलें ?

"सो आप अज़ीम परवर दिगार के नाम की तस्बीह कीजिए."
सूरह वाक़ेआ 56 आयत (84)

सो परवर दिगार के बख़्शे हुए दिमाग का मुसबत इस्तेमाल करो.

"सो मैं क़सम खता हूँ सितारों की छिपने की,
और अगर तुम ग़ौर  करो तो ये एक बड़ी क़सम है की ते एक मुकर्रम क़ुरआन  है."
सूरह वाक़ेआ 56 आयत (75-76)

हम इस ग़ौर  करने पर अपना दिमाग नहीं खपाते, हम तो ये जानते हैं कि हमारे मुँह से निकली हुई हाँ और ना ही हमारी क़सम हैं. हमें किसी ज़ोरदार क़सम की कोई अहमियत नहीं है.

"सो क्या तुम  क़ुरआन को सरसरी बात समझते हो और तकज़ीब को अपनी गिज़ा? (मुहम्मदी अल्लाह! तेरी सरसरी में कोई बरतरी नहीं है, बल्कि झूट, बोग्ज़ और नफ़रत ख़ुद तेरी गिज़ा है,"
सूरह वाक़ेआ 56 आयत (81-82)

"और जो शख़्स दाहिने वालों में से होगा तो उससे कहा जाएगा तेरे लिए अमन अमान है कि तू दाहिने वालों में से है और जो शख़्स झुटलाने वालों, गुमराहों में होगा खौलते हुए पानी से इसकी दावत होगीऔर दोज़ख़ में दाख़िल होना होगा. बे शक ये तह्कीकी और यक़ीनी है."
सूरह वाक़ेआ 56 आयत (90-95)

ऐ इस्लामी! अल्लाह तू इंसानियत का सब से बड़ा और बद तरीन मुजरिम है, जितना इंसानी लहू तूने पिया है, उतना किसी दूसरी तहरीक ने नहीं. 
एक दिन इंसान की अदालत में तू पेश होगा फिर तेरा नाम लेवा कोई न होगा और सब तेरे नाम थूकेंगे.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान