Monday 30 July 2012

सूरह नूर 24-1st

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह नूर 24
(पहली किस्त)  
मुहम्मद की जाती ज़िन्दगी का एक बड़ा सनेहा (विडंबना) के रद्दे-अमल में सूरह नूरनाजिल हुई है. 
दौराने-सफ़र बूढ़े रसूल की नवखेज़ बीवी पर बद चलनी का इलज़ाम लग गया था, जब वह सफ़र में अपने काफिले से बिछड़ गई थीं. थोड़ी देर बाद ऊँट पर सवार, पराए मर्द के साथ आती दिखाई पड़ीं. वह ना-महरम (अपरिचित) ऊँट की नकेल थामे उसके आगे आगे पैदल चला आ रहा था. इस पर काफिले के कुछ शर-पसंद लोगों ने आयशा पर इलज़ाम तराशी कर दी. माहौल में चे-में गोइयाँ होने लगीं. इलज़ाम तराशों का पलड़ा भारी होता देख कर खुद अल्लाह के रसूल भी उन लोगों के साथ हो गए. 
आयशा इस सदमें को बर्दाश्त ना कर सकीं और शदीद बीमार पड़ गईं. 
एक महीने बाद मुहम्मद में जेहनी बदलाव आया और वह पुरसा हाली के लिए आयशा के पास पहुंचे. आयशा ने नफरत से उनकी तरफ से मुँह फेर लिया. मुहम्मद ने जिब्रीली पुडिया आयशा को थमाने की कोशिश की कि अल्लाह की वह्यी (ईश-वाणी) आ गई है कि तुम निर्दोष हो. आयशा ने कहा "मैं क्या हूँ ,ये मैं जानती हूँ और मेरा अल्लाह, मुझे किसी की शहादत की ज़रुरत नहीं है".
बाप अबू बकर के समझाने बुझाने पर एक बार फिर आयशा मान गई, जैसे छै साल की उम्र में बूढ़े के साथ निकाह के लिए मान गई थी और मुहम्मद को उसने मुआफ कर दिया.  

देखिए कि इस पूरी सूरह में मुहम्मद ने कैसे गिरगिट की तरह रंग बदला है. - - - 
"ये एक सूरह है जिसको हमने नाज़िल किया है और हमने इसको मुक़र्रर किया है और हमने इस सूरह में साफ़ साफ़ आयतें नाज़िल की हैं."
सूरह नूर २४-१८ वाँ पारा आयत (१)
मुहम्मद के साथ इस हाद्साती  वक़ेआ को गुज़रे एक माह हो चुके थे. इस बीच पूरे माहौल में उथल-पुथल मची हुई थी जिससे मुहम्मद खुद बहुत परेशान थे, एक महीने के बाद जिब्रीली वहियों का रेला आया और मुहम्मदी अल्लाह ने आयते-नूर नाज़िल किया जिसे पढ़ कर मुहम्मद की अक्ल और उनकी सोच पर तरस आती है और तरस आती है मुसलामानों की ज़ेहनी पस्ती पर की वह इन हेर-फेर की बातों को अल्लाह जल्ले शानाहू का फ़रमान मानते हैं. जिसे अल्लाह साफ़ साफ़ आयत कहता है, मुलहिज़ा हो कि वह कितनी गन्दी हैं.

" ज़िना कराने वाली औरतों और ज़िना करने वाले मर्द, सो इनमें से हर एक को सौ सौ दुर्रे मारो. तुम लोगों को इन दोनों पर अल्लाह तअला के मुआमले में ज़रा भी रहेम नहीं होना चाहिए, अगर अल्लाह पर और क़यामत पर ईमान रखते हो, सो दोनों के सज़ा के वक़्त मुसलामानों की एक जमाअत वहां हाज़िर रहना चाहिए."
सूरह नूर २४-१८ वाँ पारा आयत (२)
नाज़ुक सी छूई मूई पे काज़ी के ये सितम,
पहले ही संग सार के गैरत से मर गई।
मुसलमानों! 
हमारी बहनें और बेटियाँ कुदरत  का हसीन तरीन शाहकार हैं, उनमें teen age में कुदरत की ही बख्शी एक उमंग आती है, उनसे भूल चूक फितरी अलामत है, यही बात लड़कों पर भी सादिक है ज़ालिम मुहम्मदी अल्लाह उनके लिए ये हैवानी कानून नाज़िल करता है ? नज़रें उठाइए, ज़माना कहाँ से कहाँ पहुँच गया है. औरतों और मर्दों पर मूतअद्दित मुक़ाम आ जाया करते है,  मुख्तलिफ हालात पैदा हो जाते हैं, कि लग्ज़िशें हो जाया करती हैं. खुद इस आयत के नाज़िल करने वाले मुहम्मद इन हालात के शिकार हुए हैं, शिकार ही नहीं, शिकार किया भी है. उनका ज़मीर तो मुर्दा हो गया था, जब उनकी करनी का आइना उनके हम अस्र उनको दिखलाते थे तो बड़ी बेशर्मी से कह दिया करे थे कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ , मेरे सारे गुनाह मुआफ हैं. मुहम्मद एक कुरूर नर पिशाच का नाम है जिसकी करनी की सजा आप लोग भुगत रहे हैं.

"ज़ानी (दुराचारी) निकाह भी किसी के साथ नहीं करता, बजुज़ जानिया (दुराचारनी) या मुशरिका (मूर्ति-पूजक) के, और ज़ानिया के साथ भी और कोई निकाह नहीं करता बजुज़ ज़ानी या मुशरिक के. और ये मुसलमान पर हराम किया गया है. और जो लोग तोहमत लगाएँ पाक दामन औरतों पर और फिर चार गवाह ना ला सकें, उनको अस्सी दुर्रे रसीद किए जाएँ.और आगे इनकी कोई गवाही भी कुबूल की जाए." 
सूरह नूर २४-१८ वाँ पारा आयत (३-४)
पीर पैगमबर और महान आत्माएँ बड़ी से बड़ी गलतियों को माफ़ कर दिया करते हैं, साजिशी रसूल इंसानों की छोटी छोटी खताओं पर कैसे कैसे ज़ुल्म ढाने के पैगाम पेश कर रहे हैं? अभी T .V . पर एक खातून को ज़मीन में दफ़्न करते हुए मुहम्मदी अल्लाह के जल्लाद उस पर आखरी दम में संगसारी करते हुए उसकी शक्ल बिगाड़ रहे थे, देख कर कलेजा मुँह में आ गया. उफ़! मुहम्मद के दीवाने और दीवानगी की हद.
मदीने में एक था"अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल" यह अंसारी नौजवान मदीने के निगहबानी के लिए उस वक़्त चुनाव लड़ने की तय्यारी ही कर रहा था जब मुहम्मद हिजरत करके मक्के से मदीना आए . मुआहम्मद की आमद से इस के रंग में भंग पड़ गया था. पहले भी इससे मुहम्मद की नोक-झोक हो चुकी थी. अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल ने कबीलाई माहौल में इस्लाम तो क़ुबूल कर लिया था मगर मुहम्मद को ज़क देने के कोई भी मौक़ा ना चूकता.
मुहम्मद का तरीका था कि जंगी लूट-पाट और मार-काट (जेहाद) पर जब जाते तो अपनी बीवियों में से किसी एक का इंतेखाब करके साथ ले जाते. इस जेहाद में नंबर था आयशा का. लूट  मार-काट करके किसी जेहाद से मुहम्मद वापस मदीने आ रहे थे कि काफला पड़ाव के लिए रुका. आयशा ऊँट के कुजावा (वह हौद जो पर्दा नशीन औरतों के लिए होता है) से बहार निकलीं कि पेशाब पाखाने से फारिग हो लें. फारिग होकर जब वह वापस आईं तो देखा उनका हार उनके गले में ना था, तलाश के लिए वापस उस जगह तक गईं और तलाश करती रहीं. इसमें उनको इतना वक़्त लगा कि जंगी काफला आगे के लिए कूच कर चुका था. आयशा कहती हैं कि 
"यह देख कर कि लश्कर नदारद था, मुझे चक्कर आ गया और मैं बैठ गई कि अब क्या होगा मगर उम्मीद थी कि कोई वापस इनकी तलाश में आएगा  उनको नींद आ गई बैठे बैठ सो गईं कि लश्कर के पीछे का निगराँ "सफवान इब्ने मुअत्तल'' आया जो उनको देख कर पहचान गया. उसने आयशा को ऊँट पर बिठाया और खुद ऊँट की नकेल पकड़ कर पैदल आगे आगे चला."
काफिले ने आयशा को ऊँट पर सवार एक ना महरम के साथ आते हुए देखा तो हैरत में पड़ गया, उसमें चे-में गोइयाँ होने लगीं. तेज़ तर्रार "अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल" ने आयशा पर साजिश के साथ बद फेली का इलज़ाम लगा दिया और इस दलील के साथ बोहतान तराशी की कि लश्कर के ज़्यादा लोग उसकी बात को मान गए, यहाँ तक कि अल्लाह के नबी बने मुहम्मद भी भीड़ की आवाज़ में आवाज़ मिलाने लगे.
इस वक़ेआ के बाद "सूरह नूर'' उतरी और अपने मुआमले को अपनी उम्मत के लिए कोड़े और संग सारी करके औरत को जिंदा दफन का कानून बना डाला.  

"अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल" ने हमेशा मुहम्मद के साथ बुग्ज़ रखा, उसके जीते जी मुहम्मद उसका कुछ ना बिगाड़ सके, उसके मरने के बाद उससे बदला यूं लिया - - -जाबिर कहते हैं कि "अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल" के मरने के बाद मुहम्मद उसकी कब्र पर गए, लाश को बाहर निकाला और उसके मुँह में थूका और उसको अपना उतरन पहनाया.
(बुखारी ६१५)   


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 21 July 2012

सूरह मोमिनून २३ -4rth

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



लौकिक और फितरी सत्य ही, बिना किसी संकोच के सत्य है। अलौकिक या गैर फितरी सत्य पूरा का पूरा असत्य है। धर्म और मज़हब की आस्था और अक़ीदा कल्पित मन गढ़ंथ का रूप मात्र हैं। इस रूप पर अगर कोई व्यक्तिगत रूप में विश्वास करे तो करे, इसमें उसका नफा और नुकसान है, मगर इसे प्रसार और प्रचार बना कर आर्थिक साधन बनाए तो ये जुर्म के दायरे में आता है. व्यक्ति की व्यक्तिगत आस्था व्यक्ति तक सीमित रहे तो उसे इसकी आज़ादी है, मगर दूसरों में प्रवाहित किया जाय तो आस्थावान दुष्ट और साजिशी है. ऐसे धूर्तों को जेल की सलाखों के अन्दर होना चाहिए. देश का ऐसा संविधान बने कि सिने-बलूगत और प्रौढ़ता तक बच्चों को कोई धार्मिक या दृष्टि कौणिक यहाँ तक कि विषय विशेष की तालीम देने पर प्रतिबंध हो ताकि व्यस्क होने पर वह अपना हक सुरक्षित पाए. हमारा समाज ठीक इसके उल्टा है. बच्चों के बालिग होने तक उसको हिन्दू और मुसलमान बना देता है. यह तरबियत और संस्कार उसके हक में ज़ह्र है. मुसलमानों को इसकी ताकीद है कि बच्चा अगर कलिमा गो ना हुवा तो माँ बाप को जहन्नम में दाखिल कर दिया जायगा. इस कौम की पामाली इस नाकिस अकीदे के तहत भी है।

आइए देखें कि क़ुरआनी अल्लाह क्या कहता है - - -
'' और तुम सब उसी के पास ले जाओगे जो जलाता है और मारता है और उसी के अख्तियार में है दिन का घटना बढ़ना. सो क्या तुम नहीं समझते?''
सूरह मओमेनून २३- पारा-१८ -आयत (८०)
यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि इस आयत का खालिक नशेडी रहा होगा. अपने रब को ऐसे रुसवा करना मुहम्मद को ही शोभा देता है. क्यूं कि वह मुतलक जाहिल थे और तलवार की नोक से उनकी बातें कुरआन बन गई हैं. देखिए कि ये नशीली आयतें कब तक कौम को अपने बस में किए रहती. खालिक कभी अपने मखलूक को जलाता है न मरता है.

'' आप कह दीजिए ये ज़मीन और जो इसपे रहते है, ये किसके हैं, अगर तुम को कुछ खबर है , वह ज़रूर कहेंगे कि अल्लाह के , उनसे कह दीजए कि फिर क्यूँ नहीं गौर करते. और आप ये भी कहिए कि वह सात आसमानों का मालिक और आला अर्श का मालिक कौन है, वह ज़रूर जवाब देंगे कि अल्लाह का सब है आप कहिए कि फिर डरते क्यूं नहीं."
सूरह मओमेनून २३- पारा-१८ -आयत (८५-८७)
मुहम्मद की बातों पर गौर करो जो कि अल्लाह की ज़ात से वाबिस्ता हैं और जो आज तक राज़ बना हुवा हैं. जहाँ तक इल्म इंसानी पहुंची है, ये खबर देती है कि आसमान तो एक ही है, सात आसमान अकली गद्दा है. ज़मीन जिसको बार बार कुरआन एक बतलाता है वह लाखों है, हमारी इस ज़मीन से हजारों गुना बड़ी. जितने तारे आसमान पर दिखाई देते हैं सब ज़मीन ही हैं. मुहम्मद कह रहे हैं कि अगर अल्लाह को मान रहे हो तो उसके रसूल को क्यूँ नहीं? खुद को ज़बरदस्ती अल्लाह का रसूल मनवाने वाले ये थोड़ी सी अक्ल की बात भी तो करते. उनको मानने का मतलब हुवा कि उनकी उम्मियत को माना जाय जोकि नस्ल ए इंसानी के साथ जब्र करने के बराबर होगा।
वह काफ़िर खुद इन आयतों में गवाह हैं कि वह सभी हाँ भर रहे हैं कि सब का मालिक अल्लाह है, हुज्जत है उनके मशविरे से उससे डरो, वह तो ऐसा नहीं कहता, आप कहते हैं कि अगर उससे डरते हो तो मुझ से डरो।

''सो जिस शख्स का पल्ला भारी, सो ऐसे लोग कामयाब होंगे और जिसका पल्ला हल्का होगा सो ये वह लोग होंगे जिन्हों ने अपना नुकसान कर लिया और हमेशा जहन्नम में रहेंगे. इनके चेहरों को आग झुलसाती होगी और इसमें इनके मुंह बिगड़े हुए होंगे. क्यूँ? क्या तुम को हमारी आयतें पढ़ कर सुनाई नहीं जाया करती थीं? और तुम इनको झुटलाया करते थे. वह कहेंगे ऐ हमारे रब ! हमारी बद बखती ने हमें घेर लिया. था और हम गुमराह लोग थे. ऐ हमारे रब हमको इसमें से निकाल लीजिए. फिर अगर दोबारा करें तो बे शक हम पूरे गुनाह गार होंगे . इरशाद होगा कि इस में रांदे हुए पड़े रहो और मुझ से बात न करो.''
सूरह मओमेनून २३- पारा-१८ -आयत (१०२-१०८)
साजिशी अल्लाह ही पल्लों को हल्का और भारी किए हुए है. अल्लाह की आयतों में कहीं कौड़ी भर भी दम है? कि जिसको झुटलाया न जाए. जिस मखलूक के मुंह इस दुन्या में ही तेरी जिहालत ने बिगड़ दिए हों, उनका क़यामत पर कौन देखने वाला होगा? वहां को तो तू खुद गरजी और नफ्सी नफ्सी के फ्रेम में जड़ता है. इस मुहम्मदी अल्लाह की जालसाजी से तो कोई हक़ ही मुसलामानों को बचा सकता है।
''इरशाद होगा कि तुम बरसों के शुमार से किस क़दर मुद्दत ज़मीन पर रहे होगे? दोजखी जवाब दें गे कि एक दिन या इससे भी कम रहे होंगे गिनने वालों से पूछ लीजिए इरशाद होगा तुम थोड़े ही मुद्दत रहे, क्या खूब होता कि तुम समझते होते. हाँ तो क्या तुमने ये ख़याल किया कि हमने तुम को यूं ही मोह्मिल पैदा कर दिया और ये कि तुम हमारे पास नहीं ले जाओगे? सो अल्लाह बहुत आली शान है और अर्श ए अज़ीम का मालिक है.
सूरह मओमेनून २३- पारा-१८ -आयत (१११-११६)
मुसलामानों आपका अल्लाह एक ज़ालिम बाप की तरह है जिसने औलादें पैदा कीं कि उन पर हुक्मरानी करेगा, मनमानी करेगा, सितम ढाएगा, मरेगा पीटेगा, जलाएगा और तरह तरह के मज़ालिम करेगा। हर वक़्त उसके खौफ में मुब्तिला रहो, इसके अलावा काम धाम, मेहनत मशकक़त के इरशादात हैं कहीं? दुन्या के 
ऐशो-आराम तो काफिरों को उधार दिए रहता है और तुमको ऊपर के वादों में फँसाए रहता है. ऐसा तो नहीं कि तुम्हारा अल्लाह और उसका रसूल दीगर कौमों के एजेंट हों? इसी तरह मनुवाद बर्रे सगीर के आदिवासियों, अछूतों और दलितों के लिए पूर्व जन्म का लेखा जोखा बतला कर सदियों से सवर्णों को दास बनाए हुवे है. आप का अल्लाह आपका पुनर जन्म की हालत में रखता है और उनका ईश्वर उनको पूर्व जन्म कि डोरी में बंधे हुए है. दोनों के धर्म गुरू अपने वर्तमान को उज्जवल किए हुए हैं।


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 15 July 2012

Soorah Momnoon -23 Part 3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह मोमिनून - 23  
(तीसरी क़िस्त)  



मुसलमानों!
अमरीका के फ्लोरिडा चर्च की तरफ़ से एलान है क़ि वह ११-९ को कुरआन को नज़र ए आतिश करेंगे. मुसलामानों के लिए ये वक़्त है खुद से मुहासबा तलबी का, स्व-मनन का, अपने ओलिमा की ज़ेहनी गुलामी छोड़ कर इस बात पर गौर करने का क़ि वह अब अपना फैसला खुद करें, मगर ईमानदारी के साथ. मुसलमानों को चाहिए कि  कुरआन का मुतालेआ करें, ना कि  तिलावत. देखें क़ि ज़माना हक बजानिब है या कुरआन? मैं कुछ आयतें आपको पढने का मशविरा देरहा हूँ   - - -
सूरह- आयत
बकर - १९०-१९२-२१४-२४४-२४५-
इमरान- १६७- १६८-१७०
निसा ७५-७७
मायदा- ३५
इंफाल १५-१६-१७-३९- ४३- ६४ -६७
तौबः ५- १६- २९ -४१- ४५- ४६ - ४७ -५३ - ८४ - ८६ -
मुहम्मद - २० -२१ -२२
फतह १६-२०-२३
सफ़- १०-११-
यह चंद आयतें बतौर नमूना हैं, पूरा का पूरा कुरआन ज़हर में बुझा हुआ झूट है.
इन आयातों में जेहाद की तलकीन की गई है. देखिए कि  किस हठ धर्मी के साथ दूसरों को क़त्ल कर देने के एह्कामत हैं. मुसलमान अल्लाह के हुक्म पर जहाँ मौक़ा मिलता है, क़ुरआनी अल्लाह के मुताबिक ज़ुल्म ढाने लगता है.ऐसी कौम को जदीद इंसानी क़द्रें ही अब तक बचाए हुए हैं वगरना माज़ी के आईने को देख कर जवाब देने में अगर हैवानियत पहुंचे तो मुसलामानों का सारी दुन्या से नाम ओ निशान ही ख़त्म हो जाय। स्पेन में आठ सौ साल हुक्मरानी के बाद जब मुसलमान अपने आमालों के भुगतान में आए तो दस लाख मुस्लमान दहकती हुई मसनवी दोज़ख में झोंक दिए गए। अभी कल की बात है क़ि ईराक में दस लाख मुसलमान चीटियों की तरह मसल दिए गए. ऐसा चौदह सौ सालों से चला आ रहा है, जिसकी खबर आलिमान दीन आप को मक्र के रूप में देते हैं क़ि वह सब शहादत के सीगे में दाखिल हो कर जन्नत नशीन हुए. इंसानों को यह सजाएँ क़ुरआनी आयतें दिलवाती हैं. इसकी जिम्मे दारी इस्लाम ख़ोर ओलिमा की हमेशा से रही है. आप लोग सिर्फ शिकारयों के शिकार हैं. क्या आप अपनी नस्लों को क़ुरआनी फरेब में आकर आग में झोंकने का तसव्वुर कर सकते हैं? झूट को पामाल करने के लिए जब तक आप ज़माने के साथ न होंगे, खुद को पायमाल करते रहेंगे। अगर आप थोड़े से भी इंसाफ पसंद हैं तो खुद हाथ बढ़ा कर ऐसी मकरूह इबारत आग में झोंक देंगे.
क़ुरआनी आयतें गुमराहियाँ हैं, आइए देखें क़ि यह इंसानों को किन रास्तों पर ले जा रही हैं- - - 

''हमने कौम नूह के बाद दूसरा गिरोह पैदा किया फिर हमने इनमें से ही एक पैगम्बर भेजा कि तुम लोग अल्लाह की इबादत किया करो. इसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं है. तो इनमें से जिन्हों ने कुफ्र किया था और आखिरत को झुटलाया था और हमने इनको दुन्या के ऐश दिए, कहने लगे पस वह तुम्हारी तरह ही एक आदमी है. ये वही खाते हैं जो तुम खाते हो, वाही पीते हैं जो तुम पीते हो, इसके कहने पर चलोगे तो घाटे में रहोगे क्या वह तुम से कहता है कि मर जाओगे तो मिटटी और हड्डियाँ हो जाओगे, तो निकाले जाओगे, बहुत ही बईद है जो तुम से कही जाती है. पैगम्बर ने दुआ किया कि ऐ मेरे रब मेरा बदला ले - - - फिर हमने इन्हें खश ओ खाशाक कर दिया. सो अल्लाह की मर काफिरों पर फिर इनको हालाक होने पर हमने और उम्मत पैदा की.''
सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (३१-४२)
कुफ्र यानी वहदानियत (एकेश्वरवाद) को नकारना , उसके जगह किसी आसान हस्ती को अपनी आस्था के अनुसार दिल लगाना इतना जुर्म हुवा कि गोया अल्लाह के साथ ज़ुल्म करना हो. बार बार कुरआन इस बात को दोहराता है. काफिरों को ज़ालिम कहता है , अजीब सी बात हुई बन्दा ए नाचीज़, खालिके कायनात पर ज़ुल्म करे, उसको मारे पीटे, ज़ख़्मी करें और जेहनी अज़ीयत पहुँचाएं, यही तो होता है ज़ुल्म. अल्लाह नाचार बन्दों के ज़ुल्म सहता रहे? मुहम्मद का ज़ेहनी दीवालिया पन का एक हरबा ही इसे कहा जायगा . मुसलमानों को इतनी अक्ल नहीं रह गई है कि इस पर गौर करके अपनी राय कायम करें. इनके पण्डे नुमा ओलिमा अपने गोरख धंधे में इन्हें फंसाए हुए है.
माबूद (पूज्य) के नाम पर इंसान हमेशा ठगा गया है और ठगा जाता रहेगा जब तक कि इसके खिलाफ सख्ती से न काम लिया जाएगा. मुहम्मद नूह के बाद किसी गुम नाम पैगम्बर का ज़िक्र कर रहे है. नाम वरों  का ज़िक्र बार बार दोहरा चुके हैं 

."हमने अपने पैगम्बरों को एक के बाद दीगर भेजे. जब किसी उम्मत के पस उसका रसूल आया तो उन्हों ने उसको झुटलाया. सो हमने एक के बाद एक का नंबर लगा दिया और हम ने इन की कहानियाँ बना दीं.सो अल्लाह की मार उन लोगों पर जो ईमान न लाते थे.''
सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (४४)
अल्लाह बने मुहम्मद मुहाविरे का इस्तेमाल भी अल्लाह के मुंह से करते हैं, अल्लाह कहता है "अल्लाह की मार उन लोगों पर जो ईमान न लाते थे.'' लाशूरी तौर पर इस बात का एतराफ  भी करते हैं कि पैगम्बरों के बारे में जो भी वह बतलाते हैं वह बनाई हुई कहानियां हैं. इतना खुला हुवा कुरानी मुआमला मुसलामानों की अक्ल से बईद है . 

अल्लाह एक बार फिर मूसा को पकड़ता है उसके बाद ईसा को मरयम के साथ. दोनों को एक बुलंद मुकाम पर लेजा कर पनाह देता है और खाने पिने के लिए मेवे मुहय्या करता है इसके बाद अपनी आयतों की खूबियाँ बयां करता है. जोकि बकवास की हद तक जाती हैं.
सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (४५-६६) 

"यहाँ तक कि जब हम इन खुश हाल लोगों को अज़ाब में धर पकड़ेंगे तो वह फ़ौरन चिल्ला उठेंगे . अब मत चिल्लाओ , हमारी तरफ़ से तुम्हारी मुतलाक़ मदद न होगी , हमारी आयतें तुमको पढ़ पढ़ कर सुनाई जाया करती थीं तो तुम उलटे पाँव भागते थे, तकब्बुर करते हुए, कुरआन का मशगला बनाते हुए, इसकी शान में बेहूदा बकते थे."
सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (६७)
मुसलमानों! देखो कि तुम्हारे परवर दिगार को बात करने का सलीक़ा भी नहीं , मुस्तकबिल में हाल का सीगा पंचता है. बच्चों को बहलाने, फुसलाने औए धमकाने का तरीका अख्तियार करता है, बालिग नव जवान और बूढों तक को समझ नहीं कि इन बातों से उनकी रूह कांपती है. कोई फर्क न पड़ता इन बैटन से अगर बातें कौम कि पसमांद का बीस न होतीं.
क्या कभी आप ने गौर किया है कि सम्तें (दिशाएँ) कहाँ तक जाती हैं? ये वक़्त कब शुरू हुवा है? अल्लाह ईश्वर है? तो ज़ाहिर है इस के पहले के होंगे. ये क़ुरआनी अल्लाह हमको आदम तक की खबर देता है या फिर उनके बाद के नूह, मूसा, ईसा तक की और हर बात मुहम्मद पर जाकर ख़त्म हो जाती है. यानी करोरों सालों की तारीख को सिर्फ ६००० साल तक की खबर मुहम्मदी अल्लाह को है. आज वक़्त इतना आगे बढ़ चुका है कि दर्जा आठ का तालिब इल्म भी इस मुहम्मदी अल्लाह की खबर ले सकता है, वह इसके आधे फरमानों का मज़ाक बना सकता है. मगर मुसलमान बुजुर्गवार को समझाना बच्चे क्या न्यूटन के बस की बात भी नहीं . कभी कभी जी करता है कि जाने दें इस कौम को जहन्नम के ग़ार में मगर क्या करें कि इंसानी दिल हर इन्सान का खैर ख्वाह है.

"और जो लोग आखिरत पर ईमान नहीं रखते, ये हालत है कि उस रस्ते से हटते जाते हैं और अगर हम उन पर मेहरबानी फरमा दें और इन पर जो तकलीफ़ है उसको अगर हम दूर कर भी दें तो भी वह लोग अपनी गुमराहियों में भटकते हुए इसरार करते हैं और हमने उनको गिरफ़्तार भी किया है सो उन लोगों ने न अपने रब के सामने फरोतनी की न आजज़ी अख्तियार की."
सूरह मओमेनून २३- परा-१८ -आयत (७४-७६)
अल्लाह की बकवास का एक नमूना ही कही जाएगी ये आयत। जिसका कहीं से कोई मतलब ही नहीं निकलता. आलिमान दीन इसकी खूबी यूँ बयान करते हैं कि कुरआन को समझना हर एक की बस की बात नहीं. यानी इन कमियों में भी उन्हें खूबी नज़र आती है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 8 July 2012

सूरह मओमेनून २३-2nd

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान


सूरह मओमेनून २३
दूसरी किस्त)
मुसलमानों!अमरीका के फ्लोरिडा चर्च की तरफ़ से एलान है क़ि वह ११- को कुरआन को नज़र आतिश करेंगे. मुसलामानों के लिए ये वक़्त है खुद से मुहासबा तलबी का, स्व-मनन का, अपने ओलिमा की ज़ेहनी गुलामी छोड़ कर इस बात पर गौर करने का कि  वह अब अपना फैसला खुद करें, मगर ईमानदारी के साथ. मुसलमानों को चाहिए क़ि कुरआन का मुतालेआ करें, न कि तिलावत. देखें क़ि ज़माना हक बजानिब है या कुरआन? मैं कुछ आयतें आपको पढने का मशविरा दे रहे हैं - - -सूरह- आयत
बकर - १९०-१९२-२१४-२४४-२४५-इमरान- १६७- १६८-१७०
निसा ७५-७७
मायदा- ३५
इंफाल १५-१६-१७-३९- ४३- ६४ -६७
तौबः - १६- २९ -४१- ४५- ४६ - ४७ -५३ - ८४ - ८६ -मुहम्मद - २० -२१ -२२
फतह १६-२०-२३
सफ़- १०-११-यह चंद आयतें बतौर नमूना हैं, पूरा का पूरा कुरआन ज़हर में बुझा हुआ झूट है.इन आयातों में जेहाद की तलकीन की गई है. देखिए क़ि किस हठ धर्मी के साथ दूसरों को क़त्ल कर देने के एह्कामत हैं. मुसलमान अल्लाह के हुक्म पर जहाँ मौक़ा मिलता है, क़ुरआनी अल्लाह के मुताबिक ज़ुल्म ढाने लगता है. ऐसी कौम को जदीद इंसानी क़द्रें ही अब तक बचाए हुए हैं, वगरना माज़ी के आईने को देख कर जवाब देने में अगर हैवानियत पहुंचे तो मुसलामानों का सारी दुन्या से नाम निशान ही ख़त्म हो जाय. स्पेन में आठ सौ साल हुक्मरानी के बाद जब मुसलमान अपने आमालों के भुगतान में आए तो दस लाख मुस्लमान दहकती हुई मसनवी दोज़ख में झोंक दिए गए. अभी कल की बात है क़ि ईराक में दस लाख मुसलमान चीटियों की तरह मसल दिए गए. ऐसा चौदह सौ सालों से चला रहा है, जिसकी खबर आलिमान दीन आप को मक्र के रूप में देते हैं कि वह सब शहादत के सीगे में दाखिल हो कर जन्नत नशीन हुए. इंसानों को यह सजाएँ क़ुरआनी आयतें दिलवाती हैं. इसकी जिम्मे दारी इस्लाम ख़ोर ओलिमा की हमेशा से रही है. आप लोग सिर्फ शिकारयों के शिकार हैं.झूट को पामाल करने के लिए जब तक आप ज़माने के साथ होंगे, खुद को पायमाल करते रहेंगे. अगर आप थोड़े से भी इंसाफ पसंद हैं तो खुद हाथ बढ़ा कर ऐसी मकरूह इबारत आग में झोंक देंगे.
आइए देखें कि हाद्साती आयतें क्या कहती हैं - - -

"और हमने पानी से बाग़ पैदा किए खजूरों और अंगूरों के. तुम्हारे लिए इसमें बकसरत मेवे भी हैं और इसमें से खाते भी हो और एक दरख्त जो तूरे-सीना में पैदा होता है, जो कि उगता है तेल लिए हुए और खाने वालों को सालन लिए हुए. और तुम्हारे मवेशी गौर करने का मौक़ा है कि हम तुमको इन के पेट में की चीज़ पीने को देते हैं और इनमें से बअज़ को खाते भी हो . इन पर और कश्ती पर लदे घूमते भी हो."
सूरह मओमेनून २३- पारा-१८ -आयत (१९-२२ )रेगिस्तानी अल्लाह को खजूर, अंगूर और जैतून के सिवा, आम, अमरुद और सेब जैसे दरख्तों का पता भी नहीं है. इरशाद हुवा है की मवेशी के पेट से पीने की चीजें भी पैदा कीं . ज़ाहिर है कि इसमें से दो चीजें ही आती हैं. दूध और मूत. दूध तो पिया भी जाता है और कभी कभी मूत भी पिया जाता है. खुद मुहम्मद भी इसके कायल थे कि एक हदीस के मुताबिक मुहम्मद के पास किसी दूर बस्ती से पेट के कुछ मरीज़ आए, तो उन्होंने उनको अपने फॉर्म हॉउस में ये कहके भेज दिया कि वहां पर ऊंटों का दूध और मूत पीकर यह लोग सेहत याब हो जाएँगे. और वह वहां रहकर ठीक भी हो गए, ऐसे ठीक हुए कि फार्म हॉउस के रखवाले को मार कर मुहम्मद के सभी ऊंटों को लेकर फरार हो गए. मुहम्मद के सिपाहियों ने उन्हें जा धरा. ज़ालिम मुहम्मद ने उन्हें ऐसी सजा दी कि सुन कर कलेजा मुंह को आए.अल्लाह काफिरों को जब दोज़ख की सजाएं तजवीज़ करता है तो मुहम्मद की ज़ेहंयत इस हदीस को लेकर नज़रों के सामने घूम जाती है।
"कश्ती का ज़िक्र मुहम्मद के मुँह पर आए तो कुरआन का तहकीकी मौज़ू ग़ायब हो जाता है और वह बार बार नूह के साथ बह निकलते हैं. कश्ती का नूह से चोली दामन का साथ जो हुवा. कश्ती का नाम मुहम्मद के मुँह पर आए तो जेहन में नूह दौड़ने लगते हैं
सूरह मओमेनून २३- पारा-१८ -आयत (१९-२२ )फिर शुरू हो जाती है नूह की कथा . नूह के नाम से मुहम्मद अपनी आप बीती मन गढ़ंत जड़ने लगते हैं. मुलाहिजा हो एक बार फिर नूह के सफीने पर कुरान की सवारी - - -
"
और हमने नूह को इनकी कौम की तरफ़ पैगम्बर बना कर भेजा सो उन्हों ने कौम से फ़रमाया कि मेरी कौम! अल्लाह की ही इबादत किया करो, उसके आलावा कोई माबूद बनाने के लायक नहीं है, तो क्या डरते नहीं हो. बस कि उनकी कौम में जो काफ़िर मालदार थे , कहने लगे कि ये शख्स बजुज़ इसके कि तुम्हारी तरह एक आदमी है और कुछ भी नहीं, इसका मतलब ये है कि तुम से बरतर बन कर रहे और अल्लाह को मंज़ूर होता तो किसी फ़रिश्ते को भेजता. हमने ये बात अपने बड़ों में नहीं सुनीं. बस कि ये एक आदमी है जिसको जूनून हो गया है . नूह ने कहा मेरे रब! मेरा बदला ले वजेह ये है कि उन्हों ने मुझको झुटलाया। पस कि हमने उनके पास हुक्म भेजा कि तुम कश्ती तैयार कर लो हमारी निगरानी में फिर जब हमारा हुक्म पहुँचे और ज़मीन से पानी उबलना शुरू हो तो हर किस्म में एक एक नर और एक एक मादा यानी दो अदद इस में दाखिल कर लो और अपने घर वालों को भी इस लिहाज़ के साथ कि जिस पर इस में से हुक्म नाजिल हो चुका हो. और हम से काफिरों के बारे में कोई गुफ्तुगू करना. वह सब ग़र्क किए जाएँगे. फिर जिस वक़्त तुम और तुम्हारे साथी कश्ती पर बैठ चुको तो कहना शक्र है अल्लाह का जिसने मुझे काफिरों से नजात दी. और यूं कहना कि रब मुझको बरकत से उतारियो. और आप सब उतारने वालों में से सब से अच्छे हैं इसमें बहुत सारी निशानियाँ हैं और हम आजमाते हैं."सूरह मओमेनून २३- पारा-१८ -आयत (२३-३०)इस तरह मुहम्मद अपना दिमागी फितूर ज़ाहिर करते हुए अहले मक्का को समझाते हैं बल्कि धमकाते हैं कि वह भी नूह की तरह ही पैगम्बर है और उनकी बद दुआ से सब के सब गरके-आब हो जाओगे. इस तरह अपने मुखालिफ काफिरों से नजात भी चाहते है.
''हमने कौम नूह के बाद दूसरा गिरोह पैदा किया फिर हमने इनमें से ही एक पैगम्बर भेजा कि तुम लोग अल्लाह की इबादत किया करो. इसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं है. तो इनमें से जिन्हों ने कुफ्र किया था और आखिरत को झुटलाया था और हमने इनको दुन्या के ऐश दिए, कहने लगे पस वह तुम्हारी तरह ही एक आदमी है. ये वही खाते हैं जो तुम खाते हो, वाही पीते हैं जो तुम पीते हो, इसके कहने पर चलोगे तो घाटे में रहोगे क्या वह तुम से कहता है कि मर जाओगे तो मिटटी और हड्डियाँ हो जाओगे, तो निकाले जाओगे, बहुत ही बईद है जो तुम से कही जाती है. पैगम्बर ने दुआ किया कि ऐ मेरे रब मेरा बदला ले - - - फिर हमने इन्हें खश ओ खाशाक कर दिया. सो अल्लाह की मर काफिरों पर फिर इनको हालाक होने पर हमने और उम्मत पैदा की।''
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान