Sunday 27 October 2013

Soorah Zaaryaat 51

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह ज़ारियात ५१ -पारा २६-

"क़सम है उन हवाओं की जो गुबार वगैरा उडाती हैं."
"फिर उन बादलों की क़सम जो बोझ को उठाते हैं."
"फिर उन कश्तियों की क़सम जो नरमी से चलती हैं."
"फिर उन फरिश्तों की क़सम जो चीज़ें तक़सीम करते हैं."
"क़सम है आसमान की जिसमें रास्ते हैं कि तुम से जो वादा किया गया है,
वह सच है."
"तुम क़यामत के बारे में मुख्तलिफ गुफ्तुगू में हो, इससे वही फिरता है जो फिरने वाला है. ग़ारत हो जाएँगे बे सनद बातें करने वाले."
"पूछते हैं कि रोज़े-जज़ा का दिन कब है?"
"जिस रोज़ तुम आग पर रखे जाओगे फिर कहा जाएगा, अपनी इस सज़ा का मज़ा चक्खो जिसकी तुम जल्दी मचा रहे थे."
सूरह ज़ारियात ५१ -पारा २६-  आयत(१-१४)

क़यामत मुहम्मद का सबसे बड़ा हथियार रहा है. वह इस शोब्दे को लेकर काफी क़ला बाज़ियाँ खाते हैं. लोगो ने इनकी चिढ बना ली थी, जब सामने पड़ते लोग तफ़रीह के मूड में आ जाते और उनसे पूछ बैठते कि अल्लाह के रसूल क़यामत कब आएगी? और उनका बडबडाना शुरू हो जाता. हैरत है कि आज ये बडबड तिलावत और इबादत बन गई है.
देखा गया है, झूठा और बेवक़अत  इंसान ही कसमें खाता है जब अपने झूट में खुद उसकी निगाह जाती है तो कसमें खाकर खुद से मुँह छुपता है. अब भला ग़ुबार उठाने वाली हवाओं की क़सम क्या वज़न रखती है? या बदल कौन से मुक़द्दस हैं? ये नरमी से चलने वाली कशतियां क्या होती हैं? फ़रिश्ते चीज़ें कब बाँटते है? आसमान में रास्ता, गली और सड़क कब और कहाँ है? कठमुल्ले अल्लाह की बात को लाल बुझक्कड़ी दिमाग़ से साबित कर सकते हैं "कि आज जो जहाज़ों के रास्ते फ़िज़ा में बनाए गए हैं, इसकी भविष्य बाणी हमारे कुरआन में पहले से ही है. ऐसे बहुत से अहमक़ाना मिसालें देखने और सुनने में आती हैं. ऐसे बहुत सी नजीरें हैं.

"जब कि वह इनके पास आए, इनको सलाम किया 
इब्राहीम ने भी कहा सलाम, 
अंजान लोग हैं, 
फिर अपने घर की तरफ चले और एक फ़रबा बछड़ा लाए
 और इसको उनके सामने रक्खा, 
कहने लगे आप लोग खाते क्यूँ नहीं,
 तो इनसे दिल में खौफ ज़दा हुए. 
उनसे कहा डरो मत और एक फ़रज़न्द की बशारत दी, 
जो बड़ा आलिम होगा. 
इतने पर इनकी बीवी बोली आएँ,
 फिर माथे पर हाथ मारा,
 कहने लगी बुढिया बाँझ?
 फ़रिश्ते कहने लगे तुम्हारे परवर दिगार ने ऐसा ही फ़रमाया है. 
कुछ शक नहीं कि वह बड़ा हिकमत वाला है. 
इब्राहीम कहने लगे कि अच्छा तो तुमको बड़ी मुहिम क्या दर पेश है?
 ऐ फरिश्तो! 
फरिश्तों ने कहा हम एक मुजरिम कौम की तरफ़  भेजे गए हैं ताकि हम इनके ऊपर मिटटी के पत्थर बरसाएँ जिस पर आप के रब के पास खास निशानियाँ भी हैं, 
हद से गुजरने वालों वालों के लिए. 
और हमने जितने ईमान वाले थे  वहां पर, उनको निकल कर अलाहिदा कर दिया है, 
सो बजुज़ एक मुसलमान के और कोई घर हमने नहीं पाया. 
और हमने इस वाकी में ऐसे लोगों के लिए एक इबरत रहने दी जो दर्द नाक अजाब से डरते है."   
ये आयतें तौरेती वाक़िए  की बेहूदा शक्लें हैं. चूँकि मुहम्मद कुरआन में शायरी गढ़ते हैं तो ज़बान नज़्म की रह जाती है न नस्र की. इन आयतों में आलिमों ने तफ़सीर और इस्लाह करके इसे कुरआन बना दिया है. 

ज़रुरत इस बात की है कि आप समझें कि कुरआन की हैसियत क्या है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 20 October 2013

Soorah kaaf 50

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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"क़सम है कुरआन मजीद की, बल्कि इनको इस बात का तअज्जुब हुवा कि इनके पास इन्हीं में से कोई डराने वाला आ गया. सो काफ़िर कहने लगे कि ये अजीब बात है.
 - - - अल्लाह अपनी तखलीक को बार बार दोहराता है कि ज़मीन, आसमान, सितारे, पहाड़, पेड़ और फसलें सब उह्की करामात से हुए. जो ज़रीआ बीनाई और दानाई है."
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (१-७)

अल्लाह ने अपनी किताब की इतनी जोर की क़सम बिला किसी वजह की खाई. अरबी ज़बान में "बल्कि" का इतेमाल ऐसे ही होता है तो अरबी अल्लाह की कवायद पर अफ़सोस होता है. ये बात अक्सर कुरान में आती है जिसे हम अहले ज़बान उर्दू को खटकती है. मुझे लगता है मुहम्मद की उम्मियत का इसमें दख्ल है. ये डराने वाला किरदार मुहम्मद ने अनोखा अपनी उम्मत के लिए पैदा किया है. उनके पास आगाह, तंबीह या ख़बरदार करने वाले अलफ़ाज़ शायद न रहे हों. भला काफ़िर ओ मुनकिर को इस बात पर नए सिरे से यक़ीन करने की क्या ज़रुरत है कि अल्लाह की कुदरत से ही इस कायनात का कारोबार चल रहा है. इनका कब दावा था कि ये ज़मीन और आसमान इनकी देवी देवताओं  ने बनाया. वह तो बानिए  कायनात का तसव्वर करने में नाकाम रहने के बाद उसको  एक शक्ल देकर उसमें उसको सजा कर उसकी ही पूजा करते हैं. इस मामूली सी बात को खुद नादान मुसलमान नहीं समझते. संत कबीर ने यादे इलाही को मर्कज़ियत देने के लिए "सालिग राम की बटीया " बना कर ईश्वर को उसमे समेटा ताकि ध्यान उस पर कायम रहे. ओलिमा कुरआन मुसलामानों को इस तरह समझाते हैं गोया उस वक्त के काफिरों का दावा था कि सब कुछ उनके बुतों की माया थी जो ज़मीन ओ आसमान में है.

"क्या हम पहली बार पैदा करने में थक गए हैं? हमने इंसान को पैदा किया, इसके दिल में जो ख़याल आते हैं, इन्हें हम जानते हैं. और हम इंसान के इतने करीब हैं कि इसकी रगे-गर्दन से भी ज्यादह."
"जब दो अख्ज़ करने वाले फ़रिश्ते अख्ज़ करते  हैं जो कि दाएँ और बाएँ तरफ बैठे रहते हैं. वह कोई लफ्ज़ मुँह से निकलने नहीं पाता मगर इस के पास ही एक ताक लगाने वाला तैयार रहता है."
जब अल्लाह इंसान के रगे गर्दन के क़रीब रहता है और दिलों की बातें जानता है तो उसने बन्दों के दाएँ बाएँ अख्ज़ करने वाले फरिश्तों को अपनी मुलाज़मत में क्यूँ रख छोड़े है? ये तो अल्लाह नहीं इंसान जैसा लग रहा है कि जिसको दो गवाहों की ज़रुरत होती है. अल्लाह बे वकूफ इंसान जैसी बातें भी करता है "क्या हम पहली बार पैदा करने में थक गए हैं?" या "इस के पास ही एक ताक लगाने वाला तैयार रहता है."
कुरान में जाहिल मुहम्मद की जेहालत साफ़ साफ़ झलती है मगर मुसलामानों की आँखों पर पर्दा पड़ा हुवा है.

"और हर शख्स मैदाने-हश्र में यूँ आएगा कि इसको एक फ़रिश्ता हमराह लाएगा और दूसरा इसके अमल का गवाह होगा. पहला अर्ज़ करेगा कि ये रोज़ नामचा है जो मेरे पास तैयार है. शैतान जो इसके पास रहता था, कहेगा हमने इसको जबरन गुमराह नहीं किया था, ये खुद दूर दराज़ की गुमराही में रहता था."
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (१५-२७)

अल्लाह मुस्तकबिल बईद की अपनी काररवाई की इत्तेला मुहम्मद को देता है कि वह ऐसा कहेंगे और हम उसका जवाब इस तरह देंगे.

मुहम्मद तरह तरह की ड्रामा निगारी कुरआन की हर सूरह में अलग अलग तरह से करते हैं, गौर करें कि खरबों इन्सान के साथ उनके दो गुना फ़रिश्ते और हर के साथ एक अदद शैतान होगा, मगर मुक़दमा सिर्फ़ एक अल्लाह सुनेगा? मगर अल्लाह की हिकमत के लिए हर काम मुमकिन है, इसके लिए इतना बड़ा झूट गढ़ा ही इस तरह से है.. अक्सर मुहम्मद "दूर दराज़ की गुमराही" का इस्तेमाल करते हैं ,ये गुमराही की कौन सी सिंफ होती है?

"अल्लाह इरशाद करेगा, मेरे सामने झगडे की बातें मत करो. मैं तो पहले ही तुम्हारे पास वईद भेज चुका हूँ. "
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (२८)

मुसलामानों तुहारा अल्लाह  क्या इस तरह का शिद्दत पसंद है?
हर इंसान की तरह ही अपने माँ  के पेट से निकले हुए मुहम्मद तुम्हारे अल्लाह बन गए हैं, जागो! बहुत देर हो चुकी है फिर भी अभी वक़्त है.

"हम बन्दों पर ज़ुल्म करने वाले नहीं, दोज़ख से जिस दिन पूछेंगे कि तू भर गई, वह कहेगी कि कुछ और जगह खाली है."
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (३०)

इस्लामी पैगम्बर तो उम्मी था ही, क्या उसकी पूरी उम्मत भी उम्मी ही है कि उसका अल्लाह बन्दों का मदद गार नहीं, उसे तो दोज़ख से कहीं  ज़्यादः लगाव है कि उसकी भूख को पूछ रहा है, क्यूँकि वह उससे वादा जो किए हुए है कि उसका पेट व भरेगा.

"और जन्नत मुत्तकियों के लिए, कि कुछ दूर न रहेगी."
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (३१)

क्यूँकि मुत्तकियों के लिए वहाँ शराब, कबाब और शबाब मुफ्त होंगे. इतना ही नहीं इग्लाम बाज़ी भी मयस्सर होगी जिस अमल को इस दुन्या में करने से शर्मिंदगी होती थी.
ऐसी जन्नत पर लअनत है और इसकी चाहत रखने वालों पर भी धिक्कार.

"और रुजू होने वाला दिल लेकर आएगा. इस जन्नत में सलामती के साथ दाखिल हो जाओ यह दिन है हमेशा रहने का."
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (३४).

दुन्या की तमाम नेमतों को छोड़ क़र, अपने दूसरे ज़रुरी मिशन को ताक पर रख क़र मुहम्मदी अल्लाह की तरफ रुजू हो जाओ ताकि मुहम्मद और अरबियों की गुलामी कायम रहे.

"और सुन लो कि जिस दिन एक पुकारने वाला पास ही से पुकारेगा, जिस दिन इस चीखने को बिल्याकीन सब सुन लेंगे, ये दिन होगा निकलने का. हम ही जलाते हैं, हम ही मारते हैं और हमारी तरफ फिर लौट कर आओगे"
सूरह क़ाफ़ -५० -पारा -२६ आयत (४२-४४)

मुसलमानों! तुम भोले भाले हो, या अहमक
 कि जिस अल्लाह को तुम पूजते हो वह जो जलाता है और मारता है? 
 या फिर कलमा ए शहादत पढ़ लो तो तुमको जन्नत में दाखिल क़र देगा.?


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 13 October 2013

Soorah Hujrat 49

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
सूरह हुजरात -४९ 

मुहम्मद लगभग हाकिम बन चुके हैं. इनके मुँह से निकली हुई हर बात आयते क़ुरआनी हो जाती है. वह अल्लाह के रसूल की बजाए, अल्लाह उनका रसूल बन जाता है.. नए रसूल की सियासी सूझ बूझ और तौर तरीकों के आगे पुराना रसूल मुहम्मद का साया नज़र आता है. वह अपने गिर्द फैले हुए जाँ निसारों, चापलूसों और लाखैरों की शिनाख्त बड़ी महारत से करने लगे हैं. मक्का में वह कुफ़फ़ार का मुकाबिला जूनून और मसलेहत के साथ कर रहे थे और मदीने में मुनाफिक़ों का सामना जिसारत के साथ करते नज़र आते हैं. रसूल को अब भर्ती के मुसलमान नहीं चाहिएं. वह अपने मुँह लगे साथियों के मुँह में लगाम लगाने लगे हैं.
मुहम्मदी अल्लाह कहने लगा - - -

"ऐ ईमान वालो ! अल्लाह और उसके रसूल से पहले तुम सिबक़त मत किया करो और अल्लाह से डरते रहो. बेशक अल्लाह सुनने वाला और जानने वाला है."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (१)

रसूल अब अपने अल्लाह को शाने बशाने रखने लगे हैं, तभी तो कहते हैं "अल्लाह और उसके रसूल से पहले तुम सिबक़त मत किया करो और अल्लाह से डरते रहो" मुहम्मद में अल्लाह का तकब्बुर आ गया है , कोई उन्हें परवर दिगार कहता है तो उन्हें वह कोई  एतराज़ नहीं करते, अन्दर से मह्जूज़ होते हैं.

"ऐ ईमान वालो! तुम अपनी आवाजें पैगम्बर की आवाज़ के सामने बुलंद मत किया करो. और न इनसे खुल कर बोला करो, जैसे तुम आपस में खुल कर बोलते हो. कभी तुम्हारे आमाल बर्बाद हो जाएँगे और तुमको खबर भी न होगी. बे शक जो लोग अपनी आवाज़ को रसूल की आवाज़ से पस्त रखते हैं, ये वही हैं जिनको के दिलों को अल्लाह ने तक़वा के लिए ख़ास कर दिया है. इन लोगों के लिए मग्फ़िरत और उजरे-अज़ीम है."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (२-३)

मुहम्मद अपनी उम्मत बनी रिआया को आदाबे-महफ़िल सिखला रहे है. उनकी पीरी मुरीदी चल निकली है.

"जो लोग हुजरे के बहार से आपको पुकारते हैं, वह लोग अक्सर बे अक्ल होते हैं. बेतर है कि ये लोग सब्र करें, यहाँ तक कि आप खुद बाहर निकल आते तो ये उन लोगों के लिए बेहतर होता और अल्लाह गफूर्रुर रहीम है.
ऐ इमान वालो ! अगर कोई शरीर आदमी तुम्हारे पास कोई ख़बर लाए तो खूब तहकीक़ कर लिया करो, कभी किसी कौम को नादानी से कोई ज़रर न पहुँचाओ कि फिर अपने किए पर पछताना पड़े."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (४-६) 

तमाज़त और दूर अनदेशी भी मुहम्मद के आस पास फटकने लगी है.

"और जान रक्खो कि तुम में रसूल अल्लाह हैं. बहुत सी बातें ऐसी होती हैं कि अगर वह इसमें तुम्हारा कहना माना करें, तो तुम को बड़ी मुज़र्रत होगी. और अगर मुसलमानों में दो गिरोह आपस में लड़ें तो उनके दरमियान इस्लाह कर दो. मुसलमान तो सब भाई हैं, सो अपने भाइयों के दरमियाँ इस्लाह कर दिया करो."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (७-१०)

काश कि ये बातें आलमे-इंसानियत के लिए होतीं, न कि सिर्फ मुसलामानों के लिए. इन तालीमात से तअस्सुब का ही जन्म होता है.

"ऐ ईमान वालो! मर्दों को मर्दों पर नहीं हँसना चाहिए और औरतों को न औरतों पर, क्या जाने कि वह हँसने वालों से बेहतर हो, और न एक दूसरे को तअने दो.
 ऐ इमान वालो! बहुत से गुमानों से बचो क्यूँ कि बहुत से गुमान गुनाह होते है. सुराग न लगाया करो, किसी की गीबत न करो. क्या तुम में कोई पसंद करता है कि मरे हुए भाई का गोष्ट खाए."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (११-१२)

औरत को मर्दों पर मर्दों को और औरतों पर हँसना ची?
मुहम्मद को सहाबी कहा करते थे कि आप तो हमारी बातों पर कान धरे रहते हैं. चुगल खोरों की बातों को अल्लाह की वह्यी बतलाने वाले कमज़ोर इंसान आज दूसरों को नसीहत दे रहे हैं.
काफ़िर, मुशरिक और दीदरों की गीबत करने वाले मुहम्मद क्या बक रहे हैं?
जंगे-बदर भूल रहे हैं जहाँ अपने भाई बन्दों को मार कर उनके गोश्त को तीन दिनों तक सड़ने दिया था, फिर इनकी लाशों को बद्र के कुँए में फिकवा दिया था?

"अल्लाह के नजदीक बड़ा शरीफ वही है जो परहेज़गार हो"
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (१३०)
माले-गनीमत खाने वाला इंसान क्या कभी शरीफ़ इंसान भी हो सकता है?

"ये गंवार कहते हैं कि हम ईमान लाए, आप फ़रमा दीजिए कि तुम ईमान तो नहीं लाए, यूं कहो कि हम मती हुए. मोमिन तो वह है जो अल्लाह पर और उसके रसूल पर ईमान लाए. फिर शक नहीं किया और अपने जान ओ माल से अल्लाह की राह में जेहाद किया."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (१४-१५)
करने लगे गीबत या रसूल अल्लाह.!
अल्लाह के नाम पर मार काट और लूट-पाट से ही इस्लाम फैला जो हमेशा रुस्वाए ज़माना रहा

 "ये लोग अपने ईमान लाने का आप पर एहसान रखते हैं, आप कही कि मुझ पर एहसान नहीं, बल्कि एहसान अल्लाह का है तुम पर कि उसने तुमको ईमान लाने की हिदायत दी, बशर्ते तुम सच्चे हो. बे शक अल्लाह ज़मीन और आसमान की मुख्फी बातों को जनता है और तुम्हारे सब आमल जनता है.
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (१७-१८)
इस्लामी ईमान ,ईमान नहीं, बे ईमानी है.

Sunday 6 October 2013

Soorah Alfath 48 All

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६

"बेशक हमने आप को खुल्लम खुल्ला फ़तह दी, ताकि अल्लाह तअला आप की अगली पिछली सभी खताएँ मुआफ़ कर दे. और आप पर अपने एहसानात की तकमील कर दे. और आप को सीधे रस्ते पर ले चले. अल्लाह आपको ऐसा ग़लबा दे जिस में इज्ज़त ही इज्ज़त हो."
सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (१-३)

गौर तलब है कि अल्लाह ने मुहम्मद को इस लिए खुल्लम खुल्ला फ़तह दी कि उनकी ख़ताएँ उसको मुआफ़ करना था. उसे अपने एहसानात की तकमील करने की जल्दी जो थी, मक्र की इन्तेहा है.मुहम्मद का माफ़ीउज़ज़मीर इस बात की गवाही देता है कि वह ख़तावार थे जिसे अनजाने में खुद वह तस्लीम करते हैं. मुहम्मद को तो मुहम्मदी अल्लाह ने मुआफ़ कर दिया मगर बन्दे मुहम्मद को कभी मुआफ़ नहीं करेंगे.
फ़तह के नशे में चूर मुहम्मद खुल्लम खुल्ला अल्लाह बन गए थे, इस बात की गवाह उनकी बहुत सी आयतें हैं. 

"मगर वह अल्लाह ऐसा है जिसने मुसलमानों के दिलों में तहम्मुल पैदा किया है ताकि इनके पहले ईमान के साथ, इनका ईमान और ज़्यादः हो और आसमानों और ज़मीन का लश्कर सब अल्लाह का ही है और अल्लाह बड़ा जानने वाला, बड़ी हिकमत वाला है, ताकि अल्लाह मुसलमान मरदों और मुसलमान औरतों को ऐसी बहिश्त में दाख़िल करे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, जिनमें हमेशा को रहेंगे, और ताकि इनके गुनाह दर गुज़र कर दे. और ये अल्लाह के नजदीक बड़ी कामयाबी है. और ताकि अल्लाह मुनाफ़िक़ मर्दों और मुनाफ़िक़ औरतों को, और मुशरिक मर्दों और मुशरिक औरतों को अज़ाब दे जो अल्लाह के साथ बुरे बुरे गुमान रखते थे. उन पर बुरा वक़्त पड़ने वाला है और अल्लाह उन पर गज़ब नाक होगा."
 सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (४-६)

"ये अल्लाह के नजदीक बड़ी कामयाबी है." इस जुमले पर गौर किया जाए कि वह अल्लाह जो अपनी कायनात में पल झपकते ही जो चाहे कर दे बस "कुन" कहने की देर है, उसके नज़दीक फ़तह मक्का बड़ी कामयाबी है. मुहम्मद अन्दर से खुद को अल्लाह बनाए हुए हैं.
इस फ़तह के बाद मुसलमानों का ईमान और पुख्ता हो गया कि वह सब्र वाले लुटेरे बन गए और लूट का माल मुहम्मद के हवाले कर दिया करते थे और जो कुछ वह उन्हें हाथ उठा कर दे दिया कयते उसी में वह सब्र कर लिया करते. मुहम्मद मुसलामानों को अल्लाह का लश्कर करार देते हैं और यक़ीन दिलाते है कि उनकी तरह ही अल्लाह के सिपाही आसमानों पर हैं.
जब तक मुसलमान अपने अल्लाह की इन बातों पर यक़ीन करते रहेंगे तालीम ए जदीद भी उनका भला नहीं कर सकती.

"जो लोग आपसे बैत कर रहे हैं, वह अल्लाह से बैत कर रहे हैं. अल्लाह का हाथ उनके हाथ पर है. फिर जो शख्स अहेद तोड़ेगा ,इको इसका वबाल इसी के सर होगा, जो पूरा करेगा उसको अल्लाह अनक़रीब बड़ा उज्र देगा.
सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (१०)

आखिर बंदे मुहम्मद ने इशारा कर ही दिया कि ही पाक परवर दिगार है, मगर एक धमकी के साथ.

"अगली दस आयातों में जंगों से मिला माले ग़नीमत पर अल्लाह का हुक्म मुहम्मद पर नाज़िल होता रहता है. दर अस्ल इस जंग में देहाती नव मुस्लिमों ने शिरकत करने से आनाकानी की थी. उनको उम्मीद नहीं थी कि मुहम्मद मक्का पर फ़तेह पाएँगे, बिल खुसूस कुरैशियों पर. अगर फ़तेह हो भी गई तो वह अपने कबीले पर रिआयत बरतेंगे और उनको लूटेंगे नहीं. ग़रज़ उनको इस जंग से माले ग़नीमत का कोई खास फायदा मिलता नज़र नहीं आया, इस लिए जंग में शिरकत से वह बचते रहे. मगर मुहम्मद को मिली कामयाबी के बाद वह मुसलमानों का दामन थामने लगे कि अल्लाह से इनके हक में वह दुआ करें. अल्लाह दिलों का हाल जानने वाला? अपने रसूल से कहता है कि इनको टरकाओ, ये तो मुसलामानों के ख़िलाफ़ बद गुमानी रखते थे. अंधे, लंगड़े और बीमारों को छोड़ कर बाकी किसी को जंग से जान चुराने की इजाज़त नहीं थी. मुहम्मद ऐसे लोगों पर फ़ौरन लअन तअन शुरू कर देते, दोज़ख उसके सामने लाकर पेश कर देते."
सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (११-१५)

"जो लोग पीछे रह गए थे वह अनक़रीब जब (तुम खैबर) की गनीमत लेने चलोगे, कहेगे कि हम को भी इजाज़त दो कि हम तुम्हारे साथ चलें. वह लोग यूँ चाहते हैं कि अल्लाह के हुक्म को बदल डालें. आप कह दीजिए कि हरगिज़ हमारे साथ नहीं चल सकते. अल्लाह तअला ने पहले से यूँ फ़रमा दिया था. इनके पीछे रहने वाले देहात्यों से कह दीजिए कि तुम लोग लड़ने के लिए बुलाए जाओगे, जो सख्त लड़ने वाले होंगे,"
सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (१६)

मुलाहिजा हो मुहम्मद कहते हैं "जब (तुम खैबर) की गनीमत लेने चलोगे" ये है मुहम्मद की जंगी फ़ितरत, लगता है जैसे खैबार में ग़नीमत की अशर्फियाँ इनके बाप दादे गाड कर आए हों.ये ये शख्स कोई इंसान भी नहीं जिसको ओलिमा हराम जादे मशहूर किए हुए हैं.मोह्सिने इंसानियत. जंगों से हजारो घर तबाह ओ बरबाद हो जाते हैं, उम्र भर की जमा पूँजी लुट जाती है, बस्तियों में खून की नदियाँ बहती हैं. मुहम्मद के लिए ये मशगला ठहरा, क्या मुहम्मदी अल्लाह की कोई हक़ीक़त हो सकती है कि घुटे मुहम्मद की तरह वह साज़ बाज़ की बातें करता है.

"अल्लाह ने तुम से बहुत सी गनीमातों का वादा कर रखा है, जिनको तुम लोगे. सरे दस्त ये दे दी है. और लोगों के हाथ तुम से रोक दिए हैं, और ताकि अहले ईमान के लिए नमूना हो. और ताकि तुम को एक सीधी सड़क पर दाल दे"
सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (२०)

मुसलमानों! समझो कि तुम्हारा नबी दीन के लिए नहीं लड़ता लड़ाता था, बल्कि अवाम को लूटने के लिए अल्लाह के नाम पर लोगों को उकसाता था.    
अल्लाह का पैगम्बर लड़ाकुओं को समझा रहा है कि जो कुछ मिल रहा है, रख लो. उनसे रसूल बना गासिब, अल्लाह का वादा दोहराता है, मुस्तकबिल में मालामाल हो जाओगे. सब्र और किनाअत को मक्कारी के आड़ में छिपाते हुए कहता है "और ताकि अहले ईमान के लिए नमूना हो. और ताकि तुम को एक सीधी सड़क पर डाल दे"
एक बड़ी आबादी को टेढ़ी और बोसीदा सड़क पर लाकर, उनके साथ खिलवाड़ कर गया.

"और अगर तुम से ये काफ़िर लड़ते तो ज़रूर पीठ दिखा कर भागते, फिर इनको कोई यार मिलता न मदद गार. अल्लाह ने कुफ्फार से यही दस्तूर कर रखा है जो पहले से चला आ रहा है, आप अल्लाह के दस्तूर में कोई रद्दो-बदल नहीं कर सकते."
सूरह अल्फतः - ४८, पारा -२६,  आयत (२३) 

जंग हदीबिया में मुहम्मद ने मक्का के जाने माने काफिरों को रिहा कर दिया जिसकी वजह से इन्हें मदनी मुसलमानों की मुज़ाहमत का सामना करना पड़ा, बस कि मुहम्मद पर अल्लाह की वह्यियों का दौरा पड़ा और आयात नाज़िल ही.
अल्लाह के दस्तूर के चलते मुस्लमान आज दुन्या में अपना काला मुँह भी दिखने के लायक़ नहीं रह गए, कुफ्फारों की पीठ देखते देखते.
*ऐ मज़लूम कौम! क्या ये क़ुरआनी आयतें तुमको नज़र नहीं आतीं जो मुहम्मद की छल-कपट को साफ़ साफ़ दर्शाती हैं. ?
*अपने पड़ोस पकिस्तान के अवाम की जो हालत हो रही है कि मुल्क छोड़ कर गए हुए लोग आठ आठ आँसू रो रहे हैं, इन्हीं आयतों की बेबरकती है उन पर, क्या इस सच्चाई को तुम समझ नहीं पा रहे हो?
पूरी दुन्या में मुसलामानों को शको शुबहा की नज़र से देखा जा रहा है, क्या सारी दुन्या गलत है और तुम ही सहीह हो?
*मुल्क और गैर मुमालिक में मुसलमानों की रोज़ी रोटी तंग हुई जा रही है, क्या तुम्हारे समझ में नहीं आता?
*तुम्हारे समझ में सब आता है कि तुम सबसे पहले इंसान हो, बाद में मुसलमान, हिन्दू और ईसाई वगैरा. तुमको हक शिनाश नहीं दे रहे हैं ये अपनी माओं के ख़सम आलिमान दीन औए उनके मज़हबी गुंडे.
**वक़्त आ गया है कि अब आँखें खोलो, जागो और बहादर बनो. तुम्हारा कुछ भी नहीं बदलेगा, बस बदलेगा ईमान कि अल्लाह, उसका रसूल, उसकी किताब, मफरूज़ाराजे हश्र, वह मफरूज़ा जन्नत दोज़ख
ये सब फिततीन मुहम्मद की ज़ेहनी पैदावार है. इनकी भरपूर मुखालिफत ही आज का ईमान होगा.