Thursday 29 June 2017

Soorah Asr 103

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****

सूरह  अस्र १०३  - पारा ३० 
(वलअसरे  इन्नल इनसाना)

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

तथा कथित बाबा राम देव एक मदारी है जो योग के नाम पर उछल कूद करता है. वह अव्वल दर्जे का अय्यार है जो भोले भाले अवाम को ठगता है. पैसे से दूर दिखने बाला ये धूर्त अपने हर काम में पैसे की दुर्गन्ध सूंघता है. इसकी एक ही प्रेक्टिस है" पेट की धौकनी " इसका तमाशा ये कुईन विक्टोरिया तक को दिखा चुका है. 
अफ़सोस होता है अवाम पर जो इसकी लकवा ग्रस्त आँखे और चेहरे को देख कर भी इसे हर बीमारी का मसीहा मानते हैं.
रामदेव एक फटीचर गवइए से अरबों का मालिक बन गया है, उसकी आकान्छाएँ यहीं तक सीमित नहीं, बल्कि वह देश का राष्ट्र पति बन्ने का सपना देख रहा है. योग गुरु तो उसने खुद को स्थापित कर ही चुका है, अब अवशधि  सम्राट की दौड़ में शामिल है. परदे के पीछे राम देव क्या है, इसका पोल भी जल्द ही दुन्या के सामने आ जायगा. इसको बढ़ावा देने वाले या तो सीधी सादी जनता है या फिर कपटी कुटिल मुट्ठी भर लोग. खेद है कि भेद चाल चलने वाली जनता के लिए जम्हूरियत की सौगात है.
ऐसे हालात ही इन कुटिलों को एक दिन मुहम्मद बना देते हैं.

"क़सम है ज़माने की,
कि इंसान बड़े ख़सारे में है,
मगर जो लोग ईमान लाए और उन्हों ने अच्छे कम किए और एक दूसरे को हक की फ़ह्माइश करते रहे और एक दूसरे को पाबंदी की फ़ह्माइश करते रहे"
सूरह वल अस्र १०३ पारा-३० आयत (१०३)

नमाज़ियो !

आज जदीद क़द्रें आ चुकी हैं कि 'बिन माँगी राय' मत दो, क़ुरआन कहता है," एक दूसरे को हक की फ़ह्माइश करते रहो"
हक नाहक इंसानी सोच पर मुनहसर करता है, जो तुम्हारे लिए हक़ का मुक़ाम रखता है, वह किसी दूसरे के लिए नाहाक़ हो सकता है. उसको अपनी नज़र्याती राय देकर, फर्द को महेज़ आप छेड़ते हैं, जो कि बिल आखीर तनाजिए का सबब बन सकता है.
इन्हीं आयातों का असर है कि मुसलामानों में तबलीग का फैशन बन गया है और इसकी जमाअतें बन गई हैं. यही तबलीग (फ़ह्माइश)जब जब शिद्दत अख्तियार करती है तो जान लेने और जान देने का सबब बन जाती है और इसकी जमाअतें तालिबानी हो जाती हैं.

इस्लाम हर पहलू से दुश्मने-इंसानियत है. अपनी नस्लों को इसके साए से बचाओ.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 27 June 2017

Hindu Dharm Darshan 76



वर्ग विशेष 

मुसलमानों को वर्ग विशेष का दर्जा हिन्दू समाज ने कब से और क्यूँ दे रख्खा है, यह खोज का विषय है. 
उस समय मुस्लिम प्रतिष्ठित अपने धर्म के कारण ही रहे होंगे जिसे कि बहु संख्यक समाज को भी कहना पड़ता था कि वह हम से बरतर हैं. 
इस बात को इस प्रचलित विशवास से भी देखा जा सकता है कि मस्जिद में नमाजियों से नमाज़ के बाद हिन्दू औरतें अपने बच्चों को गोदों में लिए नमाजियों से फूंक डलवाने के लिए लाइन से खड़ी रहती है. पचास साल पहले मैं इस बात का गवाह हूँ, अब माहौल बदला होगा पता नहीं . 
इस तरह के बहुत से विश्वास और सुलूक मुसलमानों के हैं जो इसे वर्ग विशेष बनाते है. 
इस्लामी नज़रिए की निराकार कोई एक ताक़त जिसे अल्लाह कहा जाता है, साकार मूर्तियों और देवों की भीड़ पर ग़ालिब हो गई, जिसे अब बाक़ी हिन्दू भी जाने अनजाने मानने लगे है. 
सब इंसान अल्लाह के बन्दे समान दर्जा रखते है. ज़ात-पात, छुवा-छूत से मुसलमान परे हैं यह बात अलग है कि हिन्दू समाज के असर में थोड़े बहुत हैं.
कोई बेहतर न कोई मेहतर. 
दुन्या की आधी आबादी यानी स्त्री का दर्जा मुस्लिम समाज में कहीं बेहतर है बनिस्बत हिन्दू समाज के.
विधवा और अबला को यह समाज पहले अपनाता है.
अपनी माँ बहेन बेटियों को आश्रम के हवाले नहीं करता. 
यह बात भी सच है कि क़ुरान एक मर्द की गवाही की जगह दो औरतों की गवाही चाहता है जब कि हिन्दू धर्म ग्रन्थों में औरतों को कोई मकाम ही नहीं है.
 मुसलमानों की ज़िन्दगी में हराम और हलाल का बड़ा दख्ल़ है जिसका हिन्दू समाज को ज्ञान ही नहीं. 
इंसान का हर नवाला हराम और हलाल के पैमाने से तुला हुवा होता है, 
खुराक ही नहीं, हर अमल हराम और हलाल की राह से गुज़रता है. 
शराब और जुए से निस्बतन दूर. 
मांसाहार भी इसकी माक़ूलियत है.
हिन्दू समाज मुसलमानों को वर्ग विशेष इस लिए कहता है कि वह इन हकीकतों को देखता है, मगर अपने समाज की जंजीरों में जकड़ा हुवा है.
इसके बावजूद आधा अखंड भारत इस्लाम के शरण में चला गया.

मुसलमान इनको ग़ैर मुस्लिम कहता है. ग़ैर अर्थात पराया. गोया हिन्दू इनके लिए पराए होते हैं. सच तो यह है कि मुसलमान ग़ैर को अपनाता है और हिन्दू अपनों को वहिस्कृत करता है.
इन विरोध भाषी प्रचलन के साथ लगभग एक हज़ार साल गुज़र गए. 
और यह अब भी प्रचलित है. इसके असर में भारत आज भी प्रभावित है, 
किसी दबाव के चलते कौमी स्तर पर धमकियां आया करती हैं कि अगर हमारी बात न मानी गई तो हम इस्लाम कुबूल कर लेंगे. 
कोई वर्ग विशेष नाम का प्राणी नहीं जो कभी धमकाए कि वह हिन्दू धर्म स्वीकार कर लेगा . 
हर रोज़ कोई न कोई हिन्दू इस्द्लाम को कुबूल करता हुवा देखा जा सकता है मगर पचास वर्ष की अपनी व्यसक आयु में मैंने सिर्फ एक बार पढ़ा कि कोई मुस्लिम हिन्दू बन कर सुमन नाम रख्खा है.
मैं हर धर्म और मज़हब को दुन्या की बद तरीन वजूद मानता हूँ 
वह चाहे इस्लाम हो या दूसरा कोई. 
मगर जो देख रहा हूँ वह लिख रहा हूँ.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 26 June 2017

Soorah Taqasur 102

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह  तकासुर १०२  - पारा ३० 
(अल्हाको मुत्तकासुरोहत्ता ज़ुर्तमुल मकाबिर)  

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

मुसलामानों का एक फख्र ए नाहक ये भी है कि दुन्या में क़ुरआन वाहिद ऐसी करिश्माई किताब है कि जिसको हिफ्ज़ (कंठस्त) किया जा सकता है, इसलिए कि ये आसमानी किताब है. यक़ीन किया जा सकता है कि इस बात में जुज़्वी सच्चाई है क्यूंकि चौदा सौ सालों में इसके लाखों हाफिज़ हुए होंगे और आज भी हजारहा मौजूद हैं. इस बात पर एक तहक़ीक़ी निगाह डालने की ज़रुरत है. सब से पहले कि कुरआन एक मुक़फ्फ़ा नसर (तुकान्ती गद्य) है जिसमे लय और तरन्नुम बनना फितरी है. इसको नगमों की तरह याद किया जा सकता है. खुद कुरआन के तर्जुमे को किसी दूसरी भाषा में हिफ्ज़ कर पाना मुमकिन नहीं, क्यूंकि ये कोई संजीदा मज़मून नहीं है, कोई भी नज़्म खुद को याद कराने की कशिश रखती है. इसके हिफ्ज़ का शिकार तालिब इल्म किसी दूसरे मज़मून के आस पास नहीं रहता, जब वह दूसरे सब्जेक्ट पर जोर डालता है तो उसका क़ुरआनी हिफ्ज़ ख़त्म होने लगता है.
आमाद ए जेहाद तालिब इल्म कुरआन क्या, इससे बड़ी बड़ी किताबो का हफिज़ा कर लेता है. एक लाख बीस हज़ार की ज़खीम किताब महा भारत बहुतों को कंठस्त हुई. सिन्फ़ आल्हा ज़बानी गाया जाता है जो बांदा जिले के लोगों में सीना बसीना अपने पूर्वजों से आय़ा. इस विधा को जाहो-जलाल के साथ गाया जाता है कि सुनने वाले पर जादू चढ़ कर बोलता है. अभी एक नवजवान ने पूरी अंग्रेजी डिक्शनरी को, लफ़्ज़ों को उलटी हिज्जे के साथ याद करके दुन्या को अचम्भे में ड़ाल दिया, इसका नाम गिनीज़ बुक आफ रिकार्ड में दर्ज हुआ.
अहम् बात ये है कि इतनी बड़ी तादाद में हाफ़िज़े कुरआन, कौम के लिए कोई फख्र की बात नहीं, ये तो शर्म की बात है कि कौम के नवजवान को हाफ़िज़े जैसे गैर तामीरी काम में लगा दिया जाए. इतने दिनों में तो वह ग्रेजुएट हो जाते. कोई कौम दुन्या में ऐसी नहीं मिलेगी जो अपने नव जवानों की ज़िन्दगी इस तरह से बर्बाद करती हो. 
अल्लाह कहता है - - -

"फख्र करना तुमको गाफ़िल किए रखता है,
यहाँ तक कि तुम कब्रिस्तानों में पहुँच जाते हो,
हरगिज़ नहीं तुमको बहुत जल्द मालूम हो जाएगा.
(फिर) हरगिज़ नहीं तुमको बहुत जल्द मालूम हो जाएगा.
हरगिज़ नहीं अगर तुम यकीनी तौर पर जान लेते,
वल्लाह तुम लोग ज़रूर दोज़ख को देखोगे.
वल्लाह तुम लोग ज़रूर इसको ऐसा देखना देखोगे जोकि खुद यक़ीन है, फिर उस रोज़ तुम सबको नेमतों की पूछ होगी".

नमाज़ियो! 
तुम अल्लाह के कलाम की नंगी तस्वीर देख रहे हो, कुरआन में इसके तर्जुमान इसे अपनी चर्ब ज़बानी से बा लिबास करते है. क्या बक रहे हैं तुम्हारे रसूल ? वह ईमान लाए हुए मुसलामानों को दोज़ख में देखने की आरज़ू रखते हैं. किसी तोहफे की तरह नवाजने का यकीन दिलाते हैं. " वल्लाह तुम लोग ज़रूर दोज़ख को देखोगे." अगर वाकई कहीं दोज़ख होती तो उसमें जाने वालों में मुहम्मद का नाम सरे फेहरिश्त होता.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 24 June 2017

Hindu Dharm Darshan 75



हिदुस्तानी मुसलमान 

कुछ पढ़े लिखे मूर्ख, जनता के तथा कथित प्रतिनिघ बड़ी आसानी से मुसलमानों को मश्विरह दे देते हैं कि पाकिस्तान चले जाएं. 
जो पाकिस्तान ज़िदाबाद के नारे लगाते हैं और पाकिस्तान जाना चाहते हैं, उनको हमरा कानून जाने नहीं देता. बार्डर क्रॉस करते  ही फौज उन्हें गोली मार  देगी . ऐसे जन प्रतिनिघ अपने साक्षर बापों से मश्विरह लेकर ही जुबान खोला करें.
काश कि संसार के सारे देश इस बात को माने कि हर आने जाने वाले को Wellcome और Wellgo कहकर बंधकों आज़ाद किया करें.
मगर सवाल यह उठता है कि जिन मुल्कों ने परिश्रम और ईमान दारी से अपने देश को पवित्र और जन्नत नुमा बनाया है वह घटिया दरजे के इन बेईमान और भ्रष्ट लोगों को अपने देश में घुसने भी क्यों दें ? वह तो हर देश के उन नव निहालों को सर आँखों पर बिठाते हैं जो हर मैदान में उनकी तरह या उनसे आगे हो, भारत के हों या पाकिस्तान के.
हम बात कर रहे थे उन थोथे प्रतिनिघयों की जो हमें देश छोड़ने की राय दिया करते हैं, कि हम को अगर तुम्हारे बापों का देश छोड़ना ही पड़ा तो हम अपना मकान, अपनी दुकान, अपनी खेती बाड़ी, और अपना तमाम असासा अपने साथ लेकर ही जाएँगे , 
तुमको मुफ्त नहीं दे जाएँगे. 
हम ईमान दारी के साथ सरकारी भुगतान को जीवन का अंग बनाए हैं, 
हर तरह के कर अदा करते हैं, 
हर कानून का पालन करते हैं, हमें देश नहीं छोड़ना पड़ेगा 
बल्कि देश को उन टुकड़ों को छोड़ना पड़ेगा जो हमारा है. 
देश छोड़ने वाले बनिए और बाह्मन होगे जो देश के तमाम संसाधन और दौलत पर कब्जा किए हुए बैठे हैं. 
मल्याओं ने तो खुद ही देश छोड़ रखा है. 
मुसलमान तुम्हारी आँखों में इस लिए चुभ रहे है कि वह मनुवाद के फंदे से आज़ाद हो गए हैं, शूद्रों , हरिजनों और आज के दलितों की तरह तुम्हारे दास नहीं, तुम्हारा मल मूत्र नहीं ढोते, तुहारे डांगर नहीं निक्याते.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 23 June 2017

Soorah alkaariya 101

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
***
सूरह अलक़ारिआ १०१- पारा ३०
(अल्क़ारेअतो मल्क़ारेअतो)


एक बच्चे ने बाग़ में बैठे कुछ बुजुर्गों से, आकर पूछा क़ि क्या उनमें से कोई उसके एक सवाल का जवाब दे सकता है?
छोटा बच्चा था, लोगों ने उसकी दिलजोई की, बोले पूछो.
बच्चे ने कहा एक बिल्ली अपने बच्चे के साथ सड़क पार कर रही थी क़ि अचानक एक कार के नीचे आकर मर गई, मगर उसका बच्चा बच गया, बच्चे ने आकर अपनी माँ के कान में कुछ कहा और वहां से चला गया. ,
आप लोगों में कोई बतलाए क़ि बच्चे ने अपनी माँ के कान में क्या कहा होगा ?
बुड्ढ़े अपनी अपनी समझ से उस बच्चे को बारी बारी जवाब देते रहा जिसे बच्चा ख़ारिज करता रहा. थक हर कर बुड्ढों ने कहा , अच्छा भाई  हारी, तुम ही बतलाओ क्या कहा होगा?
बच्चे ने कहा उसने अपनी माँ के कान में कहा था "मियाऊँ"
आलिमान दीन की चुनौती है कि कुरआन का सही मतलब समझना हर एक की बस की बात नहीं, वह ठीक ही समझते है क़ि मियाऊँ को कौन समझ सकता है? मुहम्मद के मियाऊँ का मतलब है "क़यामत ज़रूर आएगी"

देखिए क़ि मुहम्मद उम्मी सूरह में आयतों को सूखे पत्ते की तरह खड़खडाते हैं. सूखे पत्ते सिर्फ जलाने के काम आते हैं. वक़्त का तकाज़ा है क़ि सूखे पत्तों की तरह ही इन कुरानी आयतों को जला दिया जाए - - - 


"वह खड़खडाने वाली चीज़ कैसी कुछ है, वह खड़खडाने वाली चीज़,
वह खाद्खादाने वाली चीज़ कैसी कुछ है वह खड़खडाने वाली चीज़,
और आपको मालूम है कैसी कुछ है वह खड़खडाने वाली चीज़,
जिस रोज़ आदमी परेशान परवानों जैसे हो जाएगे.
और पहाड़ रंगीन धुनी हुई रूई की तरह हो जाएगे,
फिर जिस शख्स का पल्ला भरी होगा,
वह तो खातिर ख्वाह आराम में होगा,
और जिसका पल्ला हल्का होगा,
तो उसका ठिकाना हाविया होगा,और आपको मालूम है, वह हाविया क्या है?
वह एक दहकती हुई आग है."
सूरह अलक़ारिआ १०१- पारा ३० आयत (१-११)

 नमाज़ियो !
इस सूरह को ज़बान ए उर्दू में हिफज़ करो उसके बाद एक हफ्ते तक अपनी नमाज़ों में ज़बान ए उर्दू में (या जो भी आपकी मादरी ज़बान हो), अल्हम्द के बाद इसे ही जोड़ो. अगर तुम उस्तुवार पसंद हो तो तुम्हारे अन्दर एक नया नमाज़ी नमूदार होगा. वह मोमिन की राह तलाश करेगा, जहाँ सदाक़त और उस्तुवारी है.
नमाज़ के लिए जाना है तो ज़रूर जाओ, उस वक्फे में वजूद की गहराई में उतरो, खुद को तलाश करो. अपने आपको पा जाओगे तो वही तुम्हारा अल्लाह होगा. उसको संभालो और अपनी ज़िन्दगी का मकसद तुम खुद मुक़र्रर करो.

तुम्हें इन नमाज़ों के बदले 'मनन चिंतन' की ज़रुरत है. इस धरती पर आए हो तो इसके लिए खुद को इसके हवाले करो, इसके हर जीव की खिदमत तुम्हारी ज़िन्दगी का मक़सद होना चाहिए, इसे कहते हैं ईमान, क़ि जो झूट का इस्तेमाल किसी भी हालत में न करे. तुम्हारे कुरआन में  मुहम्मदी झूट का अंबार है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 19 June 2017

Soorah Adyaat 100

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह  आदियात १००  - पारा ३० 
(वलआदेयाते ज़बहन)

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

कुदरत के कुछ अटल कानून हैं. इसके कुछ अमल हैं और हर अमल का रद्दे अमल, इस सब का मुजाहिरा और नतीजा है सच, जिसे कुदरती सच भी कहा जा सकता है.कुदरत का कानून है २+२=४ इसके इस अंजाम ४ के सिवा न पौने चार हो सकता है न सवा चार. कुदरत जग जाहिर (ज़ाहिर) है और तुम्हारे सामने भी मौजूद है.
कुदरत को पूजने की कोई लाजिक नहीं हो सकती,कोई जवाज़ नहीं, मगर तुम इसको इससे हट कर पूजना चाहते हो इस लिए होशियारों ने इसका गायबाना बना दिया है. उन्हों ने कुदरत को मफौकुल फितरत शक्ल देकर अल्लाह, खुदा और भगवन वगैरा बना दिया है. तुम्हारी चाहत  की कमजोरी का फ़ायदा ये समाजी कव्वे उठाया करते है. तुम्हारे झूठे पैगम्बरों ने कुदरत की वल्दियत भी पैदा कर रखा है कि सब उसकी कुदरत है.दर असल दुन्या में हर चीज़ कुदरत की ही क़ुदरत है, जिसे समझाया जाता है कि इंसानी जेहन रखने वाले अल्लाह की कुदरत है.
कुदरत कहाँ कहती है कि तुम मुझको तस्लीम करो, पूजो और उससे डरो? कुदरत का कोई अल्लाह नहीं और अल्लाह की कोई कुदरत नहीं. दोनों का दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं. क़ुदरत खालिक भी है और मखलूक भी. वह मंसूर की माशूक भी है और राबिया बासरी का आषिक भी. भगवानों, रहमानों और शैतानों का उस के साथ दूर का भी रिश्ता नहीं है.देवी देवता और औतार पयम्बर तो उससे नज़रें भी नहीं मिला सकते.क़ुदरत के अवतार पयम्बर हैं, उसके मद्दे मुकाबिल खड़े हुए उसके खोजी हमारे साइंसटिस्ट, जिनकी शान है उनकी फरमाई हुए मजामीन और उनके नतायज जो मखलूक को सामान ए ज़िन्दगी देते हैं. मजदूरों को मशीने देते है और किसानो को नई नई भरपूर फसलें.यही मेहनत कश इस कायनात को सजाने और संवारने में लगे हुए हैं. सच्चे फ़रिश्ते यही हैं.
तुम अपने गरेबान में मुँह डाल कर देखो कि कहीं तुम भी तो इन अल्लाह फरोशो के शिकार तो नहीं?
क़ुदरत को सही तौर पर समझ लेने के बाद, इसके हिसाब से ज़िन्दगी बसर करना ही जीने का सलीका है.
देखिए पैगम्बर अल्लाह के नाम पर कैसी कैसी बेहूदा आयतें गढ़ते हैं, वह भी अल्लाह को कसमें खिला खिला कर. 

"क़सम है उन घोड़ों की जो हाफ्ते हुए दौड़ते हैं,
फिर टाप मार कर आग झाड़ते हैं,
फिर सुब्ह के वक़्त तख़्त ओ ताराज करते हैं,
फिर उस वक़्त गुबार उड़ाते हैं,
फिर उस वक़्त जमाअत में जा घुसते हैं,
बेशक आदमी अपने परवर दिगार का बड़ा नाशुक्रा है,
और इसको खुद भी इसकी खबर है,
और वह माल की मुहब्बत में बड़ा मज़बूत है,
क्या इसको वह वक़्त मालूम नहीं जब जिंदा किए जाएँगे, जितने मुर्दे कब्र में हैं.
और आशकारा हो जाएगा जो कुछ दिलों में है,
बेशक इनका परवर दिगार इनके हाल से, उस रोज़ पूरा आगाह है."

नमाज़ियो !

इन आयतों को एक सौ एक बार गिनते हुए पढो, शायद तुमको अपनी दीवानगी पर शर्म आए. तुम बेदार होकर इन घोड़ों की खुराफातें जो जंग से वाबिस्ता हैं, से अपने आप को छुड़ा सको. आप को कुछ नज़र आए कि आप की नमाज़ों में घोड़े अपने तापों की नुमाइश कर रहे हैं. मुहम्मद अपने इग्वाई ( जेहादी) प्रोग्रामों को बयान कर रहे हैं, जैसा कि उनका तरिका ए ज़ुल्म था कि वह अलल सुब्ह वह पुर अमन आबादी पर हमला किया करते थे. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 17 June 2017

Hindu Dharm Darshan 74




लड़ें खामोश आपस में - - - 

हम अपनी खामियां खोलें , तुम अपने ऐब को खोलो ,
लड़ें खामोश आपस में , न तुम बोलो न हम बोलें .

शायर का मशविरा कितना मुफीद है कि कहता है 
हमारी लड़ाई में कोई शोर व गुल, कोई हंगामा, कोई युफान बद तमीजी न हो. 
हम एक दूसरे की बखिया उधेड़ने की बजाए ख़ुद apna आत्मलोकन करें, 
ज्यादा आसान होगा कि मुझ से ज्यादा मेरी खामियां और कोई नहीं जनता. 
दूसरो की कमियों को जान्ने के लिए हमें प्रयास करना पड़ता है. 
बुरा जो देखन मैं चली, मुझसे बुरा न कोई. 
कोई नेक बंदा, बन्दों के हक में कुछ सोचता है जिसे लोग पसंद करते हैं, 
वह रात व रात शोहरत पा जाता है. 
उसके प्रचारक उसके लिए समार्पित हो जाते है. 
उसके मरने के बाद उसका धर्म बन जाता है, 
यही धर्म एक रोज़ होशियारों का धंधा हो जाता है. 
आजकी दुन्या में धर्म ही सब से बड़े अधर्म बने हुए हैं. 
मानव धर्म मानवता, वजूद में आ चुका है.
इस बात की कद्र करें और अतीत की अमनीय कडुवाहट को भूल कर, 
वर्तमान को नफरत मुक्त कर दें, 
तुम्हारे दादा में मेरे दादा को मुर्गा बनाया था, 
इस में मेरा क्या कुसूर है ? 
हम भारतीय इसी माजी के तकरार में पड़े हुए हैं, 
इस आधार हीन बातों को कुछ देश भूल कर आज मानवता के शिखर पर पहुँच गए हैं. 
आइए हम भी सुधरें.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 16 June 2017

Soorah Zilzal 99

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****

सूरह  ज़िल्ज़ाल ९९   - पारा ३० 

(इज़ाज़ुल्ज़ेलतिल अर्जे ज़ुल्ज़ालहा)   

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

नमाज़ ही शुरूआत अल्लाह हुअक्बर से होती बह भी मुँह से बोलिए ताकि वह सुन सके? 
अल्लाह हुअक्बर का लाफ्ज़ी मअनी है अल्लाह सबसे बड़ा है. 
तो सवाल उठता है कि अल्लाह हुअस्गर कौन हैं? भगवान राम या कृष्ण कन्हैया, भगवन महावीर या महात्मा गौतम बुध? ईसाइयों का गाड, यहूदियों का याहू या ईरानी ज़र्थुर्ष्ट का खुदा? कोई अकेली लकीर को बड़ा या छोटा दर्जा नहीं दिया जा सकता जब तक की उसके साथ उससे फर्क वाली लकीर न खींची जाए. इसलिए इन नामों की निशान दही की गई है.मुसलमानों को शायद ईसाई का गोंड., यहूदियों का याहू और ईरानियों का खुदा अपने अलाल्ह के बाद तौबा तौबा के साथ गवारा हो कि ये उनके अल्लाह के बाद हैं मगर बाकियों पर उनका लाहौल होगा. 
सवाल उठता है कि वह एक ही लकीर खींच कर अपनी डफली बजाते है कि यही सबसे बड़ी लकीर है, अल्लाह हुअक्बर . 
एक और बात जोकि मुसलमान शुऊरी तौर पर तस्लीम करता है कि शैतान मरदूद को उसके अल्लाह ने पावेर दे रक्खा है कि वह दुन्या पर महदूद तौर पर खुदाई कर सकता है. अल्लाह की तरह शैतान भी हर जगह मौजूद है, वह भी अल्लाह के बन्दों के दिलों पर हुकूमत कर सकता है, भले ही गुमराह कंरने का. इस तरह शैतान को अल्लाह होअस्गर कहा जाए तो बात मुनासिब होगी मगर मुसलमान इस पर तीन बार लाहौल भेजेंगे. 
इस पहले सबक में मुसलामानों की गुमराही बयान कर रहा हूँ, दूसरे हजारों पहलू हैं जिस पर मुसलमान ला जवाब होगा.

देखिए कि अल्लाह कुछ बोलने के लिए बोलता है, यही बोल मुसलमानों से नमाज़ों में बुलवाता है - - -

"जब ज़मीन अपनी सख्त जुंबिश से हिलाई जाएगी,
और ज़मीन अपने बोझ बहार निकल फेंकेगी,
और आदमी कहेगा, क्या हुवा?
उस  रज अपनी सब ख़बरें बयान करने लगेंगे,
इस सबब से कि आप के रब का इसको हुक्म होगा उस रोज़ लोग मुख्तलिफ़ जमाअतें बना कर वापस होंगे ताकि अपने आमाल को देख लें.
सो जो ज़र्रा बराबर नेकी करेगा, वह इसको देख लेगा
और जो शख्स ज़र्रा बराबर बदी करेगा, वह इसे देख लेगा.
सूरह  ज़िल्ज़ाल ९९   - पारा ३० आयत (१-८)

नमाज़ियो!
ज़मीन हर वक़्त हिलती ही नहीं बल्कि बहुत तेज़ रफ़्तार से अपने मदर पर घूमती है. इतनी तेज़ कि जिसका तसव्वुर भी कुरानी अल्लाह नहीं कर सकता. अपने मदर पर घूमते हुए अपने कुल यानी सूरज का चक्कर भी लगती है अल्लाह को सिर्फ यही खबर है कि ज़मीन में मुर्दे ही दफ्न हैं जिन से वह बोझल है तेल. गैस और दीगर मदनियात से वह बे खबर है. क़यामत से पहले ही ज़मीन ने अपनी ख़बरें पेश कर दी है और पेश करती रहेगी मगर अल्लाह के आगे नहीं, साइंसदानों के सामने.

धर्म और मज़हब सच की ज़मीन और झूट के आसमान के दरमियाँ में मुअललक फार्मूले है.ये पायाए तकमील तक पहुँच नहीं सकते. नामुकम्मल सच और झूट के बुनियाद पर कायम मज़हब बिल आखिर गुमराहियाँ हैं. अर्ध सत्य वाले धर्म दर असल अधर्म है. इनकी शुरूआत होती है, ये फूलते फलते है, उरूज पाते है और ताक़त बन जाते है, फिर इसके बाद शुरू होता है इनका ज़वाल ये शेर से गीदड़ बन जाते है, फिर चूहे. ज़ालिम अपने अंजाम को पहुँच कर मजलूम बन जाता है. दुनया का आखीर मज़हब, मजहबे इंसानियत ही हो सकता है जिस पर तमाम कौमों को सर जड़ कर बैठने की ज़रुरत है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 13 June 2017

Hindu Dharm Darshan 73



साही मरे मूड के मारे, हम संतन का का पड़ी - - -
"गर्व से कहो हम हिंदू "
Arvind Rawat

किसी भी व्यक्ति और समूह को गुलाम कब कहा जाता हैं, यह वास्तव में महत्वपुर्ण सवाल हैं....!!
कोई भी व्यक्ति या समूह जब पराजित हो जाता है, तब विजेता लोग उसको गुलाम बना देते हैं । मगर पराजित लोग इसका अपने ताकत के अनुरूप में विरोध करते हैं । प्रारंभ में यह होता हैं, मगर धीरे धीरे जो लोग पराजित होते हैं, वह लोग अपना इतिहास और अपने तौर तरीके भूलने लगते हैं, अपना वजूद भुलने लगते हैं, तो वे अपनी अस्मिता और असली पहचान भी भुलने लगते हैं । इस तरह से उनकी पहचान धीरे धीरे-धीरे समाप्त हो जाती हैं । जैसे ही, उनकी पहचान समाप्त हो जाती हैं, वे अपना इतिहास और अपने पूर्वजों का गौरव भी भूल जाते हैं, तब उन्हें अपने स्वाभिमान का अहसास होना भी समाप्त हो जाता हैं और वे गुलाम बन जाते हैं । जब इन गुलामों की अपनी पहचान समाप्त हो जाती हैं, तब वे विजयी लोगों का अनुकरण और 
अनुसरण करना शुरू कर देते हैं । जब यह अनुकरण और अनुसरण शुरू हो जाता हैं, तो इन पराजित लोगों का अपना मूल अस्तित्व समाप्त हो जाता हैं ।
अपना मूल अस्तित्व खोने की वजह से ये लोग विजेताओं की परंपराओं का अनुसरण करके अपना अस्तित्व और अपनी पहचान मिटाना शुरू कर देते हैं । यही पर गुलामों की गुलामी का अहसास समाप्त हो जाता हैं ।
जब गुलामों को गुलामी का एहसास होना बंद हो जाता हैं, तब उसी वक्त कोई भी जाती या समूह वास्तव में गुलाम बन जाता हैं ।
ऊपर उल्लेखित धारणा से अगर देखा जाए, तो यहाँ का मूलनिवासी भारतीय वास्तव में गुलाम हैं । भारत के अलावा दूसरे देशों में भी गुलाम बनाए गए हैं, मगर उन गुलामों को शिक्षा के अधिकारों से वंचित नहीं किया गया था । लेकिन भारत में शिक्षा के अधिकारों से मूलनिवासी गुलामों को वंचित कर दिया गया था, जिससे भारत का मूलनिवासी केवल गुलाम नहीं रहा, बल्कि, वह विदेशी ब्राह्मणों का पक्का गुलाम हुआ । हम इसे पक्का गुलाम इसलिए कहते हैं, क्योंकि, मूलनिवासी गुलाम लोग अपने गुलामी का गर्व और गौरव करते हैं ; गुलामी मे सुख और आनंद का अनुभव करते हैं । विजेताओं की परंपराओं का यानी युरेशियन ब्राह्मणों की परंपरा, धर्म, संस्कार, समाज व्यवस्था का वे केवल अनुकरण और अनुसरण नहीं करते ; बल्कि, गर्व और गौरव भी करते हैं । युरेशियन ब्राह्मणों ने दिया हूआ यह नारा, हैं"गर्व से कहो हम हिंदू ", इसका हम मूलनिवासी लोग गर्व और गौरव से प्रतिध्वनित करते हैं । यही इस बात का सबूत हैं की, हम हमारे गुलामी का गर्व और गौरव करते हैं । इस स्थिति से मूलनिवासीयों को ब्राह्मणों के गुलामी से मुक्त करने की आवश्यकता हैं । मूलनिवासीयों को किसने गुलाम बनाया हैं, यह बात तो सर्व विदित हैं कि, वर्ण व्यवस्था, जाती व्यवस्था और अस्पृश्यता यह युरेशियन ब्राह्मणों के बड़े हथियार हैं । इन हथियारों का प्रयोग और उपयोग करके उन्होंने हम मूलनिवासीयों को पराजित किया और हमें पराजित करने के लिए कई साजिशे, हथकंडे अपनायें । यह सब करने वाले लोग युरेशियन ब्राह्मण ही थे । इस तरह से, मूलनिवासीयों को गुलाम बनाने वाले लोग युरेशियन ब्राह्मण ही हैं ।
जिन लोगों के पास विचारधारा नहीं होती, जो लोग अपने दुश्मनों को ठीक से नहीं पहचानते, अपने दोस्तों को ठीक से नहीं पहचानते, जिनको इतिहास का सम्यक आकलन नहीं होता, जिनके पास व्यवस्था परीवर्तन का शास्त्र और शक्ति नहीं होती और उस शक्ति का प्रयोग और उपयोग करने का ज्ञान और कुशलता नहीं होती वे लोग जागरूक नहीं होते । इस तरह से जो लोग जागरूक नहीं होते हैं, वे अज्ञानी और मुढ बने रहते हैं और जो लोग जागरूक रहते हैं, वे लोग इन लोगों को अपनी जागिर बना लेते हैं, अपनी संपत्ति मानना शुरू करते हैं और गुलाम बनाते हैं ।
युरेशियन ब्राह्मणों ने भी यही किया और वर्तमान में भी वे यही कर रहे हैं । इसलिए, युरेशियन ब्राह्मण ही मूलनिवासी भारतियों के शत्रु हैं और इनसे हमें सजग रहना होगा ।
- - - -( मा. वामन मेश्राम
राष्ट्रीय अध्यक्ष, बामसेफ तथा 
भारत मुक्ति मोर्चा ) 
जय मूलनिवासी


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 12 June 2017

Soorah Bayyana 98

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
**

सूरह  बय्येनह  ९८  - पारा ३० 
(लम यकुनेल लज़ीना कफ़रू) 

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
पाकिस्तान की वेबसाइट्स पर जिंसी बेराह रावी की सबसे ज़्यादः भरमार है. किसी भी मज़मून की साइट्स खोलें, धीरे धेरे जिन्स के दरवाजे खुल जाते हैं. जिन्स के ऐसे ऐसे उन्वान कि पढके सर शर्म से झुक जाता है. ऐसा कल्चर इस मुल्क में फ़ैल रहा है जहाँ इंसानी रिश्ते तार तार हो रहे हैं. ये ख़तरनाक वेब मुहिम माँ, बहेन  और बेटियों की इज्ज़त उनके रखवाले ही लूटने लगेंगे, तब कहाँ  ले जायगा कौम को इसका अंजाम ? इसका कुसूर वार इस्लाम हो सकता है जहां ज़ानियों को सजाए मौत दी जाती है. शायद ये कल्चर इस बेराह रवी  के सहारे, फर्सूदा  निजाम का जवाब हो.

अल्लाह कहता है - - -
"लोग अहले किताब और और मुशरिकों में से हैं, काफ़िर थे, वह बाज़ आने वाले न थे, जब तक कि इन लोगों के पास वाजेह दलील न आई,
एक अल्लाह का रसूल जो पाक सहीफ़े सुनावे,
जिनमें दुरुस्त मज़ामीन लिखे हों,
और जो लोग अहले किताब थे वह इस वाज़ह दलील के आने के ही मुख्तलिफ़ हो गए,
हालाँकि इन लोगों को यही हुक्म हुवा कि अल्लाह की इस तरह इबादत करें कि इबादत इसी के लिए खास रहें कि इबादत  इसी के लिए खास रखें . यकसू होकर और नमाज़ की पाबन्दी रखें और ज़कात दिया करें.
और यही तरीका है इस दुरुस्त मज़ामीन का. बेशक जो लोग अहले किताब और मुशरिकीन से काफ़िर हुए, वह आतिश ए दोज़ख में जाएँगे. जहाँ हमेशा हमेशा रहेगे. ये लोग बद तरीन खलायक हैं.
बेशक जो लोग ईमान ले और अच्छे काम किए, वह बेहतरीन खलायक हैं.,
इनका सिलह इनके परवर दिगार के नज़दीक हमेशा रहने की बेहिश्तें हैं, जिनके नीचे नहरें जारी होंगी. अल्लाह इन से खुश होगा, ये अल्लाह से खुश होंगे, ये उस शख्स के लिए है जो हमेशा अपने रब से डरता है."
सूरह  बय्येनह  ९८  - पारा ३० (आयत (१-८)

नमाज़ियो!
सूरह में मुहम्मद क्या कहना चाहते हैं ? उनकी फितरत को समझते हुए मफहूम अगर समझ भी लो तो सवाल उठता है कि बात कौन सी अहमयत रखती है? क्या ये बातें तुम्हारे इबादत के क़ाबिल हैं ?क्या रूस, स्वेडन, नारवे, कैनाडा, यहाँ तक की कश्मीरियों के लिए घरों के नीचे बहती अज़ाब नहरें पसंद होंगी? आज तो घरों के नीचे बहने वाली गटरें होती हैं. मुहम्मद अरबी रेगिस्तानी थे जो गर्मी और प्यास से बेहाल हुवा करते थे, लिहाज़ा ऐसी भीगी हुई बहिश्त उनका तसव्वुर हुवा करता था.

ये कुरान अगर किसी खुदा का कलाम होता या किसी होशमंद इंसान का कलाम ही होता तो वह कभी ऐसी नाकबत अनदेशी की बातें न करता.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 10 June 2017

Hindu Dharm Darshan 72



वेद दर्शन                        

 खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हे वन स्वामी इंद्र 
जब तुमने तीन सौ भैसों का मांस खाया, 
सोम रस से भरे तीन पात्रों को पिया 
एवं वृत्र को मारा, 
तब सब देवों ने सोमरस से पूर्ण तृप्त इंद्र को 
उसी प्रकार बुलाया जैसे मालिक अपने दास को बुलाता है. 
पंचम मंडल सूक्त - 8 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
सभी देवता नशे में मद मस्त हो गए तो आदर सम्मान की मर्यादा खंडित थी. वह बक रहे हैं - - - 

अबे इंद्र !
इधर आ, सुनता नहीं ? 
दूं कंटाप पर एक तान के !! 
सरे पूज्य देवों को पंडित ने हम्माम में नंगा कर दिया है.
सारे हिदू जन साधारण, इस वेद जाल में फंसे हुए हैं. कहते हैं वेद मन्त्रों को समझना हर एक के बस की बात नहीं. 
आप समझें कि आप कहाँ हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 9 June 2017

Soorah qadr 97

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह क़द्र ९७ - पारा ३०
(इन्ना अनज़लना फी लैलतुल क़द्र) 

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

मैं कुरआन को एक साजिशी मगर अनपढ़ दीवाने  की पोथी मानता हूँ और मुसलामानों को इस पोथी का दीवाना.
एक गुमराह इंसान चार क़दम भी नहीं चल सकता कि राह बदल देगा, ये सोच कर कि शायद वह गलत राह पर ग़ुम हो रहा है. इसी कशमकश में वह तमाम उम्र गुमराही में चला करता है. मुसलमानों की जेहनी कैफियत कुछ इसी तरह की है, कभी वह अपने दिल की बात मानता है, कभी मुहम्मदी अल्लाह की बतलाई हुई राह को दुरुस्त पाता है. इनकी इसी चाल ने इन्हें हज़ारों तबके में बाँट दिया है. अल्लाह की बतलाई हुई राह में ही राह कर  कुछ अपने आपको तलाश करता है तो वह उसी पर अटल हो जाता है. जब वह बगावत कर के अपने नज़रिए का एलान करता है तो इस्लाम में एक नया मसलक पैदा होता है.यह अपनी मकबूलियत की दर पे तशैया (शियों का मसलक) से लेकर अहमदिए (मिर्ज़ा ग़ुलाम मुहम्मद कादियानी) तक होते हुए चले आए हैं. नए मसलक में आकर वह समझने लगते है कि हम मंजिल ए जदीद पर आ पहुंचे है, मगर दर असल वह अस्वाभाविक अल्लाह के फंदे में नए सिरे से फंस कर अपनी नस्लों को एक नया इस्लामी क़ैद खाना और भी देते है.
कोई बड़ा इन्कलाब ही इस कौम को रह ए रास्त पर ला सकता है जिसमे काफी खून खराबे की संभावनाएं निहित है. भारत में मुसलामानों का उद्धार होते नहीं दिखता है क्यूंकि इस्लाम के देव को अब्दी नींद सुलाने के लिए हिंदुत्व के महादेव को अब्दी नींद सुलाना होगा. यह दोनों देव और महा देव, सिक्के के दो पहलू हैं.
मुसलामानों इस दुन्या में एक नए मसलक का आग़ाज़ हो चुका है, वह है तर्क ए मज़हब और सजदा ए इंसानियत. इंसानों से ऊँचे उठ सको तो मोमिन की राह को पकड़ो जो कि सीध सड़क है.  

"बेशक हमने कुरआन को शब ए क़द्र में उतरा है,
और आपको कुछ मालूम है कि शब ए कद्र क्या चीज़ होती है,
शब ए कद्र हज़ार महीनों से बेहतर है,
इस रात में फ़रिश्ते रूहुल क़ुद्स अपने परवर दिगार के हुक्म से अम्र ए ख़ैर को लेकर उतरते हैं, सरापा सलाम है.
वह शब ए तुलू फजिर तक रहती है".
सूरह क़द्र ९७ - पारा ३०आयत (१-५) 

नमाज़ियो !
मुहम्मदी अल्लाहसूरह में कुरआन को शब क़द्र की रात को उतारने की बात कर रहा है
तो कहीं पर कुरआन माहे रमजान में नाज़िल करने की बात करता है, जबकि कुरआन मुहम्मद के खुद साख्ता रसूल बन्ने के बाद उनकी आखरी साँस तक, तक़रीबन बीस साल चार माह तक मुहम्मद के मुँह से निकलता रहा.  मुहम्मद का तबई झूट आपके सामने है. मुहम्मद की हिमाक़त भरी बातें तुम्हारी इबादत बनी हुई हैं, ये बडे शर्म की बात है. ऐसी नमाज़ों से तौबा करो. झूट बोलना ही गुनाह है, तुम झूट के अंबार के नीचे दबे हुए हो. तुम्हारे झूट  में जब जिहादी शर शामिल हो जाता है तो वह बन्दों के लिए ज़हर हो जाता है. तुम दूसरों को क़त्ल करने वाली नमाज़ अगर पढोगे तप सब मिल कर तुमको ख़त्म कर देंगे. मुस्लिम से मोमिन हो जाओ, बड़ा आसान है. सच बोलना, सच जीना और सच ही पर जन देना पढो और उसपर अमल करो, ये बात सोचने में है पहाड़ लगती है, अमल पर आओ तो कोई रूकावट नहीं.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 6 June 2017

Hindu Dharm Darshan 71



भारत  देश समूह 

वैदिक काल में इंसान पवित्र और अपवित्र की श्रेणी में बटा हुवा था . 
दसवीं सदी ई. तक इंसान गुलामी के ज़ेर ए असर अपने कमर के पीछे झाड़ू बाँध कर चलता था ताकि उसके नापाक क़दमों के निशान ज़मीन पर न रह पाएं.
दूसरी तरफ मंद बुद्धि ब्रह्मण वेद रचना में अपनी बेवकूफी गढ़ते 
और चतुर बुद्धि समाज पर शाशन करते. 
वह तथा कथित सवर्णों में यज्ञ करके सोमरस निचोड़ते या फिर खून.
गोधन उस समय सब से बड़ा धन हुवा .
तीज त्यौहार और धार्मिक समारोह में हजारों गाएँ कटतीं, शर्मा वैदिक क़साई हुवा करते.
इसी बीच बुद्ध जैसी हस्तियाँ आईं और पसपा हुईं.  
बुद्ध फ़िलासफ़ी भारत के बाहर शरण पा कर फूली फली. 
बुद्ध की अहिंसा की कामयाबी को छोड़कर बाक़ी बुद्धिज़्म को बरह्मनो ने कूड़ेदान में डाल दिया. इस में गाय की हिंसा इतनी शिद्दत थी गाय धन की जगह माता बन गई. 

दसवीं सदी ई में भारत में इस्लाम दाखिल हुवा, 
मानवता ने कुछ मुकाम पाया, 
शूद्रों ने जाना कि वह भी इंसानी दर्जा रखते है, 
वह इस्लाम के रसोई से लेकर इबादत गाहों तक पहुंचे.
धीरे धीरे आधा हिन्दुतान इस्लाम के आगोश में चला गया. 
आजके नक्शे में भारत + बांगला देश + पाकिस्तान की आबादियाँ जोड़ गाँठ कर देखी  जा सकती हैं. 

उसके बाद लगभग तीन सौ साल पहले अँगरेज़ भारत में दाखिल हुए, 
जिन्हों ने नईं नईं बरकतें हिन्दुस्तान को बख्शीं. 
धार्मिकता आधुनिकता रूप लेने लगीं, 
मंदिर मस्जिद और ताज महल के बजाए राष्ट्र पति भवन, पार्लिया मेंट हॉउस और हावड़ा ब्रिज भारत का भाग्य बने. लाइफ़ लाइन  रेल का विस्तार हुवा.

भारत आज़ाद हुवा, 
नेहरु काल तक अंग्रेजों की विरासत आगे बढ़ी.
भारत का उत्थान होता रहा, 
इंद्रा के बाद इसका पतन शुरू हुवा. 

मोदी युग आते आते भारत की गाड़ी  में उल्टा गेर लग गया .
बासी कढ़ी में उबाल शुरू हो चुका है.
फिर ब्रह्मणत्व वैदिक काल लाकर मनुवाद को स्थापित करना चाहता है.
भारत को भगुवा किया जा रहा है. 
इस आधुनिक युग में जानवरों को संरक्षण देकर प्रकृति के पाँव में बेड़ियाँ डाली जा रही हैं, जानवर इंसानी खुराक न होकर, इंसान जानवरों का खुराक बन्ने की दर पर है. जीव हत्या के नाम पर इंसानों की हत्या की जा रही है. 
दुन्या के अधिक तर जीव मांसाहारी हैं, इन जुनूनयों का बस चले तो यह शेर से लेकर बाज़ तक को शाकाहारी बनाने का यत्न करें.
याद रखें कृषि प्रधान भारत में, किसान का पशु पालन उनके हिस्से का व्यापार है 
जो निर्भर करता है मांसाहार पर . 
भेड, बकरी, भैस हो या गाय. इनका मांस अगर खाया नहीं जाएगा तो यह कुत्ते जैसे आवारा और अनुपयोगी बन कर रह जाएँगे.
खाल हड्डी खुर और सींग और मांस ही इनको पुनर जन्मित करते हैं.
अगर गो रक्षा का खेल यूँ ही चलता रहा तो एक दिन आएगा कि गाय भारत से नदारत हो जाएगी. इस पागलपन से एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि ऐसे देश में बहु संख्यक किसान बगावत पर उतर आए., 
देश प्रेम की जगह देश द्रोह अव्वलयत पा जाए और भारत के दर्जनों खंड बन जाएँ. भारत भारत न रह कर भारत देश समूह बन जाए.
हंसी आती है जब सरकारें देश की तरक्क़ी को अपनी गाथा में पिरोती है .
वैज्ञानिक तरक्क़ी भारत हो या चीन धरती का भाग्य है. इसे कोई रोक नहीं सकता मगर मानसिक उत्थान और पतन कौम की रहनुमाई पर मुनहसर है. 
देश तेज़ी से मानसिक पतन की ओर अग्रसर है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 5 June 2017

SOORAH Alaq 96

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अलक़ ९६ - पारा ३० 
(इकरा बिस्मरब्बे कल लज़ी ख़लक़ा)   

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

मैं कभी कभी उन ब्लॉगों पर चला जाता हूँ जो मुझे दावत देते है कि कभी मेरे घर भी आइए. उनके घरों में घुसकर मुझे मायूसी ही हाथ लगती है. उनके मालिकान अक्सर अज्ञान  हिन्दू और नादान मुसलमान होते है उनके फालोवर्स एक दूसरे को इनवाईट करते हैं कि 
आओ, मेरी माँ बहने हाज़िर हैं, इनको तौलो. 
इन बेहूदों को इससे कम क्या कहा जा सकता है.ये दोनों एक दूसरे का मल मूत्र खाने और पीने के लिए अपने खुले मुँह पेश करते हैं. इनके पूज्य और माबूद अपनी तमाम कमियों के साथ आज भी इनके पूज्य और माबूद बने हुए हैं. 
ज़माना बदल गया है उनके देव नहीं बदले. उनको भूलने और बर तरफ़ करने ज़रुरत है न कि आस्थाओं की बासी कढ़ी को उबालते रहने की.
युग दृष्टा हमारे वैज्ञानिक ही सच पूछो तो हमारे देवता और पयम्बर हैं जो हमें जीवन सुविधा प्रदान किए रहते है. इनकी पूजा अगर करने के लिए जाओ तो ये तुम्हारी नादानी पर मुस्कुरा देंगे और तुम्हें आशीर्वाद स्वरूप अपनी अगली इंसानी सुविधा का पता देगे. लेंगे नहीं कुछ भी.
हम दिन रात उनकी प्रदान की हुई बरकतों को ओढ़ते बिछाते हैं और उनके ही आविष्कारो को अपने फ़ायदे के सांचे में ढालकर एक दूसरे पर कीचड उछालते हैं, क्या ये ब्लागिंग की सुविधा हमारे वैज्ञानिकों की देन नहीं है? 
ये शंकर जी या मुहम्मदी फरिश्तों की देन है, जिसके साथ हम अपना मुँह काला करते रहते हैं.  
अल्लाह मुहम्मद से कहता है - - -

"आप कुरआन को अपने रब का नाम लेकर पढ़ा कीजिए,
जिस ने पैदा किया ,
जिसने इंसानों को खून के लोथड़े से पैदा किया,
आप कुरआन पढ़ा कीजे, और आपका रब बड़ा करीम है,
जिसने क़लम से तालीम दी,
उन चीजों की तालीम दी जिनको वह न जनता था,
सचमुच! बेशक!! इंसान हद निकल जाता है,
अपने आपको मुस्तगना  देखता है,
ऐ मुखातब! तेरे रब की तरफ ही लौटना होगा सबको.
सूरह अलक़ ९६ - पारा ३० आयत (१-९)

ऐ मुखातब ! उस शख्स का हाल  तो बतला,
जो एक बन्दे को मना करता है, जब वह नमाज़ पढता है,
ऐ मुखाताब! भला ये तो बतला कि वह बंदा हिदायत पर हो,
या तक़वा का तालीम देता हो,
ऐ मुखाताब! भला ये तो बतला कि अगर वह शख्स झुट्लाता हो और रू गरदनी करता हो,
क्या उस शख्स को ये खबर नहीं कि अल्लाह देख रहा है,
हरगिज़ नहीं, अगर ये शख्स बाज़ न आएगा तो हम पुट्ठे पकड़ कर जो दरोग़ और ख़ता में आलूदा हैं, घसीटेंगे.सो ये अपने हम जलसा लोगों को बुला ले.
हम भी दोज़ख के प्यादों को बुला लेंगे."
सूरह अलक़ ९६ - पारा ३० आयत (१०-१९)

नमाज़ियो!
जब हमल क़ब्ल अज वक़्त गिर जाता है तो वह खून का लोथड़ा जैसा दिखता है, मुहम्मद का मुशाहिदा यहीं तक है, जो अपने आँख से देखा उसे अल्लाह की हिकमत कहा. वह कुरान में बार बार दोहराते हैं कि 
" जिसने इंसानों को खून के लोथड़े से पैदा किया''
इंसान कैसे पैदा होता है, इसे मेडिकल साइंस से जानो.
 इंसान को क़लम से तालीम अल्लाह ने नहीं दी, बल्कि इंसान ने इंसान को क़लम से तालीम दी. क़लम इन्सान की ईजाद है. कुदरत ने इंसान को अक्ल दिया कि उसने सेठे को क़लम की शक्ल दी उसके बाद लोहे को और अब कम्प्युटर को शक्ल दे रहा है. मुहम्मद किसी बन्दे को मुस्तगना (आज़ाद) देखना पसंद नहीं करते.सबको अपना असीर देखना चाहते हैं बज़रीए  अपने कायम किए अल्लाह के.
ये आयतें पढ़ कर क्या तुम्हारा खून खौल नहीं जाना चाहिए कि मुहम्मदी अल्लाह इंसानों की तरह धमकता है 
"अगर ये शख्स बाज़ न आएगा तो हम पुट्ठे पकड़ कर जो दरोग़ और ख़ता में आलूदा हैं, घसीटेंगे.सो ये अपने हम जलसा लोगों को बुला ले. हम भी दोज़ख के प्यादों को बुला लेंगे."
क्या मालिके-कायनात की ये औकात रह गई है?
मुसलमानों अपने जीते जी दूसरा जनम लो. मुस्लिम से मोमिन हो जाओ. मोमिन मज़हब वह होगा जो उरियाँ सच्चाई को कुबूल करे. कुदरत का आईनादार है 
और ईमानदार. इस्लाम तुम्हारे साथ बे ईमानी हो. 
इंसान का बुयादी हक है इंसानियत के दायरे में मुस्तगना (आज़ाद) होकर जीना, .



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 3 June 2017

Hindu Dharm Darshan 70




आस्था और अक़ीदा 

लौकिक और फितरी सत्य ही, बिना किसी संकोच के सत्य है। 
अलौकिक या गैर फितरी सत्य पूरा का पूरा असत्य है। 
धर्म और मज़हब की आस्था और अक़ीदा कल्पित मन गढ़ंथ का रूप मात्र हैं। 
इस रूप पर अगर कोई व्यक्तिगत रूप में विश्वास करे तो करे, 
इसमें उसका नफा और नुकसान निहित है, 
मगर इसे प्रसार और प्रचार बना कर आर्थिक साधन बनाए तो
 ये जुर्म के दायरे में आता है. 
व्यक्ति की व्यक्तिगत आस्था व्यक्ति तक सीमित रहे तो उसे इसकी आज़ादी है, 
मगर दूसरों में प्रवाहित किया जाय तो आस्थावान दुष्ट और साजिशी है. 
ऐसे धूर्तों को जेल की सलाखों के अन्दर होना चाहिए. 
देश का ऐसा संविधान बने कि सिने-बलूगत और प्रौढ़ता तक बच्चों को कोई धार्मिक या दृष्टि कौणिक यहाँ तक कि विषय विशेष की तालीम देने पर प्रतिबंध हो 
ताकि व्यस्क होने पर वह अपना हक सुरक्षित पाए. 
हमारा समाज ठीक इसके उल्टा है. 
बच्चों के बालिग होने तक हिन्दू और मुसलमान बना देता है. 
यह तरबियत और संस्कार उसके हक में ज़ह्र है. 
मुसलमानों को इसकी ताकीद है कि बच्चा अगर कलिमा गो ना हुवा तो 
इसके माँ  बाप को जहन्नम में दाखिल कर दिया जायगा. 
इस कौम की पामाली इस नाकिस अकीदे के तहत भी है।
अपने खुदा को ख़ुद मैं, चुन लूँगा बाबा जानी,
मुझ में सिने बलूगत, कुछ और थोड़ा झलके।
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 2 June 2017

SOORAH tEEN 95

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह तीन ९५  - पारा ३० 
(वत्तीने वज्जैतूने वतूरे सीनीना) 

ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

अल्लाह क्या है?
अल्लाह एक वह्म, एक गुमान है.
अल्लाह का कोई भी ऐसा वजूद नहीं जो मज़ाहिब बतलाते हैं.
अल्लाह एक अंदाजा है, एक खौफ़ है.
अल्लाह एक अक़ीदा है जो विरासत या जेहनी गुलामी के मार्फ़त मिलता है.
अल्लाह हद्दे ज़ेहन है या अकली कमजोरी की अलामत है,
अल्लाह अवामी राय है या फिर दिल की चाहत,
कुछ लोगों की राय है कि अल्लाह कोई ताक़त है जिसे सुप्रीम पावर भी कह जाता है?
अल्लाह कुछ भी नहीं है, गुनाह और बद आमाली कोई फ़ेल नहीं होता, इन बातों का यक़ीन करके अगर कोई शख्स इंसानी क़द्रों से बगावत करता है तो वह बद आमाली की किसी हद को पार कर सकता है.
ऐसे कमज़ोर इंसानों के लिए अल्लाह को मनवाना ज़रूरी है.
वैसे अल्लाह के मानने वाले भी गुनहगारी की तमाम हदें पर कर जाते हैं.
बल्कि अल्लाह के यक़ीन का मुज़ाहिरा करने वाले और अल्लाह की अलम बरदारी करने वाले सौ फीसद दर पर्दा बेज़मिर मुजरिम देखे गए हैं.
बेहतर होगा कि बच्चों को दीनी तालीम देने की बजाय  अख्लाक्यात पढाई जाए, वह भी जदीद तरीन इंसानी क़द्रें जो मुस्तकबिल करीब में उनके लिए फायदेमंद हों.
मुस्तकबिल बईद में इंसानी क़द्रों के बदलते रहने के इमकानात हुवा करते है.
देखिए कि अल्लाह किन किन चीज़ों की कसमें खाता है और क्यूँ कसमें खाता है. अल्लाह को कंकड़ पत्थर और कुत्ता बिल्ली की क़सम खाना ही बाकी बचता है - - -

"क़सम है इन्जीर की,
और ज़ैतून की,
और तूर ए सीनैन  की,
और उस अमन वाले शहर की,
कि हमने इंसानों को बहुत खूब सूरत साँचे में ढाला है.
फिर हम इसको पस्ती की हालत वालों से भी पस्त कर देते हैं.
लेकिन जो लोग ईमान ले आए और अच्छे काम किए तो उनके लिए इस कद्र सवाब है जो कभी मुन्क़ता न होगा.
फिर कौन सी चीज़ तुझे क़यामत के लिए मुनकिर बना रही है?
क्या अल्लाह सब हाकिमों से बड़ा हाकिम नहीं है?"
सूरह तीन ९५  - पारा ३० आयत (१-८)

नमाज़ियो!
मुहम्मदी अल्लाह और मुहम्मदी शैतान में बहुत सी यकसानियत है. दोनों हर जगह मौजूद रहते है, दोनों इंसानों को गुमराह करते हैं.
मुसलामानों का ये मुहाविरा बन कर रह गया है कि 
"जिसको अल्लाह गुमराह करे उसको कोई राह पर नहीं ला सकता"
आपने देखा होगा कि कुरआन में सैकड़ों बार ये बात है कि वह अपने बन्दों को गूंगा, बहरा और अँधा बना देता है.
इस सूरह में भी यही काम अल्लाह करता है,
कि "हमने इंसानों को बहुत खूब सूरत साँचे में ढ़ाला है."
"फिर हम इसको पस्ती की हालत वालों से भी पस्त कर देते हैं."
गोया इंसानों पर अल्लाह के बाप का राज है.
अगर इंसान को अल्लाह ने इतना कमज़ोर और अपना मातेहत पैदा किया है तो उस अल्लाह की ऐसी की तैसी.
इससे कनारा कशी अख्तियार कर लो. बस अपने दिमाग की खिड़की खोलने की ज़रुरत है.
कहीं जन्नत के लालची तो नहीं हो?
या फिर दोज़ख की आग से हवा खिसकती है?

इन दोनों बातों से परे, मर्द मोमिन बनो, इस्लाम को तर्क करके.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान