Saturday 31 March 2018

Hindu Dharm 160




राम कहानी 

रज़िया सुल्तान के ज़माने में एक सज्जन पुरुष को बिठूर (कानपुर) के एक डाकू से सामना पड गया. 
डाकू उनका माल असबाब लूट कर चला तो 
उस सज्जन पुरुष ने उसे टोका, 
सुनो - - - 
डाकू रुका, दोनों में कुछ बात चीत हुई , 
उनको डाकू की बातों से लगा कि यह तो कोई पढ़ा लिखा विद्वान लगता है. 
उन्हों ने उसका नाम पूछा. 
डाकू ने सज्जन पुरुष की सज्जनता का आभाष कर लिया था, 
वह उनसे झूट बोलने की हिम्मत न जुटा पाया. 
मैं हूँ "वाल्मीकि". 
नाम सुनते ही उस सज्जन पुरुष ने लपक कर उसे लिपटा लिया. 
वाल्मीकि ने उनको अपनी लाचारी, और मजबूरी की दास्तान सुनाई. - - - 
उसने उनसे पूछा कि अपने छोटे छोटे बच्चों को क्या खिलाऊँ, क्या पहनाऊँ ? 
अपना ज्ञान ?? 
अपनी बुद्धिमत्ता को मैं ने इस कुल्हाड़ी के हवाले कर दिया. 
क्या करता बच्चों की हत्या से यह लूट मार भली लगी . 
उस सज्जन पुरुष ने वाल्मीकि को बात बात पर राज़ी कर लिया कि 
वह किसी महा काव्य लिखने का आयोजन करे जिस से शाशक वर्ग आकर्षित हों.
वाल्मीकि ने उससे विषय पूछा तो उस सज्जन पुरुष ने इशारा किया, 
विषय तुम्हारे सामने है और तुम्हारे शरण में है,
अभागन सीता अपने दो बच्चों के साथ. उन्हों ने कहा - - -
विषय कोई आकृति नहीं होती, विषय रचना और गढ़ना पड़ता है. 
पति द्वारा ठुकराई सीता को महिमा मंडित करो.
वाल्मीकि ने ऐसा महा काव्य रचा कि आस पास के परिवेश में विद्वानों के लिए आकार और आधार  भूत रोचक कथा बन गई. 
यह राम कहानी रामायण नाम से संस्कृत में थी और सीमित होकर विद्वानों के द्वारा ही प्रसारित और प्रचारित होती रही. शाशकों का भी कथा को संरक्षण मिला.
कहानी के किरदारों के साथ जनता की रूचि भी बढती गई, यह बहुधा होता है. 
आज भी 50 साल पहले फिल्म संतोषी माँ आई थी और इतनी चली कि संतोषी माँ एक देवी बनते बनते रह गईं. उनकी मंदिरें बनना शुरू हो गई थीं. अगर २०० वर्ष पहले यह रचना होती तो आज यक़ीनन संतोषी माँ कोई पूजनीय देवी होतीं. 
यही नहीं रोमियो और जूलिएट भी भारत में पूजनीय होते अगर शेक्स्पेयर भारत में जन्मा होता. 
वेदों और पुराणों के खोकले कृत के सामने रामायण एक ठोस कृति साबित हुई. रज़िया सुलतान के ३०० साल बद अकबर के दौर में हिंदी विद्वान महा कवि तुलसी दास पैदा हुए उनको वाल्मीकि कृत रामायण रोचक लगी और तुलसी दास ने इसको  हिंदी में रूपान्तर किया. 
फिर क्या था, जनता जनार्दन की पहली पसंद बन गई. 
उसके बाद रामायण कथाओं की बुन्याद बन गई . 
हर विद्वान इस पर अपनी कलम को आजमाता रहा . 
सत्तर से ऊपर विभिन्न भाषाओँ में रामायण मौजूद है. 
मैंने मांढा (मिर्ज़ापुर) में देखा कि पूर्व प्रधान मंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के पूर्वज राजा रूद्र प्राताप सिंह अपनी भाषा में एक अदद रामायण रचे हुए हैं. 
तुलसी रामायण से भी मोटी. 
हर रामायण कुछ परिवर्तन के साथ साकार हुई . 
कालिदास ने कहानी के किरदारों के साथ इन्साफ करते हुए उन्हें अनजाम तक पहुँचाया. उनकी कहानी में नायका सीता के किरदार को प्राथमिकता थी 
और राम को द्वतीयता. 
वाल्मीकि का राम अपने जीवन काल में जो जो अन्याय किया उनके पश्च्याताप की आग में जलता हुवा सरयू नदी में डूब कर आत्म हत्या कर लेता है. 
उससे जो अन्याय हुए वह थे भाईयों के साथ अन्याय,  
जैसे भरतके संतानों को देश निकला देना आदि , 
पत्नी सीता की अग्नि परीक्षा जैसे जघन्य अपराध. 
बाल्मीकि रामायण को देखा जाए जिसके आधार पर तुलसीदास की रचना है,तो  दोनों में मूल भूत टकराव है. 
न्याय तुलसीदास को कटहरे में खड़ा कर सकता है. 
वाल्मीकि ने सीता को प्राथमिकता और राम को द्वतीयता दी है .
तुलसीदास ने राम का प्राथमिकता और सीता को द्वतीयता.
इस कमजोरी को ब्रह्मण बुद्धी ने ताड़ा तो तुलसी दास को सर पर चढ़ा लिया और बाल्मीकि को भंगी बना दिया. 
उनकी लिखी रामायण अछूत हो गई. 
इसका प्रचार और प्रसार लुप्तमान है और तुलसी कथा विराजमान. 
रामायण पूरी तरह से कपोल कल्पित कथा है, 
यह कपोल कल्पित कथा आज देश का राज धर्म जैसा बना जा रहा है.
इसको कोई कसौटी सत्य साबित नहीं कर सकती. 
भारत का राजकाज मुट्ठी भर मनुवादियों के हाथों में 5000 साल से है 
जो खिलवाड़ बनी हुई है, इसमें कोई मानव मूल्य नहीं न मानव पीड़ा.
यह कुछ सालों की मेहमान और हो सकती है. 
क्यांकि अभिताभ बच्चन जैसे महा नायक हनुमान चालीसा पढ़ कर ही घर से बाहर निकलते हैं तो हिन्दुओं की श्याम स्वेत छवि से मलटी कलर हो जाती है. 
भारत दुन्या का अभागा भू भाग है जो हजारों सालों से दासता में रहा है 
चाहे वह आर्यन की ब्राह्मण वादी व्योवस्था हो या पठानों और मुघलों की दासता 
या फिर अंग्रेजों की गुलामी. 
कुप्रचार है कि भारत कभी जगत गुरु हुवा करता था. रहा होगा,
आर्यन के आक्रमण से पहले कभी. 
नोट -
मुहम्मद गौरी तुर्क हिन्दुस्तान का पहला मुस्लिम फातेह था जो फ़तेह के बाद अपने ग़ुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली की गद्दी पर बैठा कर खुद अपने वतन गौर वापस चला गया. कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद उसका भाई शमसुद्दीन इल्तुतमिश उसके बाद हिन्दुस्तान का सुलतान हुवा. शमसुद्दीन इल्तुतमिश की बेटी रज़िया सुलतान १२11-३६ ई में दिल्ली की पहली महिला शाशक हुई. 
बिठूर, वन्धना (कानपुर) में रहकर वाल्मीकि काल को सत्यापित किया जा सकता है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 30 March 2018

Soorah taubah 9 – Q- 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
****************

सूरह-ए-तौबः 9
(क़िस्त-2)


सूरह-ए-तौबः एक तरह से अल्लाह की तौबः है. 
अरबी रवायत में किसी नामाक़ूल, नामुनासिब, नाजायज़ या नाज़ेबा काम की शुरूआत अल्लाह या किसी मअबूद के नाम से नहीं की जाती थी, 
आमद ए इस्लाम से पहले यह क़ाबिल ए क़द्र अरबी क़ौम के मेयार का एक नमूना था. 
क़ुरआन में कुल 114 सूरह हैं, एक को छोड़ कर बाक़ी 113 सूरतें - - -
"आऊज़ो बिल्लाहे मिनस शैतानुर्र्र्जीम , बिमिल्लाह हिररहमान निर रहीम " से शुरू होती हैं . 
वजह ? 
क्यूंकि सूरह तौबः में ख़ुद अल्लाह दग़ा बाज़ी करता है इस लिए अपने नाम से सूरह को शुरू नहीं करता.  
बक़ौल मुहम्मद क़ुरआन अल्लाह का कलाम है तो इंसानी समाज का इसमें दख्ल़ और लिहाज़ क्यूँ ? 
क्या अल्लाह भी इंसानों जैसा समाजी बंदा है ?

 देखिए क़ुरआन में मुहम्मद कल्पित साज़िशी अल्लाह क्या कहता है - - - 

''यह लोग मुसलामानों के बारे में न क़ुर्बत का पास करें न क़ौल व् क़रार का और यह लोग बहुत ही ज़्यादती कर रहे हैं, 

सो यह लोग अगर तौबा कर लें और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात देने लगें तो तुम्हारे दीनी भाई होंगे 

और हम समझदार लोगों के लिए एहकाम को ख़ूब तफ़सील से बयान करते हैं'' 
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (११-१२

यह क़ुरआन का अनुवाद ईश-वाणी है, 
वह ईश जिसने इस ब्रह्माण्ड की रचना की है, 
हर आयत के बाद मेरी इस बात को सब से पहले ध्यान कर लिया करें. 
  सूरह तौबा की पहली क़िस्त में बयान है कि बेईमान अल्लाह अपने ग़ैर मुस्लिम बन्दों से किस बे शर्मी के साथ किए हुए समझौते तोड़ देता है. 
अब देखिए कि वह उल्टा उन पर क़ौल व् क़रार तोड़ने का इलज़ाम उलटा काफ़िरों लगा रहा है, 
उन से लड़ने के बहाने ढूंढ रहा है, 
नमाज़ें पढ़वा कर अपनी उँगलियों पर नचाने का इन्तेज़ाम कर रहा है, उनसे टेक्स वसूलने के जतन कर रहा है.



''क्या तुम ख़याल करते हो कि तुम यूँ ही छोड़ दिए जाओगे ? 

हालां कि अभी अल्लाह तअला ने उन लोगों को देखा ही नहीं,

 जिन्हों ने तुम में से जेहाद की हो 
और अल्लाह तअला और रसूल और मोमनीन के सिवा किसी को ख़ुसूसियत का दोस्त न बनाया हो'' 

सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (१६) 

जंग, जेहाद से लौटे हुए लाख़ैरे, बे रोज़गार और बद हाल लोग लूट के माल में अपना हिस्सा मांगते हैं तो 'आलिमुल-ग़ैब'' मुहम्मदी अल्लाह बहाने तराशता है कि अभी तो मैं ने जंग की वह रील देखी ही नहीं जिसमें तुम शरीक होने का दावा करते हो. 
उसके बाद अभी अपने ग़ैबी ताक़त से यह भी मअलूम करना है 
कि तुम्हारे तअल्लुक़ात हमारे दुश्मनों से तो नहीं हैं, 
या हमारे रसूल के दुश्मनों से तो नहीं है 
या कहीं मोमनीन के दुश्मनों से तो नहीं हैं, 
भले ही वह तुम्हारे भाई बाप ही क्यूँ न हों. 
अगर ऐसा है तो तुम क्या समझते हो तुम को कुछ मिलेगा ? 
बल्कि तुम ग़लत समझते हो कि तुम को यूं ही बख़्श दिया जाएगा.

मुसलामानों!
यही ईश वानियाँ तुम्हारी नमाज़ों के नज़र हैं. जागो. 



''और अल्लाह तअला को सब ख़बर है तुम्हारे सब कामों का'' 

सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (१७) 

मुसलामानों को डेढ़ हज़ार साल तक अक़्ल से पैदल तसव्वुर करने वाले ख़ुद साख़्ता  रसूल शायद अपनी जगह पर ठीक ही थे कि अल्लाह के कलाम में तज़ाद पर तज़ाद भरते रहे और उनकी उम्मत चूँ तक न करती. 

देखिए कि पिछली आयत में मुहम्मदी अल्लाह कहता है कि
 ''अभी अल्लाह तअला ने उन लोगों को देखा ही नहीं जिन्हों ने तुम में से जेहाद की हो और अल्लाह तअला और रसूल और मोमनीन के सिवा किसी को खुसूसयत का दोस्त न बनाया हो'' 
और अगली ही सांस में इसके बर अक्स बात करता है 
"और अल्लाह तअला को सब ख़बर है तुम्हारे सब कामों का '' 
ऐसा नहीं कि उस वक़्त जब मुहम्मद लोगों को यह क़ुरआनी आयतें सुनाते थे तो लोग अक़्ल से पैदल थे. मक्का में बारह सालों तक गलियों, सड़कों, मेलों, बाज़ारों और चौराहों पर जहाँ लोग मिलते अल्लाह के रसूल शुरू हो जाते क़ुरआनी राग अलापने. 
लोग उन्हें पागल, दीवाना, सनकी और ख़ब्ती समझ कर झेल जाते. 
कुछ तौहम परस्त और अंधविश्वासी इन्हें मान्यता भी देने लगे. 
क़बीलाई सियासत ने इन्हें मदीना में पनाह दे दिया, 
वहीँ पर यह दीवाना फरज़ाना बन गया. 
मुहम्मद को मदीने में ऐसी ताक़त मिली कि इनकी क़ुरआनी ख़ुराफ़ात मुसलामानों की इबादत बन कर रह गई है. 
अल्लाह के रसूल शायद कामयाब ही हैं 


''ऐ ईमान वालो! 

अपने बापों को, 

अपने भाइयों को अपना रफ़ीक़ मत बनाओ 
अगर वह कुफ़्र को बमुक़बिला ईमान अज़ीज़ रखें 
और तुम में से जो शख़्श इनके साथ रफ़ाक़त रखेगा, 
सो ऐसे लोग बड़े नाफ़रमान हैं'' 

सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (२३) 

ख़ूनी रिश्तों में निफ़ाक़ डालने वाला यह मुहम्मद का पैग़ाम दुन्या का बद तरीन कार ए बद है. 
इन रिश्तों से महरूम हो जाने के बाद क्या रह जाता है इंसानी ज़िन्दगी में ? मार काट, जंग ख़ूरेज़ी, लूट पाट, की यह दुनयावी ज़िन्दगी या फिर 
उस दुन्या की उन बड़ी बड़ी आँखों वाली ख़याली जन्नत की हूरें? 
मोती जैसे सजे हुए बहिश्ती लौंडे?? 
शराब क़बाब, खजूर और अंगूर? ??
इसके लिए भूल जाएँ अपने शफ़ीक़ बाप को जिसके हम जुज़्व हैं? 
अपने रफ़ीक़ भाई को जिसके हम हमखून हैं? ?
वह भी उस ईमान के एवज़ जो एक अक़ीदत है, 
एक ख़याली तस्कीन. 
लअनत है ऐसे ईमान पर जो ऐसी क़ीमत का तलबगार हो. 
अफ़सोस है उन चूतियों पर जो बाप और भाई की क़ीमत पर मिटटी के बुत को छोड़ कर हवा के बुत पर ईमान बदला हो.


''आप कह दीजिए तुम्हारे बाप, तुम्हारे बेटे, तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियां और तुम्हारा क़ुनबा और तुम्हारा माल जो तुमने कमाया और वह तिजारत जिस में से निकासी करने का तुम को अंदेशा हो और वह घर जिसको तुम पसंद करते हो, तुमको अल्लाह और उसके रसूल से और उसकी राह में जेहाद करने से ज़्यादः प्यारे हों, 

तो मुन्तज़िर रहो, 

यहाँ तक कि अल्लाह अपना हुक्म भेज दे. 
और बे हुकमी करने वाले को अल्लाह मक़सूद तक नहीं पहुंचता'' 

सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (२४)

उफ़ !
इन्तहा पसंद मुहम्मद, 
ताजदारे मदीना, 
सरवरे कायनात, 
न ख़ुद चैन से बैठते कभी न इस्लाम के जाल में फंसने वाली रिआया को कभी चैन से बैठने दिया. 
अगर कायनात की मख़लूक़ पर क़ाबू पा जाते तो जेहाद के लिए दीगर कायनातों की तलाश में निकल पड़ते. 
अल्लाह से धमकी दिलाते हैं कि तुम मेरे रसूल पर अपने अज़ीज़ तर औलाद, भाई, शरीक ए हयात और पूरे क़ुनबे को क़ुर्बान करने के लिए तैयार रहो, 
वह भी बमय अपने तमाम असासे के साथ जिसे तिनका तिनका जोड़ कर आप ने अपनी घर बार की खुशियों के लिए तैयार किया हो. 
इंसानी नफ़्सियात से नावाक़िफ़ पत्थर दिल मुहम्मद, 
क़ह्हार अल्लाह के जीते जागते रसूल थे. 

मुसलमानो
एक बार फिर तुम से गुज़ारिश है कि तुम मुस्लिम से मोमिन बन जाओ. मुस्लिम और मोमिन के फ़र्क़ को समझने कि कोशिश करो. 
मुहम्मद ने दोनों लफ़्ज़ों को ख़लत मलत कर दिया है और तुम को गुमराह किया है 
कि मुस्लिम ही अस्ल मोमिन होता है 
जिसका ईमान अल्लाह और उसके रसूल पर हो. 
यह क़िज़्ब है, 
दरोग़ है, 
झूट है, 
सच यह है कि आप के किसी अमल में बे ईमानी न हो यही ईमान है, 
इसकी राह पर चलने वाला ही मोमिन कहलाता है. 
जो कुछ अभी तक इंसानी ज़ेहन साबित कर चुका है वही अब तक का सच है, वही इंसानी ईमान है. 
अक़ीदतें और आस्थाएँ कमज़ोर और बीमार ज़ेहनों की पैदावार हैं 
जिनका नाजायज़ फ़ायदा ख़ुद साख़ता अल्लाह के पयम्बर, 
भगवन रूपी अवतार, 
गुरु और  महात्मा उठाते हैं.
तुम समझने की कोशिश करो. मैं तुम्हारा सच्चा ख़ैर ख़्वाह हूँ. 

ख़बरदार ! 
कहीं भूल कर मुस्लिम से हिन्दू न बन जाना 
वर्ना सब गुड़ गोबर हो जायगा, 
क्रिश्चेन न बन जाना, बौद्ध न बन जाना 
वर्ना मोमिन बन्ने के लिए फिर एक सदी दरकार होगी. 
धर्मांतरण बक़ौल जोश मलीहाबादी एक चूहेदान से निकल कर दूसरे चूहेदान में जाना है. 
बनना ही है तो मुकम्मल इन्सान बनो, 
इंसानियत ही दुन्या का आख़िरी मज़हब होगा. 
मुस्लिम जब मोमिन हो जायगा तो इसकी पैरवी में ५१% भारत मोमिन हो जायगा. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 29 March 2018

Hindu Dharm 159




वेद दर्शन - - -                          

 खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . .

हे बाण रूप ब्राहमण ! 
तुम मन्त्रों द्वारा तीक्ष्ण किये हुए हो. 
हमारे द्वारा छोड़े जाने पर तुम शत्रु सेनाओं पर एक साथ गिरो 
और उनके शरीरों में घुस कर किसी को भी जीवित मत रहने दो.(४५) (यजुर्वेद १.१७) 

यहाँ सोचने वाली बात है कि जब पुरोहितों की एक आवाज पर सब कुछ हो सकता है तो फिर हमें चाइना और पाक से डरने की जरुरत क्या है.
 इन पुरोहितों को बोर्डर पर ले जाकर खड़ा कर देना चाहिए,
 उग्रवादियों और नक्सलियों के पीछे इन पुरोहितों को लगा देना चाहिए,
 फिर क्या जरुरत है इतनी लम्बी चौड़ी फ़ोर्स खड़ी करने की ?
 और क्या जरुरत है मिसाइलें बनाने की ?? 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 27 March 2018

Hindu Dharm 158




हिन्दू मानस

हिन्दू मानस, मानव जाति का ख़ाम माल, अथवा Raw Material होता है. 
इसी Compoud (लुद्दी) से हर क़िस्म के वैचारिक स्तर पर, मानव की उपजातियां वजूद में आईं. 
बौध, जैन, मुस्लिम, ईसाई और सिख सब इसी Compoud से निर्मित हुए हैं.
ख़ास कर पूर्वी एशिया में ज़्यादा मानव जाति इसी Raw Material से निर्मित हुए हैं.
पूर्वी एशिया के बौध और मुस्लिम के पूर्वज बुनयादी तौर पर हिन्दू थे.
 बुनयादी तौर पर हर बच्चा पहले हिन्दू ही पैदा होता है, 
उसे अपने तौर पर विकसित होने दिया जाए तो वह आदि काल की सभ्यता में विकसित हो जाएगा और अगर विभिन्न धार्मिक सांचों में ढाला जाए तो वह मुल्ले और पंडे जैसे आधुनिक युग के कलंक बन जाएँगे. 
पत्थर युग से मध्य युग तक इंसान अपने माहौल के हिसाब से हज़ारो आस्थाएँ स्थापित करता गया, 
फिर सामूहिक धर्मों का वजूद मानव समाज में आया 
जिसे मज़हब कहना ज़्यादा मुनासिब होगा. 
मजहबों ने जहाँ तक समाज को सुधारा, वहीं स्थानीय आस्थाओं को मिटाया. 
हिन्दू आस्थाएँ यूँ होती हैं कि 
2.5 अरब सालों तक ब्रह्मा विश्व का निर्माण करते हैं, 
2.5 अरब सालों तक विष्णु विश्व को सृजित करते है और  
2.5 अरब सालों तक महेश विश्व का विनाश करते हैं. 
या 
भगवान् विष्णु मेंढकी योनि से बरामद हुए 
अथवा गणेश पारबती के शरीर की मैल से निर्मित हुए.
इसी समाज की आस्था है कि 33 करोड़ योनियों से गुज़रता हुवा हर प्राणी अंत में मुक्त द्वार पर होता है. 
इस हास्यापद आस्थाओं से ऊब कर मनुष्य जब अपनी निजता पर आता है तो वह अन्य आस्थाओं की तरफ रुख करता है, 
बहु ईश्वर से एक ईश्वर उसे ज़्यादः उचित लगता है, 
33 करोड़ योनियाँ उसके दिमाग़ को चकरा देती हैं. 
मेढ़ाकीय योनि से निकसित भगवान् उसको अच्छे नहीं लगते. 
यही करण है कि भारत में इस्लाम विस्तृत हुवा और आज भी हो रहा है . 
बौध की रफ़्तार इतनी नहीं क्योंकि यह हिन्दू के समांनांतर ही है, 
इस्लाम या ईसाइयत ही इसके धुर विरोभ में खड़े दिखाई देते हैं, 
वह समझता है कि इसमें घुस जाएं, बाद की देखी जाएगी.
कट्टर हिन्दू वादियों का शुभ समय आया है, 
वह लव जिहाद, घर वापसी जैसे हथकंडे से इस परिवर्तनीय प्रवाह की रोक थाम करने में लगे हैं जो अंततः विरोधयों के हक़ में जाएगा. 
इस पर पुनर विचार न किया गया तो एक समय ऐसा भी आ सकता है कि रेत की बनी हिन्दू आस्थाओं को वक़्त की आंधी उड़ा ले जाए.
क्यूंकि इस युग में मानव समाज वैदिक काल में जाना पसंद नहीं करेगा.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 26 March 2018

Soorah taubah 9 – Q- 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*************
सूरह-ए-तौबः 9
(क़िस्त-1)

सूरह-ए-तौबः एक तरह से अल्लाह की तौबः है . 
अरबी रवायत में किसी नामाक़ूल, नामुनासिब, नाजायज़ या नाज़ेबा काम की शुरूआत अल्लाह या किसी मअबूद के नाम से नहीं की जाती थी, 
आमद ए इस्लाम से पहले यह क़ाबिल ए क़द्र अरबी क़ौम के मेयार का एक नमूना था. 
क़ुरआन में कुल 114 सूरह हैं, एक को छोड़ कर बाक़ी 113 सूरतें - - -
"आऊज़ो बिल्लाहे मिनस शैतानुर्र्र्जीम , बिमिल्लाह हिररहमान निर रहीम " से शुरू होती हैं . 
वजह ? 
क्यूंकि सूरह तौबः में ख़ुद अल्लाह दग़ा बाज़ी करता है इस लिए अपने नाम से सूरह को शुरू नहीं करता.  
बक़ौल मुहम्मद क़ुरआन अल्लाह का कलाम है तो इंसानी समाज का इसमें दख्ल़ क्यूँ ? 
क्या अल्लाह भी समाजी बंदा है ?
मुहम्मद ने अपने पुरखों की अज़मत को बरक़रार रखते हुए इस सूरह की शुरूआत बग़ैर "बिस्मिल्लाह हिररहमा निररहीम" से अज़ ख़ुद किया. 

मुआमला यूँ था कि मुसलामानों का मुशरिकों के साथ एक समझौता हुआ था कि आइन्दा हम लोग जंगो जद्दाल छोड़ कर पुर अम्न तौर पर रहेंगे. "लकुम दीनकुम वले यदीन" 
ये मुआहदा कुरआन का है, गोया अल्लाह कि तरफ़ से हुवा. 
इस समझौते को कुछ रोज़ बाद ही अल्लाह निहायत बेशर्मी के साथ तोड़ देता है और बाईस-ए-एहसास जुर्म अल्लाह अपने नाम से सूरह की शुरूआत नहीं होने देता. 

मुसलामानों! 
इस मुहम्मदी सियासत को समझो. 
अक़ीदत के कैपशूल में भरी हुई मज़हबी गोलियाँ कब तक खाते रहोगे? 
मुझे गुमराह, ग़द्दार, और ना समझ समझने वाले क़ुदरत की बख़्शी हुई अक़्ल का इस्तेमाल करें, तर्क और दलील को गवाह बनाएं तो ख़ुद जगह जगह पर क़ुरआनी लग्ज़िशें पेश पेश हैं कि इस्लाम कोई मज़हब नहीं सिर्फ़ सियासत है और निहायत बद नुमा सियासत जिसने रूहानियत के मुक़द्दस एहसास को पामाल किया है.
क़ब्ल ए इस्लाम अरब में मुख़्तलिफ़ फ़िरक़े हुवा करते थे जिसके बाक़ियात ख़ास कर उप महाद्वीप में आज भी पाए जाते हैं. इनमें क़ाबिल ए ज़िक्र फ़िरक़े नीचे दिए जाते हैं ---

१- काफ़िर ---- 
यह क़दामत पसंद होते थे जो पुरखों के प्राचीन धर्म को अपनाए रहते थे. सच पूछिए तो यही इंसानी आबादी हर पैग़म्बर और रिफ़ार्मर का रा-मटेरियल होती रही है. बाक़ियात में इसका नमूना आज भी भारत में मूर्ति पूजक और भांत भांत अंध विश्वाशों में लिप्त हिदू समाज है.
ऐसा लगता है चौदह सौ साला पुराना अरब अपने पूरब में भागता हुआ भारत में आकर ठहर गया हो और थके मांदे इस्लामी तालिबान, अल क़ायदा और जैश ए मुहम्मद उसका पीछा कर रहे हों.

२- मुश्रिक़ ---- जो अल्लाह वाहिद (एकेश्वर) के साथ साथ दूसरी सहायक हस्तियों को भी ख़ातिर में लाते हैं. 
मुशरिकों का शिर्क जनता की ख़ास पसंद है. इसमें हिदू मुस्लिम सभी आते है, गोकि मुसलमान को मुश्रिक  कह दो तो मारने मरने पर तुल जाएगा मगर वह बहुधा ख़्वाजा अजमेरी का मुरीद होता है, पीरों का मुरीद होता है जो कि इस्लाम के हिसाब से शिर्क है. 
आज के समाज में रूहानियत के क़ायल हिन्दू हों या मुसलमान थोड़े से मुश्रिक़ ज़रूर हैं.

३- मुनाफ़िक़ ---
वह लोग होते हैं जो बज़ाहिर कुछ, और बबातिन कुछ और, 
दिन में मुसलमान और रात में काफ़िर. ऐसे लोग हमेशा रहे हैं जो दोहरी ज़िंदगी का मज़ा लूट रहे हैं. 
मुसलामानों में हमेशा से कसरत से मुनाफ़िक़ पाए जाते हैं.

४- मुनकिर -----
 मुनकिर का लफ्ज़ी मतलब है इंकार करने वाला जिसका इस्लामी करन करने के बाद इस्तेलाही मतलब किया गया है कि इस्लाम क़ुबूल करने के बाद उस से फिर जाने वाला मुनकिर होता है. 
बाद में आबाई मज़हब इस्लाम को तर्क करने वाला भी मुनकिर कहलाया.

५-मजूसी ----- 
आग, सूरज और चाँद तारों के पुजारी. ईरानियों का यह ख़ास धर्म हुवा करता था. मशहूर मुफ़क्किर ज़रथुष्टि ईरानी था.

६-मुल्हिद ------ (नास्तिक) हर दौर में ज़हीनों को, ढोंगियों ने उपाधियाँ दीं हैं मुझे गर्व है कि इंसान की यह ज़ेहनी परवाज़ बहुत पुरानी है.
७- लात, मनात, उज़ज़ा जैसे देवी देवताओं के उपासक, जिनकी ३६० मूर्तियाँ काबे में रक्खी हुई थीं जिसमे महात्मा बुद्ध की मूर्ति भी थी.
इनके आलावा यहूदी और ईसाई क़ौमे तो मद्दे मुकाबिल इस्लाम के थीं ही जो कुरआन में छाई हुई हैं .

अल्लाह अह्द शिकनी करते हुए कहता है - - -

''अल्लाह की तरफ़ से और उसके रसूल की तरफ़ से उन मुशरिकीन के अह्द से दस्त बरदारी है, जिन से तुमने अह्द कर रखा था.''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (१)

मुसलामानों ! 
आखें फाड़ कर देखो यह कोई बन्दा नहीं, तुम्हारा अल्लाह है जो अहद शिकनी कर रहा है, वादा ख़िलाफ़ी कर रहा है, मुआहिदे की धज्जियाँ उड़ा रहा है, मौक़ा परस्ती पर आमादः है, वह भी इन्सान के हक़ में अम्न के ख़िलाफ़ ? 
कैसा है तुम्हारा अल्लाह, कैसा है तुम्हारा रसूल ? 
एक मर्द बच्चे से भी कमज़ोर जो ज़बान देकर फिरता नहीं. मौक़ा देख कर मुकर रहा है? 
लअनत भेजो ऐसे अल्लाह पर.

''सो तुम लोग इस ज़मीन पर चार माह तक चल फिर लो और जान लो कि तुम अल्लाह तअला को आजिज़ नहीं कर सकते और यह कि अल्लाह तअला काफ़िरों को रुसवा करेंगे.''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (२)

कहते है क़ुरआन अल्लाह का कलाम है,
 क्या इस क़िस्म की बातें कोई तख़लीक़ ए कार-ए-कायनात कर सकता है? मुसलमान क्या वाक़ई अंधे,बहरे और गूँगे हो चुके हैं, वह भी इक्कीसवीं सदी में. क्या ख़ुदाए बरतर एक साजिशी, पैगम्बरी का ढोंग रचाने वाले अनपढ़ , नाकबत अंदेश का मुशीर-ए-कार बन गया है.?
 वह अपने बन्दों को अपनी ज़मीन पर चलने फिरने की चार महीने की मोहलत दे रहा है ? 
क्या अज़मत व् जलाल वाला अल्लाह आजिज़ होने की बात भी कर सकता है? 
क्या वह बेबस, अबला कोई महिला है जो अपने नालायक़ बच्चों से आजिज़-व-बेज़ार भी हो जाती है?
 वह कोई और नहीं बे ईमान मुहम्मद स्वयंभू रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हैं जो अल्लाह बने हुए अह्द शिकनी कर रहे है.

''अल्लाह और रसूल की तरफ़ से बड़े हज की तारीखो़ का एलान है और अल्लाह और उसके रसूल दस्त बरदार होते हैं इन मुशरिकीन से, 
फिर अगर तौबा कर लो तो तुम्हारे लिए बेहतर है और अगर तुम ने मुंह फेरा तो यह समझ लो अल्लाह को आजिज़ न कर सकोगे 
और इन काफ़िरों को दर्द नाक सज़ा सुना दीजिए."
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (३)

क़ब्ल ए इस्लाम मक्का में बसने वाली जातियों का ज़िक्र मैंने ऊपर इस लिए किया था कि बतला सकूं कअबा जो इनकी पुश्तैनी विरासत था, इन सभी का था जो कि इस्माइली वंशज के रूप में जाने जाते थे. 
यह क़दीम लडाका क़ौम यहीं पर आकर अम्न और शांति का प्रतीक बन जाया करती थी, 
सिर्फ़ अरबियों के लिए ही नहीं बल्कि सारी दुन्या के लिए. 
अरब बेहद ग़रीब क़ौम थी, इसकी यह वजह भी हो सकती है कि हज से इनको कुछ दिन के लिए बद हाली से निजात मिलती रही हो. 
मुहम्मद ने अपने बनाए अल्लाह के क़ानून के मुताबिक इसको सिर्फ़ मुसलामानों के लिए मख़सूस कर दिया, 
क्या यह झगडे की बुनियाग नहीं कायम की गई?
 इन्साफ़ पसंद मुस्लिम अवाम इस पर ग़ौर करे. 

''मगर वह मुस्लमीन जिन से तुमने अहद लिया, फिर उन्हों ने तुम्हारे साथ ज़रा भी कमी नहीं की और न तुम्हारे मुक़ाबिले में किसी की मदद की, सो उनके मुआह्दे को अपने ख़िदमत तक पूरा करो. वाक़ई अल्लाह एहतियात रखने वालों को पसंद करता है.''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (४)

यह मुहम्मदी अल्लाह की सियासत अपने दुश्मन को हिस्सों में बाँट कर उसे क़िस्तों में मारता है. आगे चल कर यह किसी को नहीं बख़्शता चाहे इसके बाप ही क्यूँ न हों.

''सो जब अश्हुर-हुर्म गुज़र जाएँ इन मुशरिकीन को जहाँ पाओ मारो और पकड़ो और बांधो और दाँव घात के  मोक़ों पर ताक लगा कर बैठो. फिर अगर तौबा करलें, नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात देने लगें तो इन का रास्ता छोड़ दो,''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (5)

मैंने क़ब्ल ए इस्लाम मक्का कें मुख़्तलिफ क़बीलों का ज़िक्र इस लिए किया था कि बावजूद इख़्तलाफ़ ए अक़ीदे के हज सभी का मुश्तरका मेला था, क्यूँकि सब के पूर्वज इस्माईल थे. हो सकता है यहूदी इससे कुछ इख़्तलाफ़ रखते हों कि वह इस्माईल के भाई इसहाक के वंसज हैं मगर हैं तो बहरहाल रिश्ते दार. 
अब इस मुश्तरका विरासत पर सैकड़ों साल बाद कोई नया दल आकर अपना हक़ तलवार की ज़ोर पर क़ायम करे तो झगडे की बुनियाद तो पड़ती ही है. 
इस तरह मुसलामानों ने यहूदियों और ईसाइयों से, 
न ख़त्म होने वाला बैर ख़रीदा है. 
अल्लाह के वादे की ख़िलाफ़ वर्ज़ी के बाद मुहम्मद की बरबरियत की यह शुरुआत है. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 24 March 2018

Hindu Dharm 157



धर्म
 (1)
दुन्या के तमाम धर्मों का गहराई के साथ अध्यन करने वाले और उसके बाद सिर्फ़ मानव धर्म को श्रेष्ट बतलाने वाले सर्व धर्म कोष के लेखक डा.राम स्वरुप ऋषिकेश कहते हैं - - - 

हिन्दू कहते हैं जो वेदों में लिखा है वह धर्म है , 
पारसी कहते हैं जो अहुन वइर्यो में लिखा है वह सत्य है , 
जैन कहते हैं जो जैन सूत्रों में लिखा है वह धर्म है , 
बौद्ध कहते है जो त्रिपटक में लिखा है वह धर्म है ,
ईसाई कहते हैं जो बाइबिल में लिखा है वह धर्म है , 
मुसलमान कहते हैं जो क़ुरआन में लिखा है वह धर्म है,
 सिख कहता है जो गुरु ग्रन्थ में है वह सत्य है - - - 
इस तरह अलग अलग फ़िरक़ों के अलग अलग धर्म है, 
कोई मुश्तरका ग्रन्थ नहीं है जिसको सब बिना शक शुबहा किए हुए मान लें कि यह है हम सब का धर्म.  
शायद कोई ऐसी किताब नहीं, 
वजह ?
उपरोक्त सभी किताबें विभिन्न धर्मों की अपनी अपनी हैं.  
क्योंकि यह सब विभिन्न वक़तों में, विभिन्न हालात में और विभिन्न धर्म गुरुओं द्वारा अलग अलग भाषा में लिखी गई हैं.  
ऐसी हालत में किताबों में यकसानियत संभव नहीं. 
सच्चाई ये है कि हर एक का पूज्य, आत्मा, देवी देवता, जन्नत दोज़ख़, पुनर जन्म, नजात, कायनात और क़यामत वग़ैरा के विषय इतने सूक्ष्म हैं कि इन पर बहस सदियों से करते चले आ रहे हैं और सदियों तक करते रहेंगे मगर इंसान आपस में सहमत नहीं हो पाएगा. 
तो फिर क्या किया जाए ?

धर्म 
(२) 

दुन्या के १२ प्रमुख धर्म 
हमारे ख़याल से मुख़्तलिफ़ फ़िरक़ों के बुद्धि जीवी और आलिमों की जानिबदारी से ऊपर उठ कर इस विषय पर तबादला ए ख़याल करना चाहिए. 
लेकिन इन्हें इस ख़ास बातों पर ध्यान देना चाहिए ताकि मानव मात्र आपस में प्यार और मुहब्बत से जी सकें। 
सभी धारमिक किताबों मेँ अच्छी बातेँ बिख़री पड़ी हैं. 
भूल हमाऱी है कि  हम इन फ़ितरी अमल की बातों को भुला कर बारीक  बीनी करके मन्तक़ी ख़ुराफ़ातों को लेकर सर फुटव्वल कर रहे हैं. 
तो आइए हम ज़रूरी बातें करें- - - 

मुहब्बत - - - 
इंसानी दोस्ती सबसे ज़यादा क़रीब लाने वाला जज़बा है ,
नफ़रत मुहब्बत को दूर करती है,
मुहब्बत अजनबियों को भी सगा बना लेती है ,
और नफ़रत सगों को भी बेगाना कर देती है ,
इस लिए हम लोगों को अहद करना चाहिए कि हम 
किसी भी देश, 
किसी भी तबक़े 
किसी भी फ़िर्क़े 
और किसी भी रंग रूप वाले से नफ़रत नहीं करेंगे, 
हम सभी से मीठी बातें  करेंगे, 
और पुर ख़ुलूस सुलूक रवा रक्खेंगे ,
किसी पर मुसीबत आने पर इसके मददगार होंगे.

नरम गोशा ---
हम अगर अपने दिल में झांक कर देखें तो पाएंगे कि इसमें नरमी की कमी है, तमकनत ज़्यादा है. इसी लिए हम अपने देश, अपनी ज़ात, और अपने मज़हब पर फ़ख्र करते हैं और दूसरों को कमतर समझते हैं.  
हमें खुद को इतना संतुलित रखना चाहिए कि दूसरे हमें अपना भाई समझें.

फ़िराख़ दिली - - - 
दिल की कुशादगी और दरिया दिली हमारी रूह को निखारती है. 
इसके बर अक्स तंग दिली और तअस्सुब हमारी रूह को आलूदा करती है. 
 कट्टर लोग दूसरे के ख़याल को सुनना पसंद नहीं करते, 
दूसरे के इबादत गाहों में जाना पसंद नहीं करते. 
वह अपने ही अक़ीदों, रवायतों और ढकोसलों को सही मानते हैं.
 बाक़ियों को ग़लत.
 यही वजह है कि वह अपने को दूसरों से बरतर समझते हैं.

दर गुज़री - - - 
कई बार मुआफ़ी और रहम में कुछ गड़बड़ हो जाती है.
 बुनयादी तौर पर बेबसों और मोहताजों पर रहम खाया जाता है 
और मुजरिम को मुआफ़ किया जाता है.
 भूल कर जुर्म करने वाले मुजरिम को एक बार मुआफ़ किया जा सकता है मगर पेशावर और आदी मुजरिम को सज़ा होनी चाहिए.

मेहनत कशी - - -
हमारे बच्चों और बूढ़ों को छोड़ कर काम करने की शर्त हर बाशिदे पर होना चाहिए.
  काम ज़ेहनी हो या जिस्मानी मगर हो रचनात्मक.
(धर्म और मज़हब के धंधे बाज़ों पर भी मशक्क़त लागू हो) 

इंसाफ़ ---
हर शहरी को न्याय बिना भेद भाव के मिले. 
सब्र, संतोष, संतुलन, सत्य सफ़ाई और शिक्षा के शीर्षक पर क़ायम सुतून हों. इनके रौशन चराग़ की लवें ऐसी हों कि हर किसी के दिल व दिमाग़ तक पहुँचे. 
*****

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 23 March 2018

oorah Infaal 8 Q 5 Last

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इंफ़ाल - 8 
(क़िस्त-5)


अपने पाठकों को एक बार फिर मैं यक़ीन दिला दूं कि मैं उसी तबक़े का जगा हुआ फ़र्द हूँ जिसके आप हैं. 
मुझको आप पर तरस के साथ साथ हँसी भी आती है, जब आप हमें झूठा लिखते हैं, जिसका मतलब है आप ख़ुद तस्लीम कर रहे हैं कि आपका अल्लाह और उसका रसूल झूठ है, क्यूँकि मैं तो मशहूर आलिम मौलाना शौकत अली थानवी के क़ुरआनी तर्जुमे को और इमाम बुख़ारी की हदीस को ही नक़्ल करता हूँ और अपने मशविरे में अक़ीदत नहीं अक़्ल-सलीम रखता हूँ. 
मैं मुसलमानों का सच्चा हमदर्द हूँ. 
दीगर धर्मों में इस्लाम से बद तर बातें हैं, 
हुआ करें, उनमें इस्लाह-ए- मुआशरा हो रहा है, 
इसकी ज़रुरत मुसलमानों को ख़ास कर है. 
अगर आप अक़ीदे की फ़रसूदा राह तर्क करके इंसानियत की ठोस सड़क पर आ जाएँ तो, दूसरे भी आप की पैरवी में आप के पीछे और आपके साथ होंगे.

 चलिए अब अल्लाह की राह पर जहाँ वह मुसलमानों को पहाड़े पढ़ा रहा है 2x2 =५

देखिए कि इंसानी सरों को उनके तनों से जुदा करने के क्या क्या फ़ायदे हैं  
''बिला शुबहा बद तरीन ख़लायाक़ अल्लाह तअला के नज़दीक ये काफ़िर लोग हैं, तो ईमान न लाएंगे''
सूरह -इंफाल - ८ पारा 9 आयत ( ५५)



और ख़ूब तरीन मोमिन हो जाएँ अगर ईमान लाकर तुम्हारे साथ तुम्हारे गढ़े हुए अल्लाह की राह पर ख़ून ख़राबा के लिए चल पड़ें. जेहालत की राह पर अपनी नस्लों को छोड़ कर मुहम्मदुर रसूलिल्लाह कहते हुए इस बेहोशी के आलम में रुख़सत हो जाएँ.




''और काफ़िर लोग अपने को ख़याल न करें कि वह बच गए. यक़ीनन वह लोग आजिज़ नहीं कर सकते.''

सूरह -इंफाल - ८ पारा 9 आयत ( ५९)


क़ूवत वाला अल्लाह, मेराक़ी शौहर की बीवी की तरह आजिज़ भी होता है ?

क्या क्या ख़सलतें मुहम्मद ने अपने अल्लाह में पैदा कर रखी है.
वह कमज़ोर, बीमार और चिडचिड़े बन्दों की तरह आजिज़ो-बेज़ार भी होता है, वह अय्यारव मक्कार की तरह चालों पर चालें चलने वाला भी है,
वह क़ल्ब ए सियाह की तरह मुन्तक़िम भी है, वह चुगल खो़र भी है,
अपने नबी की बीवियों की बातें इधर की उधर, 
नबी के कान में भर के मियाँ बीवी में निफ़ाक़ भी डालता है.
कभी झूट और कभी वादा ख़िलाफ़ी भी करता है.
आगे आगे देखते जाइए मुहम्मदी अल्लाह की ख़सलतें.
यह किरदार ख़ुद मुहम्मद के किरदार की आइना दार हैं. 
तरीख़ इस्लाम इसकी गवाह है,
जिसकी उलटी तस्वीर यह इस्लामी मुसन्नफ़ीन और ओलिमा आप को दिखला कर गुमराह किए हुए हैं.
आप इनकी तहरीरों पर भरोसा करके पामाल हुए जा रहे हैं, 
तब भी आप को होश नहीं आ रहा. 
लिल्लाह अपनी नस्लों पर रहम खाइए.
 
''वह वही है जिसने आप को अपनी इमदाद से और मुसलमानों को क़ूवत दी और इनके दिलों में इत्तेफ़ाक पैदा कर दिया. अगर आप दुन्या भर की दौलत ख़र्च करते तो इन के क़ुलूब में इत्तेफ़ाक़ पैदा न कर पाते. लेकिन अल्लाह ने ही इन के दिलों में इत्तेफ़ाक़ पैदा कर दिया. बेशक वह ज़बरदस्त है और हिकमत वाला है.''
सूरह -इंफाल - ८ पारा 9 आयत  (६३)



इंसान अपनी फ़ितरत में लालची होता है और अगर पेट की रोटी किसी अमल से जुड़ जाए तो वह अमल जायज़ लगने लगता है, जब कोई पैगंबर बन कर इसकी ताईद करे तो फिर इस अमल में सवाब भी नज़र आने लगता है. 
यही पेट की रोटी भुखमरे अरबी मुसलामानों में इत्तेहाद और इत्तेफ़ाक़ पैदा करती है जिसे अल्लाह की इनायत मनवाया जा रहा है. 
मुहम्मद अपनी ज़ेहानत ए बेजा की पकड़ को अल्लाह की हिकमत क़रार दे रहे हैं. जंगी तय्यारियों से इंसानी सरों को तन से जुदा करने की साज़िश को अपने अल्लाह की मर्ज़ी बतला रहे हैं.




''ऐ पैग़म्बर! आप मोमनीन को जेहाद की तरग़ीब दीजिए. अगर तुम में से बीस आदमी साबित क़दम होंगे तो दो सौ पर ग़ालिब आ जाएँगे और अगर तुम में सौ होंगे तो एक हज़ार पर ग़ालिब आ जाएंगे.''

सूरह -इंफाल - ८ पारा 9 आयत  (६४)



मुहम्मदी अल्लाह अपने रसूल को गणित पढ़ा रहा है, मुसलमान क़ौम उसका हाफ़िज़ा करके अपने बिरादरी को अपाहिज बना रही और इन इंसानी ख़ून ख़राबे की आयातों से अपनी आक़बत सजा और संवार रही है, अपने मुर्दों को बख़्शवा रही है, इतना ही नहीं इनके हवाले अपने बच्चों को भी कर रही है. इसी यक़ीन को लेकर क़ुदरत की बख़्शी हुई इस हसीन नेमत को ख़ुद सोज़ बमों के हवाले कर रही है. 
क्या एक दिन ऐसा भी आ सकता है की मुसलमान इस दुन्या से नापैद हो जाएं जैसा कि ख़ुद रसूल ने एहसासे जुर्म के तहत अपनी हदीसों में पेशीन गोई भी की है.




मुहम्मद अल्लाह के कलाम के मार्फ़त अपने जाल में आए हुए मुसलमानों को इस इतरह उकसाते हैं - - -

''तुम में हिम्मत की कमी है, इस लिए अल्लाह ने तख़फ़ीफ़ (कमी) कर दी है, सो अगर तुम में के सौ आदमी साबित क़दम रहने वाले होंगे तो वह दो सौ पर ग़ालिब होंगे. नबी के लायक़ नहीं की यह इनके क़ैदी रहें,
जब कि वह ज़मीन पर अच्छी तरह ख़ून रेज़ी न कर लें.  
सो तुम दुन्या का माल व असबाब चाहते हो और अल्लाह आख़िरत को चाहता है और अल्लाह तअला बड़े ज़बरदस्त हैं और बड़े हिकमत वाले हैं.''
सूरह -इंफाल - ८ पारा 9 आयत  (६७)



इसके पहले अल्लाह एक मुसलमान को दस काफ़िरों पर भारी पड़ने का वादा करता है मगर उसका तख़मीना बनियों के हिसाब की तरह कुछ ग़लत लगा तो अपने रियायत में बख़ील हो रहा है.

अब वह दो काफ़िरों पर एक मुसलमान को मुक़ाबिले में बराबर ठहरता है।
अल्लाह नहीं मल्लाह है नाव खेते खेते हौसले पस्त हो रहे हैं.
इधर संग दिल मुहम्मद को क़ैदी पालना पसंद नहीं,
चाहते है इस ज़मीन पर खूब अच्छी तरह ख़ून रेज़ी हो जाए ,
काफ़िर मरें चाहे मुस्लिम उनकी बला से. 
मरेगे तो इंसान ही जिन के वह दुश्मन हैं,
तबई दुश्मन, फ़ितरी दुश्मन, जो बचें वह ज़ेहनी ग़ुलाम और लौंडियाँ.
और वह उनके परवर दिगार बन कर मुस्कुराएँ.
मुहम्मद पुर अमन तो किसी को रहने ही नहीं देना चाहते थे, 
चाहे वह मुसलमान हो चुके सीधे, टेढ़े लोग हों, 
चाहे मासूम और ज़हीन काफ़िर.
दुन्या के तमाम मुसलमानों के सामने यह फ़रेबी क़ुरआन के रसूली फ़रमान मौजूद हैं मगर ज़बान ए ग़ैर में जोकि वास्ते तिलावत है.
इस्लाम के मुजरिमान ए दीन डेढ़ हज़ार साल से इस क़दर झूट का प्रचार कर रहे हैं कि झूट सच ही नहीं बल्कि पवित्र भी हो चुका है,
मगर यह पवित्रता बहर सूरत अंगार पर बिछी हुई राख की परत की तरह है. अगर मुसलमानों ने आँखें न खोलीं तो वह इसी अंगार में एक रोज़ भस्म हो जाएँगे, उनको अल्लाह की दोज़ख़ भी नसीब न होगी.
 
ऊपर की इन आयातों में मुहम्मदी अल्लाह नव मुस्लिम बने लोगों को जेहाद के लिए वरग़लाता है, इनके लिए कोई हद, कोई मंज़िल नहीं, बस लड़ते जाओ, मरो, मारो वास्ते सवाब. 
सवाब ?
एक पुर फ़रेब तसव्वुर, एक कल्पना, एक मफ़रूज़ा जन्नत, ख़यालों में बसी हूरें और लामतनाही ऐश की ज़िन्दगी जहाँ शराब और शबाब मुफ़्त, बीमारी आज़ारी का नम व निशान नहीं.
कौन बेवक़ूफ़ इन बातों का यक़ीन करके इस दुन्या की अज़ाबी ज़िन्दगी से नजात न चाहेगा?
हर बेवक़ूफ़ इस ख़्वाब में मुब्तिला है.
मुहम्मद कहते हैं कि पहला हल तो यहीं दुन्या में धरा हुवा है, 
जंग जीते तो ज़न, ज़र, ज़मीन तुम्हारे क़दमों में, 
हारे, तो शहीद हुए इस से वहाँ लाख गुना रक्खा है.
अजीब बात है कि ख़ुद मुहम्मद ठाठ बाट की शाही ज़िन्दगी जीना पसंद नहीं करते थे, न महेल, न रानियाँ, पट रानियाँ, न सामान ए ऐश.
मरने के बाद विरासत में उनके खाते में बाँटने लायक कुछ ख़ास न था.
वह ऐसे भी नहीं थे कि अवामी फलाह की अहमियत की समझ रखते हों,
कोई शाह राह बनवाई हो,
कुएँ खुदवाए हों,
मुसाफ़िर ख़ाने तामीर कराए हों,
तालीमी इदारे क़ायम किया हो.
यह काम अगर उनकी तहरीक होती तो आज मुसलामानों की सूरत ही कुछ और होती.
मुहम्मद काफ़िरों, मुशरिकों, यहूदियों, ईसाइयों, आतिश परस्तों और मुल्हिदों के दुश्मन थे, तो मुसलमानों के भी दोस्त न थे.
मामूली इख़्तलाफ़ पर एक लम्हा में वह अपने साथी मुस्लमान को मस्जिद के अन्दर इशारों इशारों में काफ़िर कह देते.
उनके अल्लाह की राह में फ़िराख़ दिली से ख़र्च न करने वाले को जहन्नुमी क़रार दे देते.
उनकी इस ख़सलत का असर पूरी क़ौम पर रोज़े अव्वल से लेकर आज तक है.
उनके मरते ही आपस में मुसलमान ऐसे लड़ मरे की काफ़िरों को बदला लेने की ज़रुरत ही न पड़ी.
गोकि जेहाद इस्लाम का कोई रुक्न नहीं मगर जेहाद क़ुरान का फ़रमान- ए-अज़ीम है जो कि मुसलमानों के घुट्टी में बसा हुवा है. 
क़ुरान मुहम्मद की वाणी है, जिसमे उन्हों ने उम्मियत की हर अदा से चाल घात के उन पहलुओं को छुआ है जो इंसान को मुतास्सिर कर सकें.
अपनी बातों से मुहम्मद ने ईसा, मूसा बनने की कोशिश की है, बल्कि उनसे भी आगे बढ़ जाने की.
इसके लिए उन्हों ने किसी के साथ समझौता नहीं किया, चाहे सदाक़त हो, चाहे शराफ़त, चाहे उनके चचा और दादा हों, 
यहाँ तक की चाहे उनका ज़मीर हो.
अपनी तालीमी कमियों को जानते हुए, अपने खोखले कलाम को मानते हुए, वह अड़े रहे कि ख़ुद को अल्लाह का रसूल तस्लीम कराना है.
मुहम्मद का अनोखा फ़ार्मूला था लूट मार के माल को ''माल ए ग़नीमत'' क़रार देना.यानी इज्तेमाई डकैती को ज़रीया मुआश बनाना. 
बेकारों को रोज़ी मिल गई थी. बाक़ी दुन्या पर मुसलमान ग़ालिब हो गए थे. आज बाक़ी दुन्या मिल कर मुसलामानों की घेरा बंदी कर रही है,
तो कोई हैरत की बात नहीं.

मुसलमानों को चाहिए कि वह अपने गरेबान में मुँह डाल कर देखें और तर्क इस्लाम करके मजहब ए इंसानियत अपनाएं जो इंसान का असली रंग रूप है. सारे धर्म नक़ली रंग व रोग़न में रंगे हुए हैं सिर्फ़ और सिर्फ़ इंसानियत ही इंसान का असली धर्म है जो उसके अन्दर ख़ुद से फूटता रहता है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 22 March 2018

Hindu Dharm 156 V



वेद दर्शन 
                        
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 
हे शत्रु नाशक इन्द्र! 
तुम्हारे आश्रय में रहने से शत्रु और मित्र सही हमको ऐश्वर्य्दान बताते हैं |६| यज्ञ को शोभित करने वाले, आनंदप्रद, प्रसन्नतादायक तथा यज्ञ को शोभित करने वाले सोम को इन्द्र के लिए अर्पित करो |१७| हे सैंकड़ों यज्ञ वाले इन्द्र ! इस सोम पान से बलिष्ठ हुए तुम दैत्यों के नाशक हुए. इसी के बल से तुम युद्धों में सेनाओं की रक्षा करते हो |८| हे शत्कर्मा इन्द्र ! युद्धों में बल प्रदान करने वाले तुम्हें हम ऐश्वर्य के निमित्त हविश्यांत भेंट करते हैं |९| धन-रक्षक,दू:खों को दूर करने वाले, यग्य करने वालों से प्रेम करने वाले इन्द्र की स्तुतियाँ गाओ. (ऋग्वेद १.२.४) 
* कहाँ पर कोई धर्म या मानव समाज के लिए शुभ बातें कही गई हैं इन वेदों में. 
सच पूछो तो इनको अब दफना देना चाहिए.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 21 March 2018

Soorah Infaal 8 Q 4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
**************


सूरह इंफ़ाल - ८
(क़िस्त-4)
क़ुरान की हक़ीक़ी सूरत देखें - - - 

''और जब उन लोगों ने कहा ऐ अल्लाह ! अगर यह आप की तरफ़ से वाक़ई है तो हम पर आसमान से पत्थर बरसाइए या हम पर कोई दर्द नाक अज़ाब नाज़िल कर दीजिए.''
सूरह इंफाल - ८  पारा 9
काफ़िरों का बहुत ही जायज़ एहतेजाज था, 
और मुहम्मद के लिए यह एक चुनौती थी.

''और तुम उन कुफ़्फ़ारो से इस हद तक लड़ो की उन्हें फ़साद ए अक़ीदत न रहे और दीन अल्लाह का ही क़ायम हो जाए, फिर अगर वह बअज़ आ जाएँ तो अल्लाह उनके आमाल को खूब देखते हैं.''
ऐसी जिहादी आयतों से क़ुरआन भरा पड़ा है, जिस पर तालिबान जैसे पागल अमल कर रहे है और कुत्तों की मौत मारे जा रहे है, साथ में मुस्लिम नाडान अवाम भी .
सूरह इंफाल - ८  पारा 9

''और जान लो जो शै बतौर ग़नीमत तुम को हासिल हो, तो कुल का पाँचवां हिस्सा अल्लाह और उसके रसूल का है और आप के क़राबत दारों का है और यतीमो का है और ग़रीबों का है और मुसाफ़िरों का है, अगर तुम अल्लाह पर यक़ीन रखते हो तो.''
सूरह इंफाल ८ नौवाँ पारारा आयत ( ३२ - ३९ - ४१)

मैं एक बार फिर अपने पाठकों को बतला दूं कि जंग में लूटे हुए माल को मुहम्मद ने माले ग़नीमत नाम दिया और इसको ज़रीया मुआश का एक साधन क़रार दिया.
यह बात पहले लूट मार और डकैती जैसे बुरे नाम से जानी जाती थी जिसको उन्होंने वहियों के नाटक से अपने ऊपर जायज़ कराया. 
माल ए ग़नीमत के बटवारे का क़ानून भी अल्लाह बतलाता है ,
वह अपना पांचवां हिस्सा आसमान से उतर कर ले जाता है, 
उसके बाद यतीमों, गरीबों और मुफ़लिसों का हिस्सा  क़ायम करके रसूल अपने यहाँ रखवाते, बाद में मनमानी ढ़ंग से अपने अपनों में बांटते. 
उनके बाद उनके वारिसों ने इसे भी हड़प लिया. (देखें हसन को ) 
कहीं कोई इदारह ए फ़लाह व बहबूद उनकी ज़िन्दगी में अवाम के लिए क़ायम नहीं हुवा. 
वह ख़ुद लूट के माल को अपने मुसाहिबों में तक़सीम करके अपनी शान बघारते, (देखें हदीसें)
जो बुनयादी फ़ायदे होते उससे क़ुरैशियो की जड़ें मज़बूत होती रहतीं. 
उनकी मौत के बाद ही उनकी सींची हुई बाग़ क़ुरैशियों के लिए लहलहा उट्ठी, अली हसन, हुसैन और यजीद इस्लामी शहज़ादे बन कर उभरे. 
कुछ रद्दे-अमल में क़त्ल हुए और कुछ आज तक फल फूल रहे हैं.
हमें बाहैसियत हिंदुस्तानी क्या फ़ायदा है ? 
कि हम न अरब हैं, न क़ुरैश हैं और हम न अल्वी न यजीदी हैं, 
हम भारतीय हैं, 
हम भला इस्लाम के ज़द में आकर क्यों इसके शिकार बने हुए है?

''इस ने अपनी हिकमत अमली से कभी दुश्मनों को मोमिनों के लश्कर को कसीर दिखला कर और कभी मोमिनों की हौसलों को बढ़ाने के लिए काफ़िरों के फ़ौज को मुख़्तसर दिखलाया .''
सूरह इंफाल - ८  पारा 9  आयत ( ४३)

मुहम्मद को अपने अल्लाह से दग़ाबाजी का काम कराने से भी कोई परहेज़ नहीं . वह तो ख़याली अल्लाह ठहरा.
नादान भोले भाले मुसलमान तो इसकी गहराई में जाते ही नहीं, 
मगर यह तालीम याफ़्ता मुसलमान इस बात को नज़र अंदाज़ करके क़ौम को पस्ती में डाले हुए हैं. अगर यह आगे आएँ तो वह (अवाम) इनके पीछे चलने की हिम्मत कर सकते है.

''काफ़िरों को हिम्मत बंधाने वाला शैतान, मुसलमानों के लिए मदद आता देख कर, सर पर पाँव रखकर भागता है, यह कहते हुए कि मैं तो अल्लाह से डरता हूँ.
सूरह इंफाल - ८  पारा 9  आयत ( 48 )

यह है मुसलामानों तुम्हारा क़ुरआन और तुम्हारा दीन जो कि बच्चों को दिल बहलाने के लिए किसी कार्टून फिल्म के किरदार की तरह है. 
क्या इसी पर तुम्हारा ईमान है? 
क्या तुम इस पर कभी शर्मिंदा नहीं होते? 
या तुम को यह सब कुछ बतलाया ही नहीं जाता, 
तुमसे क्यूँ यह बातें छिपाई जाती हैं? 
या फिर तुम हिन्दुओं के देवी देवताओं की पौराणिक कथाओं को जानते हुए इन बातों को उन से बेहतर मानते हो? 
ज़रा सोचो मुहम्मद ने किस समझदार शैतान को तुमको बहकाने के लिए गढ़ा है कि तुम सदियों से उसकी गुमराही में भटकते रहोगे .
आँखें खोलो.
उम्मी मुहम्मद अपने गढ़ी हुई मख़लूक़ को समझाते हैं - - - 
चूँकि शैतान भी अल्लाह से डरता है, इस लिए तुमको भी अल्लाह से डरना चाहिए. और यह मख़लूक़ इस बात को समझ ही नहीं पाती कि बेवक़ूफ़ मुहम्मद उससे शैतान की पैरवी करा रहे है. 

''देखें जब यह फ़रिश्ते काफ़िरों की जान कब्ज़ करने जाते हैं और आग की सज़ा झेलना, ये इसकी वजेह से है कि तुम ने अपने हाथों समेटे हैं कि अल्लाह बन्दों पे ज़ुल्म नहीं करता.''
सूरह इंफाल - ८  पारा 9  आयत ( ५०-५१)

वाह ! कितने रहम दिल हैं अल्लाह मियाँ. 
ख़ुद ज़ुल्म नहीं करते बल्कि अपने फ़रिश्तों से ज़ुल्म कराते है 
 इस्लाम क़ुबूल करने के बाद मुसलमान हर वक़्त डरा और सहमा रहता है, अपने अल्लाह से.
क्यूँ ? 
क्या उसका जुर्म यह है कि वह उसकी धरती पर पैदा हो गया? 
मगर वह अपनी मर्ज़ी से कहाँ इस दुन्या में आया? 
वह तो अपने माँ बाप के उमंग और आरज़ू का नतीजा है. 
उसके बाद भी मेहनत और मशक्क़त से दो वक़्त की रोज़ी रोटी कमाता है, 
उसके लिए मुहम्मदी अल्लाह को टेक्स दे? 
उस से डरे उसके सामने मत्था टेके ??, 
गिड़गिडाए ??? 
भला क्यूं????
अपने वजूद को दोज़ख के न बुझने वाले अंगारों के हवाले करने का यqeeन क्यूं करें?????

''बिला शुबहा अल्लाह तअला बड़ी क़ूवत वाले हैं''
सूरह इंफाल - ८  पारा 9  आयत ( ५२)

जो ''कुन'' कह कर इतनी बड़ी कायनात की तख़लीक़ करदे उसकी क़ूवत का यक़ीन एक अदना बन्दा से क्यूँ करा रहा है

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 20 March 2018

Hindu Dharm Darshan- 155



कोण दीर्घ और न्यून 

पक्का हिन्दू मुसलमानों का दुश्मन, 
और कट्टर मुसलमान हिन्दुओ का दुश्मन होता है, 
नास्तिक इन दोनों को नहीं पचता, 
नास्तिकों को यह दोनों अपना दुश्मन न. 1 जानते हैं. 
यहाँ वह फार्मूला नहीं काम करता कि 
"दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त" 
त्रिभुज में नास्तिक १५० अंश का दीर्घ कोण होता है 
यह दोनों धर्मी 15-15 अंश के न्यून कोण होते हैं. 
हिन्दू और मुस्लिम दूर दूर खड़े रह कर, 
अपनी न्यूनता की संकीर्णता से नास्तिकता की दीर्घता को देखा करते हैं 
कि जिस दिन यह पूर्ण हो जाएगा, उस दिन हमारे वजूद का अंत हो जाएगा.
दुन्या को एक सीधी १८० डिग्री की सड़क मिल जाएगी.
नास्तिकता इन दोनों या सभी धर्मियों का साँझा दुश्मन है. 
मैं सदाक़त का मतलाशी हूँ, 
सत्य का खोजी हूँ, 
हर वक़्त सच को सर पर लादने के लिए तैयार 
और धर्म व मज़हब हर सच को अवैध गर्भ के फूले पेट को, 
अपने तंग आँचल से ढकने की कोशिश में रहते हैं. 
>हर धर्म, धर्मियों की छोटी बड़ी दुकानें होती हैं.
वह अपने समर्थक सवारियों पर अपने निर्मूल्य और भावुक विचार लादकर बस्तियों में घुमाया करते हैं.
देवालय इनकी केंद्र होते हैं, जहाँ यह अपने देवों को सजाए 
गाहकों का इंतज़ार किया करते हैं.
दुन्या में, खास कर उपमहाद्वीप में धर्म व मज़हब इर्तेका (रचना-काल) के पैरों में बेड़ियाँ डाले हुए हैं. पश्चिम कहाँ से कहाँ पहुँच गया है, 
हम अजानों और घंटा घडियालों से लोगों की नीदें हराम किए हुए हैं. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान